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कुंडली में विष योग
Vish Dosh मानसिक शांति को भंग करने का योग विष दोष जो कुंडली में बनता है शनि चंद्र की युति से। किसी भी लग्न कुंडली में जब ये दोनों ग्रह एकसाथ हों और मारक भी हो तो विष दोष का निर्माण पूर्ण रूप से होता है। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए विष दोष को अपनी कुंडली में देखना समझते हैं।
सिंह लग्न में विष दोष
सबसे पहले हमें ये देखना होगा कि शनि और चंद्र इस लग्न कुंडली में योगकारक होते हैं अथवा मारक। तो चंद्र को सिंह लग्न में 12H मिला है जो कुंडली का अच्छा घर नहीं होता है, कुंडली का गलत घर मिलने के कारण चंद्र इस कुंडली में मारक हुए। अब बात करें शनि को एक 6H और दूसरा 7H का मालिक बनाया गया है। 6H तो कुंडली का अच्छा घर नहीं है लेकिन 7H अच्छा है किन्तु 7H का विश्लेषण अष्टम-द्वादश सिद्धांत के अनुसार किया जाता है।
यदि 7H का मालिक लग्नेश का मित्र हो तो वह योगकारक होता है और यदि शत्रु हो तो वो फिर मारक होता है। चूँकि यहाँ 7H के स्वामी शनि हैं और उनकी लग्नेश सूर्य से शत्रुता है इसलिए शनि भी इस कुण्डली में मारक ग्रहों की श्रेणी में आते हैं। अब जब हमने ये निकाल लिया कि शनि और चंद्र दोनों ही इस कुण्डली में मारक होते हैं तो अब विष दोष को प्रत्येक भाव में समझते हैं कि किस घर में विष दोष बनेगा और किस में नहीं
नियम = दोनों ग्रह मारक होने चाहिए
1H-2H-5H-11H
सिंह लग्न की कुंडली के इन घरों में शनि चंद्र की युति मारक सिद्ध होती है क्योंकि दोनों ही ग्रह मारक होते हैं और विष दोष का निर्माण करती है। इसलिए विष दोष की शांति के लिए दोनों ही ग्रह का उपाय किया जाना चाहिए।
3H
कुंडली के तीसरे घर में शनि उच्च के होते हैं इसलिए यहाँ योगकारक होते हैं लेकिन चंद्र यहाँ मारक होते हैं। अगर शनि चंद्र की युति इस भाव में हो तो केवल चंद्र का उपाय किया जाना चाहिए।
4H
इस घर में शनि मारक होते हैं लेकिन चंद्र नीच के होते हैं। यदि चंद्र का नीच भंग होता है तो चंद्र योगकारक होंगे और नीच भंग राजयोग भी बनायेंगे लेकिन अगर नीच भंग ना हुआ तो शनि और चंद्र दोनों ग्रह मारक हो जायेंगे फिर दोनों ही ग्रह का उपाय करना है लेकिन अगर चंद्र योगकारक हो जाएँ तो केवल शनि का उपाय करना चाहिए।
6H-8H-12H
इनमें से किसी भी घर में शनि चंद्र की युति हुई तो वह विपरित राजयोग भी बना सकती है क्योंकि दोनों ग्रहों की राशियाँ त्रिक भाव में भी हैं। अगर लग्नेश सूर्य हर दृष्टि से बलवान हुए तो दोनों ग्रह विपरित राजयोग अवश्य बनायेंगे और दोनों ही इन घरों में होने के बावजूद भी योगकारक हो जायेंगे। लेकिन यदि राजयोग ना बनायें तो मारक होंगे और विष दोष का निर्माण करेंगे, इसलिए ऐसी स्थिति होने पर दोनों ही ग्रह का उपाय करना चाहिए।
7H
इस घर में शनि स्वराशि होते हैं और स्वराशि होने की वज़ह से ही योगकारक होते हैं और केंद्र में स्वराशि होने की वज़ह से पंच महापुरुष योग में से शश योग भी बनाते हैं। लेकिन चंद्र इस घर में मारक होते हैं।
9H
इस घर में चंद्र मारक होते हैं लेकिन शनि नीच के होते हैं। यदि शनि का नीच भंग होता है तो शनि योगकारक होंगे और नीच भंग राजयोग भी बनायेंगे लेकिन अगर नीच भंग ना हुआ तो शनि और चंद्र दोनों ग्रह मारक हो जायेंगे फिर दोनों ही ग्रह का उपाय करना है लेकिन अगर शनि योगकारक हो जाएँ तो केवल चंद्र का उपाय करना चाहिए।
10H
कुंडली के दसवें घर में चंद्र उच्च के होते हैं इसलिए यहाँ योगकारक होते हैं लेकिन शनि यहाँ मारक होते हैं। अगर शनि चंद्र की युति इस भाव में हो तो केवल शनि का उपाय किया जाना चाहिए।
विष दोष में किसका उपाय करें?
कुंडली का विश्लेषण करते हुए सबसे पहले ये देखना है कि शनि और चंद्र कुंडली में योगकारक हैं अथवा मारक। मारक ग्रह का ही उपाय किया जाता है, अगर आप योगकारक ग्रह को शांत कर देंगे तो उनकी शक्ति छिड़ हो जाएगी जिससे वो जीवन में अपनी योगकारकता नहीं दिखा पाएगा इसलिए अपने ज्योतिषी स्वयं बने और छोटी-मोटी परेशानियों का हल अपनी इच्छानुसार करें।
विष दोष के उपाय
विष दोष के उपाय में निम्नलिखित उपाय सर्वश्रेष्ठ हैं जोकि शनि चंद्र की युति के नकारात्मक प्रभाव को नगण्य करने में सक्षम हैं:-
- क्रीं बीज अक्षर का जाप शाम 6 बजे के बाद रोजाना 108 बार रूद्राक्ष की माला पर;
- शाम को प्रत्येक दिन अपने खाने में से एक रोटी किसी बाहर के कुत्ते को खिलाएं;
- सिद्ध कुंजीका स्त्रोत का पाठ रोजाना सुबह कम-से-कम एक बार।
- चंद्र बीज मंत्र ओउम् सोम सोमाय नमः विष दोष बनने पर चंद्र का बीज मंत्र का जाप जीवनभर नहीं तो कम-से-कम चंद्र की महादशा और अंतर्दशा में तो अवश्य ही करना चाहिए।
- मेडिटेशन ब्रह्ममुहूर्त में किया गया ध्यान विशेष फलदायी होता है। मेडिटेशन से मन शांत और एक जगह कार्य करने के लायक बनता है।
- शिव आराधना प्रत्येक सोमवार को व्रत व्यक्ति को रहना चाहिए और सोमवार को शिवलिंग पर मीठा जल ओउम् नमः शिवाय बोलते हुए अर्पित करना चाहिए; ऐसा करने से मन सुव्यवस्थित होता है।
दान विधि
दान करते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस ग्रह का दान कर रहे हैं वो ग्रह प्रत्येक पहलू से मारक होना चाहिए क्योंकि अगर योगकारक ग्रह का दान किया तो वो शक्तिहीन हो जाता है और जब कोई अच्छा ग्रह जो हमको शुभ फल देने आया था जिसको हम नासमझी में बलहीन कर देते हैं तो फिर वो हमको अच्छे फल नहीं दे पाता है। इसलिए दान केवल मारक ग्रह का ही किया जाता है।
जिस प्रकार उपर्युक्त कुंडली के उदाहरण में देखा ना आपने कि शनि और चंद्र दोनों ही मारक होते हैं लेकिन फिर भी कहीं शनि योगकारक हैं तो कहीं चंद्र और कहीं दोनों ही मारक हैं। तो शनि चंद्र की युति होने से ही विष दोष नहीं बन जाता है उसके लिए दोनों ग्रहों का मारक होना जरूरी होता है तथा ये दोष प्रभाव कितना देगा ये निर्भर करता है कि ग्रहों का अंश बल कितना है, षड़बल से क्या स्थिति है आदि ऐसे ही और भी तथ्य होते हैं जो दोष के प्रभाव को प्रभावित करते हैं।
विनम्र निवेदन
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