Ram Navmi भगवान श्री राम के जन्मदिन के रूप में मनायी जाती है। श्री राम के जन्म की कथा ना जाने आपने कितनी बार सुनी होगी लेकिन फिर भी आपको ये नहीं पता होगा।
Ram Navmi श्री राम की जन्म कथा
Ram Navmi पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री राम विष्णु भगवान के 7 वें अवतार थे। भगवान श्री राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इस समय पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य ग्रह थे। मंगल, शनि, गुरु और शुक्र अपने उच्च राशियों में थे और कर्क लग्न का आरंभ हुआ था।
श्री राम बेहद तेजस्वी थे जो राजा दशरथ को लंबे समय का इंतजार करने के पश्चात् मिले थे। राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था उस यज्ञ में सभी मनस्वी, तपस्वी, विद्वान, ऋषि-महर्षि तथा वेदों के प्रकांड विद्वान को शामिल किया गया था। यज्ञ का संचालन ऋषि वशिष्ठ और ॠंग ऋषि की देख-रेख में हुआ था। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थीं कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा। यज्ञ विधि-पूर्वक सफल होने के बाद माता कौशल्या को श्री राम, कैकयी को भरत तथा सुमित्रा को लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए थे।
भगवान विष्णु के अवतार लेने का कारण
श्री राम के रूप में पृथ्वी पर भगवान विष्णु ने जन्म लिया था ये किसको नहीं पता और भगवान विष्णु ने रावण को मारने के लिए जन्म लिया था ये भी सभी को पता है लेकिन इसके पीछे का क्या इतिहास है ये शायद आपको ना पता हो, तो आइये जानते हैं भगवान विष्णु के श्री राम के रूप में जन्म लेने का सही कारण।
जय और विजय दो भाई थे और भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। इनके अहंकार के कारण इनको सनकादिक ऋषि के द्वारा श्राप मिला था। सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार ये चारों सनकादिक ऋषिगण हैं।
सनकादिक ऋषियों का वैकुण्ठ लोक में आगमन
एक बार सनकादिक ऋषि भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए वैकुण्ठ लोक में गये। जय और विजय ने सनकादिक ऋषियों को द्वार पर ही रोक लिया और वैकुण्ठ लोक में अंदर आने से मना कर दिया। उनके इस प्रकार मना करने पर सनकादिक ऋषियों ने कहा, “अरे द्वारपालों! हम तो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं, हमारी गति को कोई नहीं रोकता है। तुम हमें उनके दर्शन से क्यों रोकते हो? तुम लोग तो भगवान की सेवा में रहते हो, तुम्हें तो उन्हीं के समान समदर्शी होना चाहिये। भगवान का स्वभाव परम शान्तिमय है, तुम्हारा स्वभाव भी वैसा ही होना चाहिये। हमें भगवान विष्णु के दर्शन के लिये जाने दो।”
ऋषियों के इस प्रकार कहने पर भी जय और विजय ने उनकी बात नहीं मानी और तब सनकादिक ऋषियों को क्रोध आ गया। क्रोधाग्नि को शांत करने के लिए ऋषियों ने कहा, “भगवान विष्णु के समीप रहने के बाद भी तुम लोगों में अहंकार आ गया है और अहंकारी का वास वैकुण्ठ में नहीं हो सकता। इसलिये हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम लोग पृथ्वी पर जन्म लोगे और अपने पाप का फल भुगतोगे।” उनके इस प्रकार श्राप देने पर जय और विजय भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे।
जैसे ही भगवान विष्णु को पता चला कि ऋषिगण भेंट करने आये हैं तो भगवन स्वयं लक्ष्मी जी के साथ उनके स्वागत के लिये पधारे। भगवान विष्णु ने ऋषियों से कहा, “हे ऋषिगणों! ये जय और विजय, ये दोनों मेरे पार्षद हैं। इनकी बुद्धि में अहंकार का वास हो गया था जिसके चलते इन्होंने आपका अपमान किया जो घोर अपराध है।
आप लोग मेरे प्रिय भक्त हैं और इन्होंने आपकी अवज्ञा करके मेरी भी अवज्ञा की है। इनको श्राप देकर आपने उचित कार्य किया है। इन्होंने आपकी अवहेलना की है जिसे मैं अपनी भी अवहेलना समझता हूँ। मैं इन मूर्खों की ओर से आपसे क्षमा मांगता हूँ। भक्तों का अपराध होने पर भी संसार स्वामी का ही अपराध मानता है। अतः मैं आप लोगों की प्रसन्नता की भिक्षा माँगता हूँ।”
भगवान के इन मधुर वचनों से ऋषिगणों की क्रोधाग्नि का समापन हुआ। भगवान की इस उदारता से वे बहुत प्रसन्न हुये और बोले, “आप धर्म की मर्यादा रखने के लिये ही इस संसार में जाने जाते हैं। हे नाथ! आप धर्मात्मा हो, आपसे ही धर्म है, आप में ही धर्म है। हमने इन निरपराध पार्षदों को क्रोध के वश में आकर श्राप दे दिया है इसके लिये हम क्षमा चाहते हैं। आप उचित समझें तो इन द्वारपालों को क्षमा करके हमारे श्राप से मुक्त कर सकते हैं।”
भगवान विष्णु ने कहा, “हे मुनिगण! मैं सर्वशक्तिमान होने के बाद भी ब्राह्मणों के वचन को असत्य नहीं करता क्योंकि इससे धर्म का उल्लंघन होता है, धर्म का उल्लंघन अर्थात् मेरी मर्यादा का उल्लंघन इसलिए आपने जो श्राप दिया है वो मेरी ही प्रेरणा से दिया है। ये अवश्य ही इस दण्ड के भागी हैं। ये दिति के गर्भ में जाकर दैत्य योनि को प्राप्त करेंगे और मेरे द्वारा इनका संहार होगा। मेरे द्वारा इनका संहार होने के बाद ये पुनः इस धाम में वापस आ जायेंगे।”
जय का पहला जन्म हिरण्याक्ष के रूप में हुआ जिसका वध भगवान विष्णु के वराह अवतार ने किया था और विजय का पहला जन्म हिरण्यकशिपु के रूप में हुआ जिसका वध भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार ने किया था। जय विजय का दूसरा जन्म रावण व कुंभकर्ण के रूप में हुआ था जिनका वध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने किया था जोकि भगवान विष्णु के 7 वें अवतार थे। जय विजय का तीसरा जन्म शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में हुआ जिनका वध भगवान विष्णु के 8 वें अवतार श्री कृष्ण ने किया था।
Jai shree RAM