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कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
सर्वप्रथम मैं आपको परिवार सहित कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। आशा करता हूँ जन्माष्टमी 2022 की “कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि” सफलता पूर्वक संपन्न हो। आपके उपर भगवान की विशेष कृपा अब से जीवन भर बनी रहे। आप अपने जीवन में अधिकाधिक प्रफुल्लित रहें। ऐसी ही प्रार्थना मैं ईश्वर से करता हूँ।
साथ-ही-साथ मैं ये भी जन्माष्टमी जैसे पावन पर्व पर पालनहार से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी और आपकी बुद्धि सुख व दुख में हमेशा तटस्थ रहे तथा हम सभी निरन्तर सत्कर्म करते हुए जीवन का निर्वाह करें।
नमस्ते! राम-राम! जय श्री कृष्णा whatever you feel connected with me मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आपका कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि में; बोलो “jai shri Krishna”
जन्माष्टमी 2022 की जानकारी देने से पहले मैं आपसे विनती करता हूँ कि आज आप कमेंट में जय श्री कृष्णा अवश्य लिखें, jai shri Krishna कमेंट करने में आज आपको आपत्ति नहीं होनी चाहिए। तो चलिए शुरू करते हैं——–
जन्माष्टमी क्या है?
अगर हम केवल जन्माष्टमी शब्द का संधि विच्छेद करें तो होता है जन्म + अष्टमी अर्थात् अष्टमी को जन्म; किसका—- योगेश्वर, नटेश्वर, माधव, केशव, बिहारी आदि अनंत नामों से विख्यात हमारे भगवान श्री कृष्ण का जन्म।
पालनहार-जगतपिता का जन्म भाद्रपद माह में अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। अगर आपको महीनों के नाम नहीं पता है कि पहले महीनों को किस प्रकार गिना जाता था तो आप “12 Months Name In Hindi” लेख को पढ़े ताकि आपको पता चले कि भादों का महीना कौनसा होता है।
जन्माष्टमी व्रत क्यों?
जैसा कि आपको पता चला कि जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। श्री कृष्ण के जन्म अर्थात् भगवान के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के उपलक्ष्य में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लासित होकर जन्माष्टमी का व्रत रहते हैं।
जन्माष्टमी 2022 में भी लाखों श्रद्धालु-भक्तगण jai shri Krishna का जयकारा लगाएंगे, जयघोष होगा जय श्री कृष्णा का और प्रसन्नतापूर्वक उपवास भी रखेंगे।
लेकिन ऐसा किसी भी शास्त्र में वर्णित नहीं है कि इस दिन व्रत रखा जाए तथा जो व्रत रहेगा उसी को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होगी। ये व्रत रहना तो हमारी आस्था से जुड़ा हुआ है; भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा अनंत है। हमारा वश चले तो हम जीवनभर व्रत रहें परन्तु जन्माष्टमी का दिन विशेष होने के कारण हम अपने-आप को व्रत रखने से रोक नहीं पाते।
खाना न खाना पूजा से संबंधित भी हो सकता है। जैसे निशित से पूजा आरम्भ होकर पारणा तक चलती है। अगर आप खाना खा लेंगे तो रोजमर्रा की तरह शरीर से मल-मूत्र इत्यादि का विसर्जन भी करेंगे: सोचो—- आरती चल रही है और आप पेट-भर खड़े हैं, बीच में आपके मुख से डकार की आवाज आयी ओउम्।
तो पूजा-विधान में इस तरह की हरकतों का होना वर्जित है, इसमें पूजा में नकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है और इसका वर्णन शास्त्रों में है क्योंकि खाने से पेट भर जाना आलस्य और प्रमाद को जन्म देता है, ध्यान और एकाग्रता को नहीं। शायद इसलिए भी किसी भी अनुष्ठान के लिए व्रत रहना या केवल हल्का फलाहार करना ही उचित कारण हो सकता है।
जन्माष्टमी कब है?
जन्माष्टमी 2022 में 19 अगस्त दिन शुक्रवार को है।
जन्माष्टमी मुहूर्त
- जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त निशिता में 23:58:13 [ 18 अगस्त ] से 00:42:04 [ 19 अगस्त ] तक
- जन्माष्टमी मुहूर्त पारणा में 05:48:32 से प्रारम्भ [ 20 अगस्त को ]
जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त निकालने की विधि
- श्रावण मास के बाद भाद्रपद का महीना आता है। भाद्रपद के महीने के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि देखनी है आपको।
- कभी-कभी अष्टमी तिथि दो दिन पड़ती है तो जिस दिन अष्टमी आधी रात को हो उस दिन जन्माष्टमी व्रत रखा जाता है।
- यदि दोनों दिन आधी रात को अष्टमी रहे तो जिस दिन की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र होगा उस दिन जन्माष्टमी का व्रत रखा जाता है।
- यदि दोनों दिन आधी रात को अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र रहते हैं तो दूसरे दिन जन्माष्टमी का व्रत रखा जाता है।
- यदि अष्टमी दोनों दिन आधी रात को पड़े और दोनों दिन आधी रात को रोहिणी नक्षत्र न आए तो भी जन्माष्टमी का व्रत दूसरे ही दिन रखा जाता है।
- यदि किसी भी दिन आधी रात को अष्टमी न पड़े तो भी जन्माष्टमी का व्रत दूसरे ही दिन रखा जाएगा।
सावधानियां
एक बार मन में बोलो jay shri Krishna, जय श्री कृष्ण बोलने से आपके भाव प्रखर होंगे, तो चलिए जन्माष्टमी 2022 की सावधानियों के उपर चर्चा करें—–
- आप जो चौकी की स्थापना करने वाले हैं अर्थात् जहाँ जिस प्रकार से मन्दिर सजाने वाले हैं वो सजाने से पहले आपको दिशा का ध्यान रखना होगा।
- या तो मन्दिर का मुख पूर्व दिशा की और हो या फिर आपका मुख पूर्व दिशा की और हो।
- पूर्व दिशा में घर में कोई कूड़े-कचरे का डिब्बा न रखा हो अगर घर में रखने का वही स्थान निश्चित हो तो कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि करने से पहले हटा दें।
- आपका आसन कुश का हो तो सबसे बढ़िया अन्यथा साफ लाल कपड़े का ही आसन बनाये।
- व्रत से 24 घंटे पहले आप कन्द-मूल प्रकार का भोजन खाएं जैसे फलाहार कर सकते हैं, अधकचा-उबला हुआ खाना खा सकते हैं बिना मिर्च-मसाले का जैसे उबली हुयी लौकी आदि इस प्रकार का कुछ भी।
- अपने चौकी पर देवकी जी के लिए छोटा प्रसव घर बनायें।
- अपने चौकी पर दुग्धपान कराती हुयी माता देवकी की प्रतिमा स्थापित करें।
- चौकी पर देवकी, वसुदेव, नन्द, यशोदा, बलराम की भी प्रतिमा स्थापित करें।
- व्रत रात 12 बजे के बाद ही खोला जाता है वो भी अनाज से निर्मित खाना न खाके सिर्फ फलाहार किया जाता है।
- पारणा मुहूर्त में भगवान श्री कृष्ण की आरती, स्तुति इत्यादि करके पूजा का समापन किया जाता है।
- पूजा समाप्ति के 24 घण्टे के भीतर ही चौकी का जो भी सामान होता है जैसे फूल, चावल इत्यादि सभी बहते हुए जल में प्रवाहित किए जाते हैं अन्यथा आपके क्षेत्र में जहाँ पथवारी माता हो वहां विसर्जित किया जाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि से बृहस्पति ग्रह पर प्रभाव
बृहस्पति ग्रह पहले केवल ग्रह थे लेकिन समय के चलते बृहस्पति ग्रह को देव गुरु बृहस्पति की उपाधि मिली; हालाँकि शास्त्रों को खंगालने पर आपको पता चलेगा कि दोनों भिन्न-भिन्न हैं।
वस्तुतः हमारे ज्योतिष शास्त्र में देव गुरु बृहस्पति देव के आराध्य जगत के पालनहार भगवान विष्णु हैं। भगवान विष्णु का 8 वां अवतार श्री कृष्ण के रूप में हुआ इसलिए श्री कृष्ण की पूजा-आराधना और भक्ति से कुण्डली में बृहस्पति ग्रह योगकारक होते हैं, और आपको शुभाशुभ फलों की प्राप्ति करवातें हैं।
बृहस्पति का कुण्डली में बहुत महत्त्व है, जन्म कुण्डली यदि आपके सभी ग्रह मारक हो और केवल बृहस्पति ग्रह योगकारक हो तो आपका जीवन अच्छा-ख़ासा व्यतीत हो जाता है।
जन्माष्टमी व्रत विधि बताओ
जन्माष्टमी व्रत विधि बताओ! आप तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे गुस्सा हो। अगर आप रिस हुए तो समझो सोशल मीडिया बर्बाद: सोशल मीडिया के आप भगवान हो या फिर सोशल मीडिया आपका भगवान है। खैर! जो भी हो, फ़िलहाल अभी मैं मज़ाक कर रहा था।
हाँ तो, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि में पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा कर सकते हैं। पर मेरी माने तो आराध्य श्री कृष्ण की 16 प्रकारों से पूजा करें अर्थात् षोडशोपचार पूजा। वर्ष में एक दिन तो ऐसा समय आता है कि आप भगवान को जितना प्रेम कर पाएं उतना उचित है।
हालाँकि भजना तो जीवनभर है लेकिन पंचोपचार पूजा किसी भी अनुष्ठान को जल्दी करने का माध्यम है। जो कह सकते हैं कि पंडितों-पुरोहितों के लिए बना है। या फिर यूं कहिए कि जिस किसी को भी जल्दी हो वो ऐसा कर सकता है। हमें तो किसी बात की जल्दी नहीं इसलिए हम तो षोडशोपचार पूजा ही करेंगे।
जन्माष्टमी कथा (shri Krishna janm Katha)
कथा आरम्भ करने से पहले सभी बोलेंगे jai shri Krishna—- shri Krishna janm Katha है द्वापर युग की; द्वापर युग में वर्तमान प्रसिद्ध शहर मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। मथुरा भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की प्राचीन नगरी है।
पुराणों के अनुसार शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी। प्राचीनकाल में शूरसेन देश अखंड भारत का एक जनपद था जो एक बड़े भूभाग में फैला था। प्राचीन ग्रंथों में मथुरा को कई नामों से पुकारा गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि।
वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है और मथुरा को लवणासुर की राजधानी भी बताया है। मथुरा को मधुदैत्य द्वारा बसाया गया ऐसा बताया गया है। इसी मधुदैत्य का पुत्र लवणासुर था जिसको श्री राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न ने मारा था।
द्वापर युग में मथुरा के राजा उग्रसेन थे। राजा उग्रसेन को उनके बेटे कंस ने राजगद्दी से हटाकर कारागार में डाला और स्वयं मथुरा का राजा बन गया लेकिन उग्रसेन की दत्तक पुत्री देवकी और कंस के मध्य अत्यधिक प्रेम था।
देवकी जी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ। वसुदेव यदुवंशी शूर तथा मारिषा के पुत्र थे। कुन्ती जो 5 पांडवों की माता थी तथा सुतसुभा जो शिशुपाल की माता थी वसुदेव इनके भाई थे। वसुदेव राजा उग्रसेन के मंत्री थे। वसुदेव जी ऋषि कश्यप के अवतार माने जाते हैं। ऋषि कश्यप को ब्रह्मा जी के श्राप के कारण वसुदेव जी के रूप में अवतरित होना पड़ा था।
वसुदेव जी वृष्णियों के राजा व गोप अर्थात् यादव राजकुमार थे। वृष्णि अर्थात् अहीर एक वैदिक भारतीय कुल है। ग्रंथों के अनुसार ययाति के पुत्र यदु और यदु के पुत्र सात्वत के वंश में वृष्णि थे। वृष्णि की दो पत्नियां थीं एक गांधारी और एक माद्री। माद्री से वृष्णि को एक पुत्र हुआ जिनका नाम देवमढ़ि (देवमीढुष) था। इन्हीं देवमढ़ि के पोते वसुदेव जी थे।
अधिक जानकारी के लिए कुछ समय पश्चात् कृष्ण की वंशावली पर लेख पोस्ट करूंगा।
वसुदेव जी के साथ देवकी का विवाह होने पर कुछ समय पश्चात् कंस अपनी बहिन देवकी और बहनोई वसुदेव जी को विदा करने के लिए रथ में साथ जा रहा था कि तभी आकाशवाणी हुई—— “कंस तू जिस देवकी को बड़े ही प्रेम से विदा करने जा रहा है उसी देवकी का 8 वाँ पुत्र तेरा काल बनेगा”।
कंस भयभीत हो गया और क्रोधित होकर देवकी को ही मारने लगा तभी वसुदेव जी ने कंस को यह कहकर मनाया कि—– तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं भय तो तुम्हें उसकी 8 वीं संतान से है। मैं वचन देता हूँ कि देवकी की सभी संतानें मैं तुम्हें सौंप दूँगा। यह सुनकर कंस मान गया और दोनों को अपने कारागार में डाल दिया।
धीरे-धीरे वसुदेव और देवकी जी के कारागार में ही सात संतानें हुईं जिनका वध कंस ने बड़े ही निर्दयता से किया। अब समय आया 8 वीं संतान होने का——— 8 वीं संतान होने से पहले भगवान विष्णु ने वसुदेव और देवकी को दर्शन देते हुए कहा——- “अब मैं अवतरित होकर तुम्हारे गर्भ से जन्म लूँगा, जन्म होते ही मुझे गोकुल में नन्द के पास छोड़ आना और वहां से नन्द की पुत्री को ले आना जो कंस को सौंप देना”।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ। जन्म लेते ही वसुदेव ने वही किया जो भगवान ने कहा था। हरिवंश पुराण के अनुसार वसुदेव और नन्द रिश्ते में भाई थे। कंस ने जैसे ही उस कन्या को मारने के लिए हाथ में पकड़ा वैसे ही वो कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का स्वरूप बन कर बोली मुझे मारने से क्या लाभ तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच गया है। उस कन्या का नाम योगमाया था।
यह वाक्य सुनकर कंस भौचक्का रह गया और भयभीत होकर छटपटाने लगा, धीरे-धीरे कंस ने गोकुल पर कई असुर भेजे लेकिन कोई भी दानव कंस के मन का समाचार सुनाने के लिए वापिस न आ सका। कृष्ण के बड़े होने पर कृष्ण और कंस के मध्य मल्ल युद्ध हुआ जिसमें कंस मारा गया। कंस मरणोपरांत श्री कृष्ण ने अपने नाना श्री उग्रसेन को कारागार से मुक्त किया और राजगद्दी पर बैठाया।
मंत्र जाप (mantra of krishna)
व्रत वाले दिन आप अधिक समय जितना आप के लिए मुमकिन हो उतना “ओउम् नमो भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करें बिना गिनती करे हुए।
बहुत ही अच्छे तरीके से पूजाविधि व janmaastami की कथा bataaai ह। सुंदर वर्णन किया। धंन्यवाद🙏