ध्यान और एकाग्रता में क्या अंतर है।

Ekagrata In Hindi ध्यान और एकाग्रता दो बड़े ही जटिल शब्द हैं। यह दोनों शब्द जटिल तो हैं पर असंभव नहीं और जीवन में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with Me. इस लेख में हम ध्यान क्या है? और एकाग्रता क्या है? तथा ध्यान और एकाग्रता में अंतर क्या है? इसको समझने का पूर्ण प्रयास करेंगे। तो चलिए आरम्भ करते हैं:-

ध्यान क्या है

Ekagrata In Hindi ध्यान जब हम परीक्षा देने जाते हैं तो हम सारे प्रश्न कर देते हैं। कभी सोचा आपने कैसे क्योंकि वो हमारे ध्यान में है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ध्यान वो है जो हमारे मस्तिष्क में संग्रहित है जिसको एक बार स्मरण करने पर ही ध्यान आ जाता है।

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Ekagrata In Hindi

एकाग्रता का अर्थ

Ekagrata In Hindi एकाग्रता सामने रखे एक घड़ी के आकार का बिन्दु पर हम देख रहे हैं और लगातार देखने की इस क्रिया को जब तक की सिर्फ और सिर्फ वही नजर आए उस अवस्था को एकाग्रता कहते हैं। अर्थात्‌ किसी चीज़ पर पूरे खो जाने पर या पूरे दृश्य में सिर्फ वही दिखने की क्रिया को एकाग्रता कहते हैं।

ध्यान और एकाग्रता
Ekagrata In Hindi

ध्यान और एकाग्रता

एक ओर ध्यान से एकाग्रता सधती है तो दूसरी ओर एकाग्रता के बिना ध्यान संभव ही नहीं। इन दोनों को एक-दूसरे का पूरक कह सकते हैं। कुछ लोग ध्यान के द्वारा उस परम तत्व को आत्मा में ही देखते हैं।

ध्यान कैसे करें

मानसिक प्रखरता एवं आंतरिक स्फूर्ति के लिए ध्यान का अभ्यास लाभदायक होता है; हर प्रकार के ध्यान में निम्नलिखित बिन्दु गनित है:-

  1. मैदान में हरी घास पर या स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं;
  2. ध्यान के लिए कमर सीधी करके और आँखें बंद करके शांत मन से बैठे;
  3. शरीर स्थिर करके मन की भटकन (आने-जाने वाली बातें) को रोकने की कोशिश करें;
  4. सामने उगते हुए सूर्य पर एकाग्र होने की कोशिश करें;
  5. मन में आने-जाने वाले विचार को रोकने के लिए मन के साथ संघर्ष न किया जाए;
  6. कोई भी विचार या दृश्य आये तो उसे आने और जाने दिया जाए;
  7. सूर्य का ध्यान करते हुए अपने अंदर भी प्रकाश की कल्पना करें;
  8. ऐसा प्रतीत हो कि अन्दर का अंधकार समाप्त हो रहा है और हम प्रकाशमय हो रहें हैं तब प्रसन्नता व आनंदमय जाग्रति का अनुभव करें और चेहरे पर भी वही भाव लाने की कोशिश करें;
  9. ध्यान के अंत में धीरे-धीरे आँख खोले और सामान्य स्थिति में आ जाएं।

ध्यान के इस अभ्यास को कम-से-कम 10 से 15 मिनट तक किया जाए इसका बहुत अच्छा परिणाम मिलता है। इससे मस्तिष्क प्रतिदिन तीक्ष्ण होता है। मन का भाव स्थिर व शांत स्वरूप का होता है और मुख प्रसन्नता का तेज आता है। ध्यान का ऐसा अभ्यास प्रातःकाल जागरण में या रात्रि में सोते समय करना लाभदायक होता है; कुल मिलाकर ध्यान के अभ्यास को करने में आप जहाँ तक सक्षम हों वहाँ तक पूरा झोंक दें। दिन में कभी भी मस्तिष्क की थकावट महसूस हो तो ऐसा ध्यान का अभ्यास 2 या 3 मिनट तक किया जा सकता है।

ध्यान का अर्थ क्या है?

ध्यान तथा एकाग्रता के आध्यात्मिक विवेचन के बाद आइए थोड़ा इसके व्यवहारिक एवं लौकिक स्वरूप को भी समझ लें। विद्यार्थि समुदाय एवं युवा वर्ग के लिए ध्यान और एकाग्रता का यही स्वरूप अधिक विचारणीय एवं अनुपालनीय है। ध्यान का सामान्य अर्थ मन लगाकर पूरी तत्परता, तन्मयता एवं तल्लीनता से कार्य करना होता है। व्यक्ति जब पूरे मनोयोग से कार्य हेतु तैयार होकर उस कार्य में पूरी तरह खो जाता है तब उसे तत्पर एवं तन्मय होना कहते हैं। ऐसी स्थिति आने पर व्यक्ति अपने कार्य के साथ जब एकाकार हो जाता है तब उसे तल्लीन होना कहा जाता है।

ध्यान करते समय मैं एकाग्र क्यों नहीं हो पाता?

किसी भी कार्य को चाहें वह अध्ययन हो, लेखन हो, प्रयोगात्मक कार्य हो अथवा विज्ञान-गणित के गहन प्रश्न हों, उनको अच्छी तरह समझने और हल करने के लिए ध्यान तथा मनोयोग की बहुत ही आवश्यकता होती है। विद्यार्थि के पाँच लक्षणों में वकोध्यान का उल्लेख किया गया है। जिस प्रकार बगुला अपने शिकार को पकड़ने में पूरी तरह खो जाता है, मग्न हो जाता है वैसा ही ध्यानमग्न होकर विद्यार्थि को अध्ययन करना चाहिए। एक समय में एक ही कार्य के बारे में पूरे मन से ध्यान लगाना चाहिए। अनेक तरफ मन को ले जाने से कार्य कुशलतापूर्वक संपादित नहीं हो पाता है।

अतः ध्यान के साथ एकाग्रता भी आवश्यक होती है। एक ही लक्ष्य को आगे रखकर कार्य किया जाए तो वह लक्ष्य सिद्ध हो जाता है। जिस प्रकार गुरु द्वारा परीक्षा लेते समय अर्जुन को अपने लक्ष्य चिड़िया की केवल आँख दिखाई दी थी जबकि अन्य शिष्यों ने पूरे दृश्य को, पूरी चिड़िया को तथा पूरे परिसर को देखा था। इसलिए मात्र अर्जुन को ही गुरु द्वारा सफल घोषित किया गया था। इसी प्रकार हर व्यक्ति को अपना एक निर्दिष्ट लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए फिर उसी लक्ष्य की पूर्ति पर अपने मन को एकाग्र करना चाहिए। यही सफलता का स्वर्णिम सूत्र है। कहा भी गया है—–“एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाए”।

अस्तु ध्यान और एकाग्रता को अपने दैनिक जीवन और कार्य-व्यवहार का अभिन्न अंग बनाकर उसका सम्यक परिपालन करना चाहिए। हर कार्य को पूरे ध्यान और एकाग्रता से ही किया जाना चाहिए, तभी सफलता मिलती है।

निष्कर्ष

आत्मसाक्षात्कार का मुख्य साधन योगाभ्यास है। एकाग्रता ही आत्मसाक्षात्कार की कुंजी है। एकाग्रता का उपाय यह है कि बच्चों में मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा का भाव उत्पन्न किया जाए और उसे निष्काम कर्म में प्रवृत्त किया जाए। दूसरे के सुख को देखकर सुखी होना, मैत्री और दुःख देखकर दुःखी होना करुणा है। किसी को अच्छा करते देखकर प्रसन्न होना और उसका प्रोत्साहन करना मुदिता और दुष्कर्म का विरोध करते हुए अनिष्टकारी से शत्रुता न करना उपेक्षा है। ज्यों-ज्यों यह भाव जागते हैं त्यों-त्यों ईर्ष्या-द्वेष की कमी होती है। निष्काम कर्म भी राग-द्वेष को नष्ट करता है।

इन विचारों का नियमन जो सीख लेता है, अनगढ़ विचारों को परे हटा श्रेष्ठ विधेयात्मक चिंतन में सतत जीत रहने की कला सीख लेता है, वह न केवल एकाग्रता-तन्मयता का गुण विकसित कर लेता है बल्कि अपनी सभी इंद्रियों पर, अपनी अर्थशक्ति एवं समयरूपी संसाधन पर अपना नियंत्रण भी स्थापित कर लेता है।

गुण-अवगुण प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान रहते हैं, लेकिन निर्भर करता है कि व्यक्ति किस पक्ष को प्रधानता देता है; यदि व्यक्ति में गुण-पक्ष का पलड़ा भारी हो तो व्यक्ति समाज में सतकर्मी कहलाता है अन्यथा अवगुणों को प्रधानता देने पर व्यक्ति अधर्मी होता है।

ललित कुमार

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