Shrapit Dosh लग्न कुंडली में शनि और राहु की युति से बनता है लेकिन यदि दोनों ग्रह कुंडली में योगकारक हों तो यह दोष एक योग के रूप में कार्य करता है और व्यक्ति को चन्द समय में ही करोड़पति बनाने की ताकत रखता है। नमस्ते! राम-राम जिस भी माध्यम से; मुझे नहीं पता- बस आप मेरे साथ जुड़े रहें। तो चलिए समझते हैं श्रापित दोष क्या होता है?
विषय सूची
कुंडली में श्रापित दोष कैसे बनता है?
Shrapit Dosh किसी भी लग्न कुंडली में शनि और राहु जब एकसाथ हों तो इस दोष का निर्माण होता है लेकिन शनि और राहु दोनों ही लग्न कुंडली में मारक होने चाहिए, अगर ऐसा होता है तभी शनि राहु की युति श्रापित दोष का निर्माण करती है लेकिन यदि दोनों ग्रह योगकारक हों तब शनि राहु की युति अत्यधिक शुभ फलदायी सिद्ध होती है। कुंडली में श्रापित दोष को समझने से पहले शनि और राहु के स्वभाव को समझ लेते हैं।
शनि का स्वभाव
शनि न्याय को अत्यधिक पसंद करते हैं और इनको कर्म-फल दाता भी कहा जाता है। शनि वैचारिक शक्ति को प्रबल करते हैं और समाज में वर्चस्व को कायम रखते हैं। शरीर को स्वस्थ्य रखने में इनकी अहम भूमिका है और रोगी करने में भी इनका ही हाथ होता है। आध्यात्म में प्रगति शनि ही करवाते हैं और वैभवशाली जीवन के दाता भी यही हैं।
प्रेम को पवित्र स्वरूप में देखने की विचारधारा भी शनि की वज़ह से आती है। किसी भी गुप्त ज्ञान को प्राप्त करने या गूढ़ शास्त्र में गहराई तक सोचने की ताकत भी शनि ही देते हैं। किसी भी बात को गंभीरता पूर्वक कहना और सोचना शनि से ही संपन्न हो पाता है। भोजन बनाने की कला में निपुणता हांसिल शनि से ही होती है; आदि ऐसे अन्य और भी गुण हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति शनि प्रधान होता है।
राहु का स्वभाव
राहु को भी शनि की तरह क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है और राहु को शनि का छाया ग्रह माना जाता है। राहु वेवज़ह अनियंत्रित गुस्सा और कर्म से गलत आचरण का वर्ताब करवाता है साथ में विचारों में चालाकी, क्रूरता और लालच का प्रवेश करवाता है। वाणी से जो अत्यधिक अपशब्द बोलता हो उसका कारण कहीं-न-कहीं राहु ग्रह ही होते हैं। लेकिन राहु व्यक्ति को रहस्यमयी और रहस्यों को उजागर करने वाला भी बनाते हैं। राहु पराक्रम के कारक ग्रह भी माने जाते हैं इसलिए व्यक्ति को साहसी भी बनाते हैं। इसके साथ ही राहु अनिश्चित लाभ भी देते हैं और ये इच्छाशक्ति वाले ग्रह भी माने जाते हैं।
कुंडली में श्रापित योग या दोष
प्रबल इच्छाशक्ति के साथ जब कोई भी कर्म होता है तो फल अंत में शुभ ही होता है लेकिन यदि अनियंत्रित गुस्से के साथ कोई काम हो तो वह बिगड़ता ही है। लालच केवल स्वपन तक ही सीमित रहे तो ठीक है लेकिन यदि कर्म में उतर आए तो कितना भी धनाढ्य क्यों ना हो एक समय पश्चात् खाक हो ही जाता है। ठीक इसी प्रकार प्रबल इच्छाशक्ति के साथ सही दिशा में उचित कर्म हो तो व्यक्ति को अर्श से फर्श तक पहुँचने में देर नहीं लगती।
ये भिन्न-भिन्न फलादेश निर्भर करता है कि लग्न कुंडली में श्रापित योग बन रहा है या श्रापित दोष। अगर किसी भी कुंडली में शनि और राहु दोनों ही योगकारक हों तो श्रापित योग बनता है जो अच्छा होता है क्योंकि फिर वो हमको शुभ फल ही देता है लेकिन यदि दोनों ग्रह मारक हों तो Shrapit Dosh बनता है जो अच्छे फल हमको नहीं देता है।
सिंह लग्न में श्रापित दोष
सिंह लग्न में श्रापित दोष को समझने से पहले हमें ये जानना होगा कि शनि और राहु सिंह लग्न में योगकारक होते हैं अथवा मारक। शनि की बात करें तो शनि को यहाँ त्रिक भावों में छठा घर मिला है और केंद्र भावों में सातवां घर। किसी भी लग्न कुंडली के सातवें घर का विश्लेषण अष्टम-द्वादश सिद्धांत के अनुसार किया जाता है। यदि सप्तम भाव का मालिक लग्नेश का मित्र होता है तो वह योगकारक ग्रहों की श्रेणी में आता है अन्यथा शत्रु होने पर मारक रहता है। चूँकि लग्नेश सूर्य से शनि की शत्रुता है इसलिए शनि इस लग्न में मारक होते हैं।
बात करें राहु की तो राहु तीसरे और ग्यारहवें घर में सदा योगकारक होते हैं और कुंडली के त्रिक भावों में मारक होते हैं, बाकी अन्य घरों में अगर मित्र की राशि में हुए और मित्र कुंडली में योगकारक हुआ तो राहु भी योगकारक तथा शत्रु की राशि में मारक होते हैं।
तीसरा घर (3H)
इस घर में राहु सदैव योगकारक होते हैं भले ही वह नीच के हो जाएं लेकिन सिंह लग्न में मित्र की राशि में हैं। शनि 3H तुला राशि में होने की वज़ह से उच्च के हो जाते हैं और सिंह लग्न की कुंडली के तीसरे घर में शनि+राहु की युति अति योगकारक सिद्ध होती है इसलिए यहाँ श्रापित दोष नहीं बनता है। यहाँ श्रापित योग बनता है जो हमको शुभ फल ही देगा इसलिए शनि या राहु किसी का भी कोई उपाय नहीं करना है।
सातवां घर (7H)
शनि इस घर में स्वराशि होते हैं और कोई भी ग्रह त्रिक भाव को छोड़कर अन्य किसी भी घर में जब अपनी ही राशि में आ जाये तो वो ग्रह योगकारक हो जाता है इसलिए शनि सप्तम भाव में आने से योगकारक हो जाते हैं और राहु यहाँ मित्र की राशि में हैं इसलिए मित्र योगकारक तो राहु भी योगकारक। दोनों ग्रह के इस भाव में योगकारक होने से ये युति श्रापित दोष नहीं बल्कि श्रापित योग को बनाती है इसलिए यहाँ किसी ग्रह को शांत नहीं करना है।
नौवां घर (9H)
यहाँ शनि नीच के होते हैं और राहु यहाँ शत्रु की राशि में हैं इसलिए राहु मारक ही रहेंगे। लेकिन शनि का इस भाव में नीच भंग हुआ तो शनि योगकारक हो जाएंगे और नीच भंग राजयोग भी बनायेंगे किन्तु अगर शनि का नीच भंग ना हुआ तो शनि मारक ही रहेंगे। अगर शनि का नीच भंग हो तो शनि का उपाय नहीं करना है, फिर केवल राहु का उपाय करना है। लेकिन यदि शनि का नीच भंग ना हो तो शनि और राहु दोनों का उपाय करना है।
छठा, आठवां और बारहवाँ घर (6H-8H-12H)
इन घरों को कुंडली का त्रिक भाव बोला जाता है क्योंकि अधिकतर नकारात्मक तथ्य ही इनसे जुड़े हुए हैं। इन घरों में राहु हमेशा मारक होते हैं लेकिन शनि सिंह लग्न में अगर इनमें से किसी भी घर में जाते हैं तो विपरित राजयोग भी बना सकते हैं क्योंकि उनकी एक राशि 6H में भी है। अगर शनि के द्वारा विपरित राजयोग बने तो शनि का कोई उपाय नहीं करना है लेकिन शनि विपरित राजयोग ना बनाये तो शनि और राहु दोनों का उपाय करना है।
अन्य घर
सिंह लग्न की कुंडली के बाकी बचे हुए घरों में शनि मारक होते हैं और राहु शत्रु की राशि में मारक लेकिन यदि मित्र की राशि में हो तो योगकारक अगर मित्र भी योगकारक हुआ तो अन्यथा मारक ही रहेंगे। लेकिन राहु 10H में उच्च के होते हैं इसलिए यहाँ योगकारक रहेंगे।
कुंभ लग्न में श्रापित योग
कुंभ लग्न में शनि लग्नेश हैं और लग्नेश किसी भी लग्न कुंडली में योगकारक होता है इसलिए शनि योगकारक हैं और राहु का विश्लेषण अभी करते हैं।
1H-4H-5H-11H
इन घरों में शनि और राहु दोनों ही योगकारक होते हैं। भले ही राहु 11H में नीच के होते हैं लेकिन फिर भी यहाँ योगकारक होते हैं इसलिए यहाँ शनि और राहु की युति अत्यधिक शुभ फलदायी होती है और श्रापित योग का निर्माण करती है।
2H-7H-10H
कुंडली के इन घरों में शनि योगकारक होते हैं लेकिन राहु शत्रु की राशि में होने की वज़ह से मारक होते हैं और 10H में तो राहु नीच के भी होते हैं। इन घरों में शनि+राहु की युति में केवल राहु मारक होते हैं इसलिए केवल राहु का ही उचित उपाय किया जाए।
3H
इस घर में राहु भले ही शत्रु की राशि में हो लेकिन योगकारक होते हैं। शनि यहाँ नीच के होते हैं; यदि शनि का नीच भंग हो तो शनि योगकारक होते हैं और नीच भंग राजयोग के साथ-साथ श्रापित योग शुभ फलदायी सिद्ध होता है। लेकिन शनि का नीच भंग ना होने पर केवल शनि का ही उपाय किया जाए।
6H-8H-12H
ये कुंडली के त्रिक भाव हैं जो अच्छे नहीं होते हैं। यहाँ शनि+राहु की युति अत्यधिक मारक सिद्ध होती है। चूँकि शनि लग्नेश हैं इसलिए शनि के इन भाव में होने से लग्न दोष भी बन जाता है। यहाँ शनि+राहु दोनों का ही उचित उपाय करना आवश्यक होता है।
9H
इस घर में शनि योगकारक होते हैं लेकिन राहु मित्र की राशि में तो हैं लेकिन यदि मित्र मारक हुआ तो राहु भी मारक होंगे और अगर मित्र योगकारक हुआ तो फिर राहु भी योगकारक हो जायेंगे।
दोनों कुंडली का निष्कर्ष
शनि और राहु में से जो ग्रह मारक हो उसका उपाय किया जाता है। उपाय में सम्बन्धित ग्रह का दान और उनके बीज मंत्र का जाप किया जाता है। योगकारक ग्रह का कभी भी दान नहीं किया जाता है लेकिन बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं क्योंकि बीज मंत्र से योगकारक ग्रह और योगकारक होता है और मारक ग्रह अपनी मारकता के परिणाम नहीं दिखा पाता है। कुंभ लग्न में शनि लग्नेश हैं; इसी तरह मकर लग्न में भी शनि लग्नेश होते हैं। किसी कारणवश शनि मारक होते हैं तो शनि का दान नहीं किया जाता है और केवल पूजा-अर्चना-बीज मंत्र से ही उपाय किया जाता है क्योंकि लग्नेश का कभी भी दान नहीं किया जाता है।
श्रापित दोष के उपाय
श्रापित दोष के उपाय में सर्वश्रेष्ठ उपाय निम्नलिखितानुसार है जो मेरे 11000 कुंडली देखने के अनुभव से श्रापित दोष को योग में परिवर्तित करने में सक्षम हैं:-
- क्रीं बीज अक्षर का जाप शाम 6 बजे के बाद रोजाना 108 बार रूद्राक्ष की माला पर;
- शाम को प्रत्येक दिन अपने खाने में से एक रोटी किसी बाहर के कुत्ते को खिलाएं;
- सिद्ध कुंजीका स्त्रोत का पाठ रोजाना सुबह कम-से-कम एक बार।
विनम्र निवेदन
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Shrapit Dosh की जानकारी में आये अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
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