कुंडली में धर्म-कर्माधिपति राजयोग कैसे बनता है?

Dharma Karmadhipati Yoga किसी भी लग्न कुंडली में दो ग्रहों की युति से बनता है लेकिन सिर्फ दो ग्रहों के एकसाथ होने से धर्म कर्माधिपति योग नहीं बन जाता है क्योंकि जो ग्रह ये राजयोग बनाते हैं उन ग्रहों में कोई-न-कोई नुक्स लग जाता है। यदि सभी नियमों से गुजरते हुए यह राजयोग बन भी गया तो समझो व्यक्ति अपने जीवन में सोच से परे प्रसिद्धि हांसिल करता है। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए समझते हैं कि धर्म कर्माधिपति राजयोग पूर्णरूप से कैसे बनता है और कब कार्य करता है?

कुंडली में धर्म कर्माधिपति राजयोग बनने के नियम

Dharma Karmadhipati Yoga जैसा कि नाम से ही कुछ हद तक अंदाजा लगता है कि धर्म अर्थात्‌ लग्न कुंडली का नवम भाव जो भाग्य का भाव भी होता है और कर्म अर्थात्‌ लग्न कुंडली का दशम भाव। इस प्रकार लग्न कुंडली के 9H और 10H की राशि के स्वामी जब एकसाथ लग्न कुंडली में त्रिक भाव को छोड़कर किसी भी घर में होते हैं तो यह धर्म कर्माधिपति योग बनने का पहला चरण पास कर लेते हैं; हालाँकि त्रिक भावों में 6H और 12H में यह राजयोग कुछ हद तक सकारात्मक रूप में कार्य करता है। ये योग बनने के कारण ही व्यक्ति धर्म और कर्म का अधिपति होता है, धर्म का प्रवीण तथा कर्म का गुणी होता है।

  1. नवम भाव और दशम भाव के स्वामी का लग्न कुंडली में सिर्फ सातवीं दृष्टि का संबंध बने तो भी यह राजयोग बनता है;
  2. लग्न कुंडली के नवम भाव और दशम भाव के मालिक अगर आपस में राशि को परिवर्तित कर लें तो भी यह राजयोग बनता है जैसे 9H का मालिक 10H के मालिक की राशि में बैठ जाए और 10H के मालिक 9H के स्वामी की राशि में;

कर्क लग्न में धर्म कर्माधिपति योग

कर्क लग्न की कुंडली के उदाहरण से इस राजयोग को समझते हैं। कर्क लग्न में भाग्येश हैं गुरु(9H के स्वामी) और कर्मेश हैं मंगल(10H के स्वामी) और ये दोनों ही ग्रह इस लग्न में योगकारक होते हैं। धर्म कर्माधिपति योग का पहला नियम कहता है कि किसी भी लग्न कुंडली के 9H और 10H के स्वामी त्रिक भावों को छोड़कर एकसाथ हों अथवा दोनों ग्रहों का दृष्टि संबंध बने या फिर दोनों ग्रहों की राशि के साथ एक-दूसरे का स्थान परिवर्तन हो तो यह राजयोग बनता है। अब हम इन सभी तथ्यों को विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास करेंगे:-

Dharma Karmadhipati Yoga

प्रथम भाव (1H)

यहाँ मंगल नीच के होते हैं लेकिन गुरु उच्च के साथ होने से मंगल का गुरु के द्वारा नीच भंग होगा इसलिए इस भाव में मंगल+गुरु की युति नीच भंग राजयोग भी बनायेगी और साथ में धर्म कर्माधिपति योग भी बनेगा तथा इसके साथ गुरु कर्क राशि में उच्च के होने से हंस योग भी बनेगा। तो कुलमिलाकर कर्क लग्न की कुंडली के पहले घर में मंगल+गुरु की युति तीन राजयोग का निर्माण करेगी जो बेहद ही शुभ फलदायी सिद्ध होगी।

द्वितीय भाव (2H)

कुंडली के इस घर में मंगल और गुरु धर्म कर्माधिपति राजयोग बनायेंगे।

तृतीय भाव (3H)

यहाँ भी धर्म कर्माधिपति योग बनेगा लेकिन मेहनत से पहले कुछ प्राप्त नहीं होगा; जीवन में तबातोड़ मेहनत करने के पश्चात्‌ धर्म कर्माधिपति राजयोग फल देने के लिए अत्यधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा।

चतुर्थ भाव (4H) और पंचम भाव (5H)

कर्क लग्न के इन दोनों घरों में गुरु और मंगल धर्म कर्माधिपति राजयोग को बनायेंगे।

षष्ठम भाव (6H)

ये घर कुंडली के त्रिक भाव के अंतर्गत आता है और नियम में तो यही विधान है कि त्रिक भावों को छोड़कर अन्य भावों में युति इस राजयोग को बना सकती है। लेकिन इस भाव को मैंने अपनी इच्छानुसार इस राजयोग में सम्मिलित किया है, ठीक इसी तरह 12H को भी शामिल किया है। किसी भी सरकारी नौकरी का योग देखने के लिए हमें कुंडली का 6H देखना ही पड़ता है।

भले ही 6H से अधिकतर नकारात्मक पहलु जुड़े हों लेकिन सरकारी नौकरी का सकारात्मक बिंदु भी इसी घर से जुड़ा हुआ है। इसलिए षष्ठम भाव में धर्म कर्माधिपति राजयोग सरकारी नौकरी का योग बनाता है सिर्फ इसी लिहाज से इस भाव को भी मैंने सम्मिलित किया है। लग्नेश चंद्र की स्थिति अच्छी होने पर इस भाव में विपरित राजयोग बनेगा।

सप्तम भाव (7H)

यहाँ गुरु नीच के होते हैं लेकिन मंगल उच्च के साथ होने से गुरु का मंगल के द्वारा नीच भंग होगा इसलिए इस भाव में मंगल+गुरु की युति नीच भंग राजयोग भी बनायेगी और साथ में धर्म कर्माधिपति राजयोग भी बनेगा तथा इसके साथ मंगल मकर राशि में उच्च के होने से रूचक योग भी बनेगा। तो कुलमिलाकर कर्क लग्न की कुंडली के सातवें घर में मंगल+गुरु की युति तीन राजयोग का निर्माण करेगी जो बेहद ही शुभ फलदायी सिद्ध होगी।

अष्टम भाव (8H)

इस घर को भी कुंडली का त्रिक भाव कहते हैं। इस घर से अधिकतर नकारात्मक बिंदु ही जुड़े हुए हैं इसलिए यहाँ धर्म कर्माधिपति राजयोग नहीं बनेगा।

नवम भाव (9H) और एकादश भाव (11H)

इन दोनों घरों में मंगल और गुरु की युति धर्म कर्माधिपति राजयोग को बनायेगी।

दशम भाव (10H)

कुंडली के इस घर में मंगल और गुरु धर्म कर्माधिपति राजयोग तो बनायेंगे ही लेकिन इसके साथ मंगल रूचक योग को भी बनायेंगे क्योंकि कर्क लग्न की कुंडली के दशम भाव में मंगल स्वराशि होते हैं।

द्वादश भाव (12H)

ये घर भी कुंडली का त्रिक भाव है लेकिन इस घर से विदेश में प्रवास या स्थायी रूप से आवास या फिर किसी बिजनैस के लिए विदेश जाना अथवा संबंध होना इन सभी पहलुओं का अध्ययन करने के लिए 12H का आंकलन करना आवश्यक हो जाता है। पहले के समय में विदेश में जाना अशुभ समझा जाता था और ऐसा मानना तब कि परिस्थिति के अनुसार उचित भी था लेकिन समय के साथ परिस्थिति भी बदल गयीं हैं और आज के समय में विदेश वसना बड़ा ही अच्छा समझा जाता है इसलिए इस भाव में मंगल+गुरु की युति विदेश में वसने के योग को प्रबल करती है।

लेकिन विदेश में सेटलमेंट होने के लिए लग्न कुंडली के चतुर्थ भाव का स्वामी कमजोर होना चाहिए या फिर वो स्वयं भी 12H में होना चाहिए, अगर ऐसा होता है तभी विदेश में सेटलमेंट सम्भव हो पाता है।

दृष्टि संबंध का नियम

कर्क लग्न की कुंडली में अभी तक हमने मंगल और गुरु की युति के संदर्भ में चर्चा की थी लेकिन अब मंगल-गुरु का दृष्टि संबंध स्थापित करके धर्म कर्माधिपति राजयोग को समझते हैं। लेकिन मैं आपको पहले अवगत करा दूं कि दृष्टि संबंध वाला राजयोग बन तो जाता है पर युति से अधिक प्रभावशाली नहीं होता है।

वैसे तो मंगल की चौथी, सातवीं और आठवीं दृष्टि होती है, इसी प्रकार गुरु की पांचवीं, सातवीं और नौवीं दृष्टि होती है लेकिन दृष्टि संबंध के नियम में केवल 7 वीं दृष्टि को ही शामिल किया गया है जैसे राहु-केतु कुंडली में सदा आमने-सामने रहते हैं ठीक उसी प्रकार मंगल-गुरु के आमने-सामने होने पर धर्म कर्माधिपति राजयोग बनता लेकिन कोई भी ग्रह अशुभ नहीं होना चाहिए।

Dharma Karmadhipati Yoga

जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में मंगल नीच के होते हैं और गुरु 7H में नीच के अगर इन दोनों का नीच भंग नहीं हुआ तो यह राजयोग नहीं बनेगा। लेकिन ठीक इसकी उल्टी स्थिति अगर हो जाए तो जैसे गुरु 1H में और मंगल 7H में, तब दोनों ग्रह उच्च के भी हो गए और धर्म कर्माधिपति योग भी बन गया।

इसी प्रकार मंगल दशम भाव में और गुरु चतुर्थ भाव में होने से भी सातवीं दृष्टि का संबंध स्थापित होगा और राजयोग बनेगा लेकिन इसके साथ मंगल के दशम भाव में स्वराशि होने की वज़ह से रूचक योग भी बनेगा। लेकिन स्थिति को अगर उल्टा करें तो धर्म कर्माधिपति योग तो बनेगा लेकिन रूचक योग नहीं क्योंकि मंगल चतुर्थ भाव में ना उच्च के होते हैं और ना ही स्वराशि।

तो कुलमिलाकर आपको ये देखना है कि 9H और 10H के मालिकों का सातवीं दृष्टि का संबंध अगर बन रहा है तो दोनों ग्रह कुंडली में योगकारक तो हैं क्योंकि अगर किसी कारणवश मारक हो गए तो फिर धर्म कर्माधिपति योग नहीं बनेगा। इसके साथ ये भी ध्यान रखना है कि त्रिक भाव में कोई भी एक ग्रह गया तो दृष्टि संबंध बनने पर भी यह योग नहीं बनेगा क्योंकि दृष्टि संबंध में त्रिक भावों को सम्मिलित नहीं किया जाता है।

दृष्टि संबंध के नियम में आपको एक तथ्य और ध्यान में रखना है कि शुक्र-बुध का दृष्टि संबंध स्थापित नहीं होता है अब ऐसा क्यों है ये आप मुझे कमेन्ट के माध्यम से बताएंगे क्योंकि जब तक आप कुछ उल्टा-पुल्टा बोलेंगे नहीं तब तक मुझे ये कैसे पता चलेगा कि आपको मेरे समझाने का तरीका समझ में भी आ रहा अथवा नहीं। शुक्र+बुध कन्या लग्न और मकर लग्न में इस राजयोग को बनाते हैं।

राशि परिवर्तन का नियम

कर्क लग्न की कुंडली का उदाहरण लेकर ही समझते हैं। गुरु की राशि धनु 6H में है और मीन तो है ही 9H में लेकिन मंगल की एक राशि 5H में है और एक तो है ही 10H में इसलिए गुरु तो यहाँ दो घरों में जाकर राशि परिवर्तन योग को बनाते हुए धर्म कर्माधिपति योग को भी बना सकते हैं किन्तु मंगल केवल 9H में जाकर ही इस कार्य को सिद्ध कर पायेंगे क्योंकि मंगल अगर 6H गुरु की धनु राशि में गए तो राशि परिवर्तन योग नहीं बनेगा और मंगल कुंडली में मारक ग्रह की श्रेणी में आ जायेंगे।

इसलिए यहाँ इस कर्क लग्न की कुंडली में राशि परिवर्तन का नियम लागू करना है तो वो जभी होगा जब मंगल 9H में जाएं और गुरु 5H या 10H में जाकर राशि स्थान को परिवर्तित करें क्योंकि अगर ऐसा हुआ जभी यह राशि परिवर्तन का नियम लागू होगा अन्यथा की स्थिति में नहीं होगा।

योग को बलशाली व निष्क्रिय करने के नियम

निम्नलिखित जितने भी नियम बताए जा रहें हैं वो धर्म कर्माधिपति योग को या तो बलशाली करते हैं या फिर निष्क्रिय लेकिन इन सभी नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक है क्योंकि तभी हम संबंधित ग्रह का कोई सटीक उपाय कर सकते हैं जैसे रत्न धारण करना या फिर कोई स्पेशल पूजा करना आदि और भी बहुत कुछ होता है जिसके माध्यम से हम ग्रह को अपनी इच्छानुसार बलवान कर सकते हैं और मारक ग्रह के प्रभाव को नगण्य भी कर सकते हैं। तो चलिए अब इन नियमों को भी भलीभाँति समझ लेते हैं:-

ग्रहों का अंश बल

किसी भी लग्न कुंडली में धर्म कर्माधिपति योग को जो ग्रह बनाते हैं उनका अंश बल अच्छा होना चाहिए लेकिन कोई भी ग्रह मृत अवस्था में नहीं होना चाहिए जैसे किसी ग्रह का अंश 0,1,2,3,28 या 29 होना किन्तु अगर ऐसा होता भी है तो धर्म कर्माधिपति राजयोग बनने के पश्चात्‌ भी अपना शुभ प्रभाव नहीं दिखा पाएगा।

नीच अवस्था

राजयोग बनाने वाले ग्रह लग्न कुंडली में नीच के नहीं होने चाहिए लेकिन अगर कोई ग्रह नीच का हो भी जाता है तो उस ग्रह का नीच भंग होना चाहिए किन्तु ऐसा ना होने पर ये राजयोग नहीं बनता है।

अस्त अवस्था

सम्बन्धित ग्रह सूर्य से अस्त नहीं होना चाहिए अगर सूर्य से कोई ग्रह अस्त हो जाता है तो फिर वह ग्रह निष्क्रिय हो जाता है और किसी भी प्रकार का फल देने के योग्य नहीं रह जाता है।

अंश अन्तर

दोनों ग्रहों का अन्तर 10° से अधिक का नहीं होना चाहिए जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में मानो कि गुरु का अंश 7° है और मंगल का अंश 22° है तो दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर हुआ 15° इस प्रकार इन दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर 10° से अधिक होने पर धर्म कर्माधिपति योग षडबल के लिहाज से कमजोर हो जाता है क्योंकि दोनों ग्रहों की परस्पर दूरी अधिक हो जाती है।

कहाँ बैठें हैं?

राजयोग बनाने वाले ग्रह लग्न कुंडली के केंद्र भाव (1H-4H-7H-10H) में हों तो सबसे उत्तम होता है लेकिन अगर कुंडली के त्रिकोण भाव (5H-9H) में हो तो उचित ही रहता है और यदि धन भाव (2H) या लाभ भाव (11H) में हों तो भी सही होता है। 3H में तो मेहनत करने के बाद ही राजयोग प्रभावशाली होता है और कुंडली के त्रिक भावों में से 8H में तो बनता ही नहीं है लेकिन 6H में केवल सरकारी नौकरी के पहलू से ही लाभदायक होता है बाकी प्रत्येक तथ्यों में नुकसान ही करता है तथा अंत में 12H में केवल विदेश के लिहाज से उचित होता है वो भी तब जब 4H का स्वामी कमजोर स्थिति में हो।

मित्र-शत्रु राशि

धर्म कर्माधिपति योग बनाने वाले ग्रह मित्र राशि में हैं या शत्रु राशि में ये तथ्य भी षडबल की नजर से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि मित्र की राशि में होने से राजयोग को बल मिलता है और शत्रु की राशि में होने से ऐसा हो नहीं पाता है लेकिन राजयोग फल अवश्य देता है। जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में केंद्र भावों के 4H में थोड़ा सा या यूँ कहिए कि नाम मात्र के लिए कमजोर होता है।

वहीं इसकी दूसरी तरफ 10H में मित्र की राशि में होने की वज़ह से थोड़ा सा अधिक प्रभावशाली होता है। अब केंद्र में ही 7H में शत्रु राशि में गुरु+मंगल के होने के बाबजूद भी कमजोर नहीं होता है ऐसा क्यों? ये आप बताइए!

अन्य ग्रह की युति

जो ग्रह इस राजयोग को बना रहे हैं उनके साथ अन्य कौनसे ग्रह हैं; कहीं वो ग्रह कोई दोष का निर्माण तो नहीं कर रहे जैसे राहु या केतु के होने से चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण। अगर ऐसा होता है तो सम्बन्धित ग्रह की ऊर्जा दोष में ही विलीन हो जाती है जिससे इस राजयोग का फल नहीं मिल पाता है।

धर्म कर्माधिपति योग कब फलित होता है?

उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में गुरु और मंगल इस राजयोग को बना रहे हैं तो गुरु-मंगल का उदाहरण लेकर ही समझते हैं। सबसे अधिक फलदायी तो ये जब ही होगा जब गुरु या मंगल में से किसी एक ग्रह की महादशा आ जाए और उस महादशा में बचे हुए ग्रह की अंतर्दशा लेकिन केवल अंतर्दशा में भी यह राजयोग कार्य करता है। जैसे शुक्र की महादशा चल रही है और उसमें गुरु या मंगल की जब अंतर्दशा आएगी तब यह राजयोग एक्टिवेट हो जाएगा। तो कुलमिलाकर सम्बन्धित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आने पर राजयोग अपना शुभ फल देने लगेगा।

प्रश्न आपके लिए क्या वृषभ लग्न की कुंडली में Dharma Karmadhipati Yoga बनेगा?

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ललित कुमार

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