गजकेसरी योग प्रसिद्धि और शौहरत दिलाने वाला राजयोग।

Gajakesari Yoga जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है गज यानि कि हाथी और केसरी मतलब शेर। गजकेसरी योग कुंडली में तब बनता है जब गुरु और चंद्र युति बनाते हैं। ऐसा होने से व्यक्ति के अंदर गुरु के बदोलत हाथी जितना विशाल ज्ञान आ जाता है और शेर जितना सक्रिय मन हो जाता है चंद्र की बदोलत। जिस प्रकार शेर अपने शिकार के लिए सचेत रहता है और अपनी पूर्ण क्षमता से उसको पाने के लिए भरसक प्रयास करता है जब तक कि उसको पा ना ले उसी प्रकार व्यक्ति भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए अथक प्रयास करता है और शांत जब ही होता है जब उस कार्य को पूर्ण कर लेता है।

ठीक इसी प्रकार हाथी को कितना भी खिला दो उसको कम ही लगता है और आकार में विशाल होता जाता है लेकिन उसको खाने की ललक हमेशा बनी रहती है। ऐसे ही व्यक्ति ज्ञान का भंडार अपने में समाता रहता है और ज्ञान पाने की ललक उसको जीवनभर बनी रहती है। वो जितना भी ज्ञान पा ले उसको कम ही लगता है लेकिन वो एक समय के पश्चात्‌ महाज्ञानी बन जाता है। अन्य लोगों के लिए वो व्यक्ति विशेष होता है लेकिन स्वयं को ऐसा व्यक्ति सामान्य ही समझता है। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए ऐसे महान राजयोग को विस्तार पूर्वक समझते हैं:-

गजकेसरी योग कैसे बनता है?

Gajakesari Yoga किसी भी लग्न कुंडली में जभी बनेगा जब गुरु और चंद्र लग्न कुंडली के त्रिक भावों को छोड़कर अन्य घरों में एकसाथ होंगे लेकिन सिर्फ गुरु और चंद्र की युति होने से यह राजयोग नहीं बनेगा उसके लिए दोनों ग्रह का लग्न कुंडली में योगकारक होना आवश्यक होता है। गजकेसरी योग के कुछ अन्य नियम भी होते हैं जो इस राजयोग को बलशाली करते हैं या फिर निष्क्रिय करते हैं जिनके बारे में आगे चलकर हम चर्चा करेंगे लेकिन उससे पहले एक-दो लग्न कुंडली का उदाहरण लेकर समझते हैं कि ये राजयोग बनता कैसे है?

कर्क लग्न में गजकेसरी योग

Gajakesari Yoga

कर्क लग्न में गजकेसरी योग को समझने से पहले हमें ये देखना होगा कि गुरु और चंद्र योगकारक होते हैं अथवा मारक। चंद्र की बात करें तो वो तो लग्नेश हैं ही और लग्नेश सदा योगकारक होता है क्योंकि वही होल-सोल डिपार्टमेंट का मालिक होता है इसलिए चंद्र कर्क लग्न में योगकारक हैं। अब बात करें गुरु की तो गुरु को कर्क लग्न में एक त्रिक भाव मिला है और एक त्रिकोण का भाव। त्रिकोण का भाव मिलने के कारण ही गुरु इस लग्न में योगकारक होते हैं। अब जब हमनें ये निकाल लिया कि गुरु और चंद्र योगकारक हैं तो अब कर्क लग्न में गजकेसरी योग को देखते हैं।

प्रथम भाव (1H)

कर्क लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में अगर चंद्र और गुरु की युति हुई तो चंद्र यहाँ स्वराशि होते हैं और गुरु यहाँ कर्क राशि में होने की वजह से उच्च के होते हैं। इसी कारण दोनों ग्रह प्रथम भाव में अति योगकारक होते हैं और इनकी युति गजकेसरी योग बनाती है तथा गुरु उच्च के होने की वजह से पंच महापुरुष योग का निर्माण भी करते हैं।

द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और दशम भाव (2H-3H-4H-10H)

इन भावों में गुरु और चंद्र की युति गजकेसरी योग का निर्माण करती है क्योंकि दोनों ही ग्रह योगकारक होते हैं लेकिन तृतीय भाव में यह राजयोग मेहनत करने के बाद ही फल देता है। इस घर में गुरु और चंद्र पहले मेहनत करवाते हैं और जीवन में भागदौड़ भी अधिक करवाते हैं फिर राजयोग का फल भी व्यक्ति को मिलता है।

पंचम भाव और सप्तम भाव (5H-7H)

चंद्र कर्क लग्न की कुंडली के पंचम भाव में नीच के हो जाते हैं इसलिए मारक ग्रह की श्रेणी में आ जाते हैं। यदि चंद्र का नीच भंग होता है तो नीच भंग राजयोग के साथ-साथ गजकेसरी योग भी बनता है अन्यथा केवल गुरु ही यहाँ योगकारक होते हैं। इसी तरह सप्तम भाव में मकर राशि में होने की वजह से गुरु नीच के हो जाते हैं लेकिन यदि गुरु का नीच भंग हो तो नीच भंग राजयोग भी बनता है और गजकेसरी योग भी नहीं तो केवल चंद्र ही यहाँ योगकारक रहते हैं और गुरु मारक हो जाते हैं।

त्रिक भाव (6H-8H-12H)

कुंडली के त्रिक भावों में चंद्र+गुरु की युति गजकेसरी योग का निर्माण नहीं करती है। अगर इन भावों में चंद्र चले जाते हैं तो लग्न दोष भी बन जाता है और गुरु के इन भावों में होने से विपरित राजयोग भी नहीं बनता है। लेकिन यदि केवल गुरु इन भावों में से किसी एक घर में हो तो विपरित राजयोग बन सकता है किन्तु लग्नेश चंद्र प्रत्येक परिस्थिति में बलशाली और योगकारक होने चाहिए।

नवम भाव और एकादश भाव (9H-11H)

नवम भाव में गुरु स्वराशि होते हैं और चंद्र+मंगल की युति इस भाव में गजकेसरी योग को बनाती है। एकादश भाव में चंद्र वृषभ राशि में उच्च के होते हैं और यहाँ चंद्र+गुरु की युति अति योगकारक सिद्ध होती है; इसलिए इस भाव में भी गजकेसरी योग बनता है।

तुला लग्न में गजकेसरी योग

Gajakesari Yoga

सबसे पहले हमें ये देखना है कि गुरु और चंद्र तुला लग्न की कुंडली में योगकारक होते हैं या नहीं। चंद्र को केंद्र भाव में स्थान मिलने के कारण वो इस लग्न में सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं लेकिन गुरु को कोई भी स्थान अच्छा नहीं मिला; एक तो मेहनत वाला घर 3H मिला है और एक कुंडली का त्रिक भाव 6H मिला है इसलिए गुरु इस लग्न में मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।

तीसरा घर (3H)

इस घर में गुरु और चंद्र की युति योगकारक होती है क्योंकि गुरु यहाँ स्वराशि होते हैं और चंद्र तो वैसे भी सम होते हैं और इस भाव में मित्र की राशि में मित्र के साथ हैं इसलिए यहाँ इनकी युति गजकेसरी योग को बनाती है।

चौथा घर (4H)

इस घर में गुरु नीच के होते हैं और केंद्र में चंद्र होने की वजह से चंद्र यहाँ योगकारक होते हैं। इसलिए गुरु का नीच भंग हुआ तो नीच भंग राजयोग भी बनेगा और गजकेसरी योग भी अन्यथा गुरु यहाँ मारक रहेंगे और चंद्र योगकारक।

दशम भाव (10H)

इस भाव में गुरु उच्च के होते हैं और चंद्र स्वराशि इसी कारण यहाँ दोनों ग्रह अति योगकारक होते हैं और इन दोनों की युति गजकेसरी योग को बनाती है।

  • तुला लग्न की कुंडली में चंद्र और गुरु की युति अन्य किसी भी भाव में गजकेसरी योग का निर्माण नहीं करती है।

कुछ अन्य नियम

गजकेसरी योग का विश्लेषण करने से पहले मैंने कहा था कि दोनों ग्रहों की युति होने के साथ-साथ कुछ अन्य नियम भी होते हैं। ये वही नियम है जो गजकेसरी राजयोग को बलवान करते हैं या फिर योग को प्रभावहीन करते हैं। इन नियमों को पढ़ने के पश्चात आप स्वयं ही समझ जाएंगे कि कौनसा नियम योग को बलवान करेगा और कौनसा निष्क्रिय:-

ग्रहों का अंश बल

किसी भी लग्न कुंडली में चंद्र-गुरू का अंश बल अच्छा होना चाहिए लेकिन कोई भी ग्रह मृत अवस्था में नहीं होना चाहिए जैसे किसी ग्रह का अंश 0,1,2,3,28 या 29 होना किन्तु अगर ऐसा होता भी है तो गजकेसरी योग बनने के पश्चात्‌ भी अपना शुभ प्रभाव नहीं दिखा पाएगा।

अस्त अवस्था

चंद्र और गुरू सूर्य से अस्त नहीं होने चाहिए अगर सूर्य से कोई ग्रह अस्त हो जाता है तो फिर वह ग्रह निष्क्रिय हो जाता है और किसी भी प्रकार का फल देने के योग्य नहीं रह जाता है।

अंश अन्तर

दोनों ग्रहों का अन्तर 10° से अधिक का नहीं होना चाहिए जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में मानो कि चंद्र का अंश 9° है और गुरू का अंश 24° है तो दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर हुआ 15° इस प्रकार इन दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर 10° से अधिक होने पर गजकेसरी योग षडबल के लिहाज से कमजोर हो जाता है क्योंकि दोनों ग्रहों की परस्पर दूरी अधिक हो जाती है।

मित्र-शत्रु राशि

चंद्र और गुरू मित्र राशि में हैं या शत्रु राशि में ये तथ्य भी षडबल की नजर से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि मित्र की राशि में होने से राजयोग को बल मिलता है और शत्रु की राशि में होने से ऐसा हो नहीं पाता है लेकिन राजयोग फल अवश्य देता है। जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में केंद्र भावों के चतुर्थ भाव में थोड़ा सा या यूँ कहिए कि नाम मात्र के लिए कमजोर होता है। वहीं इसकी दूसरी तरफ दशम भाव में चंद्र और गुरु मित्र राशि में होने की वज़ह से थोड़ा सा अधिक प्रभावशाली होता है।

अन्य ग्रह की युति

चंद्र और गुरु के साथ अन्य कौनसे ग्रह हैं; कहीं वो ग्रह कोई दोष का निर्माण तो नहीं कर रहे जैसे गुरु के साथ राहु होने से गुरु चांडाल दोष बनता है। चंद्र के साथ राहु या केतु के होने से चंद्र ग्रहण और चंद्र के साथ सूर्य के होने पर अमावस्या दोष का निर्माण होता है इसी प्रकार चंद्र के साथ जब शनि आते हैं तो विष दोष बनता है। अगर ऐसा होता है तो सम्बन्धित ग्रह की ऊर्जा दोष में ही विलीन हो जाती है जिससे इस राजयोग का फल नहीं मिल पाता है।

गजकेसरी योग कब फलित होता है?

चंद्र और गुरु इस राजयोग को बनाते हैं तो चंद्र-गुरू का उदाहरण लेकर ही समझते हैं। सबसे अधिक फलदायी तो ये जब ही होगा जब चंद्र या गुरू में से किसी एक ग्रह की महादशा आ जाए और उस महादशा में बचे हुए ग्रह की अंतर्दशा लेकिन केवल अंतर्दशा में भी यह राजयोग कार्य करता है। जैसे शनि की महादशा चल रही है और उसमें चंद्र या गुरू की जब अंतर्दशा आएगी तब यह राजयोग एक्टिवेट हो जाएगा। तो कुलमिलाकर सम्बन्धित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आने पर राजयोग अपना शुभ फल देने लगेगा।

गजकेसरी योग को बलवान कैसे करें?

जब आपको ये पता चल जाए कि चंद्र-गुरू दोनों ग्रह या फिर कोई एक ग्रह लग्न कुंडली में कमजोर है तो आप उनके बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं या फिर उनका रत्न भी धारण कर सकते हैं। सोमवार का व्रत रह सकते हैं और शिव उपासना भी कर सकते हैं ठीक इसी तरह बृहस्पतिवार का व्रत रह सकते हैं और विष्णु जी की आराधना कर सकते हैं। लेकिन चंद्र और गुरू से संबंधित किसी भी प्रकार की वस्तु का आप दान नहीं कर सकते हैं क्योंकि दान केवल मारक ग्रहों का ही किया जाता है।

  1. गुरू का बीज मंत्र ओउम् ब्रं बृहस्पतये नमः
  2. चंद्र का बीज मंत्र ओउम् सोम सोमाय नमः

विनम्र निवेदन

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