कुंडली में 12 भाव और मनुष्य जीवन में उनका फलादेश।

नमस्ते! रामराम! Whatever you feel connected with me मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आप सभी का; यहाँ से हम “कुंडली कैसे देखे” अध्याय को आरम्भ कर रहें हैं। आप सभी के मस्तिष्क में यह प्रश्न आता होगा कि अपनी “जन्म कुंडली कैसे देखें”। इसी प्रश्न की उत्सुकता आपको यहाँ तक खींच कर लायी है। इस लेख को पढ़ने के पश्चात्‌ कुंडली में 12 भाव से संबंधित लेख पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ,तो चलिए शुरू करते हैं——–

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कुंडली का लग्न: शक्ति और संघर्ष

लग्न कुंडली क्या है

कुंडली में 12 भाव के बारे में बात करने से पहले हम समझते हैं कि लग्न कुंडली क्या है तथा लग्न कुंडली क्यों पढ़ते हैं।

कुंडली में 12 भाव

उपर दिखाये गये तीनों चित्र एक जैसे हैं। आप उनको उन चित्रों के उपर लिखे हुए शब्दों से पहचान सकते हैं कि यह ग्राफ कौनसा है। अगर मैं चित्र 1, 2, 3 के उपर लिखे हुए शब्द क्रमशः—लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली और नवमांश चक्र हटा दूं। फिर आपसे पूछूं कि इन ग्राफों में क्या अन्तर है। तो आप कहेंगे कि दिखने में तो एक जैसे लग रहें हैं। और यह सत्य भी है।

चाहें आपकी किसी भी प्रकार की कुंडली हो मुख्यतः उपर्युक्त दिये गये तीन चित्र ही देखने को मिलते होंगे जिनके उपर यही लिखा रहता है जो मैंने अपने चित्र 1, 2, 3 में लिख रखा है।

अच्छा नवमांश चक्र क्या है, इसके बारे में हम आगे चलकर समझेंगे; और चंद्र कुंडली क्या है इसको मैं इस लेख के अंत में बता दूँगा। फ़िलहाल हम “लग्न कुंडली क्या है”, इसके उपर चर्चा करेंगे।

लग्न कुंडली की विशेषताएं

  1. लग्न कुंडली वो जो आपके स्वभाव, चरित्र और व्यक्तित्व का विश्लेषण करती है।
  2. लग्न कुंडली से ही सम्पूर्ण जीवन का फलादेश किया जा सकता है।
  3. लग्न कुंडली से ही आपके शुभाशुभ फलों की जानकारी मिलती है।
  4. किसी भी जातक के जन्म के समय ग्रह-नक्षत्र की स्थिति जो ब्रह्माण्ड में होती है ठीक वैसी ही स्थिति जहाँ अंकित हो जाए वही लग्न कुंडली होती है।
  5. इसलिए आपको लग्न कुंडली को ही महत्त्व देना चाहिए और उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करना भी आना चाहिए।
  6. इस लग्न कुंडली से हम योगकारक और मारक ग्रह निकालते हैं।
  7. योगकारक ग्रह वो जो आपको हर परिस्थिति में अच्छे ही परिणाम देते हैं।
  8. मारक ग्रह वो जो आपको जीवन-भर गलत परिणाम देने के लिए बाध्य हो जाते हैं।

लेकिन यहाँ हम ग्रहों की योगकारकता और मारकता के बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि आज हम कुंडली में 12 भाव के बारे में जानना चाहते हैं तो इसी शीर्षक के संदर्भ में चर्चा करेंगे।

लग्न कुंडली

इसका विवरण आपको mysticscience.in पर उपलब्ध है।

लग्न कुंडली और चंद्र कुण्डली

लग्न कुण्डली और चंद्र कुण्डली में अन्तर समझने के लिये आपको नीचे दिए गये चित्र – 5,6 को ध्यान से देखना होगा।

लग्न कुंडली और चंद्र कुंडली
  1. चित्र-5 में 1H में 11 लिखा है, 11 नंबर की राशि कुंभ होती है। इस प्रकार ये कुंभ लग्न की कुंडली है। ठीक इसी तरह, चित्र-5 में 5H में 3 लिखा है और 3 नंबर की राशि मिथुन होती है, जहाँ पर चंद्रमा भी विराजमान है।
  2. यानी की चित्र-5 में चंद्रमा 5H में मिथुन राशि में विराजमान है जो 3 नंबर की राशि है। अब देखो चित्र-6 जहाँ चंद्रमा उसी 3 नंबर मिथुन राशि में है लेकिन यहां 1H में है।
  3. इस तरह आप सभी ग्रह देखो चित्र-6 में सभी ग्रह उसी नंबर में होंगे जो चित्र-5 में हैं, लेकिन चित्र-5 में ग्रहों का घर अलग है और चित्र-6 में अलग।
  4. अब आप अपनी कुण्डली देखिए और एक खाली पेपर पर दो खाली ग्राफ बनाइये। एक के उपर लग्न लिखिए और एक के उपर चंद्र।
  5. आपकी लग्न कुंडली में 1H में जो ग्रह और नंबर लिखा है ठीक वैसे ही आपने जो खाली लग्न ग्राफ बनाया है उसके 1H में लिख लीजिए, ठीक इसी तरह 12H तक कर लीजिए।
  6. अब आप अपनी लग्न कुंडली में ये देखिए कि चंद्रमा किस भाव में लिखा है और उस भाव में कौनसा नंबर लिखा है।
  7. मान के चलो आपके लग्न कुंडली में 8H में चंद्रमा है और उस 8 घर में 7 नंबर लिखा है; तो वो 7 नंबर आपने खाली पेपर पर बनाया हुआ चंद्र कुण्डली के ग्राफ में 1H में लिख दीजिए और उसमें चंद्रमा भी लिख दीजिए।
  8. आपने 1H में 7 नंबर लिखा इसी तरह 2H में 8, 3H में 9, 4H में 10, 5H में 11, 6H में 12, 7H में 1, 8H में 2, 9H में 3, 10H में 4, 11H में 5 और 12H में 6 लिख दीजिए।
  9. अब आपकी लग्न कुंडली में जो ग्रह जिस नंबर में लिखा हुआ है ठीक वैसे ही आप खाली पेपर वाले चंद्र ग्राफ में जिसमें अभी आपने नंबर लिखे उसमें लिख दीजिए।
  10. अब चित्र-5,6 को देखो। इसी तरह होता है चंद्र कुंडली का निर्माण।
  11. लग्न कुंडली हमारे शरीर की कुंडली है। हम कोई कार्य करेंगे; शरीर से करेंगे। हमें कहीं जाना है तो शरीर के साथ जायेंगे।
  12. चंद्र कुंडली हमारे मन की कुंडली है। अब ऐसा तो है नहीं कि आपको भूख लग रही है और मन में सोचा खाना खा लिया और पेट भर गया।
  13. अब ये न समझना कि चंद्र कुण्डली का कोई महत्त्व नहीं है। महत्त्व न होता तो इसका निर्माण ही न होता और आज भी दक्षिण भारत में इसके अध्ययन को अधिक मान्यता है।
  14. दक्षिण भारत के ज्योतिषी आज भी विवाह के लिए चंद्र कुंडली का ही मिलान करते हैं और उसी को महत्त्व भी देते हैं।
  15. उत्तर भारत के विद्वान लग्न कुंडली को अधिक महत्त्व देते हैं अपेक्षाकृत चंद्र कुंडली के।
  16. मेरे मतानुसार चंद्र कुंडली का अध्ययन भी आवश्यक है लेकिन लग्न कुंडली के मुक़ाबले नहीं। क्योंकि विवाह दो शरीरों का होता है मन का नहीं। शादी के बाद संतानोत्पत्ति के लिए भी शरीर ही अहम भूमिका अदा करता है। ऐसा तो नहीं कि मन मिल गये और बच्चे हो गये: ऐसे तो मैं कलियुग में धृतराष्ट्र बन जाऊँ।
  17. हाँ दाम्पत्य जीवन में मनों का मिलना नितांत आवश्यक है क्योंकि तभी पति-पत्नी एक-दूजे के पूरक कहलाते हैं। अगर ऐसा न हो तो विवाह का विच्छेद भी होता है।

आशा है लग्न कुंडली और चंद्र कुण्डली में अन्तर आपको समझ में आ गया होगा। साथ-ही-साथ जो भी इस लेख में समझाने का प्रयास किया है वो सब आपको समझ में आया हो। दोस्तों अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगती है तो आप comment अवश्य करिये और इस जानकारी को अधिक-से-अधिक लोगों तक Share कीजिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति ज्योतिष विज्ञान से अवगत हो सके और अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकें।

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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