कर्तव्य बोध-कर्तव्य क्या है?

Kartavya Bodh असत्य से सत्य की ओर बढ़ना, अज्ञान के अंधकार से निरंतर प्रकाश की ओर प्रगति करते रहना तथा विनाश रूपी मृत्यु से सतत विकास रूपी अमरता की ओर अग्रसर होना ही कर्तव्य को समझना है और यही कर्तव्य प्रेरणा का मूल मंत्र है। नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with Me. तो चलिए Kartavya Bodh के अध्याय को आरम्भ करते हैं:-

कर्तव्य का अर्थ

Kartavya Bodh कर्तव्य शब्द एक भारी-भरकम और जटिल शब्द भले ही लगता हो, किंतु वह हमारे हर पल, हर क्षण, हर घड़ी, हर दिन के व्यवहार और आचरण से बनता है। हमारे व्यक्तिगत कर्तव्य, हमारे सामाजिक कर्तव्य, हमारे पारिवारिक कर्तव्य, हमारे राष्ट्रीय कर्तव्य तथा हमारे जातिगत कर्तव्य अलग-अलग न होकर एक मूल पर खड़े वृक्ष के फूल-पत्ते और शाखाएं हैं।

कर्तव्य का उद्देश्य क्या है?

Kartavya Bodh जो व्यवहार अपने लिए प्रतिकूल लगे वह दूसरों के साथ कदापि न किया जाए। ‘आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्’ अर्थात्‌ जो औरों के हित जीता है तथा औरों के हित जो मरता है उसका हर आँसू रामायण एवं प्रत्येक कर्म ही गीता है। भारतीय संस्कृति के सद्गुणों की खेती अपने अन्तःकरण में कर हम परहितार्थ जीवन जियें एवं विधाता की हमसे जो अपेक्षाएँ हैं उन्हें पूरा करें यही कर्तव्य का मुख्य उद्देश्य है। श्रुति कहती है “पुरूषौ वै सुकृतम्” —- मनुष्य इस धरती पर 84 लाख योनियों में से ब्रह्मा की श्रेष्ठतम संरचना है। फिर ऐसा निरुपयोगी, आलस्य-प्रमाद भरा, अहंता-तृष्णा भरा जीवन क्यों? यह प्रश्नचिन्ह हर किशोर युवा के समक्ष है।

कर्तव्य का व्यवहारिक पक्ष

Kartavya Bodh आइए कर्तव्य के व्यवहारिक पक्ष पर विचार करें। आप जल्दी-जल्दी विद्यालय जा रहें हैं इसलिए कि आज आपका नागरिक शास्त्र का पेपर है। रास्ते में नल की टंकी खुली है और पानी बह रहा है। आप थोड़ा समय निकाल के उसे बंद करते जाएं। कोई दृष्टि हीन व्यक्ति चौराहा पार कर रहा है, उसके साथ कोई सहायक नहीं है तो आप ही उसके सहायक बन जाइये, उसे चौराहा पार करा दीजिए। आपके नागरिक शास्त्र के प्रश्न-पत्र के लिए कुछ विलंब हो सकता है किन्तु व्यवहारिक नागरिकता की परीक्षा में आप शत-प्रतिशत अंक अर्जित कर चुके हैं, यह सत्य है।

Kartavya Bodh टेलीविजन तथा रेडियो पर इस तरह के कई विज्ञापन प्रसारित होते रहते हैं कि कूड़ा सड़क के किनारे रखे हुए कूड़ादान में ही डाला जाए, किन्तु कितने लोग है जो ऐसा करते हैं। कम-से-कम आप तो ऐसा अवश्य करें। यही नहीं यदि कभी केले के छिलके या फिसलन वाली कोई चीज़ सड़क पर पड़ी देखें तो उसे अवश्य उठाकर समीप के कूड़ेदान में डाल दें यदि वहाँ पर कूड़ेदान न हो तो गली-सड़क के किनारे में डाल दें। ऐसा करना आपके लिए किसी धार्मिक कार्य से कम नहीं होगा। सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को पीड़ा में कराहते छोड़ कर बगलें या कोई सुंदर चीज़ देखते हुए निकल जाना आज आम बात हो गई है।

पुलिस के चक्कर में कौन पड़े? हमें क्या पड़ी है? यह तो सभी सोचते हैं, लेकिन आप इससे कुछ उपर सोचते हुए मानव धर्म का पालन कीजिए। पीड़ित की सहायता कीजिए फिर चाहें कोई भी परेशानी क्यों न हो। ऐसे अवसरों पर अपने नागरिक कर्तव्य को कदापि न भूलें। रेल या बस का टिकट लेते समय या किसी भी कार्य के समय भीड़ के साथ न जुड़कर वरन् स्वयं पंक्ति में लगिए तथा दूसरों को भी पंक्तिबद्ध होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने को कहें। पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं के प्रति भी दयालु बनें। वृक्ष, वनस्पति एवं फूलों को भी संरक्षण दें।

राष्ट्र की सम्पत्ति को अपनी धरोहर समझें क्योंकि आप राष्ट्र के गौरव हैं, आप राष्ट्र के भविष्य हैं और आप ही राष्ट्र के भाग्य विधाता है। यह केवल प्रशस्ति सूचक कथन नहीं बल्कि सत्य है। आज नहीं कल आपके कंधों पर देश का भार आना है क्योंकि आप ही देश को सही राह दिखायेंगे किन्तु तब ही जब आप स्वयं अच्छे बनेंगे और अच्छी राह पर चलेंगे।

हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा। हम बदलेंगे, युग बदलेगा॥

यह मात्र कर नारा नहीं व्यवहार दर्शन है, चरित्र दर्शन है। इस पर चलिए और आज से अभी से बदलिए, कर्तव्य पहचानिए और उस पर चलिए। नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम और लघु से महान (लघुता से महानता) बनने के आधार सृजनहार से ही मिल सकेंगे। ध्रुव, प्रह्लाद, वैज्ञानिक सर वसु, आइंस्टीन, सर विश्वेश्वरैया सरीखे व्यक्ति जिन ऊंचाइयों तक पहुँचे हैं; उसके पीछे उनके माता-पिता के संस्कार और शिक्षण ही प्रधान रूप से जुड़े रहें हैं न कि सुविधा-साधन उपलब्ध करा देने भर को ही अपने कर्तव्य की इति श्री मान लेना। हम प्रतिदिन प्रार्थना के समय प्रभु से कहते हैं:-

वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ।

पर सेवा पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जाएँ॥

भगवान से जिस कर्तव्य का पालन करने, जिस कर्तव्य के मार्ग पर डट जाने की हम शक्ति माँगते है वही है ये कर्तव्य बोध। (Kartavya Bodh)

कर्तव्य और सेवा

Kartavya Bodh अपने साधनों और क्षमता का एक अंश उदारतापूर्वक दूसरों के हित में लगाना ही सेवा है। सेवा विराट रूप ब्रह्म की आराधना है। इसलिए ईश्वर की निकटता का अनुभव करने के लिए सेवा का सरल किन्तु उपयोगी मार्ग सभी के लिए खुला है। सेवा करने से देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण अर्थात् सभी ऋणों से मनुष्य को मुक्ति मिलती है। सेवा का स्वरूप आराधना और आराधना का मूल स्वरूप है – लोक मंगल में निरत रहना। महापुरूष जितने भी हुए हैं, उन्होंने इसी बात को ध्यान में रखकर लोक सेवा को प्राथमिकता दी है। जीवन का उद्देश्य सत्कर्म करते हुए आगे बढ़ना है। अतः यही कर्तव्य बोध (Kartavya Bodh)है।

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ललित कुमार

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