दशहरा पर आपको अपनी नकारात्मक प्रवृतियों को त्यागना ही चाहिए।

Dussehra असत्य पर सत्य की विजय की कहानी। मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम, लंकाधिपति रावण ये तो सिर्फ एक नाम है कि रावण को मारने के उपलक्ष्य में दशहरा मनाया जाता है।

लेकिन ये कहानी है सत्यता की; एक सत्य ही है जिसके पक्ष में रहने से व्यक्ति अमर हो जाता है। धर्म की रक्षा करने वाला व्यक्ति समाज में हमेशा के लिए जीवित रहता है।

नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आपका। आज हम दशहरा के पावन पर्व पर Dussehra को मनाने का मूल कारण समझेंगे तथा अपनी नकारात्मक प्रवृतियों को रावण दहन के साथ जला देंगे

दशहरा क्यों मनाते हैं?

Dussehra मनाए जाने के पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं, एक तो भगवान श्री राम की रावण पर विजय होने की कथा तथा दूसरी माँ दुर्गा जी के द्वारा महिषासुर का वध की कथा। यहां हम दोनों कथाओं का वर्णन करेंगे।

दशहरा कब मनाते हैं?

Dussehra क्वार के महीने में अर्थात्‌ आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में 10 वीं तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। आश्विन का माह आधा सितंबर में पड़ता है तथा आधा अक्टूबर में, दशहरा से पहले नवरात्रि होती है जिसमें माँ दुर्गा की नवमी तिथि तक पूजा होती है।

दशहरा 2022 में कब है?

Dussehra Kab Hai

दशहरा या विजयादशमी 2022 में 5 अक्टूबर को है।

दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त

निम्नलिखित गणना उज्जैन पंचांग के अनुसार है:-

  • दशमी तिथि = 4 अक्टूबर 2022 (02:20PM) – 5 अक्टूबर 2022 (12:00AM)
  • श्रवण नक्षत्र = 4 अक्टूबर 2022 (10:51PM) – 5 अक्टूबर 2022 (09:15PM)
  • विजय मुहूर्त = 02:13PM – 02:54PM (5 अक्टूबर 2022)
  • अपराह्न काल = 01:16PM – 03:37PM (5 अक्टूबर 2022)

दशहरा शुभ मुहूर्त निकालने की विधि

दशहरा दशमी तिथि को अपराह्न काल अर्थात्‌ दोपहर के बाद का समय (चौथा प्रहर) में संपन्न की जाती है। अपराह्न काल का समय सूर्य के उदय होने के पश्चात्‌ 10 वें मुहूर्त से लेकर 12 वें मुहूर्त तक का होता है। अपराह्न काल से पहले 3 प्रहर आते हैं क्रमशः प्रातः, संगव और मध्याह्न। एक प्रहर में 3 मुहूर्त होते हैं।

अपराह्न काल के आधार पर मुहूर्त

  1. दशमी 2 दिन हो लेकिन अपराह्न काल दूसरे दिन हो तो दशहरा दूसरे दिन होगा।
  2. दशमी 2 दिन हो और अपराह्न काल भी दोनों दिन हो तो दशहरा पहले दिन होगा।
  3. दशमी 2 दिन हो लेकिन अपराह्न काल किसी दिन न हो तो भी दशहरा पहले दिन होगा।

श्रवण नक्षत्र के आधार पर मुहूर्त

मुहूर्त की गणना में श्रवण नक्षत्र आ जाए तो उपर्युक्त अपराह्न काल के तथ्यों को भुला दिया जाता है।

  1. दशमी 2 दिन हो चाहें अपराह्न काल हो अथवा नहीं लेकिन जिस अपराह्न काल के समय श्रवण नक्षत्र पड़ेगा दशहरा उसी दिन मनाया जाएगा।
  2. दशमी 2 दिन हो लेकिन अपराह्न काल केवल पहले दिन हो तो उस स्थिति में दूसरे दिन 10 वीं तिथि पहले 3 मुहूर्त तक रहेगी और श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में पड़ेगा तो दशहरा का उत्सव दूसरे दिन होगा। किंतु, दूसरे दिन 10 वीं तिथि पहले 3 मुहूर्त से कम हो तो पहले दिन ही दशहरा मनाया जाएगा।

विजयादशमी पूजा विधि

  1. घर में पूर्व दिशा या उत्तर दिशा या इन दोनों दिशाओं के मध्य की दिशा में कोई एक स्थान पूजा करने के लिए साफ कीजिए तथा उस जगह पर आठ पंखुड़ियां वाला फूल बना लीजिए जो आप रंगों से भी बना सकते हैं जैसे हम रंगोली बनाते हैं।
  2. यह अष्टदल चक्र आप रंगों की बजाए रोली, कुमकुम, चंदन, हल्दी, सिंदूर से भी बना सकते हैं।
  3. आगे आप अपराह्न काल के विजय मुहूर्त में देवी अपराजिता का आवाह्न करके षोडशोपचार पूजा कर सकते हैं। विजय मुहूर्त का समय उपर दिया गया है।

महिषासुर वध कथा

ऋषि कश्यप जोकि एक ब्रह्म-ऋषि थे। ऋषि कश्यप की तीसरी पत्नी का नाम दनु था। ऋषि कश्यप की देवी दनु से दस संतान उत्पन्न हुई थी जिनमें सबसे बड़ी रंभ थी। महिषासुर रंभ का पुत्र और ऋषि कश्यप का पोता था। महिषासुर धोखेबाजी में प्रवीण था तथा रूप बदलकर गलत कार्य किया करता था, इसलिए इसको देव न कहकर दानव की उपाधि मिली क्योंकि इसके कार्य दानवों जैसे ही थे।

महिषासुर से परेशान होकर देवी पार्वती ने इसका वध कर दिया जिसकी वज़ह से देवी पार्वती को महिषासुरमर्दिनी से संबोधित किया गया था। नवरात्रि का उत्सव देवी दुर्गा और महिषासुर के वध को दर्शाता है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा और महिषासुर के मध्य युद्ध चला था। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक तथा दशमी को देवी दुर्गा को महिषासुर पर विजय प्राप्त हुई इसलिए दशमी तिथि को विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है।

यह कहानी हिन्दू धर्म तथा विशेष रूप से शाक्त परंपरा से जुड़े हुए लोगों में विशेष प्रभाव डालती है। महिषासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या की थी जिसके फलस्वरुप ब्रह्मा जी ने वरदान दिया कि महिषासुर पर देव व दानव कोई भी विजय प्राप्त नहीं कर पाएगा। महिषासुर यह वरदान पाकर अतातायी हो गया।

उसने स्वर्ग लोक (अच्छे कर्म करने वाले लोगों के रहने का स्थान) में जाकर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं (अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति) को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। महिषासुर के इस कृत्य से परेशान होकर सभी देवता अपनी सहायता के लिए ब्रह्मा-विष्णु-महेश के पास गए और अपने उपर हुए अत्याचार का वर्णन किया।

देवताओं ने एक बार फिर से महिषासुर से युद्ध किया किन्तु पुनः असफलता हाथ लगी तत्पश्चात महिषासुर के वध के लिए देवी दुर्गा का सृजन हुआ। या फिर सौम्य रूप देवी पार्वती से उग्र रूप देवी दुर्गा का आवाह्न किया। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन वध किया।

इसी उपलक्ष्य में हिन्दू धर्म के लोग नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा करते हैं तथा दशमी को विजयादशमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से आयोजित करते हैं।

महिषासुर वध

रावण वध

रावण रामायण का एक प्रमुख पात्र है। रावण लंका का राजा था। आदिवासी सभ्यता के अनुसार रावण किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि प्रशासन करने वाले मुखिया की उपाधि है, रावण अर्थात्‌ राजा। रावण पुलस्त्य ऋषि का पोता था। पुलस्त्य ऋषि के पुत्र विश्रवा थे और रावण विश्रवा ऋषि का पुत्र था। रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ था। मान्यताओं के अनुसार मंदोदरी का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था। जोधपुर में आज भी रावण की चावरी है जिस जगह पर रावण का विवाह हुआ था। जोधपुर में आज भी रावण की पूजा की जाती है।

रावण के जन्म का वर्णन अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग हुआ है। जैसे पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार रावण और कुंभकर्ण, जय-विजय थे जो भगवान विष्णु के द्वारपाल थे जिनको सप्त ऋषियों के द्वारा श्राप मिलने के कारण जन्म लेना पड़ा था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण ऋषि पुलस्त्य का वंशज है। ऋषि विश्रवा की तीन पत्नियां थीं जिनके नाम क्रमशः वरवरर्णिनी, राका और कैकसी हैं। वरवरर्णिनी से कुबेर ने जन्म लिया; कैकसी से रावण, कुंभकर्ण, विभीषण तथा शूर्पणखा हुए और राका से दो जुड़वां पुत्र हुए जिनके नाम अहिरावण-महिरावण थे।

ऐसा भी माना जाता है कि रावण का जन्म नेपाल के म्याग्दी जिले में हुआ था और विवाह मंदोदरी से हुआ जोकि एक थकाली समुदाय की बेटी थीं। रावण ने जब अपने पराक्रम से स्वर्ग पर विजय पायी तो मय दानव ने अपनी पुत्रियाँ मंदोदरी और दम्यमालिनी का विवाह रावण से कर दिया। मंदोदरी पतिव्रता का पालन करने में देवी अहिल्या के समान थी। मेघनाद और अक्षयकुमार की की माता मंदोदरी है तथा दम्यमालिनी से अतिकाय, त्रिशरा, नरान्तक और देवान्तक हुए। अक्षयकुमार, त्रिशरा और नरान्तक का वध हनुमान जी ने किया; मेघनाद और अतिकाय का वध श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी ने किया तथा देवान्तक का वध बाली पुत्र अंगद ने किया था।

रावण कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्घ के लिए चला था और श्री राम से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से युद्ध आरम्भ हुआ था। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक रावण ने श्री राम से युद्ध के दौरान अपने नौ सर कटाए और अंत में शुक्ल पक्ष की दशमी को श्री राम ने रावण का वध कर दिया। इसी कारण विजयादशमी को रावण-कुंभकर्ण-मेघनाद का पुतला बनाकर जलाया जाता है; इसी महोत्सव को हम दशहरा के नाम से भी पुकारते हैं।

राजा अनरण्य का श्राप

एक समय रावण अपने मद में चूर शक्ति को अर्जित करते हुए सभी से अटक लडाई लेते हुए द्वन्द का आवाह्न देता था फिर उनको हराकर मृत्यु की गोद में सुला देता था। उसका यही घमंड अयोध्या नगरी इक्ष्वाकु वंशज राजा अनरण्य के यहां ले पहुंचा, राजा अनरण्य बड़े ही प्रतापी और धर्मार्थ व्यक्ति थे। राजा अनरण्य को रावण ने द्वंद का आवाह्न दिया।

राजा अनरण्य और रावण के मध्य भीषण युद्ध हुआ लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण राजा अनरण्य रावण को परास्त नहीं कर सके तत्पश्चात राजा अनरण्य ने अपनी देह त्यागते हुए रावण को श्राप दिया कि रावण तेरा यही अधर्म युक्त कर्म तुझे ले डूबेगा और मेरा वंशज दशरथ के पुत्र श्री राम के द्वारा तू मृत्यु को प्राप्त होगा।

रावण युद्ध के दौरान अपनी शक्ति के कारण द्वंदी से व्यंग कसा करता था और राजा अनरण्य से भी उसने व्यंग कसा और उनके कुल का अपमान किया इसी कारण राजा अनरण्य ने रावण को श्राप दिया।

निष्कर्ष

वास्तव में कहानी चाहें जो हो लेकिन दशहरा को मनाने का सार केवल इतना है कि सत्य की असत्य पर विजय, धर्म का अधर्म पर राज, बुराई पर अच्छाई का जयघोष, कुलमिलाकर नकारात्मकता का अंत।

अति हर चीज़ की नुकसानदेह होती है।

उदाहरणार्थ; व्यक्ति लगातार सो या जाग नहीं सकता

हर चीज़ व्यवस्था के एक दायरे में होती है

और कोई भी कार्य व्यवस्था के दायरे में चलता है तो ठीक रहता है

अन्यथा उसका तहस-नहस होना निश्चित है।

—–ललित कुमार—–

रावण प्रकांड विद्वान था, महाप्रतापी था, ओजस्वी था, सर्व गुण सम्पन्न था। वो चाहता तो देवता भी बन सकता था। वाल्मीकि जी ने रावण के गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकारा है और वाल्मीकि रामायण में बताया है कि रावण चारों वेदों का ज्ञाता था तथा रावण को वाल्मीकि जी ने महान विद्वान बताया है।

वाल्मीकि जी अपनी रामायण में हनुमान जी का रावण के दरबार में प्रवेश करने के वृतांत में रावण के गुणों को कुछ इस प्रकार बताते हैं:-

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युतिः।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।

आगे वाल्मीकि जी बताते हैं कि रावण को देखते ही श्री राम मुग्ध हो गए और कहते हैं कि रूप, सौंदर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने के साथ यदि इस रावण में अधर्म बलवती न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।

आप कोई कार्य करो लेकिन जब आपकी अंतरात्मा से ये आवाज आए कि ये कार्य मैंने गलत कर दिया मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। तब अतिशीघ्र उस कृत्य को सुधारा जाना चाहिए और भविष्य में ये याद रखना चाहिए कि ऐसा कभी न हो।

अगर कार्य करते समय ऐसा विचार आए तो उस कार्य को क्षण-भर में त्याग देना चाहिए। लेकिन अगर आप निरंतर गलत कार्य ही करते रहेंगे, गलत संगति में ही रहेंगे तो एक समय पश्चात्‌ आपको ये ही नहीं पता चलेगा कि क्या सही है और क्या गलत?

गलत और सही का निर्धारण आप अपनी परिस्थिति के अनुसार कर सकते हैं। ये आपको स्वतः ही पता लगेगा कि मेरे हिसाब से मेरे लिए क्या गलत है और क्या सही? किसी अन्य के कहने से आप ये मान नहीं सकते कि यही सही कर्म है।

क्योंकि जो मैंने या किसी अन्य व्यक्ति ने सत्य कर्म बतलाये तो हो सकता है कि वो सभी उचित कर्म आपकी परिस्थिति के अनुसार उचित न हो।

उदाहरणार्थ अगर मैं ये कहूँ कि झूठ बोलना पाप है तो हो सकता है कि इस बात का पालन करना शायद आपके लिए प्रत्येक परिस्थिति में सम्भव न हो। कभी-कभी जीवन में ऐसा समय भी आता है कि न चाहते हुए आपको वो कर्म करना पड़ता है जिसके लिए आपकी आत्मा मना करती है।

अतः आप कोई भी कर्म करो लेकिन अंत में उसका परिणाम धर्मयुक्त ही होना चाहिए। मध्य में चाहें कुछ भी हो लेकिन At the end परिणाम सकारात्मक ही होना चाहिए।

योगीराज श्री कृष्ण का जीवन भी यही दर्शाता है कि कर्म करते रहो लेकिन परिणाम धर्म ही होना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार जीव हत्या पाप है लेकिन श्री कृष्ण के संरक्षण में पांडवों ने अपनों का ही रक्तपान किया किन्तु फिर भी धर्मस्थापना की गाथा है महाभारत

आशा करता हूँ दशहरा के साथ-साथ आप भी अपनी नकारात्मक प्रवृतियों का दोहन करेंगे तथा अपने अधर्म पर विजय होंगे और विजयादशमी का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे।

लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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