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चौघड़िया क्या होती है?
Choghadiya हिन्दू पंचांग की गणना में चौघड़िया एक महत्वपूर्ण अंग है। आकस्मिक रूप से कोई शुभ कार्य हेतु चौघड़िया देखना आवश्यक हो जाता है क्योंकि चौघड़िया मुहूर्त में कार्य को शीघ्रता से पूर्ण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक चौघड़िया मुहूर्त को ध्यान में रखकर अमुक कार्य या यात्रा करना उचित होता है। तो आज चौघड़िया के इस लेख में हम चौघड़िया की गणना को संक्षेप में बताते हुए इसके संदर्भ में सामान्य जानकारी विस्तार से प्रस्तुत करेंगे।
चौघड़िया मुहूर्त क्या होता है?
चौघड़िया मुहूर्त को दो बराबर भागों में बांटा जाता है। नवीनतम समय प्रणाली के अनुसार 1 दिन को 24 घण्टों से अलग किया जाता है जिसमें 12 घण्टे दिन के और 12 घंटे रात्रि के होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय दिन कहलाता है और सूर्यास्त से सूर्योदय होने तक का समय रात कहलाता है। दिन के 12 घण्टों को चौघड़िया में 8 मुहूर्तों में बराबर बाँटा जाता है और इसी प्रकार रात में होता है। इस प्रकार चौघड़ि का एक मुहूर्त 1:30 घण्टे की समयावधि का होता है।
इस प्रकार सुबह 6:00 बजे से लेकर शाम 6:00 बजे तक 8 मुहूर्त होते हैं जो डेढ़-डेढ़ घंटे के होते हैं और इसी तरह रात में होते हैं। इन्हीं दिन या रात के 8 मुहूर्त जो बराबर डेढ़-डेढ़ घण्टे के आठ भाग हैं; इसके चार भाग चौघड़ि कहलाते हैं अर्थात् 24 घंटे के समय में से 6 घण्टे का समय चौघड़ि कहलाता है और 6 घण्टे में डेढ़-डेढ़ घण्टे के चार मुहूर्त आते हैं। प्राचीन समय में समय की गणना विशेष प्रकार से होती थी इसलिए वर्तमान में उस गणना को समझना सम्भवतः कठिन हो।
दिन और रात के समयावधि में 8-8 चौघड़िया मुहूर्त होते हैं। चौघड़िया का एक मुहूर्त चार घटी अर्थात् लगभग 96 मिनट के बराबर होता है और एक घटी लगभग 24 मिनट की होती है। इस प्रकार चौघड़िया शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है चौ(चार)+घड़िया(घटी) इसलिए इसे चतुर्श्तिका मुहूर्त भी कहते हैं।
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चौघड़िया मुहूर्त क्या है?
दिन की चौघड़िया और रात की चौघड़िया अलग-अलग होती हैं। इसी तरह प्रत्येक दिन की चौघड़ि अलग-अलग होती हैं लेकिन रविवार के जिस समय शुभ मुहूर्त आता है वो समय आने वाले प्रत्येक रविवार को स्थिर (Fix) होता है। जैसे 1:30-3:00 PM तक रविवार को शुभ मुहूर्त होता है तो प्रत्येक रविवार को इस समय शुभ मुहूर्त ही रहेगा भले ही कोई महीना या वर्ष हो। फिलहाल दिन और रात की चौघड़िया को बाद में समझेंगे लेकिन अभी हम कौनसा मुहूर्त किस ग्रह के अधीन है इसको समझते हैं:-
उद्वेग मुहूर्त
उद्वेग मुहूर्त चौघड़िया का पहला मुहूर्त है। उद्वेग मुहूर्त सूर्य ग्रह के अधीन है। इस समय प्रशासन से जुड़े हुए कार्य करने चाहिए।
लाभ मुहूर्त
लाभ मुहूर्त को चौघड़िया में दूसरा स्थान प्राप्त है और ये मुहूर्त बुध ग्रह के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस मुहूर्त में व्यवसाय और शिक्षा से जुड़े हुए कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
चल मुहूर्त
ये तीसरा मुहूर्त है जोकि शुक्र ग्रह द्वारा शासित है। इस मुहूर्त में किसी भी प्रकार की यात्रा को प्रारम्भ करना लाभदायक होता है।
रोग मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त में रोग मुहूर्त को चौथा स्थान प्राप्त है। इस मुहूर्त का स्वामित्व मंगल ग्रह के पास है। इस मुहूर्त में किसी डॉक्टर के पास पहली बार जाने से बचना चाहिए (यदि सम्भव हो तो)।
शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त बृहस्पति ग्रह का होता है। इस समय किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ किया जा सकता है जैसे हवन, यज्ञ, पूजा-पाठ आदि धार्मिक कार्य करना।
काल मुहूर्त
ये तो सुनने में ही अच्छा नहीं लगता क्योंकि नाम ही इसका काल मुहूर्त है। इस समय किसी भी उचित कार्य को प्रारम्भ करने से बचना चाहिए लेकिन कोई भी अधूरा कार्य (Pending Work) इस समयावधि में किया जा सकता है। काल मुहूर्त पर शनि ग्रह का नियंत्रण है इसलिए परोपकार और परहितार्थ जैसे कार्य इस मुहूर्त में करना उचित होता है।
अमृत मुहूर्त
अमृत मुहूर्त को चौघड़िया मुहूर्तों में अंतिम स्थान प्राप्त है। इस मुहूर्त पर चंद्र ग्रह का स्वामित्व है। इस मुहूर्त में किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ या समाप्त करना उत्तम होता है।
उपर्युक्तानुसार 7 मुहूर्त ही होते हैं लेकिन जिस मुहूर्त से चौघड़िया प्रारम्भ होती है उसी मुहूर्त से दिन या रात की चौघड़िया का समापन होता है। जिस वार का जो स्वामी ग्रह है उसी ग्रह के मुहूर्त से वो वार शुरू होता है। जैसे सोमवार चंद्र ग्रह के नाम पर है और चंद्र का मुहूर्त अमृत है तो अमृत मुहूर्त से सोमवार की चौघड़ि प्रारम्भ होगी और दिन के 6:00 बजे तक का समापन अमृत मुहूर्त से ही होगा। (निम्न तालिका को देखकर समझ आ जाएगा)
दिन की चौघड़िया
समय/दिन | सोम | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
6:00 – 7:30 AM | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चल | काल | उद्वेग |
7:30 – 9:00 AM | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चल |
9:00 – 10:30 AM | शुभ | चल | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ |
10:30 – 12:00 AM | रोग | लाभ | शुभ | चल | काल | उद्वेग | अमृत |
12:00 – 1:30 PM | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चल | काल |
1:30 – 3:00 PM | चल | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ |
3:00 – 4:30 PM | लाभ | शुभ | चल | काल | उद्वेग | अमृत | रोग |
4:30 – 6:00 PM | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चल | काल | उद्वेग |
रात की चौघड़िया
समय/दिन | सोम | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
6 – 7:30 PM | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ |
7:30 – 9 PM | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत |
9 – 10:30 PM | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर |
10:30 – 12 PM | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग |
12 – 1:30 AM | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल |
1:30 – 3 AM | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ |
3 – 4:30 AM | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग |
4:30 – 6 AM | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ |
वार वेला, काल वेला और कालरात्रि
चौघड़िया के अनुसार अशुभ मुहूर्त के अलावा वार वेला, काल वेला और कालरात्रि का समय भी वैदिक ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक उचित नहीं होता है, इसलिए इन तीनों समय में भी शुभ कार्य और किसी प्रकार की वार्ता करना अशुभ माना जाता है। वार वेला और काल वेला सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय में पड़ती हैं जबकि रात में कालरात्रि का समय आता है।
दिन में काल वेला और वार वेला
समय/दिन | सोमवार | मंगलवार | बुधवार | गुरुवार | शुक्रवार | शनिवार | रविवार |
6 से 7:30 तक | काल वेला | ||||||
7:30 से 9 तक | काल वेला | वार वेला | |||||
9 से 10:30 तक | काल वेला | वार वेला | |||||
10:30 से 12 तक | काल वेला | वार वेला | |||||
12 से 1:30 तक | वार वेला | काल वेला | |||||
1:30 से 3 तक | काल वेला | वार वेला | |||||
3 से 4:30 तक | वार वेला | काल वेला | |||||
4:30 से 6 तक | वार वेला | काल वेला |
रात की चौघड़िया में कालरात्रि का समय
समय⬇️ दिन➡️ | सोम | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | रवि |
6 से 7:30 तक | कालरात्रि | ||||||
7:30 से 9 तक | कालरात्रि | ||||||
9 से 10:30 तक | कालरात्रि | ||||||
10:30 से 12 तक | कालरात्रि | ||||||
12 से 1:30 तक | कालरात्रि | ||||||
1:30 से 3 तक | कालरात्रि | ||||||
3 से 4:30 तक | कालरात्रि | ||||||
4:30 से 6 तक | कालरात्रि |
राहु काल क्या होता है?
राहु काल का समय भी अशुभ माना गया है लेकिन राहु काल का विचार केवल सूर्यास्त से पहले ही किया जाता है किन्तु कुछ लोग रात्रि में भी राहु काल का विचार करते हैं जबकि यह सही नहीं है क्योंकि राहु काल का अशुभ प्रभाव दिन में अधिक प्रभावी होता है। दिन के सभी दिनों में भी रविवार, मंगलवार और शनिवार को ही राहु काल के लिए प्रभावी माना गया है, अन्य दिनों में भी राहु काल का प्रभाव माना गया है लेकिन इन दिनों में अधिक प्रभावी नहीं। राहु काल भी प्रत्येक दिन स्थिर (Fix) होता है यदि हम सूर्योदय का समय प्रातः 6:00 बजे Fix कर दें तो राहु काल प्रत्येक दिन कुछ इस प्रकार होगा:-
दिन | समय |
सोमवार | 7:30 – 9:00 AM |
मंगलवार | 3:00 – 4:30 PM |
बुधवार | 12:00 – 1:30 PM |
गुरुवार | 1:30 – 3:30 PM |
शुक्रवार | 10:30 – 12:00 AM |
शनिवार | 9:00 – 10:30 AM |
रविवार | 4:30 – 6:00 PM |
राहु काल की तरह ही यमगण्ड, भद्राकाल और गुलिक काल पर भी विचार किया जाता है। गुलिक काल को तो शुभ माना जाता है किन्तु यमगण्ड और भद्राकाल को नहीं; भद्राकाल की गणना विस्तृत है और इसका विषय अपना एक अलग विषय है इसलिए भद्राकाल के संदर्भ में बाद में बात करेंगे किन्तु अभी यमगण्ड और गुलिक काल पर विचार करते हैं।
गुलिक काल क्या होता है?
24 घण्टों में से जितना समय सबसे अधिक शुभ होता है वही समय गुलिक काल कहलाता है। गुलिक काल का समय भी लगभग 1:30 घंटे का ही होता है। इस काल में कोई भी मांगलिक व शुभ कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है।
दिन | समय |
सोमवार | 1:30 – 3:00 PM |
मंगलवार | 12:00 – 1:30 PM |
बुधवार | 10:30 – 12:00 AM |
गुरुवार | 9:00 – 10:30 AM |
शुक्रवार | 7:30 – 9:00 AM |
शनिवार | 6:00 – 7:30 AM |
रविवार | 3:00 – 4:30 PM |
यमगंड काल क्या है?
ज्योतिष में विद्यमान सभी अशुभ कालों में अगर कोई सबसे अधिक अशुभ काल है तो वो यही यमगंड काल है। इस यमगंड काल को यमघंटक काल भी कहा जाता है। इस यमगंड काल के बाद ही भद्रा काल को हम अशुभ मान सकते हैं। यमगंड काल में भी किए गए शुभ कार्यों की निष्फलता बढ़ जाती है; इसलिए इस कालावधि में केवल मृत्यु अनुष्ठान या इसी से संबंधित पूजा करना उचित होता है। परंतु रात में यमघंटक काल दिन की अपेक्षा अशुभ नहीं माना जाता है। वैसे शुभ कार्यों को प्रारम्भ करने से पहले भद्रा काल को भी देखा जाता है और चर, स्थिर लग्नों का भी ध्यान रखना पड़ता है।
यमगंड काल अर्थात् मृत्यु का घंटा या मृत्यु का समय जो बनता है कुछ विशेष नक्षत्रों के संयोग से जैसे रविवार को यदि मघा नक्षत्र का संयोग हो तो यमगंड काल का निर्माण होता है। इसी प्रकार सभी दिनों में नक्षत्रों का संयोग निम्न है:-
दिन | नक्षत्र |
सोमवार | विशाखा |
मंगलवार | आर्द्रा |
बुधवार | मूल |
गुरुवार | कृतिका |
शुक्रवार | रोहिणी |
शनिवार | हस्त |
रविवार | मघा |
निष्कर्ष
Choghadiya के इस लेख में जनसाधारण को ध्यान में रखते हुए सूर्योदय के समय को प्रातः 6:00 बजे का Fix मानकर सभी गणनाओं और कालों को समझाने का प्रयास किया गया है लेकिन दिन-प्रतिदिन, पल-विपल पृथ्वी के घूर्णन और परिक्रमण के कारण कुछ पल प्रतिदिन आगे खिसकता रहता है। ये समय का आगे बढ़ना कई तथ्यों पर निर्भर करता है इसलिए जिस स्थान पर सूर्योदय और सूर्यास्त का जो समय हो उस समयावधि को बराबर आठ भागों में विभाजित कर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही ज्योतिष की सभी गणनाओं का सटीकता से पता लग जाता है।
और ज्योतिष है क्या? देश-काल-परिस्थिति को समझना ही तो ज्योतिष को सार्थक सिद्ध करता है। जिसने ये तीनों तथ्य प्रत्येक पहलु को मद्देनजर रखते हुए समझ लिए समझो वही पक्का ज्योतिषी है फिर चाहें उसने कहीं कोई कोर्स किया हो ना लेकिन ग्रंथ पढ़ना आवश्यक हो जाता है क्योंकि ग्रंथ व्यक्ति के ज्ञान में धार लगाने का कार्य करते हैं। अंदरूनी ज्ञान से (समझ से) तो ग्रंथों के ज्ञान की सटीकता की पकड़ होती है तथा ये पता चलता है कि कब किस तथ्य को उजागर करना है और किस तथ्य को पीछे रखना है।
विनम्र निवेदन
दोस्तों Choghadiya से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।
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