संयम पर सम्पूर्ण चर्चा ॥ Sanyam ॥

Sanyam मन, इन्द्रियों व चित्तवृत्ति के निग्रह को ही Sanyam कहते हैं। मन की चंचलता व चित्त की अस्थिरता को ही असंयम कहते हैं। मन को सत्य की ओर उन्मुख करना ही योग है। मन की स्थिरता से ही प्रत्येक कार्य सफल होता है। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था, “संयम ही जीवन है, असंयम ही मृत्यु “। नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with Me. तो चलिए शुरू करते हैं संयम के अध्याय को—-

संयम

Sanyam जीवन में प्रत्येक सफलता के पीछे संयम का बल ही कार्य करता है। संयम का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। संयम को ही आत्मानुशासन कहते हैं। इस प्रकार पहले स्वयं पर शासन फिर अनुशासन करना चाहिए। जिसमें आत्म नियंत्रण नहीं वह व्यक्ति जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। संयमी व्यक्ति पर सब लोग विश्वास करते हैं। संयम से ही व्यक्ति का चरित्र मजबूत होता है। sanyam के अभाव से ही व्यक्ति में अनेक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आत्मिक रुग्णताएं आती हैं। संयम के महत्व को इंगित करते हुए महावीर स्वामी ने कहा है—-“आलसी व असंयमी व्यक्ति अनेक बार मरता है, जबकि संयमी व बहादुर व्यक्ति जीवन में एक बार ही मरता है”

असंयम

असंयम से आत्मा कमजोर हो जाती है। असंयमी व्यक्ति की इंद्रियां और मन अनियंत्रित हो जाते हैं, अतः वह पतित हो जाता है। जिस प्रकार शराबी चालक गाड़ी को खड्डे में डाल देता है, उसी प्रकार असंयमी व्यक्ति का खान-पान, सोना-उठना, भोजन, निद्रा, ब्रह्मचर्य एवं यम-नियम आदि अनियमित होने से वह अनेक कष्टों व परेशानियों में पड़ जाता है।

संयम का महत्व

Sanyam का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। संयम को ही आत्मा का अनुशासन कहते हैं। मैं कहता हूँ—“खुद पर शासन फिर अनुशासन”। जिस व्यक्ति को अपनी आत्मा पर काबू नहीं वह व्यक्ति जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। मनोनिग्रह को sanyam कहते हैं। मन ही मनुष्य जीवन की धुरी है। जीवन के प्रत्येक पहलू पर मन का नियंत्रण होने से जीवन की गाड़ी ठीक तरह से चलती है। अतः जीवन की यात्रा में मन का दुरुस्त होना आवश्यक है। एक कहावत है—मन चंगा तो कठौती में गंगा। जीवन में चार प्रकार के संयम होते हैं, जिनसे व्यक्तित्व का विकास होता है।

संयम के प्रकार

Sanyam के मुख्यतः चार प्रकार होते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित अनुसार हैं:-

समय संयम

समय का सही सदुपयोग करने वाले व्यक्ति अनगिनत सफ़लता प्राप्त करते हैं। समय के प्रत्येक क्षण का उपयोग करते हैं वे अपने भाग्य के स्वयं निर्माता होते हैं। समय का मूल्य नहीं समझने वाले व्यक्ति अपने जीवन को अंधकार में डाल देते हैं। हिंदी गुरु देवेंद्र पाल सिंह ने कहा है कि जो समय को नष्ट करते हैं, समय उनको नष्ट कर देता है। ज्यादा तर लोग समय का sanyam नहीं रखते और व्यर्थ में समय गवांते रहते हैं, जैसे ताश खेलने में, गप-शप करने में, निंदा में, आजकल लड़कों के लिए मुख्य बिंदु लड़कियों को देखना है, उल्टे उपन्यास पढ़ने में अपने मूल्यवान समय को नष्ट करते रहते हैं।

जो व्यक्ति समय पर प्रत्येक कार्य करता है वह व्यक्ति जीवन में कभी असफल नहीं होता। समय पर उठना, सोना, पढ़ना, स्वाध्याय करना, उपासना करना व व्यायाम करना आदि जीवन का सबसे बड़ा गुण है। समय के Sanyam को महत्व देने वाला छात्र सदैव स्वस्थ्य, मस्त, व्यस्त व प्रसन्न रहता है।

अर्थ संयम

धन के ना होने से दरिद्रता आती है, दरिद्रता भी एक अभिशाप है। बिना धन से संसार का विकास अवरुद्ध हो जाता है। अतः धन का उपयुक्त उपयोग करना भी धर्म का एक स्वरूप है। धन को लक्ष्मी का स्वरूप भी मानते हैं। लक्ष्मी विष्णु भगवान की अर्धांगिनी हैं। अतः लक्ष्मी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, उसे अच्छे कार्यों में जैसे दान, धर्म, परोपकार के कार्यों में लगाना चाहिए। तंबाकू पीने, गुटखा खाने, शराब पीने या व्यर्थ के कार्यों व दुर्व्यसनों में धन का व्यय नहीं करना चाहिए। धन का अपव्यय करना हमारी संस्कृति में एक महापाप माना गया है।

अर्थ sanyam रखने वाला व्यक्ति उचित अवसर पर उचित कार्य के लिए ही धन खर्च करता है और अल्प बचत करता है। अल्प बचत का पैसा संकट में काम आता है। स्वर्गवासी श्री रघुवर दास ने कहा था ‘बचत ही व्यक्ति की सच्ची आय है’। स्वयं स्वर्गवासी श्री रघुवर दास के यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ उन्होंने उसी दिन से एक आना हर रोज़ इकट्ठा करना शुरू किया और उसी धन से अपनी पुत्री का विवाह किया। अतः अर्थ संयम रखने वाला व्यक्ति ईमानदार होता है। संकट आ जाने पर उसे अनैतिक तरीका या हाथ फैलाने की चेष्टा की कल्पना भी नहीं आती।

हराम अर्थात्‌ बिना मेहनत की कमाई खाने वाला व्यक्ति और धन पर आश्रित रहने वाले बालक स्वावलंबी नहीं हो सकते। ऐसे बालकों में धन के अपव्यय की आदतें पड़ जाती है और धन के लिए वह अच्छा या बुरा न सोचकर कुछ भी करने के लिए उतावले हो जाते हैं अंत में वह जीवन में दुःख पाते हैं। ठाठ-बाट व शान-शौकत में अपव्यय करना ओछेपन का प्रतीक हैं। अगर हमारे आचार-विचार अच्छे नहीं है तो क्या ठाठ-बाट बनकर रहने से हमारे संस्कार अच्छे हो जायेंगे।

हमारे आचार-विचार-संस्कार वस्त्रों पर आश्रित नहीं रहते बल्कि संस्कार पर हमारे वस्त्र आश्रित रहते हैं। अगर हम स्वयं ही बदल जाएं जैसे दूसरे के प्रति प्रेम, सत्य बोलना, आदर करना आदि फिर देखो हमसे सदा लोग प्रेम करेंगे, हमको अच्छा बतायेंगे। —“जिस तरह से किसी भी एक क्लास में एक बच्चा प्रथम श्रेणी लेकर आता है तो बाकी सब उसी के पास जाने की चेष्टा करते हैं “

विचार संयम

विचार संयम भी व्यक्तित्व को विकसित करने का सबसे बड़ा गुण है। व्यर्थ का चिंतन करते रहने से व्यक्ति का मस्तिष्क पागल के समान हो जाता है। विचारों के Sanyam से बुद्धि तीव्र होती है। व्यर्थ की बातें सोचते रहने से मानसिक दबाब बढ़ता है और अनेक मनोरोग पैदा होते हैं। आज इस विज्ञान के युग में तनाव एक बीमारी का रूप ले चुका है। दुनिया में अधिकतर लोग नींद की गोली खाकर सो पाते हैं, मन में शांति तथा विचार स्थिर व सुव्यवस्थित रखने वाले व्यक्ति ने आश्चर्यचकित कार्य कर दिखाये हैं। अपने विचार हमेशा सकारात्मक रखो कभी-न-कभी सफलता अवश्य मिलेगी।

इंद्रिय संयम

इंद्रिय संयम रखने से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती है। इंद्रिय संयम से व्यक्ति लंबी आयु प्राप्त करता है। इंद्रिय Sanyam रखने वाला व्यक्ति आत्मबली, मनोबली, साहसी, प्रसन्न, स्वस्थ्य व व्यवहार में कुशल होता है। ब्रह्मचर्य पालन व सतोगुणी भोजन करने वाला मिताहारी व्यक्ति सौ वर्ष जीता है। किसी बुजुर्ग ने कहा है—-“जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन – जैसा पीवे पानी, वैसे बोले वाणी”। मन की अस्थिरता को रोकने वाला व्यक्ति महान बन सकता है। इंद्रिय संयम रखने वाला व्यक्ति भाग्यशाली होता है। विद्यार्थि को अपने गुरुजन की आज्ञा का पालन करते हुए एक नियमित समय-सारणी पर चलना चाहिए। यही है आत्मोन्नति के स्वर्णिम सूत्र।

गरीबी और बेरोजगारी निवारण के लिए अधिकांश सरकारी प्रयासों की प्रमुख दिशाधारा छूट, अनुदान और कर्ज आधारित रही है, जिसने व्यक्ति को स्वावलंबी बनाने के बजाय परावलंबी अधिक बनाया है। अतः परावलंबी स्वावलंबन ही निर्मित हुआ है जोकि वांछनीय है। अतः लोगों को शासकीय अनुदान के स्थान पर आत्मनिर्भर होने की बात सोचना चाहिए। अब तो साधारण तौर पर यह मान्यता है कि रोजी रोजगार में लगा हुआ व्यक्ति स्वावलंबी है और जो बेरोजगार है वह परावलंबी है।

सफ़लता के लिए लगन तथा मेहनत के साथ-साथ भाग्य का भी एक बड़ा योगदान है और भाग्य बनता है दुआओं से, दुआएँ मिलती हैं बड़ों का सम्मान करने तथा संयम रखने से।

ललित कुमार

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