कुंडली में केन्द्राधिपति दोष एक भ्रम!

Kendradhipati Dosha जिसके बारे में ना जाने कितनी ही भ्रांतियां फैली हुई हैं कि केन्द्राधिपति दोष को शुक्र भी बनाते हैं और चंद्र भी बनाते हैं तथा इसका अत्यंत गंभीर दुष्परिणाम होता है। यहाँ तक की सोशल मीडिया पर ये तक कहा गया है कि जब कोई ग्रह केंद्र का मालिक हो और वो केंद्र में ही बैठ जाए तो केन्द्राधिपति दोष बन जाता है अगर ये सत्य है तो फिर पंच महापुरुष योग कैसे बनेगा। इसलिए कहता हूँ ज्योतिष किताबी ज्ञान से अधिक लागू करके समझने का विषय अधिक है। खैर! चलिए इस विषय की सारी भ्रांतियां समाप्त करते हैं और समझते हैं केन्द्राधिपति दोष क्या है?

केन्द्राधिपति दोष क्या है?

Kendradhipati Dosha जैसा कि नाम से ही कुछ हद तक पता चलता है कि केंद्र का अधिपति या केंद्र में अधिपति मतलब केंद्र का आधिपत्य जिस ग्रह के पास हो वो केन्द्राधिपति। सुनने में तो बहुत अच्छा सा लगता है और ऐसा प्रतीत होता है कोई भारीभरकम तथ्य है। अगर केंद्राधिपति किसी व्यक्ति को कहा जाए तो सीधे मन-मस्तिष्क में 56 इंच चौड़े वाले व्यक्तित्व का ख्याल आता है जिसके पास अचल संपत्ति ना होते हुए भी सर्वशक्तिमान है जो सभी विशेष प्रकार की शक्तियों से सुसज्जित है। ठीक इसी प्रकार कुंडली में जब कोई ग्रह केंद्र का आधिपत्य संभालता है तो उसके पास दो बड़े डिपार्टमेंट का अच्छा या बुरा करने की शक्ति आ जाती है।

केन्द्राधिपति दोष कैसे बनता है?

लग्न कुंडली में कुल बारह घर हैं और कौनसा घर पहला है और कौनसा दूसरा ये तो आपको बहुत अच्छी तरह अब तक पता चल गया होगा इसमें कोई संदेह नहीं है। इसी तरह कुल 9 ग्रह और 12 राशियाँ होती हैं ये भी आपको पता होगा। अब ध्यान से समझना :-

किसी भी लग्न कुंडली में जब केंद्र के घरों अर्थात्‌ 1H-4H-7H-10H में किसी ग्रह की एक से अधिक यानी की दोनों ही राशियाँ हों तो वो ग्रह केंद्राधिपति कहलाएगा और ऐसा होने पर उस ग्रह को दोष लगने की संभावना अधिक हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप ज्योतिष की भाषा में उसे केन्द्राधिपति दोष कहते हैं किन्तु दोष लगे जब और ऐसा ना होने पर केंद्र का अधिपति तो वो ग्रह रहता ही है और कुंडली में अच्छा भी होता है।

लग्न कुंडली का पहला घर, चौथा घर, सातवां घर और दसवां घर ये लग्न कुंडली के लिए अत्यधिक अहम होते हैं वैसे तो इन घरों से बहुत कुछ जाना जा सकता है लेकिन आज के इस विषय को समझने के लिए सबसे बड़े मुख्य एक-एक बिंदु ही निकालते हैं। पहला घर जिससे शरीर का पता चलता है, चौथा घर जो सम्पत्ति के बारे में बताता है, सातवां जिससे विवाह देखा जा सकता है और आखिर में दसवां जो कर्म स्थली है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी भी व्यक्ति के लिए ये चारों बहुत महत्वपूर्ण हैं।

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शरीर-सम्पत्ति-विवाह-कर्म इनके बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शरीर नहीं होगा तो जीवन कहाँ से होगा और सम्पत्ति नहीं होगी तो जीवन कैसे चलेगा हाँ ये अलग बात है कि काम चलायू होगी या अचल या फिर मध्यम, इसी तरह विवाह के बिना वंश कैसे चलेगा और जब वो नहीं चलेगा तो अर्थ-कर्म किस के लिए और अपने लिए तो कब तक तथा अंत में ये सब बिना कर्म किए कैसे सम्भव होगा; जीवन में रहना है तो कोई कर्म तो अवश्य ही करना पड़ेगा निरर्थक या सार्थक।

किसी भी लग्न कुंडली में किसी एक ग्रह को ये चार शक्तियों में से जब कोई दो शक्तियाँ पल्ले पड़ जाती हैं तो वो ग्रह अमुक व्यक्ति के लिए लगभग सर्वस्व ही होता है। अब और ध्यान से समझना कुल बारह राशियाँ हैं जिनमें सूर्य और चंद्र के पास केवल एक ही राशि है किन्तु अन्य ग्रह के पास दो-दो राशियाँ हैं और राहु-केतु छाया ग्रह हैं इसलिए उनकी राशि नहीं। इस प्रकार सूर्य-चन्द्र-राहु-केतु केन्द्राधिपति दोष के विषय में नहीं आते हैं। अब मंगल, शुक्र, शनि ये भी इस दोष को नहीं बना सकते क्योंकि इनकी दोनों राशियाँ केंद्र के घरों में किसी भी लग्न कुंडली में नहीं आती हैं।

अब बुध और गुरु ही बचे इसलिए ये दो ग्रह ही केंद्र का आधिपत्य सम्भाल सकते हैं और इनके साथ ही ये संभावना रहती है कि केंद्राधिपति दोष का निर्माण भी कर सकें। क्योंकि इनके पास दो-दो राशियाँ हैं इसलिए हम कह सकते हैं कि मिथुन लग्न, कन्या लग्न, धनु लग्न और मीन लग्न की कुंडली में ही केंद्राधिपति दोष बनता है(अगर बना तो)। जब दो बड़ी शक्तियाँ बुध या गुरु को मिले और वो ग्रह कुंडली में योगकारक हों तो यह दोष नहीं बनता है लेकिन यदि मारक हो जाएं तो केंद्राधिपति दोष बनता है।

अब सोचो कि बुध को कुंडली में शरीर का और सम्पत्ति का स्वामी बनाया गया और जब बुध कुंडली में योगकारक हो तो इन शक्तियों में इजाफा होगा जैसे शरीर ताकतवर और सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी होगी लेकिन यदि बुध किसी कारणवश कुंडली में मारक हो जाएं तो इन शक्तियों का पतन होगा जैसे शरीर बीमारी से भरा हुआ और सम्पत्ति नाममात्र के लिए या फिर कुछ भी नहीं। ये मैंने केवल उदाहरण दिया लेकिन फलकथन कैसा होगा ये अन्य तथ्यों पर भी निर्भर करता है। चूँकि हमारा विषय फलकथन के बारे में नहीं बल्कि केन्द्राधिपति दोष का है इसलिए इसी संदर्भ में बात करेंगे।

मिथुन लग्न में केन्द्राधिपति दोष

Kendradhipati Dosha

बुध का केन्द्राधिपति दोष

बुध लग्नेश हैं और केंद्र के दो घरों में उनकी राशि हैं इसलिए केंद्र के दो घरों के स्वामी बुध ही हैं जोकि लग्नेश भी हैं। केंद्र में बुध की दोनों राशियाँ आ गयी और केंद्राधिपति दोष का पहला नियम तो यही कहता है कि केंद्र में किसी ग्रह की जब दोनों राशियाँ आ जाये तो केंद्राधिपति दोष बन सकता है लेकिन अब इस दोष का दूसरा नियम ये कहता है कि जिस ग्रह की केंद्र में दो राशियाँ आयीं हैं वो ग्रह कुंडली में मारक होना चाहिए।

अब बुध किस-किस घर में मारक होंगे इसका विश्लेषण करते हैं। बुध त्रिक भावों (6H-8H-12H) में गए तो मारक होंगे और चूँकि बुध लग्नेश हैं इसलिए इन घरों में जाने से मिथुन लग्न की कुंडली में लग्न दोष भी बनेगा और केंद्राधिपति दोष भी। इसके साथ बुध यदि दसवें घर में गए तो मीन राशि में होने के कारण नीच के होंगे यदि बुध का नीच भंग होगा तो नीच भंग राजयोग बनेगा लेकिन यदि नीच भंग ना हुआ तो बुध मारक होंगे और केंद्राधिपति दोष का निर्माण भी करेंगे

गुरु केन्द्राधिपति दोष

गुरू को मिथुन लग्न में सप्तम भाव और दशम भाव का स्वामी बनाया गया है। नियम के अनुसार इनकी भी केंद्र में दो राशियाँ हैं लेकिन ये कुंडली के त्रिक भाव में जाएंगे तभी इनके द्वारा केंद्राधिपति दोष का निर्माण होगा अन्यथा नहीं। गुरू के द्वारा नीच भंग राजयोग इस लग्न में नहीं बन सकता है क्योंकि गुरू 8H में नीच के होते हैं यदि इनका नीच भंग होगा भी तो भी मारक ही रहेंगे क्योंकि 8H कुंडली का अच्छा घर नहीं है।

कन्या लग्न में केन्द्राधिपति दोष

Kendradhipati Dosha

यहाँ भी बुध का केन्द्राधिपति दोष और गुरु केन्द्राधिपति दोष ही बन सकता है। बुध उपर्युक्तानुसार त्रिक भाव में जायेंगे तभी लग्न दोष और केंद्राधिपति दोष बनेगा और अगर बुध सप्तम भाव में गए तो नीच के होंगे इसलिए बुध का नीच भंग हुआ तो योगकारक होंगे और केंद्राधिपति दोष नहीं बनेगा और नीच भंग राजयोग बनेगा लेकिन यदि नीच भंग ना हुआ तो बुध मारक हो जायेंगे और केंद्राधिपति दोष बन जाएगा। ठीक इसी तरह गुरु केंद्राधिपति दोष का निर्माण त्रिक भाव में जाने पर और पंचम घर में नीच भंग ना होने की दशा में बनेगा।

निष्कर्ष

इसी प्रकार धनु लग्न और मीन लग्न की कुंडली में केन्द्राधिपति दोष का निर्माण होता है। उपर्युक्त सम्पूर्ण व्याख्यान से आपको समझ आया होगा कि ये दोष आखिर में बनता कैसे है। दो बड़ी शक्तियाँ बुध और गुरु को मिली इसमें भी कोई समस्या नहीं अगर वो लग्नेश हो और कुंडली में योगकारक हो तब तो और भी अच्छा लेकिन जब वही ग्रह जो दो शक्तियों का मालिक था और मारक हो जाए तो एकसाथ दो शक्तियों का नुकसान करने के लिए बाध्य हो जाता है।

एक तथ्य और छूट रहा है आपसे इसलिए इसको भी समझना आवश्यक है। मिथुन लग्न और कन्या लग्न में सप्तमेश के मालिक बृहस्पति होंगे लेकिन धनु लग्न और मीन लग्न में सप्तमेश बुध होंगे। कुंडली के सप्तम भाव का विश्लेषण अष्टम-द्वादश थ्योरी के अनुसार किया जाता है; अगर कुंडली के सप्तम भाव का मालिक लग्नेश का मित्र हो तो वो ग्रह योगकारक होता है। अब लग्न कुंडली कोई सी हो बुध और गुरु की आपस में मित्रता है।

केन्द्राधिपति दोष के उपाय

केन्द्राधिपति दोष निवारण में गुरु का केन्द्राधिपति दोष के उपाय और बुध का केन्द्राधिपति दोष के उपाय में दोनों का अलग-अलग उपाय करना होता है क्योंकि गुरु या बुध ही केंद्राधिपति दोष को बनाते हैं।

बुध का केन्द्राधिपति दोष के उपाय

बहिन-बुआ से संबंध हमेशा मधुर रखें और तुलसी के पत्तों को कभी ना तोड़े तथा किसी भी प्रकार के पेड़ को ना काटें जरूरत पड़ने पर घर के किसी अन्य सदस्य से ऐसा करवा सकते हैं। गर्मियों में दोपहर के खाने के बाद एक चम्मच सौंफ का सेवन करें। मान सदस्यों को हमेशा अपनी इच्छानुसार देते रहें, कभी भी उनसे लेने की भूल ना करें किन्तु कभी जरूरत पड़ने पर ऐसा कर भी लें तो कुछ फायदे के साथ ही वापिस करें।

गुरु का केन्द्राधिपति दोष के उपाय

किसी भी प्रकार के बुजुर्ग का और कम-से-कम अपने गुरूजनों का कभी अपमान ना करें बल्कि उनका हमेशा आशीर्वाद लेते रहें। आपको जितना भी और जैसा भी ज्ञान है उसका समाज में गलत प्रयोग कभी ना करें और अपने ज्ञान पर कभी घमंड ना करें। गुरुवार के दिन बाहर के किसी बेसहारा बुजुर्ग को भोजन कराएं। सर्दियों में केवल 3-4 महिने तक शाम को दूध में 3 से 5 ग्राम हल्दी मिला के प्रतिदिन पियें और प्रतिवर्ष ऐसा करें।

बीज मंत्र

बुध और गुरु के योगकारक होने की स्थिति में भी आप बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं और मारक होने पर तो करना आवश्यक हो जाता है। जब हम योगकारक ग्रह के बीज मंत्र को जपते हैं तो उनकी योगकारकता में बढोत्तरी होती है और मारक ग्रह का बीज मंत्र बोलने से उनकी मारकता में कमी आती है।

दान विधि

दान हमेशा मारक ग्रह का ही किया जाता है लेकिन बुध और गुरु में से जो लग्नेश हो उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान कभी ना करें क्योंकि लग्नेश का दान कभी नहीं किया जाता है। लग्नेश मारक होने पर हमेशा उनके बीज मंत्र और पूजा-आराधना के माध्यम से ही सकारात्मक किया जाता है।

विनम्र निवेदन

दोस्तों Kendradhipati Dosha से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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