सरस्वती राजयोग देता है असीमित ज्ञान।

Saraswati Yoga जन्म कुंडली में बनने वाला एक ऐसा राजयोग है जिसके परिणामस्वरूप जातक अत्यधिक ज्ञानी होता है लेकिन यह कोई आवश्यक नहीं कि जातक शास्त्रों का ज्ञाता होगा या किसी भी प्रकार की पढ़ाई करने में बहुत तेज होगा या अपने जीवन में उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर पाएगा। तो चलिए समझते हैं कि सरस्वती योग जातक पर किस प्रकार कार्य करता है:-

सरस्वती योग के फायदे

Saraswati Yoga अगर व्यक्ति की जन्मकुंडली में बनता है तो जातक अपने क्षेत्र में अत्यधिक ज्ञान रखता है। कार्य चाहें जो हो और पढ़ाई चाहें कोई भी की हो लेकिन व्यक्ति का जीवन में जो कार्य होता है उस कार्य से सम्बन्धित लगभग सम्पूर्ण ज्ञान ही उसके पास होता है, उसके बारे में गहराई से ज्ञान रखता है और कार्य से संबंधित सोचने-समझने तथा ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता अत्यधिक तीव्र होती है।

ऐसा व्यक्ति अपने कार्य में कभी मात नहीं खाता है। एक साधारण व्यक्ति के पास अपने कार्य को पूर्ण करने का यदि केवल एक, दो या तीन तरीके भी आते हैं तो सरस्वती योग से संपन्न व्यक्ति के पास अपने कार्य को संपन्न करने के अनगिनत तरीकों के बारे में ज्ञान होता है। ऐसे व्यक्ति अपने कार्य को ज्ञान के बल पर अत्यधिक उपर तक ले जाते हैं और सुप्रसिद्ध भी होते हैं।

कुंडली में सरस्वती योग कैसे बनता है?

सरस्वती योग का निर्माण तीन ग्रह करते हैं क्रमशः बुध, शुक्र और गुरु। बुध ग्रह बुद्धि के कारक ग्रह हैं जबकि ज्ञान शुक्र और गुरु दोनों के अधिकार क्षेत्र में आता है। यदि देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं तो दानवों के गुरु शुक्र हैं लेकिन ज्ञान की निपुणता दोनों के ही पास है और ज्ञान को संजो के रखने की क्षमता बुध के अधीन है। इसलिए इस योग का निर्माण केवल यही तीन ग्रह करते हैं। यह तीनों ग्रह जन्मकुंडली में किस प्रकार सरस्वती योग का निर्माण करते हैं इसका विश्लेषण निम्न बिंदुओं के आधार पर प्रस्तुत है:-

युति होने पर

बुध, गुरु और शुक्र की युति होने पर सरस्वती योग का निर्माण होता है लेकिन ये युति अच्छे भाव में होनी चाहिए।

दृष्टि संबंध

शुक्र और बुध की युति हो लेकिन गुरु की दृष्टि इन पर पड़ जाए तो भी इस योग का निर्माण होता है लेकिन शुक्र और बुध की युति होनी चाहिए वैसे इन दोनों ग्रहों की युति लक्ष्मीनारायण योग को भी बनाती है।

अस्त अवस्था

तीनों में से कोई भी ग्रह सूर्य से अस्त नहीं होना चाहिए लेकिन यदि ऐसा हुआ तो फिर सरस्वती योग नहीं बनेगा।

  • अस्त ग्रह को समझने के लिए YouTube वीडियो देखें।

योगकारक

प्रत्येक पहलु को ध्यान में रखते हुए ये तीनों ग्रह कुण्डली में योगकारक होने चाहिए।

पापकत्री

कुंडली में ये देखना भी जरूरी होता है कि सरस्वती योग को बनाने वाले ग्रह कहीं पापकत्री दोष में तो नहीं आ रहे यदि ऐसा है तो फिर सरस्वती योग बनने के बाद भी विफल ही रहेगा।

अंश बल

तीनों ग्रहों में से किसी का भी अंश 0,1,2,3,28 या 29 हुआ तो भी सरस्वती योग के प्रभाव नगण्य होंगे।

उच्च अवस्था

इनमें से कोई एक ग्रह भी यदि उच्च का हुआ तो सरस्वती योग अत्यधिक शुभ होता है वहीं अगर कोई ग्रह नीच होने पर योग निष्क्रिय हो जाता है लेकिन यदि नीच भंग हो जाए तो नीच भंग राजयोग के साथ-साथ सरस्वती योग भी बनता है।

चलित कुंडली

कभी-कभी ऐसा होता है कि लग्न कुंडली में ग्रह कहीं होते हैं और चलित कुंडली में कहीं तो ऐसी स्थिति में भी ग्रहों की ऊर्जा विभाजित हो जाती है इसलिए ये सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि ग्रह चलित कुंडली में बदले तो नहीं हैं।

पाप ग्रह का संयोग

इन घरों के साथ यदि पापी ग्रह की भी युति हो या दृष्टि संबंध बने तो भी सरस्वती योग के प्रभाव पर असर डालता है लेकिन इस योग में शनि को शामिल नहीं किया जाएगा क्योंकि किसी भी चीज़ की गहराई में अगर जाना है तो शनि का हाथ इसमें होता ही है। इसलिए शनि यहाँ नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते हैं लेकिन राहु-केतु की स्थिति को देखना होता है।

कुंडली में सरस्वती योग का उदाहरण

कुंडली में सरस्वती योग

इस मिथुन लग्न की कुंडली में केवल त्रिक भावों को छोड़कर सभी जगह सरस्वती योग बनता है। केंद्र के घरों में तो अत्यधिक फलदायी सिद्ध होगा यह योग क्योंकि इन घरों में इस योग के साथ-साथ अन्य योग भी बनेंगे जैसे पहले घर में पंच महापुरुष योग, चतुर्थ भाव में नीच भंग राजयोग और पंच महापुरुष योग, सातवें घर में पंच महापुरुष योग तथा दसवें घर में पंच महापुरुष योग और नीच भंग राजयोग। इन सभी योग के साथ शुक्र बुध की युति लक्ष्मीनारायण योग भी बनायेगी।

निष्कर्ष

कुंडली में सरस्वती योग का बनना बेहद जटिल है लेकिन नामुमकिन नहीं। इस योग में अधिकतर बाधा अस्त होने की आती है क्योंकि सूर्य शुक्र या बुध या कभी-कभी तो दोनों को ही अस्त कर देते हैं। कुंडली में सरस्वती योग बने या ना लेकिन यदि तीनों ग्रहों की युति हो तो उपाय के माध्यम से इस महान योग का फल अवश्य प्राप्त करना चाहिए जैसे कुंडली में तीनों ग्रहों की युति है लेकिन गुरु या कोई अन्य ग्रह मारक है तो उस ग्रह का उपाय करके उसको योगकारक कर लेना चाहिए जिससे कि भविष्य में इस योग का उचित फल प्राप्त किया जा सके।

यदि कुंडली में सरस्वती योग बन रहा है लेकिन इसके फलने में कोई समस्या आ रही है तो उस समस्या का पता लगा के उसका समाधान अवश्य करना चाहिए क्योंकि वैसे ही यह योग बनता नहीं है। अब जब ये कुछ प्रयास करने के पश्चात्‌ मुमकिन है तो क्यों ना लाभ लिया जाए इस योग का जीवन में; तो अब हम उपाय के बारे में बात करेंगे।

उपाय

जैसा कि अभी बताया कि कुंडली में सरस्वती योग के बनने में चाहें जो समस्या आ रही हो उसका निदान आवश्यक है। सबसे पहले तो तीनों ग्रहों का वैदिक बीज मंत्र सिद्ध किया जाए उसके बाद यदि सम्भव हो तो रत्न भी पहना जाए लेकिन रत्न पहनने से पहले सभी तथ्यों का अध्ययन कर लेना चाहिए क्योंकि जरा सी गलती समस्या को बढ़ा सकती है। साथ में गणेश जी, विष्णु जी या लक्ष्मी जी की आराधना को अवश्य करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो तीनों की एकसाथ पूजा भी कर सकते हैं।

विनम्र निवेदन

दोस्तों Saraswati Yoga से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो और उपाय सच में समझ आया हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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