आरम्भ से ज्योतिष शास्त्र वर्चस्व में है।

History of Astrology in India ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का इतिहास शुरू होता है। अनंत आकाश में मौजूद अनंत ज्योतिष पिंडो का ज्ञान करना कठिन ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल भी है। लेकिन मानव ने प्रयास लगातार जारी रखा है, जिसके कारण मनुष्य ने अंतरिक्ष के अनेक रहस्यों को सुलझाने में सफलता प्राप्त की है और आगे भी वह लगातार प्रयास कर रहा है।

ज्योतिष शास्त्र का इतिहास
History of Astrology in India

ज्योतिष से संबंधित प्रश्न

भारतीय ज्योतिष शास्त्र, History of Astrology in India, ज्योतिष के प्रकार, ज्योतिष और भाग्य, ज्योतिष शास्त्र के रचयिता, फलित ज्योतिष, ज्योतिष की उत्पत्ति कैसे हुई? आदि बहुत सारे प्रश्न आपके दिमाग में आते रहते होंगे ना? नमस्ते, राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. इससे पहले के पोस्ट में हम ज्योतिष क्या है? को अच्छी प्रकार समझ चुके हैं अगर आपने वो अभी तक नहीं पढ़ा है तो पहले आप वो पढ़ लीजिए क्योंकि उसको पढ़ने के बाद ज्योतिष का इतिहास समझने में आपको आसानी होगी। तो चलिए शुरू करते हैं:-

ज्योतिष शास्त्र के आचार्य

इससे पहले हम वेद और कुछ परिभाषाओं के बारे में बात कर चुके हैं आज हम ज्योतिष शास्त्र के आचार्यों से बात को आरंभ करते हैं –

कमलाकर भट्ट

आचार्य कमलाकर भट्ट ने अपनी पुस्तक ‘सिद्धांततत्वविवेक’ में ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान का उपदेश अपने शब्दों में कुछ इस प्रकार बतलाया है – “सबसे पहले ब्रह्मा जी ही ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान को जानते हैं। ब्रह्मा जी ने ही नारद मुनि को ज्योतिष का ज्ञान प्रदान किया था। इसी प्रकार क्रमशः चंद्रमा ने शौनक ऋषि को, नारायण ने वशिष्ठ एवं रोमक को, वशिष्ठ ने माण्डव्य को तथा सूर्य ने मय को ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान उपदेश दिया”।

कमलाकर भट्ट के विषय में मेरा विचार

ऐसा कमलाकर भट्ट मानते हैं लेकिन यहां प्रश्न उठता है कि ब्रह्मा कौन हैं? ब्रह्मा कोई मनुष्य है या फिर ब्रह्मा कोई देव है? अगर ब्रह्मा देव है तो क्या? देव मनुष्यों से कुछ भिन्न होते हैं या फिर मनुष्यों से कुछ विशेष गुण होने पर उनको देव बोला जाता है लेकिन होते वो मनुष्य ही हैं। ये एक अलग प्रश्न है? आखिरकार ब्रह्मा कोई Super Natural Power है जो सबको नियंत्रित करती है अगर ऐसा है तो ब्रह्मा कोई देव या मनुष्य नहीं बल्कि Super Natural Power का नाम है जिसका नामकरण भी मानव जाति ने अपनी विवेकानुसार प्रतिपादित किया होगा।

किन्तु जैसे-जैसे मानव समाज में कुरीतियों का जन्म होता गया वैसे-वैसे आखिर सत्य क्या है? ये धुँधला होता गया जो आज मानव समाज को बहुत क्षति पहुंचा रहा है विशेष कर वैदिक संस्कृति या भारतीय सनातन आध्यात्मिक ज्ञान को यद्यपि ये प्रश्न अत्यधिक जटिल और विकराल है इसलिए इस पर चर्चा फिर कभी करेंगे, फ़िलहाल इतना तो समझ आता है कि ज्योतिष शास्त्र का विकास अनेक आचार्यों के योगदान द्वारा ही सम्भव हुआ है।

आचार्य कश्यप

आचार्य कश्यप के अनुसार ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रवर्तक हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पाराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पौलिश(कहीं कहीं पुलिस भी लिखा मिलता है), च्यवन, यवन, भृगु तथा शौनक ये ज्योतिष शास्त्र के 18 आचार्य हैं।

ज्योतिष शास्त्र का इतिहास

वैसे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के साथ ही ज्योतिष शास्त्र का इतिहास शुरू होता है। अनंत आकाश में मौजूद अनंत ज्योतिष पिंडो का ज्ञान करना कठिन ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल भी है। लेकिन मानव ने प्रयास लगातार जारी रखा है, जिसके कारण मनुष्य ने अंतरिक्ष के अनेक रहस्यों को सुलझाने में सफलता प्राप्त की है और आगे भी वह लगातार प्रयास कर रहा है।

ब्रह्माण्ड और अंतरिक्ष से जुड़े हुए अनेक ऐसे प्रश्न अभी भी मौजूद है जो रहस्य के कटघरे में खडे हुए हैं जिनका फैसला करने वाले ना अभी जज आये और ना ही गुत्थी को सुलझाने वाले वकील उपलब्ध है किन्तु मानव प्रयत्नशील है जो वकील बनने की तैयारी में लगातार आगे बढ़ रहें हैं।

किन्तु ब्रह्माण्ड भी इतना छोटा और सरल नहीं है, जो इतनी आसानी से सुलझ जाये, एक गुत्थी सुलझती है तो उससे जुड़ी हुयी दूसरी कड़ी सुलझने के लिए उलझेपन में उपलब्ध हो जाती है। खैर! इतिहास की दृष्टि से सम्पूर्ण ज्ञान परम्परा का मूल आधार वेद है। सभी विद्याओं का उद्भव वेदों से ही माना जाता है। वेदों में भी ऋग्वेद को सबसे प्राचीन माना गया है। यद्यपि इस वैदिक कालखंड में ज्योतिष शास्त्र का कोई भी स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता है, परंतु ज्योतिष शास्त्र के अनेक मूलभूत विषय वेदों के मंत्र भाग एवं संहिता भाग में प्राप्त होते हैं।

प्रसिद्ध ग्रंथों के आधार पर ज्योतिष शास्त्र का समय

औरायन नामक ग्रंथ में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महोदय ने ऋग्वेद का काल ईसा के जन्म के 4500 साल पुराना माना है, जबकि ‘वैदिक सम्पत्ति’ नामक ग्रंथ में पं रघुनन्दन शर्मा ने ऋग्वेद का रचना काल ईसा के जन्म के 22000 साल पहले का माना है। इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र का कालखंड भी इसी के समान माना जा सकता है।

कई इतिहासकार एवं प्राचीन साहित्य के रचयिता भी यह कहते हैं कि ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति सृष्टि के आरंभ काल से ही हुई है। उस काल में मानव वन के जीव-जंतुओं के साथ सूर्योदय एवं सूर्यास्त की स्थिति को देखकर उसे समझने का प्रयास करता रहा होगा और वहीं से काल गणना का आरंभ (Calculation of Time) हुआ। समय के साथ धीरे-धीरे ज्योतिष शास्त्र का उपयोग दैनिक जीवन में भी होने लगा होगा।

ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति

ज्योतिष का विकास मानव जीवन के विकास के साथ ही हुआ। मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु होता है। इस जिज्ञासा के कारण ही वह प्रत्येक बात की गहरायी में जाना चाहता है कि कब? क्यों? और कैसे? संसार का समस्त ज्ञान इसी जिज्ञासा का परिणाम है। इसी क्यों और कैसे की वज़ह से मानव ने सोचा होगा कि यह जो लाल दिखाई देता है जिसकी ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती है जिसको वर्तमान में हम सूर्य के नाम से जानते हैं ये आखिरकार है क्या? ये हमेशा पूर्व दिशा की और से ही क्यों उदित होता है।

पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, दक्षिण दिशा इन सभी दिशाओं का आंकलन कैसे किया होगा? वर्षा ऋतु या कोई भी ऋतु एक निश्चित समय पर ही क्यों आती है तिथियों का आंकलन कैसे किया होगा? दिन रात की अवधि कैसे ज्ञात की होगी?

इस प्रकार की कई बातें हैं जो मानव की जिज्ञासा के कारण आज स्पष्ट रूप से उभर कर आयी हैं।यहीं सब घटनाये मानव को प्राचीन समय से अपनी और आकर्षित करती रहीं है, जिनका कार्य मानव वर्तमान में भी किसी-न-किसी विषय पर खोज करके करता रहता है। ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति इसी आकर्षण का परिणाम है। आप लोगों को ज्योतिष शास्त्र के प्रति आकर्षण एवं जिज्ञासा का भाव होने के कारण ही आप इस शास्त्र के अध्ययन में रुचि दिखाते हैं और ज्योतिष को अच्छी तरह समझना चाहते हैं।

वेदांग और काल शास्त्र

भारतीय वैदिक सनातन परम्परा में ज्योतिष शास्त्र को वेद का अंग होने के कारण ‘वेदांग’ कहा गया है। इन्हीं वेदांगों को ‘शास्त्र’ भी कहा जाता है, यह शास्त्र हमारे प्राचीन ऋषियों की देन हैं। काल की गणना होने के कारण इसे कालशास्त्र भी कहा जाता है।

आने वाली पोस्ट और आपसे निवेदन

अगले अध्याय में हम काल का ज्ञान प्राप्त करेंगे, यहां पर ज्योतिष शास्त्र का इतिहास समाप्त करता हूँ अगर ये पोस्ट आपको अच्छा लगा हो तो आप कमेंट करिए और आप मुझे कुछ सुझाव देना चाहते हो तो वो भी अवश्य दीजिए, वैसे तो मैंने आसान से आसान भाषा में समझाने का प्रयास किया है लेकिन आपको अगर अभी भी कठिन लगता है तो इससे आसान हो पाना थोड़ा सा मुश्किल प्रतीत होता है लेकिन फिर भी कोशिश करूंगा।

आने वाली पोस्ट Calculation of Time in Vedic Period कि भिन्न-भिन्न कालों में समय की गणना कैसे होती थी? कैसे ज्योतिष शास्त्र में समय के विधान बने आदि के बारे में होगी।

अगर आप मुझसे जुड़े रहते हैं तो मैं ज्योतिष से संबंधित सभी बिंदुओं पर धीरे-धीरे प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा और परेशान ना होईये कुंडली को पढ़ना, समझना, समस्या समाधान करना, फलकथन इत्यादि करना सब कुछ जिसका आपको इंतजार है वो सब बताऊँगा बस आपको एक काम करना है वेबसाइट पर अपनी ईमेल डाल कर कमेन्ट के माध्यम से अपनी राय देनी है और जानकारी पसंद आती है तो अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है ताकि अधिक से अधिक महानुभाव ज्योतिष के महत्व को समझ सके और अपनी मह्त्वकांछा को समाप्त कर सकें।

तब तक के लिए नमस्ते! रामराम! जयहिंद- जयभारत।

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नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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