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गंडमूल दोष क्या होता है?
Gandmool Dosha कुल 27 नक्षत्र होते हैं लेकिन इनमें से केवल 6 नक्षत्र ही ऐसे होते हैं जो गंडमूल दोष के अंतर्गत आते हैं। इन 6 नक्षत्रों में किसी बालक का जन्म हो तो कहा जाता है कि बालक मूलों में हुआ है या बालक को गंडमूल दोष है। ये नक्षत्र क्रमशः अश्वनी, रेवती, ज्येष्ठा, मूल, अश्लेषा और मघा हैं जो बुध और केतु ग्रह के नक्षत्र हैं। अश्वनी, मघा और मूल केतु के नक्षत्र हैं तथा रेवती, अश्लेषा और ज्येष्ठा बुध ग्रह के नक्षत्र हैं।
गंडमूल नक्षत्र विचार
गंडमूल दोष के नक्षत्रों को संधि नक्षत्र भी कहते हैं। राशि और नक्षत्र के एक ही जगह से आरम्भ होने पर उन नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। अधिक स्पष्ट रूप से समझा जाए तो गंड और मूल इन दो शब्दों को समझना होगा। गंड अर्थात् अंत और मूल मतलब प्रारम्भ; जब किसी व्यक्ति का जन्म अंत और प्रारम्भ की संधि में हो तो गंड-मूल दोष पूर्ण रूप से बनता है। इस तथ्य को और व्याख्या करते हुए गहराई से समझते हैं।
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उदाहरणार्थ, कर्क राशि और अश्लेषा नक्षत्र का समापन एकसाथ होता है; वहीं सिंह राशि और मघा नक्षत्र का आरम्भ एकसाथ होता है। इस प्रकार 120° पर कर्क राशि और अश्लेषा नक्षत्र समाप्त होते हैं तो वहीं 120° से सिंह राशि और मघा नक्षत्र शुरू होते हैं। इसी मिलने वाले बिंदु से पीछे वाले नक्षत्र को गंड कहा जाता है और शुरू होने वाले नक्षत्र को मूल कहा जाता है। जैसे अश्लेषा नक्षत्र को अश्लेषा गंड संज्ञक और मघा नक्षत्र को मघा मूल संज्ञक कहा जाता है। गंड मतलब समापन वाला नक्षत्र और मूल अर्थात् प्रारम्भ वाला नक्षत्र तथा संज्ञक अर्थात् मिलने वाला या जोड़ने वाला।
इस तरह अब आप सोचेंगे कि कहीं-तो सभी नक्षत्र अंत होते होंगे और अगला नक्षत्र वहीं से प्रारम्भ होता होगा; हाँ बिल्कुल सही सोचा आपने लेकिन हर जगह जहाँ नक्षत्र का अंत हो रहा है वहाँ राशि का अंत नहीं हो रहा और जहाँ नक्षत्र प्रारम्भ हो रहा है वहाँ किसी नयी राशि का प्रारम्भ नहीं हो रहा है। इसलिए राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर मिलने या उदय होने पर ही जिन नक्षत्रों का निर्माण होता है उनको ही गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। चूँकि गंड-मूल नक्षत्र संधि नक्षत्र होते हैं कदाचित तभी नक्षत्र, लग्न और राशि के संधि काल को अशुभ माना जाता है।
मूल नक्षत्र में पैदा होने से क्या होता है?
गंड नक्षत्र (पीछे/समापन वाला नक्षत्र) जिस राशि में आता है उसका उस राशि का तत्व जल और मूल नक्षत्र (आगे/प्रारम्भ वाला नक्षत्र) जिस राशि में आता है उस राशि का तत्व अग्नि होता है। जल और अग्नि की संज्ञा होने पर दोष का जन्म ही होगा क्योंकि जल और अग्नि कभी मिल नहीं सकते हैं। अग्नि के उपर जल डालने से या तो आग का दमन होगा या जल उड़ेगा किन्तु विरोधाभास का जन्म अवश्य होगा। एक शास्वत सत्य का अंत होगा तो दूसरे शास्वत सत्य का प्रारम्भ होगा।
ये विरोधाभास व्यक्ति के जीवन में भी देखा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि बालक गंड-मूल दोष में जन्म लेने से दुर्भाग्यशाली होता है और जीवन उसका परेशानियों से भरा होता है। प्रत्येक कार्य में विरोधाभास उसके समक्ष बना ही रहता है। ऐसी भी मान्यता है कि ऐसा बच्चा परिवार के लिए घातक सिद्ध होता है, और स्वयं के लिए कोई-न-कोई संकट लेकर ही उत्पन्न होता है। यदि इस दोष की समाप्ति ना की जाए तो परिवार या बालक के लिए कुछ भी अहितकर हो सकता है।
हालाँकि मैंने जितनी भी कुंडलियों का अध्ययन किया: अपने अनुभव से मैंने ऐसा कुछ भी नहीं पाया है लेकिन गंड-मूल दोष का एक प्रभाव अवश्य होता है और वो ये कि बालक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। बुध-केतु के नक्षत्र अन्य नक्षत्रों से अत्यधिक गर्म हैं तो ऐसा जातक अत्यधिक गुस्से वाला तो होता ही है और यह स्वभाव व्यक्ति के जीवन में कभी-भी देखा जा सकता है।
एक नकारात्मक प्रभाव और होता है जो केवल शुरुआती 8 वर्षों तक ही रहता है। अगर इस दोष को शांत ना किया जाए तो बालक का स्वास्थ्य केवल 8 वर्षों तक अत्यधिक खराब रहता है, उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है तथा दोष की शांति करने पर भी दवाई-गोली बच्चे की 8 वर्ष तक किसी-न-किसी चीज़ की चलती रहती है। दोनों ही अवस्था में बालक लगातार सा ही दवा का सेवन करता है जिससे उसके मानसिक व शारीरिक विकास पर भी असर पड़ता है और इसी वज़ह से परिवार के सदस्य चिंतित रहते हैं। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी (केवल 8 वर्ष तक) के अलावा मैंने आज तक कोई अन्य दुष्परिणाम जातक के जीवन में नहीं देखा है।
गंडमूल नक्षत्र शांति पूजा
जिस नक्षत्र में बच्चे का जन्म हो उसी नक्षत्र में गंड-मूल दोष की शांति की जाती है। मानो कि ज्येष्ठा नक्षत्र में किसी बच्चे का जन्म हुआ तो ज्येष्ठा नक्षत्र ठीक 27 वें दिन पुनः आएगा और जब ज्येष्ठा नक्षत्र आए तभी गंड-मूल की शांति होगी। शांति के बाद ही नामकरण होता है; पहले गंडमूल नक्षत्र की शांति की जाती है तत्पश्चात बच्चे की नामकरण विधि को संपन्न किया जाता है।
कुछ पंडित जी परिवार वालों के बार-बार कहने पर जल्दी कर देते हैं या पंडित जी के पास समय ना होने पर अपने इच्छानुसार नामकरण कर देते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी बालक का जन्म दीपावली त्यौहार से पहले हुआ और गंड-मूल दोष लगा, अब नियमानुसार तो इस दोष की शांति 27 वें दिन ही होगी चूँकि दीपावली मध्य में पड़ रही है और दीपावली है भी वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार तो लक्ष्मी-पूजन की वज़ह से परिवार के सदस्य अज्ञानता के कारण समय आने से पहले ही अर्थात् दीपावली से पहले गंड-मूल दोष की शांति करा देते हैं। परिवार के सदस्य ये समझते हैं कि पंडित जी ने कर दिया तो हो गया
लेकिन पंडित जी मजबूरी में फंसे हुए हैं, समझायें तो आप समझना नहीं चाहते इसलिए ना चाहते हुए पंडित जी को ये कार्य भी ईश्वर का नाम लेकर करना ही पड़ता है। जबकि परिवार के सदस्यों को ये समझना चाहिए और नहीं जानते तो जानना चाहिए कि गंड-मूल दोष क्या होता है?, क्या प्रभाव होता है? और क्या उचित समय है इसके शांत करने का, तब पंडित जी आपको बताएंगे कि उचित समय पर शांत नहीं हुआ तो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बालक का स्वास्थ्य 8 वर्षों के समयांतराल में कभी-भी इतना खराब हो सकता है कि उसका जीवन भी खतरे में आ जाता है केवल एक वज़ह से कि परिवार को दीपावली पर लक्ष्मी-पूजन करना था।
अब क्या करें?
यदि अज्ञानतावश गंडमूल नक्षत्र की शांति ना भी हुई हो तो और बालक की आयु 8 वर्ष से ऊपर हो गई है तब कोई आवश्यकता नहीं रह जाती इस दोष के बारे में सोचने की किन्तु 8 वर्ष से कम है तब आपको यह देखना होगा कि बुध-केतु लग्न कुंडली में योगकारक हैं अथवा मारक क्योंकि तभी कोई उपाय किया जा सकता है। इसके लिए आपको कुंडली कैसे देखें? सीरीज को शुरू से देखना होगा क्योंकि तभी तो आपको योगकारक-मारक निकालना आएगा और ज्योतिष विज्ञान का सार समझ आएगा।
विनम्र निवेदन
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