शनि की साढ़ेसाती के लक्षण और शनि के उपाय।

Shani Ki Sade Sati आज हम बात करेंगे कुंडली में साढ़ेसाती कैसे देखें? बहुत ही दिलचस्प विषय है और इसको लेकर बहुत भ्रम भी दिमाग में रहते हैं तो आज सारे भ्रम आपके दूर हो जायेंगे कि किस तरह से कुंडली में हमें साढ़ेसाती देखनी है। शनि की साढ़ेसाती का आखिर अर्थ क्या है? साढ़ेसाती का आखिर अर्थ क्या है? साढ़ेसाती को मुख्यतः तीन भागों में बांटा जाता है; ढाई साल पहले के, मध्य के ढाई साल और अंत के ढाई साल यानी ढाई-ढाई-ढाई जिसे आप शनि की ढैया भी कह सकते हैं। ये ढाई-ढाई के तीन टुकड़े मिलकर ही शनि की साढ़ेसाती बनती है। साढ़ेसाती का साधारण सा अर्थ है साढ़े सात साल।

साढ़े सात साल शनि का प्रभाव कुछ इस तरह से लग्न कुंडली पर कुछ ऐसे हिस्सों पर पड़ता है जिससे कुछ परेशानियाँ, कुछ दिक्कतें, काम में अड़चनें, घर के अंदर मनमुटाव और बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जैसे शारीरिक कष्ट, हॉस्पिटल के खर्च आदि। तो आज हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि साढ़ेसाती आखिर है क्या? और साढ़े साती में शनि के कार्य करने की प्रक्रिया क्या है।

साढ़ेसाती के कितने चरण होते हैं?

Shani Ki Sade Sati तीन चरणों में होती है इसमें मध्य का चरण अत्यंत घातक सिद्ध होता है लेकिन प्रत्येक पर नहीं; क्रमशः ये चरण हैं:-

  1. उदय चरण :- उदय चरण साढ़ेसाती के प्रारम्भ होने का समय होता है। इस समय शनि चंद्र से 12 वें भाव में होते हैं। मुख्यतः यह काल व्यक्ति की अर्थिक तंगी को दर्शाता है।
  2. शिखर चरण :- शिखर चरण साढ़ेसाती का अत्यधिक प्रभावशाली चरण है। इस समय शनि चंद्र पर गोचर करते हैं और इसमें पाया है कि यह समय सबसे मुश्किल होता है क्योंकि इसमें परेशानी के रूप में बीमारी का प्रवेश होता है; यदि स्वयं ना सही तो घर में लेकिन बीमारी अवश्य आती है।
  3. अस्त चरण :- अस्त चरण साढ़ेसाती का अंतिम चरण है। यहाँ तक आते-आते व्यक्ति समझ जाता है कि धर्म का महत्त्व क्या है? इस चरण में शनि चंद्र से दूसरे भाव में उपस्थित होते हैं। इस समय व्यक्ति को अपने-पराये की समझ हो जाती है क्योंकि अब रिश्तेदारों में खटास और यहाँ तक कि सगे-संबंधी या परिवार के सदस्य भी दूर होते चले जाते हैं। इस समय व्यक्ति को समझ आता है कि उसका महत्व क्या है?

इसी प्रक्रिया में शनि की साढ़े साती का चक्र प्रत्येक राशि पर चलता रहता है।

साढ़े साती के लक्षण

साढ़ेसाती का उदय चरण व्यक्ति के सर पर से प्रारम्भ होता है ऐसा माना जाता है क्योंकि इसमें व्यस्कों की बुद्धि भ्रमित होती है और व्यक्ति के व्यवहार में साढ़े साती के लक्षण उजागर होते हैं जैसे उनके खर्चे अत्यधिक बढ़ जाते हैं और खर्चे आमदनी से अधिक होने लग जाते हैं; ऐसी स्थिति में कर्जा होने की संभावना बढ़ जाती है तथा व्यक्ति का जो काम होता है उसमें भी अड़चनें आनी प्रारम्भ हो जाती हैं।

साढ़ेसाती का शिखर चरण जो बीमारी का चरण माना जाता है। इस काल में स्वयं, परिवार या दोनों में हारी-बीमारी का लगना प्रारम्भ हो जाता है। बीमारी में व्यक्ति इतना जकड़ जाता है कि उसका धनार्जन का लगभग 60 से 70 प्रतिशत भाग बीमारी में ही खर्च होता है।

साढ़ेसाती का अस्त चरण जिसे हम उतरती या पैरों वाली साढ़ेसाती कहते हैं। इस समय रिश्तों के अंदर खटास आना शुरू हो जाता है और मन-मुटाव होने लगता है। मतभेदों का स्तर इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति के परिवार वाले भी बात को नहीं सुनते हैं। इस समय व्यक्ति किसी मित्र या संबंधी की मदद भी करे तो परिणामस्वरूप उनको सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है।

कुलमिलाकर शनि की साढ़ेसाती जीवन में काम में अड़चनें, बीमारियों पर खर्चा, मानसिक शांति का भंग होना, घर-परिवार-रिश्तेदारों से ना बनना, मुख्यतः बुजुर्गों में पेट से सम्बन्धित समस्या होना आदि और भी बहुत कुछ समस्याएं आती हैं।

कर्मफल दाता शनि देव

कर्म की भूमिका बहुत बड़ी है। दरअसल साढ़ेसाती कुछ नहीं सिर्फ व्यक्ति के कर्मों का फल है चूँकि कर्मों का हिसाब शनि देव के ऑफिस में होता है इसलिए कर्मफल दाता शनि देव को कहा जाता है। शनि देव को विभाग मिला है न्याय का जिसमें शनि देव हैं न्यायधीश; तो हमने कैसे कर्म करें हैं, यदि हमने जीवन में सकारात्मक कर्म करें हैं, किसी को धोखा नहीं दिया है, बेवजह अकारण ही झूठ नहीं बोला है, फरेब नहीं किया है। कुलमिलाकर कोई भी अनुचित कर्म नहीं किया है तो साढ़ेसाती का प्रभाव नकारात्मक नहीं होता है।

लेकिन यदि हमारा जीवन नकारात्मकता से भरा हुआ है; झूठ बोलना, लोगों को धोखा देना, किसी के पैसे लेकर समय पर नहीं देना या किसी की आत्मा को दुःखा देना अर्थात्‌ जरूरत से ज्यादा हताश कर देना तो ऐसे सारे अनुचित कर्मों का रजिस्टर शनि देव अपने न्याय विभाग में ले जाकर साढ़ेसाती के माध्यम से हिसाब करते हैं और परिणामस्वरूप गारंटी के साथ परेशानी व्यक्ति को होती ही है।

शनि की योगकारक अवस्था

जन्मकुंडली में शनि यदि योगकारक हों तो शनि की साढ़ेसाती का नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कर्म का फल शनि देव नहीं देंगे। न्याय विभाग शनि देव से कोई नहीं छीन सकता है भले ही कुंडली में शनि अस्त क्यों ना हो इसलिए जैसा कर्म वैसा फल मिलता ही मिलता है। चूँकि शनि न्यायधीश हैं और कुंडली में योगकारक होने पर घर के न्यायधीश हुए इसलिए अपराध करने पर जेल नहीं होती लेकिन कोई-न-कोई सजा अवश्य होती है।

खेत में बबूल का पेड़ लगाने से जमीन में कड़वाहट ही होती है; हाँ ये अलग बात है कि नीचे बैठने पर मालिक को कुछ हद तक छाया भी मिलती है लेकिन मालिक को जमीन से सिवा छाँव के मिलता भी कुछ नहीं है। अब ऐसा क्यों? ये शहर के 30 वर्ष तक के नवयुवक जरूर सोचेंगे!

शनि की मारक अवस्था

कुंडली में शनि मारकेश हो जाएँ तो साढ़ेसाती व्यक्ति को परेशान करती ही है लेकिन उचित कर्म नकारात्मकता या शनि का प्रभाव जो परेशान करने वाला होता है उसको कम कर देते हैं क्योंकि भले ही शनि देव कुंडली में मारक हों लेकिन न्यायमूर्ति भी हैं इसलिए व्यक्ति के उचित कर्मों का शुभ फल देते ही हैं। शुभ कर्मों का फल सदा शुभ ही होता है इसमें कोई संदेह नहीं; हाँ कभी-कभी धर्म के फल में विलंब हो सकता है लेकिन मिट नहीं सकता ये तय है। शनि देव की साढ़ेसाती भगवान श्री राम को वनवास भेजने की ताकत रखती है तो भगवान श्री राम के सत्कर्म भगवान को संसार में मर्यादापुरुषोत्तम बनाने का सामर्थ्य भी रखते हैं।

कुंडली में साढ़ेसाती कैसे देखें?

कुंडली में साढ़ेसाती को देखना हम बहुत ही आसान प्रकार से समझेंगे; इसके लिए हम निम्न लग्न कुंडली का उदाहरण के रूप में प्रयोग करेंगे। किसी भी लग्न कुंडली में साढ़ेसाती को देखने के लिए हमें चंद्रमा की स्थिति को देखना है; देखना ये है कि चंद्रमा लग्न कुंडली में किस भाव में हैं या किस राशि में हैं तथा अन्य तथ्य निम्न हैं:-

  1. साढ़ेसाती देखने के लिए चंद्रमा गोचर के अनुसार नहीं देखना है;
  2. चंद्रमा की स्थिति लग्न कुंडली में देखनी है;
  3. चंद्र लग्न कुंडली में योगकारक हों या मारक कोई फर्क़ नहीं पड़ता है;
  4. शनि की स्थिति लग्न कुंडली के अनुसार नहीं देखनी है;
  5. लग्न कुंडली के अनुसार ये देखना है कि शनि योगकारक हैं या मारक;
  6. साढ़ेसाती के लिए शनि का वर्तमान गोचर देखना है;
  7. साढ़ेसाती लग्न कुंडली के अलावा अन्य किसी माध्यम से नहीं देखनी है। {एक माध्यम है जिसका जिक्र निम्न है}

शनि गोचर 2023 [ Shani Gochar 2023 ]

न्याय के देवता शनि देव कुंभ राशि में 17 जनवरी 2023 को अपनी ही राशि मकर को छोड़कर आए हैं। गणना के अनुसार शनि देव लगभग 30 वर्ष पश्चात्‌ कुंभ राशि में आएँ हैं। शनि देव कुंभ राशि में पूरे ढाई वर्ष विराजित रहेंगे अर्थात्‌ 17 जनवरी 2023 से 17 जुलाई 2025 तक।

ग्रह-गोचर देखने के लिए आप किसी भी App या अपने यहाँ के प्रचलित पंचांग का इस्तेमाल करियेगा। फ़िलहाल हमने ये समझ लिया कि शनि स्वयं की राशि कुंभ में गोचर कर रहे हैं। अब जिसकी लग्न कुंडली में चंद्रमा मकर राशि, कुंभ राशि या मीन राशि में होंगे या फिर जिनकी राशि मकर, कुंभ या मीन होगी उन पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है।

मकर राशि के लोगों पर उतरती या साढ़ेसाती का अस्त चरण चल रहा है, कुंभ राशि के जातकों पर शिखर चरण चल रहा है या शनि की ढैया कुंभ राशि पर वर्तमान में चल रही है तथा मीन राशि के लोगों पर साढ़ेसाती का उदय चरण विद्यमान है।

जन्मकुंडली के बिना साढ़ेसाती कैसे देखें?

पहले के समय में कौन याद या लिख के रखता था अपने जन्म या परिवार के किसी सदस्य का विवरण और अभी भी गांव-देहात में नहीं याद रखते हैं कोई लेकिन गांव-देहातों में जो नामाक्षर निकलता है उसी पर परिवार के सदस्य बालक का नाम रखते हैं किन्तु शहर में नामाक्षर बदल लिया जाता है अकारण ही या फिर किसी परिस्थिति में फंसकर जैसे ढा अक्षर पर नाम निकलने पर क्या नाम रखें तो नाम परिवर्तित करना ही पड़ता है।

किन्तु जिनका नामाक्षर वही है जो पंडित जी ने नाम के समय निकाला था तो साढ़ेसाती का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए मैं नाड़ी दोष वाले लेख में अक्षरों के उपर चर्चा कर चुका हूँ। इसलिए जरूरत पड़ने पर नाड़ी दोष वाला लेख अवश्य पढ़े।

लग्न कुंडली का उदाहरण

Shani Ki Sade Sati

उपर्युक्त लग्न कुंडली में चंद्र कुंभ राशि में हैं और इस लग्न कुंडली में शनि मारक हैं। बस लग्न कुंडली से इतना ही देखना है, इसके बाद शनि का गोचर देखा जोकि स्वयं की राशि कुंभ में है तो कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती का शिखर चरण चल रहा है और मकर राशि पर अस्त चरण तथा मीन पर उदय चरण। शनि की साढ़ेसाती का यही क्रम आगे बढ़ता रहेगा जैसे अब आगे जुलाई 2025 से कुंभ राशि पर अस्त चरण, मीन पर शिखर और मेष पर उदय चरण चलेगा।

तो इस लग्न कुंडली में शनि मारक हैं हालाँकि बल मैंने दिखाया नहीं लेकिन इस कुंडली में शनि का बल 50% है। अब यदि इनके कर्म भी नकारात्मक हुए तो समझो चारों तरफ से नकारात्मक परिणाम ही मिलेंगे। अब इस लग्न कुंडली के अनुसार शनि क्या नुकसान पहुँचाएँगे ये बताना फलकथन के विषय की तरफ जाना होगा लेकिन यदि आप प्रारम्भ से सारे लेख पढ़ते हुए आ रहें हैं तो आपको पता होगा कि शनि इस लग्न कुंडली के अनुसार व्यक्ति के जीवन में कहाँ वार करेंगे, खैर! आगे बढ़ते हैं।

साढ़ेसाती के उपाय

शनि की साढ़ेसाती के उपाय बेहद आसान हैं जोकि निम्न प्रकार हैं जिनको आप बिना किसी को पैसे दिए कर सकते हैं और बहुत ही कम पैसे में कर सकते हैं।

  1. शनि चालीसा और शनि के वैदिक बीज मंत्र का प्रतिदिन जाप करना;
  2. शनि कुंडली में मारक होने पर शनि देव की प्रतिमा पर तेल चढ़ाएं और दीपक प्रज्वलित करें;
  3. शनि कुंडली में योगकारक होने पर केवल दीपक प्रज्वलित करें;
  4. मारक हों या योगकारक गुड़ में काले तिल मिलाकर चीटियों को खिलाएं;
  5. उड़द की दाल जरूरतमंद परिवार में दान करें कुंडली में शनि के मारक होने पर;
  6. यदि सम्भव हो तो शनि देव की शिला वाली प्रतिमा का दर्शन करें जैसे कोकिला वन में शनि देव उपस्थित हैं शिला प्रतिमा के स्वरूप में;
  7. कुत्ते को बेवजह कभी ना मारें या प्रताडित करें;
  8. अपने खाने में से एक रोटी किसी बाहर के कुत्ते को अवश्य दें।

निष्कर्ष

चूँकि साढ़ेसाती शनि देव से जुड़ी हुई है इसलिए शनि ग्रह के स्वभाव को समझना जरूरी होता है। शनि का स्वभाव विलम्ब और तनाव पैदा करने का है किन्तु प्रत्येक परिस्थिति में नहीं। सभी ग्रहों में शनि ही केवल ऐसे ग्रह हैं जो व्यक्ति को कुछ देने से पहले उसके काबिल बनाते हैं, समझ देते हैं, सामर्थ्य देते हैं, सहने की क्षमता विकसित करते हैं, प्रत्येक पहलू को गहराई में उतरकर सोचने-समझने की बुद्धि विकसित करते हैं। अब ये सारे कार्य अकस्मात तो हो नहीं जाते, उम्र बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति अपने ज्ञान को भी विकसित करता है अगर वो ना करना चाहे तब भी परिस्थिति उसको सीखा देती है क्योंकि मानव रहता तो समाज में ही है।

ये सब व्यक्ति समाज में रहकर शनैः-शनैः ही सीखता है इसलिए विलम्ब शनि के साथ जुड़ा हुआ है। शनि कलम को देने से पहले कलम को पकड़ना सिखाते हैं और दौलत देने से पहले दौलत की अहमियत सिखाते हैं तो स्वभाविक है विलम्ब का संबंध शनि देव से होना। इसलिए साढ़ेसाती के समय में व्यक्ति को धैर्य रखना चाहिए और सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इस समय को सीखने का समय समझना चाहिए और कड़ी मेहनत करनी चाहिए क्योंकि आलस शनि देव को पसन्द नहीं, लगे रहो भले ही घुन की तरह तो परिस्थिति स्वतः सही होती चली जायेंगी।

बाकी रहा कर्म तो उससे तो कोई ना बचा हम तो फिर भी तुच्छ प्राणी हैं। अब मिष्ठान में शक्कर जितनी उतनी मिठाई में मिठास होती है बाकी फीका तो संसार है लेकिन इसी फीके संसार में मिठास सत्कर्मों से ही आती है। अब उचित कर्म क्या है? इस पर चर्चा करके विषय शीर्षक से विमुख हो जाएगा इसलिए बने रहिए फिर कभी चर्चा करेंगे।

विनम्र निवेदन

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