यदि Navratri 2022 April की विशेष पूजा शुभ मुहूर्त में संपन्न ना हो तो देवी अप्रसन्न हो जाती हैं लेकिन देवी माँ की पूजा से पहले कलश स्थापना होती है।
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Navratri Puja Kalash Sthapana Vidhi [ Navratri start ]
Navratri 2022 April में Navratri kalash sthapana time का विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि शुभ मुहूर्त में किया गया विधान ही शुभ फल देने योग्य होता है इसलिए नवरात्रि 2022 में कलश स्थापना का शुभ समय है 07:39AM से 09:13AM तक, ध्यान रहे कि कलश स्थापना इसी समयान्तराल में हो जानी चाहिए।
- माता के लिए षोडशोपचार पूजा विधान, जो आपको अवश्य करना चाहिए।
Navratri puja vidhi at home in hindi { Navratri start }
- पूजा स्थल पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए और आपका मुख भी पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए अगर घर का मंदिर पूर्व दिशा में नहीं है तो माता की चौकी आपको पूर्व दिशा की ओर ही सजानी चाहिए।
- पूजा स्थल और माँ की प्रतिमा का अपनी इच्छा और सामर्थानुसार सजावट करनी चाहिए।
- जहाँ आपने माँ की चौकी लगायी है वहां गंगाजल का छिड़काव कर दें।
- अपने आसन पर बैठे, आसन कुश का हो तो सबसे बढ़िया अन्यथा साफ लाल कपड़े का ही आसन बनाये।
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
[1] चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन |
[2] अपने खेत की मिट्टी नहीं तो किसी साफ जगह की मिट्टी |
[3] कलश मिट्टी का, तांबे का या फिर चांदी का |
[4] गंगाजल |
[5] कलावा |
[6] सुपारी |
[7] आम या अशोक के पाँच पत्ते |
[8] कच्चा चावल लेकिन टूटा हुआ न हो |
[9] पानी वाला जटा सहित नारियल |
[10] रोली |
[11] लाल कपड़ा |
[12] लाल और पीले फूल साथ में लाल फूल की माला एक |
गुरु को नमन
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम तत पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
अर्थात:- जो कण-कण में व्याप्त है, सकल ब्रह्मांड में समाया है, चर-अचर में उपस्थित है, उस प्रभु के तत्व रूप को, जो मेरे भीतर प्रकट कर, मुझे साक्षात दर्शन करा दे उन गुरु को मेरा शत-शत नमन है। वही पूर्ण गुरु है जो परम सत्ता के बारे में बतलाता है, परम सत्ता जो निर्जीव और सजीवों को विश्व में व्यवस्थित करता है; मैं ऐसे गुरु को प्रणाम करता हूँ।
आपका शुद्धिकरण
आसन पर बैठने के बाद आपको पवित्र होना है; वैसे तो यह मंत्र स्नान करते समय ही बोला जाता है लेकिन भाव से आप अभी शुद्ध हो रहें हैं:-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः।। ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।
अर्थात् आप शुद्ध हो या अशुद्ध चाहें किसी भी प्रकार की स्थिति में क्यों न हो भगवान पुण्डरीकाक्ष को याद करने के पश्चात् भगवान पुण्डरीकाक्ष आपको शुद्ध करेंगे। [ गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु को ही पुण्डरीकाक्ष की संज्ञा दी गई है। ]
धरती माँ को प्रणाम
पवित्र होने के बाद आपको धरती माँ को नमन करना है:-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
Navratri 2022 April
अगर आप मंत्र ना बोल पाएं तो आप अपने शब्दों में धरती माता को नमस्ते बोलें।
धरती माँ से क्षमा-याचना
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते। विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥
अर्थात् समुद्र को वस्त्र के स्वरूप में धारण करने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! आप मुझे पैर रखने के लिये क्षमा करें। और जैसे आप अपने शब्दों में बोल पाएं वैसे।
आचमन विधि
क्षमा-याचना करने के बाद आपका आचमन होगा, आचमन करने से विद्या, आत्म और बुद्धि तत्व का शुद्धिकरण हो जाता है। तीन बार चम्मच से गंगाजल हाथ में लेकर ग्रहण करना है आपने, पहली बार ग्रहण करते समय ॐ केशवाय नमः, दूसरी बार ॐ नारायणाय नमः तथा तीसरी बार ग्रहण करते समय ॐ वासुदेवाय नमः बोलना है। फिर हाथों को धोना है एक चम्मच गंगाजल लेकर और धोते समय बोलना है ॐ हृषिकेशाय नमः अब आप संकल्प लेने के लिए तैयार है लेकिन उस से पहले कलश की स्थापना होगी।
Navratri start कलश स्थापना की विधि
- शास्त्रों के अनुसार कलश में त्रिदेवों का वास माना जाता है इसलिए, जितना आप कलश को सजा पायो उतना उचित है।
- आपके पास जो मिट्टी है उसको चौड़े मुँह वाले बर्तन में रखें और जौ बोयें तत्पश्चात चौकी पर चावल का आसान लगा के बर्तन रख दें।
- कलश पर रोली से स्वास्तिक बना दे ध्यान रहे स्वास्तिक पूर्ण बंद होना चाहिए ||卐|| इस तरह और स्वास्तिक के चारों खानों में एक-एक गोल बिंदी भी बनायें।
- कलश को जल/गंगाजल से गले तक भर लें न तो अधिक न कम।
- अब लौंग का जोड़ा + हल्दी + इलायची + सुपारी + एक सिक्का हाथ में लेकर कलश में डाल दें।
- कलश को उपरी हिस्से में गले पर कलावा को लभेड़ दे पर गांठ न लगाए।
- कलश के उपर अशोक के या आम के पाँच पत्ते रख दें।
- नारियल को हल्दी व कुमकुम से तिलक करके कलावा बाँध दे, इसके बाद लाल कपड़े में लपेट के नारियल का मुहँ अपनी तरफ करके, कलश के उपर जो पत्ते रखें हैं उन पत्तों के उपर रख दें।
- कलश स्थापना अब पूर्ण हुई, कलश स्थापना के बाद दीपक प्रज्वलित किया जाता है उसके बाद गौरी-गणेश का पूजन किया जाता है।
दीपक प्रज्वलित
यदि आप घी का दीपक जलाते हैं तो माता के दाहिने ओर रखें। यदि आप तेल का दीपक जलाते हैं तो माता के बायीं ओर रखें। दीपक के नीचे चावल का आसान जरूर दें।
गौरी-गणेश पूजन
- अगर आपके पास पहले से गौरी-गणेश की प्रतिमा हो तो उसी को चौकी पर स्थापित करें अन्यथा गणेश जी की प्रतिमा को आप पीली मिट्टी से बनायें और गौरी जी की प्रतिमा को गाय के गोबर से या फिर हल्दी से बनायें।
- गौरी-गणेश की प्रतिमा को आम या अशोक के पत्ते के उपर रखें।
- गौरी-गणेश को गंगाजल से स्नान कराएं अर्थात् पत्ते से गंगाजल छिड़क दे तत्पश्चात तिलक कर दें और कलावा भी पास में रख दें।
- सर्वप्रथम गणेश जी की स्तुति करें फिर गौरी जी की करें।
- स्तुति करने के बाद गणेश जी को पीले फूल चढ़ाएं और माँ गौरी को लाल फूल चढ़ाएं।
- गणेश जी को बेसन लड्डू या बूंदी लड्डू भोग स्वरूप जरूर अर्पित करें और वो भी प्रत्येक दिन।
गणेश स्तुति
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय! नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते!! भक्तार्तिनाशनपराय गनेशाश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय! विद्याधराय विकटाय च वामनाय , भक्त प्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते!! नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम:! नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:!! विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारणे! भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक!! लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय! निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!! त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति , भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति! विद्याप्रत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति,तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव!! गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम! तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम!!
समय के अभाव में आप निम्नलिखित प्रार्थना भी कर सकते हैं:-
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीदसादनम् ॐ महागणाधिपतये नमः॥
गौरी स्तुति
जय जय गिरिराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता॥ देवी पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥ मोर मनोरथ जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही के॥ कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहिं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥ बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मुरति मुसुकानि॥ सादर सियं प्रसादु सर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियं भरेऊ॥ सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥ नारद बचन सदा सूचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
रामचरित मानस के अनुसार यह स्तुति माता सीता ने गौरी माँ को प्रसन्न करने के लिए प्रयोग की थी जिसके फलस्वरुप भगवान राम से विवाह हुआ था।
भोग अर्पित
जो भी आपके पास भोग हो मिठाई, फल इत्यादि वो सबसे पहले कलश को स्पर्श कराएं तत्पश्चात चौकी पर माता के आगे रख दें। प्रत्येक दिन नया भोग दिया जाएगा और गणेश जी को लड्डू का भोग अलग से दिया जाएगा। ये भोग अगले नवरात्रि वाले दिन उठा के प्रसाद स्वरूप सभी को वितरित कर दिया जाएगा।
संकल्प
भोग अर्पित करने के बाद संकल्प लिया जाएगा जो बहुत जरूरी है। संकल्प लेने के बाद ही शास्त्रोक्त फल मिलता है।
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे चैत्रशुक्ल अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिसु अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुष्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ पालयन् अमुकगोत्रः अमुकनामाह भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
इस मंत्र में कई जगह अमुक शब्द आया है। जैसे- अमुकनामसम्वत्सरे यहाँ आप इस की जगह “विक्रम संवत 2079 शाक 1944 नामसम्वत्सरे” उच्चारित करेंगे यदि आप उत्तर भारत के निवासी है।
दक्षिण भारत के निवासी होने पर जो सम्वत्सर हो उसका नाम उच्चारित करेंगे। ठीक ऐसे ही अमुकवासरे में उस दिन का नाम जिस दिन की नवरात्रि है जैसे “शनिवारवासरे”। अमुकगोत्रः अपने गोत्र का नाम, अमुकनामाह में अपना नाम। यह संकल्प आपको रोज लेना है यदि आपको रोज व्रत रहना है तो और जिस दिन न रहें उस दिन संकल्प ना लें केवल पूजा करें। यहाँ एक जगह एतासु नवतिथिसु आया है उसकी जगह तिथि का नाम आएगा जैसे पहले दिन के नवरात्रि के लिए प्रतिपदा तिथौ उदाहरणार्थ:- विमलेश उत्तर भारत में रहती हैं, इनका गोत्र परिहार है, इनको पहले दिन का नवरात्रि का संकल्प लेना है। तब संकल्प मंत्र होगा
“ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, विक्रम संवत 2079 शाक 1944 नामसम्वत्सरे चैत्रशुक्ल शनिवारवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि प्रतिपदा तिथौ अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुष्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ पालयन् परिहारगोत्रः विमलेशनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये”।
Navratri 2022 April
नवरात्रि | दिन | तिथि |
पहला | शनिवार | प्रतिपदा |
दूसरा | रविवार | द्वितीया |
तीसरा | सोमवार | तृतीया |
चौथा | मंगलवार | चतुर्थी |
पांचवां | बुधवार | पंचमी |
छठा | गुरुवार | षष्ठी |
सातवां | शुक्रवार | सप्तमी |
आठवां | शनिवार | अष्टमी |
नवाँ | रविवार | नवमी |
- मंत्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
- संकल्प लेत समय हाथ में चावल, फूल, जल और कुछ रुपये अपनी इच्छानुसार 1, 11, 21 आदि तथा संकल्प लेने के बाद ये सब माता के चरणों में छोड़ दें।
- अगर आप मंत्र का उच्चारण शुद्ध नहीं करपाते तो आप अपने शब्दों में जिस प्रकार बोल पाएं वैसे बोले बस “भाव शुद्ध तो माता खुश”।
महत्वपूर्ण बातें
- चौड़े मुँह वाले बर्तन जिसमें आपने जौ बोयें हैं उसमें प्रत्येक दिन 5-6 चम्मच गंगाजल डालना है।
- आपका शुद्धिकरण आपको प्रत्येक दिन करना है आप व्रत रहो या ना लेकिन पूजा तो नौ दिनों तक चलेगी ना।
- धरती माता को प्रणाम और क्षमा याचना, साथ में आचमन विधि प्रत्येक दिन करनी है जब तक नवरात्रि हैं तत्पश्चात उस दिन के नवरात्रि देवी माँ की पूजा होगी।
- अगर आप विवाहित हैं तो जोड़े से ही पूजा करें, सभी मंत्र दोनों को बोलने की आवश्यकता नहीं है। कोई एक बोले तो दूसरा बस हाथ लगा ले, लेकिन संकल्प दोनों को अलग-अलग लेना है।
- आप इससे भी विधिवत रूप से पूजा कर सकते हैं।
- गुरु के द्वारा बतलाई गई पूजा ही सर्वोपरि है।
अन्य देखें
- सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना सीखें।
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