Kendra Trikon Rajyog लग्न कुंडली में केंद्र और त्रिकोण के घरों से बनता है। केंद्र के घरों को विष्णु स्थान और त्रिकोण के घरों को लक्ष्मी स्थान कहा जाता है। जब इन घरों के स्वामी का संबंध किसी भी प्रकार से लग्न कुंडली में बने तो केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण होता है लेकिन लक्ष्मी को जिस स्वरूप में आज समझा जाता है ठीक वैसा ही प्राचीन समय में लक्ष्मी का स्वरूप नहीं था। प्राचीन समय में बल, बुद्धि और धर्म को लक्ष्मी की संज्ञा दी गई थी। तो चलिए विस्तार से समझते हैं इस केंद्र त्रिकोण राजयोग को:-
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केंद्र त्रिकोण भाव
Kendra Trikon Rajyog को समझने से पहले हमें पता होना चाहिए कि लग्न कुंडली में केंद्र त्रिकोण भाव कौन-से होते हैं। वैसे तो प्रारंभ से अब तक इस सीरीज में कई बार बता चुका हूँ लेकिन इस राजयोग को समझने के लिए एक बार और चर्चा करते हैं।
लग्न कुंडली का पहला घर, चौथा घर, सातवां घर और दसवां घर केंद्र भाव कहलाते हैं तथा पांचवा और नौवां घर त्रिकोण भाव होते हैं लेकिन पहले घर को केंद्र व त्रिकोण दोनों में गिना जाता है किन्तु इस राजयोग के लिए 1H की गिनती यदि केंद्र में हुई तो त्रिकोण में नहीं होगी और त्रिकोण में हुई तो केंद्र में नहीं होगी मतलब 1H का मालिक अर्थात् केवल लग्नेश ही इस राजयोग का निर्माण नहीं कर सकता है।
केंद्र त्रिकोण राजयोग के नियम
- केंद्र त्रिकोण के घर के स्वामी अर्थात् 1H-4H-7H-10H के स्वामी का संबंध 5H-9H के स्वामी से हो या फिर 4H-7H-10H के मालिक का संबंध 1H-5H-9H के स्वामी से हो; युति संबंध से, दृष्टि संबंध से या राशि परिवर्तन से तो राजयोग बनेगा लेकिन दृष्टि संबंध के नियम में केवल सातवीं दृष्टि को ही मान्य किया जाता है। ऐसा क्यों? जानने के लिए कमेंट करिए।
- कुंडली के तीसरे भाव और त्रिक भावों में किसी भी माध्यम से यह राजयोग नहीं बनेगा।
- दोनों में से कोई भी एक ग्रह मित्र के नक्षत्र में हों तो राजयोग अत्यधिक प्रभावकारी होता है।
- लग्न कुंडली के कारक ग्रह अगर राजयोग को बनायें तो अत्यधिक बलशाली होता है जैसे तुला लग्न में शुक्र-शनि, शुक्र-बुध और शनि-बुध।
- राजयोग का निर्माण करने वाले ग्रह अस्त अवस्था में ना हो।
- राजयोग बनाने वाले ग्रह नीच होने पर उनका नीच भंग अवश्य हो रहा हो।
- चलित कुंडली में ग्रह घर को ना बदले जैसे तुला लग्न में शुक्र-शनि की युति 1H में है लेकिन चलित कुंडली में 12H में कोई ग्रह चला गया या दोनों ही गए तो राजयोग विफल ही हो जाता है।
- ग्रह अंश बल से अच्छे हों, राजयोग बनाने वाले एक भी ग्रह का अंश 0,1,2,3,28 या 29 ना हो।
- लग्नेश की स्थिति अच्छी हो तो राजयोग अत्यधिक बलशाली हो जाता है।
- युति संबंध, दृष्टि संबंध या राशि परिवर्तन संबंध हो किन्तु केंद्र में बना राजयोग ही सर्वाधिक बलशाली होता है। हालाँकि अन्य जगह का राजयोग भी कार्य करता है लेकिन केंद्र के मुकाबले नहीं।
केंद्र त्रिकोण राजयोग कैसे बनता है?
उपर्युक्त विवरण के अनुसार इतना तो पता चल गया कि लग्न कुंडली के 1H-4H-5H-7H-9H-10H ही इस राजयोग का निर्माण करेंगे लेकिन एक उदाहरण को लेकर इस राजयोग को अच्छी तरह समझते हैं।
उपर्युक्त तुला लग्न की कुंडली में शुक्र-शनि-मंगल१-चंद्र केंद्र के घरों के मालिक हैं जबकि शनि और बुध त्रिकोण भाव के स्वामी हैं। तो अब हम केंद्र के घरों के एक-एक मालिक का त्रिकोण के घरों के मालिक के साथ संबंध स्थापित करते हैं और प्रत्येक पहलु को ध्यान में रखते हुए इस राजयोग को समझने का प्रयास करते हैं।
शुक्र शनि का संबंध
- शुक्र-शनि त्रिक भाव, तीसरे भाव और सातवें भाव को छोड़ प्रत्येक भाव में इन दोनों की युति केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण करेगी और यदि सातवें भाव में शनि का नीच भंग हुआ तो इस घर में भी केंद्र त्रिकोण राजयोग बनेगा और साथ में नीच भंग राजयोग भी बनेगा।
- शुक्र-शनि के सातवीं दृष्टि का संबंध भी राजयोग बनाएगा जैसे शुक्र-शनि 4H औए 10H में विराजित होकर आमने-सामने से दृष्टि संबंध बनायेंगे, ठीक इसी प्रकार शनि 1H में और शुक्र 7H में जाकर दृष्टि संबंध होने से केंद्र त्रिकोण राजयोग बनायेंगे लेकिन शनि 7H में जाकर नीच के हो जाएंगे और इस राजयोग को नहीं बना पाएंगे लेकिन यदि नीच भंग हुआ तो जरूर ये राजयोग बनेगा।
- शुक्र शनि का त्रिक भाव में दृष्टि संबंध इस राजयोग के लिए कार्य नहीं करेगा, ठीक इसी प्रकार 3H और 9H का भी दृष्टि संबंध काम नहीं करेगा लेकिन 5H और 9H का दृष्टि संबंध कार्य करेगा।
शुक्र बुध का संबंध
- केंद्र के किसी भी घर में शुक्र बुध की युति केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण करेगी और साथ में इनकी युति लक्ष्मीनारायण राजयोग भी बनाती है।
- केंद्र से बाहर शुक्र बुध की युति 2H-5H-9H-11H में भी केंद्र त्रिकोण राजयोग और लक्ष्मीनारायण योग को बनायेगी।
- शुक्र बुध का दृष्टि संबंध केंद्र में और 5H-11H में होने पर भी ये राजयोग बनेगा।
शनि बुध का संबंध
- शनि बुध की युति का संबंध त्रिक भाव, तीसरे भाव और सातवें भाव को छोड़ प्रत्येक भाव में ये राजयोग बनायेगा।
- शनि बुध का दृष्टि संबंध 5H और 11H का होने पर कारगर होगा तथा केंद्र में शनि 7H में नीच के होंगे इसलिए यहां शनि का नीच भंग हुआ तभी यहाँ का दृष्टि संबंध ये राजयोग बनाएगा बाकी केंद्र के प्रत्येक घर का दृष्टि संबंध राजयोग का निर्माण करेगा।
- शनि बुध की युति इस तुला लग्न में भाग्यवान राजयोग को भी बनाती है जिसके बारे में भी आपको पता होना चाहिए।
केवल शनि
चूँकि शनि केंद्र और त्रिकोण दोनों घरों के मालिक हैं इसलिए मन में ये भी प्रश्न आता है कि क्या केवल शनि भी इस राजयोग को बना सकते हैं। तो केवल शनि तो नहीं बना सकते इसी तरह शुक्र और मंगल भी नहीं बना पाएंगे क्योंकि शुक्र मकर लग्न और कुंभ लग्न में केंद्र त्रिकोण भाव के स्वामी होते हैं तथा मंगल किस-किस लग्न में होंगे ये आप बताओ। इसलिए शनि का किसी अन्य केंद्र या त्रिकोण भाव के स्वामी से संबंध होना चाहिए तभी ये राजयोग बनेगा। हालाँकि केवल शनि केंद्र में पंच महापुरुष राजयोग को बनाती है।
मंगल शुक्र का संबंध
शुक्र के साथ मंगल का संबंध स्थापित करने के लिए 1H को त्रिकोण में गिनना होगा। शुक्र मंगल की युति से सिर्फ 2H-4H-7H में ही ये राजयोग बनेगा और मंगल शुक्र का दृष्टि संबंध निम्न के तहत ही कार्य करेगा:-
- मंगल 4H में हो और शुक्र 10H में;
- मंगल 7H में हो और शुक्र 1H में;
- मंगल 10H में हों और शुक्र 4H में लेकिन मंगल का नीच भंग अवश्य हो तभी राजयोग बनेगा।
मंगल शनि का संबंध
मंगल शनि की युति का संबंध 2H, 4H, 7H और 10H में केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण करेगा लेकिन 10H में मंगल का नीच भंग हो तो 10H में भी बनेगा अन्यथा नहीं बनेगा और मंगल शनि की दृष्टि का संबंध निम्न है:-
- 1H में शनि और 7H में मंगल के होने पर;
- 4H में मंगल और 10H में शनि के होने पर;
- 10H में मंगल और 4H में शनि के होने पर लेकिन मंगल का नीच भंग हो तब।
मंगल बुध का संबंध
मंगल बुध की युति का संबंध 2H-4H-7H में केंद्र त्रिकोण राजयोग बनायेगा और 10H में मंगल का नीच भंग होने पर बनेगा और दृष्टि का संबंध निम्न है:-
- मंगल 4H में और बुध 10H में होने पर;
- मंगल 7H में और बुध 1H में होने पर;
- मंगल 10H में और बुध 4H में लेकिन मंगल का नीच भंग हो तब अन्यथा नहीं।
चंद्र शनि का संबंध
चंद्र शनि के संबंध में एक प्रश्न दिमाग को परेशान कर रहा है कि ये संबंध तो विष दोष का ही निर्माण करता है फिर केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण कैसे करेगा? हाँ अधिकतर इनका संबंध विष दोष ही बनाता है लेकिन यदि दोनों ग्रह योगकारक हो तो विष दोष नहीं एक योग बनता है जो सकारात्मक रूप में कार्य करता है कैसे इसके लिए विष दोष वाला लेख पूरा पढ़ना होगा।
युति का संबंध
- 1H, 4H, 5H, 9H, 10H और 11H में चंद्र शनि की युति केंद्र त्रिकोण राजयोग का निर्माण करेगी।
- 2H में चंद्र का नीच भंग हुआ तो इनकी युति केंद्र त्रिकोण राजयोग बनायेगी।
- 7H में शनि का नीच भंग हुआ तो यहाँ भी केंद्र त्रिकोण राजयोग बनेगा।
दृष्टि का संबंध
- 5H और 11H में चंद्र शनि का दृष्टि संबंध राजयोग बनायेगा;
- 4H और 10H में चंद्र शनि का दृष्टि संबंध राजयोग बनायेगा;
- शनि 1H में और चंद्र 7H में होने पर बनेगा;
- शनि 7H में और चंद्र 1H में होने पर बन सकता है शनि का नीच भंग होने पर।
चंद्र बुध का संबंध
चंद्र बुध की युति तुला लग्न में धर्म कर्माधिपति राजयोग को भी बनाती है लेकिन यह राजयोग भी हर जगह नहीं बनेगा।
युति का संबंध
1H-4H-5H-7H-9H-10H-11H में इनकी युति केंद्र त्रिकोण राजयोग बनायेगी लेकिन 2H में चंद्र का नीच भंग होने पर बनेगा अन्यथा नहीं बनेगा।
दृष्टि का संबंध
केंद्र में कहीं भी एक-दूसरे का दृष्टि संबंध होने पर राजयोग बनेगा। इसी प्रकार 5H और 11H के मध्य इन दोनों ग्रहों का दृष्टि संबंध बनने पर भी राजयोग बनेगा।
चंद्र शुक्र का संबंध
त्रिक भाव, तीसरे भाव और द्वितीय भाव को छोड़ प्रत्येक भाव में इनकी युति राजयोग बनायेगी और द्वितीय भाव में तब बनेगा जब चंद्र का नीच भंग होगा। दृष्टि संबंध निम्न है:-
- केंद्र में कहीं भी दृष्टि संबंध होने पर राजयोग बनेगा;
- 5H और 11H के मध्य दृष्टि संबंध स्थापित होने पर भी बनेगा।
राशि परिवर्तन का राजयोग
Kendra Trikon Rajyog राशि परिवर्तन से भी बनता है वैसे राशि परिवर्तन का अपना एक अलग राजयोग है जो राशि परिवर्तन राजयोग के नाम से ही जाना जाता है लेकिन इस तुला लग्न में कुछ इस प्रकार बनेगा जैसे शनि 10H में कर्क राशि में जाएँ और चंद्र 4H में मकर राशि में, इस प्रकार चंद्र शनि ने आपस में राशि परिवर्तन किया या एक-दूसरे की राशि में जाकर बैठ गये; वैसे ये प्रकार जैसा ऊपर बताया कि दृष्टि संबंध के तहत आ रहा है लेकिन राशि परिवर्तन राजयोग भी बनेगा।
उपर्युक्त कुंडली का निष्कर्ष
Kendra Trikon Rajyog को समझने के लिए तुला लग्न की कुंडली का उदाहरण लिया और इसमें प्रत्येक पहलू को ध्यान में रखते हुए Kendra Trikon Rajyog को समझा। उपर्युक्त पॉइंट्स के अलावा एक भी पॉइंट अब बचा नहीं जिससे कि Kendra Trikon Rajyog बन सके। अगर तुला लग्न में बनेगा तो उपर्युक्त पॉइंट्स के तहत ही बनेगा। इसी प्रकार प्रत्येक लग्न कुंडली में Kendra Trikon Rajyog को देखना होता है।
विनम्र निवेदन
दोस्तों Kendra Trikon Rajyog से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो और सच में समझ आया हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।🙏
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