What is Astrology in Hindi ज्योतिष क्या है?, ज्योतिष शास्त्र कितना पुराना है?, वेद के अंग?, ज्योतिष शास्त्र का अर्थ?, ज्योतिष का मानव से संबंध? आदि ऐसे ही बहुत सारे प्रश्न हमारे मस्तिष्क में विद्यमान रहते ही हैं और क्यों ना रहें जब ज्योतिष शास्त्र में भ्रम जो प्रचलित है लेकिन कोई ना आज के इस लेख में हम ज्योतिष शास्त्र को सैद्धांतिक स्वरूप प्रदान करने की कोशिश करेंगे। नमस्ते, राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए शुरू करते हैं:-
विषय सूची
ज्योतिष क्या है?
What is Astrology in Hindi यहाँ हम बात करेंगे कि ज्योतिष क्या है? इससे पहले मैं आपको बता दूँ कि अगर आप ज्योतिष को अच्छी तरह समझना चाहते हैं तो आपको संस्कृत का ज्ञान होना आवश्यक है लेकिन आपको घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये वेबसाइट इसीलिए तैयार हुई है कि आपको ज्योतिष विद्या आसान से आसान भाषा में समझ आ सके हालाँकि मैंने भी कहीं-कहीं संस्कृत का प्रयोग किया है लेकिन वो केवल समझाने या संदर्भ के उद्देश्य से किया है जिसको समझने में आपको तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होगी।
हाँ आपको संस्कृत पढ़ने की आवश्यकता नहीं है लेकिन संस्कृत भाषा का प्रचलन भारतीय समाज में कब से है इसके बारे में आपको जरूर पता होना चाहिए लेकिन फ़िलहाल हम संस्कृत के विषय में बाद में बात करेंगे किन्तु यहाँ हम वेदों से बात शुरू करके वेदों में ज्योतिष शास्त्र की महत्ता का वर्णन करेंगे।
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ज्योतिष शास्त्र कितना पुराना है?
ज्योतिष शास्त्र कितना पुराना है? इस बात का अंदाजा हम वेदों से लगा सकते हैं, वेदों में जो बातें लिखित है उन बातों का सही समय जानने के लिए वेद के अंग के रूप में ज्योतिषशास्त्र का उपयोग होता है। लगध ने “वेदांगज्योतिष” लिखा जिसका समय शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने ईशा के जन्म के 1400 साल पहले का सिद्ध किया है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि वेद यज्ञ-अनुष्ठानों के लिए बना है और यज्ञ समय के अनुसार ही होता है इसलिए जो ज्योतिष शास्त्र को जानता है वही यज्ञ का ज्ञान रखता है अर्थात् समय को पहचानता है।
वेद के अंग
वेद के अंग में ज्योतिषशास्त्र भी शामिल है। भारतीय साहित्य के इतिहास में वेद को सभी विद्याओं का मूल कहा गया है। वेद के 6 अंग है- Education(शिक्षा), Aeon(कल्प), Grammar(व्याकरण), Nirukta(निरूक्त), Verse(छंद), Astrology(ज्योतिष) ज्योतिषशास्त्र को आचार्यों ने वेदों का वास्तविक रूप माना है। भास्कराचार्य ने सिद्धांतशिरोमणि में ज्योतिष को दोषरहित बताया है इसलिए ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान मानव के जीवन में घटित होने वाली शुभाशुभ घटनाओं को जानने के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।
ज्योतिष का अर्थ
ज्योतिषशास्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है ज्योतिष+शास्त्र, ज्योतिष की उत्पत्ति “घुतेरिसिन्नादेशश्च जः” सूत्र से हुई है और शास्त्र “शासनात् या शास्त्रम्” से बना है। इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र का अर्थ है ग्रह-नक्षत्र आदि प्रकाशपिंडो के माध्यम से सत्य का ज्ञान कराने वाला शास्त्र। सूर्य और सभी ग्रह और काल का बोध कराने वाला शास्त्र ज्योतिष शास्त्र कहलाता है। जिसके अंतर्गत ग्रह, नक्षत्र, ग्रहाचार, उदय-अस्त, धूमकेतु, ग्रहों का परिभ्रमण, ग्रहण, ग्रहों की स्थिति और उनका मानव जीवन पर प्रभाव आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र का अन्य नाम ज्योतिःशास्त्र भी है जिसका अर्थ प्रकाशदायक अथवा प्रकाश से संबंधित शास्त्र होता है। अर्थात् जिस शास्त्र से संसार का मर्म, जीवन मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दुःख के संबंध में पूर्णप्रकाश प्राप्त होता है वह ज्योतिषशास्त्र है। ग्रह नक्षत्रादि खगोलीय ज्योतिष पिंडो का प्रतिपादन जिसमें हो वह ज्योतिष कहलाता है अथवा जिस शास्त्र में ग्रह-नक्षत्र विज्ञान तथा संसार के शुभाशुभ का ज्ञान हो उसे ज्योतिष कहते हैं।
ज्योतिष का मानव से संबंध
ज्योतिषशास्त्र का सम्बंध मनुष्य के जन्म-जन्मान्तरों से जुड़ा हुआ है। ज्योतिषशास्त्र का दूसरा नाम “कालविधान शास्त्र” है। क्योंकि काल का निरूपण भी ज्योतिषशास्त्र द्वारा ही होता है। काल के प्रभाव के सम्बन्ध में ‘कालाधीनं जगत् सर्वम्’ तथा ‘काले सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः’ ये सूक्तियां ही प्रसिद्ध हैं। मानव जीवन काल तथा कर्म के अधीन होता है। जैसा कि आचार्य वराहमिहिर ने लघुजातक ग्रंथ में लिखा है कि,”पूर्वजन्म के कर्म अनुसार ही मनुष्य का जन्म, उसकी प्रवृत्तियाँ तथा उसके भाग्य का निर्माण होता है”।
जीव की रचना
इस ब्रह्मांड में जो भी चराचर जीव हैं उनमें पंचमहाभूत, 3 गुण(सत्व, रज, तम) 7 प्रकार की धातुएं आदि ग्रह-नक्षत्र आदि के प्रभाव से रहते हैं। इनमें से किसी में पार्थिव तत्व अधिक पाया जाता है तो किसी में जल, किसी में अग्नि तत्व, किसी में वायु तत्व तो किसी में आकाश तत्व का अंश अधिक होता है। किसी जातक में सत्वगुण, किसी में तमोगुण तो किसी में रजोगुण अधिक होता है।
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक संरचना भी विशेष प्रकार की होती है। इन सभी परिस्थितियों का कारण ग्रहों का योगबल है। जिस जातक का जैसा पूर्व जन्म में अर्जित कर्म रहता है वह उसी प्रकार की ग्रहस्थिति में उत्पन्न होकर जीवन भर कर्म के अनुसार शुभाशुभ फल का भोग करता रहता है। इन सभी विषय के सिद्धांतों का ऋषि-महर्षियों ने प्रवर्तन किया और वे सिद्धांत ही ज्योतिष शास्त्र का मूल आधार बने।
ज्योतिष शास्त्र की समीक्षा
यहां पर ज्योतिष शास्त्र का परिचय समाप्त करता हूँ अगर ये पोस्ट आपको अच्छा लगा हो तो आप कमेंट करिए और आप मुझे कुछ सुझाव देना चाहते हो तो वो भी अवश्य दीजिए, वैसे तो मैंने आसान से आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया है लेकिन आपको अगर और भी आसान भाषा में पढ़ना हो तो मैं आने वाली पोस्ट पर और भी आसान भाषा का प्रयोग करने की कोशिश करूंगा, आने वाली पोस्ट ज्योतिष शास्त्र के इतिहास के बारे में होगी अगर आप मेरी वेबसाइट पर बने रहते हैं तो मैं ज्योतिष से संबंधित सभी बिंदुओं पर धीरे-धीरे प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा।
परेशान ना होईये कुंडली को पढ़ना, समझना, समस्या समाधान करना, फलकथन इत्यादि करना सब कुछ जिसका आपको इंतजार है वो सब सिखाने की कोशिश करूंगा बस आपको एक काम करना है वेबसाइट पर अपनी ईमेल डाल कर कमेंट्स के माध्यम से अपनी राय देनी है और जानकारी पसंद आती है तो अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना है ताकि अधिक से अधिक महानुभाव ज्योतिष के महत्व को समझ सके और अपनी मह्त्वकांछा को समाप्त कर सकें।
आपसे निवेदन
ज्योतिष शास्त्र का परिचय इतना छोटा नहीं कि इसे एक वाक्य में बतलाया जा सके, इसलिए इसे अनेक आचार्यों ने अलग-अलग रूप में बताया है। जिसमें एक परिभाषा है “ज्योतिषं सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्” अर्थात् जिस शास्त्र में सूर्यादि ग्रहों की गति, स्थिति संबंधित समस्त नियम, एवं उसके भौतिक पदार्थों के उपर पड़ने वाला प्रभाव का वैज्ञानिक रीति से विश्लेषण किया जाता है, उसे ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। आकाश में स्थित ग्रहपिंडो एवं नक्षत्रपिंडों की गति, स्थिति तथा उसके प्रभावादि का निरूपण जिस शास्त्र के अंतर्गत किया जाता है, उसे ज्योतिष कहते हैं। ज्योतिष को अन्य प्रकार से भी परिभाषित करते हैं- ‘ग्रहगणितं ज्योतिषम्’ अर्थात् ग्रहों का गणित जिस शास्त्र के अंतर्गत किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं।
तब तक के लिए नमस्ते! रामराम! जयहिंद- जयभारत।
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