इस विधि से अपने घर पर होलिका दहन करके कामदेव को करें प्रसन्न।

Holi Kab Hai सर्वप्रथम मैं आपको परिवार सहित होली की शुभकामनाएं देता हूँ। आशा करता हूँ होली 2023 में सफलता पूर्वक संपन्न हो। आपके उपर भगवान की विशेष कृपा अब से जीवन भर बनी रहे। आप अपने जीवन में अधिकाधिक प्रफुल्लित रहें। ऐसी ही प्रार्थना मैं ईश्वर से करता हूँ। साथ-ही-साथ मैं ये भी होली जैसे पावन पर्व पर पालनहार से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी और आपकी बुद्धि सुख व दुख में हमेशा तटस्थ रहे तथा हम सभी निरन्तर सत्कर्म करते हुए जीवन का निर्वाह करें। नमस्ते! राम-राम जिस भी माध्यम से, मुझे नहीं पता; बस आप मुझसे जुड़े रहें।

होली के इस लेख में होली कब है?, होली 2023 कब है?, 2023 में होली कब है?, होली दहन कब है? और होली क्यों मनाया जाता है? आदि ऐसे ही प्रश्नों के उपर चर्चा करेंगे तथा इसके साथ-साथ होली की रात्रि को धनवान बनने का एक अचूक उपाय भी बताया जाएगा जो इस लेख का अहम बिंदु है। तो चलिए प्रारम्भ करें:-

होली क्यों मनाया जाता है?

Holi Kab Hai होली का त्योहार मनाने के पीछे कई ज्ञात और लोक प्रचलित कारण है; जिनका विवरण अग्रानुसार किया जा रहा है:-

वसंत ऋतु का स्वागत

हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंत और नवीन वर्ष का प्रारम्भ वसंत ऋतु में ही होता है। इस ऋतु में तापमान सामान्य रहता है। इस ऋतु के बाद उत्तर भारत को भीषण गर्मी का प्रकोप सहना पड़ता है जो ग्रीष्म ऋतु में होता है। वसंत ऋतु में नए फूल खिलते हैं और पेड़-पौधे इसी मौसम में हरे-भरे होते हैं, उन पर नवीन पत्तों का आगमन होता है। इस मौसम में चारों ओर हरियाली होती है। प्रकृति रंगों से भरी हुई नजर आती है। इसलिए होली का पर्व रंगों से वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। होलिका दहन वर्ष के अंत का सूचक है और रंग वाली होली नए वर्ष का बोधक है।

होली 2023 होली 2023 कब है?

श्री कृष्ण कथा

श्री कृष्ण को संदर्भ में लेते हुए ये कथाएं ज़न मस्तिष्क में प्रचलित हैं। होली को रंगों से खेलने का प्रारम्भ श्री कृष्ण ने किया था ऐसी लोक विचारधारा है। ज़न समुदाय ऐसा मानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने राधा जी को अपने रंग में मिलाने के लिए या अपने चेहरे के रंग की तरह उनका रंग करने के लिए रंगों से होली खेली थी। जभी से होली को रंगों से खेला जाता है। लेकिन सात्विक या यथार्थ ग्रंथों में इस विचारधारा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के छोटा नागपुर पठार के पास झारखंड राज्य में रामगढ़ जिला है जिसमें एक अभिलेख मिला है जोकि ईसा के जन्म से 300 वर्ष पहले का है; इस अभिलेख में होली का उल्लेख मिलता है। किन्तु लोग विश्वास रखते हैं कि इसी दिन यानि की ईसा जन्म के 300 वर्ष पहले श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था और इसी खुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी। किन्तु लोगों का यह विश्वास भी किसी पहलु से प्रमाणित नहीं होता है। लेकिन होली का त्योहार उस समय में भी मनाया जाता था ये जरूर सिद्ध होता है।

विजयनगर साम्राज्य

होली अति प्राचीन समय में भी होती थी इसका प्रमाण तो रामगढ़ में मिले अभिलेख से स्पष्ट होता है लेकिन अभी से लगभग 500 वर्ष पहले भी होती थी इसका प्रमाण भी विजयनगर साम्राज्य से मिला है।

विजयनगर साम्राज्य जिसकी स्थापना हरिहर और बुक्का राय ने की थी। ये दक्षिण भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य था। इसका शासन सन् 1336 से लेकर सन् 1646 तक कायम रहा था। उस समय पुर्तगाली इसे बिसनागा राज्य या बिसनेगर साम्राज्य कहते थे। इस साम्राज्य के अवशेष वर्तमान कर्नाटक राज्य में हम्पी शहर के पास पाये गये हैं और यह स्थल विश्व विरासत स्थलों में आता है। इसी हम्पी शहर में 16 वीं शताब्दी का एक चित्र मिला है जिसको किसी नुकीले औजार से नक्काशी देकर होली को दर्शाया गया है।

इन तथ्यों से ये सिद्ध होता है कि होली ना सिर्फ उत्तर भारत में प्रचलित थी बल्कि ये भी पता चलता है कि प्राचीन भारत के सभी जगहों में होली एक प्रचलित त्यौहार था। अब इसको श्री कृष्ण ने या उनके साथ रंगों के माध्यम से पूर्ण किया गया था अथवा नहीं और श्री राम के समय में होती थी या नहीं तथा होती भी थी तो किस प्रकार होती थी, इसका ना तो कोई प्रमाण है और ना ही अब इसको सिद्ध किया जा सकता है।

धुण्डी राक्षसी का किस्सा

पृथ्वी के प्रथम राजा का श्रेय राजा पृथु को ही जाता है। पृथु वेन राजा के इकलौते पुत्र थे। राजा वेन को उनके दुष्कर्मों के कारण ऋषियों ने मारडाला था किन्तु लोकहित के लिए ऋषियों द्वारा राजा वेन की भुजाओं को निचोड़ा गया जिससे पृथु और पृथु की पत्नी अर्चि उत्पन्न हुए। पृथु को भगवान विष्णु और अर्चि को देवी लक्ष्मी का अंश अवतार माना गया है।

पृथु के समय से भी बहुत पहले धुण्डी नामक राक्षसी पाताल लोक में निवास करती थी जिसको भगवान शिव ने श्राप दिया था कि पृथु के जन्म के बाद ही तेरा विनाश होगा। आगे चलकर पृथु के शासन में ही उनके लोगों ने धुण्डी राक्षसी को पृथ्वी से खदेड़ दिया था। इसी उपलक्ष्य में होली पर्व मनाते हैं।

कामदेव कथा

देवी पार्वती के आग्रह पर कामदेव ने ध्यानमग्न भगवान शिव पर कामुकता का प्रहार किया; कामदेव के इस कृत्य से क्रोधित होकर भगवान शिव ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया और उनकी राख को अपने शरीर पर लपेटकर नृत्य किया। किन्तु कामदेव की पत्नी देवी रति के विलाप को भी भगवान शिव से देखा ना गया और फलस्वरूप कामदेव को पुनर्जीवित किया। यह देखकर देवताओं ने विभिन्न प्रकार के रंगों की वर्षा की, इसलिए होली मनायी जाती है।

इसी कथा को सत्य मानते हुए दक्षिण भारत में आज भी होली से पहले की शाम को आग जलाकर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन अर्पित किया जाता है; इसी क्रिया को दक्षिण भारत में होलिका दहन कहा जाता है। वहाँ के लोग गन्ना को कामदेव का धनुष, आम की बौर को कामदेव का बाण, आग को शिव नेत्र से निकली हुई अग्नि का स्वरूप जिसमें कामदेव जल रहें हैं और कामदेव को जलन से हुई पीड़ा को शांत करने के लिए चन्दन अर्पित करते हैं।

हिरण्यकशिपु की कथा

विष्णु पुराण के अनुसार सतयुग के अंत में हिरण्यकशिपु एक प्रमुख पात्र है। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष दोनों भाई थे जिसमें हिरण्यकशिपु बड़ा था। ये दोनों महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के पुत्र थे। हिरण्यकशिपु ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया जिसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी से उसने ये वर माँगा कि वो किसी मनुष्य के द्वारा ना मरे और ना ही किसी पशु द्वारा, ना दिन में मरे और ना रात में, न घर के अंदर ना बाहर, न किसी अस्त्र से और न किसी शस्त्र से।

ये वरदान पाकर हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान समझने लगा क्योंकि उसको लगने लगा कि अब उसको कोई मार नहीं सकता है। इसलिए वो अत्यधिक क्रूर और अहंकारी हो गया और जनता में डर फैलाकर अपने बल से अपनी पूजा करवाने लगा। उस समय सभी भगवान विष्णु की आराधना किया करते थे लेकिन हिरण्यकशिपु को ये पसंद नहीं था इसलिए भगवान विष्णु से वो अत्यधिक चिढ़ता था।

हिरण्यकशिपु के चार पुत्र थे प्रह्लाद, अनुहल्लाद, संहलाद और हल्लाद। प्रह्लाद सबसे बड़ा था और भगवान विष्णु का परमभक्त था। इसलिए वो हर समय भगवान विष्णु का ही ध्यान करता रहता था किन्तु ये बात जब हिरण्यकशिपु को पता लगी तो उसने अपने पुत्र को मारने की कई योजना बनायी लेकिन सभी विफल रहीं। फिर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहिन होलिका से कहा कि वो प्रह्लाद को गोद में बैठाकर अग्नि में प्रवेश करे क्योंकि होलिका को ये वरदान था कि अग्नि उसका कुछ अहित नहीं कर सकती है। इसलिए होलिका ने ऐसा ही किया और अंत में होलिका खाक हो गई पर प्रह्लाद का कुछ न हुआ।

ये सब देखकर हिरण्यकशिपु अत्यधिक क्रोधित हुआ और फिर उसने प्रह्लाद को मारने की अंतिम योजना बनाई। योजना के अनुसार प्रह्लाद को महल से बाहर ले ही जाया रहा था कि तभी महल के एक खम्बे से भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को वरदान का पालन करते हुए अपने नाखूनों से मार दिया।

होलिका अग्नि में जल गयीं और अधर्म का नाश हुआ या गलत विचारों का अंत हुआ तभी से होलिका दहन प्रतिवर्ष आरम्भ हुआ और यही कथा समाज में अत्यधिक प्रचलित है।

2023 में होली कब है?

8 मार्च 2023

होली दहन कब है?

7 मार्च 2023

होली क्यों मनाया जाता है?

कई कथाएं प्रचलित हैं उसमें मुख्य है; कामदेव की कथा।

होली की शुभकामनाएं

मैं ललित कुमार आपको परिवार सहित होली की शुभकामनाएं देता हूँ।

घर के लिए होलिका दहन मुहूर्त क्या है

06:30PM से 08:30PM तक

धन प्राप्ति का मंत्र

सामग्रीजलपात्र, घी का दीपक, मंत्र प्राण प्रतिष्ठा सहित धातु से बना हुआ कुबेर यंत्र
मालास्फटिक
समयरात्रि का कोई भी समय लेकिन आरम्भ केवल होली से पहले की रात को (7 मार्च की रात को)
आसनसफेद रंग या सूती आसन
दिशाउत्तर
जाप संख्यासवा लाख
अवधि5,11 या 15 दिन।
मंत्रओउम् ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट लक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय नमः।
धन प्राप्ति का मंत्र

रात्रि को किसी भी समय स्नान कर सफेद वस्त्र विछाकर उस पर कुबेर यन्त्र स्थापित कर दें और उसे जल से स्नान कराकर केसर, पुष्प आदि से पूजा करें तथा धूप-बत्ती और दीपक लगा लें। इसके बाद उपर्युक्त मंत्र का जाप करें। कुबेर यंत्र के सामने चार दाने किशमिश का भोग लगा दें, जो दूसरे दिन बालकों में वितरित कर दें।

इस प्रकार जब यह प्रयोग संपन्न हो जाए, तब उस कुबेर यंत्र को अपनी दुकान के कार्यालय में स्थापित कर देना चाहिए, ऐसा करने से कुबेर सिद्ध हो जाते हैं और आश्चर्यजनक रूप से व्यापार में वृद्धि होने लगती है। इस प्रयोग से दरिद्रता का नाश होता है और यदि व्यापार नहीं चल रहा हो तो या सही प्रकार से बिक्री नहीं हो रही हो या उसमें किसी प्रकार की अड़चन आ रही हो तो इस प्रयोग से वह समाप्त हो जाती है।

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