Parivartan Yoga राशि परिवर्तन योग या स्थान परिवर्तन योग का निर्माण कुंडली में जब होता है जब दो ग्रह आपस में जगह को बदल लेते हैं अर्थात् एक-दूसरे की राशि में बैठ जाते हैं। लग्न कुंडली में ग्रहों की ऐसी स्थिति राजयोग का निर्माण करती है जो जातक को सम्बन्धित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा में फल देती है। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me.
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कुंडली में राशि परिवर्तन योग
Parivartan Yoga लग्न कुंडली में राशि परिवर्तन योग तीन प्रकार का होता है जो क्रमशः महायोग, दैन्य योग और खल योग हैं। परिवर्तन योग में महायोग का प्रकार ही सबसे उत्तम होता है क्योंकि यही योग आपको वो सब दिलाता है जो आपको सबकुछ चाहिए होता है। लेकिन राशि परिवर्तन का दैन्य योग अच्छा नहीं होता है क्योंकि ये आपको गलत परिणाम देने के लिए बाध्य होता है। खल योग को मैं कहीं हद तक सही समझता हूँ क्योंकि ये आपको एक समय के बाद परिणाम तो अच्छे ही देता है। अभी हम तीनों योग को और अच्छे से समझने का प्रयास करते हैं कि यह योग हमारी लग्न कुंडली में किस प्रकार बनता है।
महायोग
ये योग जब जातक की कुंडली में बनता है तो ग्रह अपने समय में पाँच गुना अधिक शुभ फल देते हैं। लग्न कुंडली के केंद्र के घर 1H, 4H, 7H, 10H और त्रिकोण के घर 5H, 9H को ही महायोग की श्रेणी में शामिल किया जाता है। आपकी लग्न कुंडली में जब केंद्र भाव के मालिक का आपस में स्थान परिवर्तन हो जाता है तो यह महायोग बनता है। इसी प्रकार लग्न कुंडली के त्रिकोण घर के मालिक केंद्र भाव के किसी भी मालिक के साथ परिवर्तित होते हैं तो भी यह महायोग बनता है।
- यहाँ बुध नीच के हैं लेकिन फिर भी कुंडली में राशि परिवर्तन योग बनेगा।
- केंद्र के घरों में जो राशि होती है और उन राशि के जो स्वामी होते हैं, जब वो स्वामी एक-दूसरे की राशि में जाकर बैठ जाते हैं तो तब महायोग बनता है।
- अगर उपर्युक्त ग्राफ में बुध गुरु की मीन राशि के बजाय धनु में होते तब भी यह राजयोग बनता, ठीक इसी प्रकार गुरु बुध की मिथुन राशि की बजाय अगर कन्या में होते तो भी बनता।
- कुलमिलाकर जब केंद्र के घरों के साथ ही परिवर्तन हो तो परिवर्तन योग बनता है।
- इसी प्रकार 5H की राशि के मालिक शुक्र या फिर 9H की राशि के मालिक शनि केंद्र में चले जाएं और केंद्र का कोई भी ग्रह बुध या गुरु 5H या 9H में चलें जाएं तो भी राशि परिवर्तन योग में महायोग बनेगा।
दैन्य योग
जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है दैन्य अर्थात् बड़ी ही दयनीय स्थिति, गंभीर और गरीबी वाला जीवन। इसके अंतर्गत भी राशि के स्वामी का परिवर्तन होता है लेकिन यह अशुभ होता है इसलिए इस प्रकार के योग को दैन्य योग कहते हैं। जब लग्न कुंडली के त्रिक भाव (6H-8H-12H) के स्वामी केंद्र भाव के साथ परिवर्तित होते हैं तो यह राशि परिवर्तन योग दैन्य योग के अंतर्गत आता है। इसमें एक अच्छा ग्रह तो गलत घर में चला जाता है और एक गलत घर का मालिक अच्छे घर में आ जाता है, इसी वजह से हमें इन ग्रहों के समय में अशुभ फल मिलते हैं।
- दैन्य योग में केंद्र के साथ त्रिक भाव का एक्सचेंज होना है तभी यह योग बनेगा।
- मंगल 8H में बुध की राशि मिथुन में हैं और बुध मंगल की राशि वृश्चिक में हैं अगर ऐसा किसी लग्न कुंडली में हुआ तो दैन्य योग बनेगा और अशुभ फल देगा।
- यहाँ मंगल लग्नेश हैं; यदि किसी भी लग्न कुंडली में लग्नेश त्रिक भाव (6H-8H-12H) में गया तो लग्न दोष के साथ ये योग भी बनेगा जैसे मंगल का 8H के साथ परिवर्तन होने से दैन्य योग बना और लग्न दोष भी बना, ठीक इसी प्रकार मंगल का अगर 12H के साथ एक्सचेंज हो तब भी दैन्य योग के साथ लग्न दोष बनेगा।
- चूँकि मंगल लग्नेश है इसलिए 6H के साथ एक्सचेंज नहीं हो सकता क्योंकि 6H में मंगल की ही राशि है तो परिवर्तन किसके साथ होगा।
- इसी प्रकार केंद्र के किसी भी घर की राशि के स्वामी के साथ त्रिक भाव के स्वामी का एक्सचेंज होगा तो यह योग बनेगा।
- जैसे शनि 12H शुक्र की राशि में गए और शुक्र 4H शनि की राशि कुंभ में गए; इस तरह की स्थिति खराब हुई क्योंकि एक अच्छे घर का मालिक जो कुंडली में योगकारक होता है वो तो गलत घर में चला गया और कुंडली के गलत घर का मालिक जो वैसे भी कुंडली में मारक होता है अच्छे घर में आ गया इसलिए ये स्थिति अत्यधिक खराब हुई।
खल योग
Parivartan Yoga के प्रकार में खल योग को मैं अच्छा मानता हूँ कम-से-कम दैन्य योग से तो बेहतर ही है। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है खल अर्थात् खपने वाला योग, ये योग अगर व्यक्ति की कुंडली में बने तो समझ लो व्यक्ति को मेहनत करने से ही सबकुछ मिलेगा अन्यथा कुछ भी मिलना असंभव सा ही है। व्यक्ति के जीवन में भागदौड़ अधिक रहती है और व्यक्ति मेहनत अधिक करता है किन्तु फल की गई मेहनत के अनुसार कम मिलता है। इस तरह का योग लग्न कुंडली में जब बनता है जब 3H की राशि का मालिक केंद्र के किसी भी घर की राशि के मालिक के साथ एक्सचेंज होता है।
जैसे उपर्युक्त मिथुन लग्न कुंडली में सूर्य 7H या 10H में जाएं और गुरु 3H में, ठीक इसी प्रकार सूर्य 1H या 4H में जाएं और बुध 3H में तो यह राशि परिवर्तन योग में से खल योग बनेगा।
निष्कर्ष
Parivartan Yoga में जब केंद्र में ही ग्रहों का राशि परिवर्तन योग बने तो वह सबसे उत्तम होता है लेकिन अगर तृतीय भाव के साथ केंद्र के घरों का राशि परिवर्तन योग बने तो कहीं हद तक अच्छा ही होता है किन्तु लग्न कुंडली के त्रिक भाव के साथ एक्सचेंज अच्छा नहीं होता है; और कुंडली में राशि परिवर्तन योग किसी भी प्रकार का क्यों न बने लेकिन जातक को फल सम्बन्धित ग्रहों की महादशा और अंतर्दशा में ही मिलता है। ग्रहों के बीज मंत्र का जप करने से फल आपको शुभ ही मिलते हैं चाहें ग्रह कुंडली में योग बना रहा हो या दोष लेकिन रत्न केवल योगकारक ग्रहों का ही पहना जाता है।
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