चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग धनवान बनने से कोई नहीं रोक सकता।

Chandra Mangal Yoga लग्न कुंडली में अगर बन जाए तो व्यक्ति इन ग्रहों के समय में अर्श से फर्श तक पहुँच जाता है लेकिन क्या ये राजयोग केवल चंद्र-मंगल की युति से ही बन जाता है। क्या कुंडली के त्रिक भाव में ये राजयोग काम करता है? सबसे पहले तो आप ये समझो की यदि आपकी लग्न कुंडली में यह राजयोग बनेगा तभी आपको इसका फल अपने जीवन में देखने को मिलेगा। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग कैसे बनता है? क्या नियम होते हैं? आदि सम्पूर्ण जानकारी इस राजयोग के के संदर्भ में हांसिल करें:-

चंद्र मंगल लक्ष्मी योग

Chandra Mangal Yoga किसी भी लग्न कुंडली में मंगल और चंद्र की युति से देखा जाता है। चंद्र मंगल युति के फल को समझने के लिए पहले आपको चंद्र और मंगल को समझना होगा। चंद्र मन का कारक ग्रह है जब चंद्र का अंश बल हमारी लग्न कुंडली में कम हो या फिर चंद्रमा किसी माध्यम से पीड़ित हो तो फलस्वरूप मन हमारा भटकता ही रहता है और किसी भी कार्य में फोकस करने की क्षमता हमारे अंदर नहीं होती है।

वहीं मंगल शक्ति है हमारे कार्य करने की ऊर्जा है। आलस मंगल के पास भी नहीं आता है।कुलमिलाकर जीवन में हम किसी भी कार्य को अंजाम दे पाते हैं मंगल की वज़ह से और यहाँ तक की कार्य करने की क्षमता है मंगल। इसलिए जब चंद्र-मंगल की युति हमारी लग्न कुंडली में होती है और ये दोनों ग्रह ही जब योगकारक हों तथा प्रत्येक परिस्थिति से योग बलशाली हो तो मन के साथ जब ऊर्जा मिलती है तो व्यक्ति जो ठान ले वो पूर्ण करके ही दम लेता है और व्यक्ति जब तक अपने लक्ष्य कुछ पा नहीं लेता है तब तक शांत नहीं रहता है।

चंद्र मंगल योग

अभी चंद्र मंगल योग को हम दो कुंडलियों का उदाहरण लेकर समझेंगे। एक कुंडली तो ऐसी लेंगे जिसमें चंद्र मंगल मारक होते हैं और एक ऐसी कुंडली का चयन करेंगे जिसमें दोनों ही ग्रह योगकारक होते हैं। लेकिन एक बात आपको ध्यान रखनी है कि किसी भी लग्न कुंडली में चंद्र मंगल योग बनेगा तब ही ये योग व्यक्ति के जीवन में प्रभाव दिखा पायेगा लेकिन अगर लग्न कुंडली में चंद्र मंगल की युति नहीं होगी तो फिर आपको कभी इस राजयोग का फल नहीं मिलेगा।

मिथुन लग्न की कुंडली

Chandra Mangal Yoga

मैं समझता हूँ कि अब तक आपको लग्न कुंडली में योगकारक और मारक ग्रह निकालना आ गया होगा लेकिन यदि आप नए हैं तो कोई बात नहीं आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को पूरा देखें आपको यह गणना करना भी आ जाएगा। तो चलिए सबसे पहले हम मिथुन लग्न में चंद्र और मंगल की योगकारकता या मारकता सिद्ध करते हैं।

मिथुन लग्न में चंद्र को द्वितीय घर मिला है जहाँ पर लिखा है 4 नंबर यानी कर्क राशि। किसी भी लग्न कुंडली के द्वितीय घर का विश्लेषण अष्टम-द्वादश सिद्धांत के अनुसार किया जाता है। अष्टम-द्वादश सिद्धांत कहता है कि लग्न कुंडली में द्वितीय भाव का स्वामी यदि लग्नेश का मित्र हो तो वह ग्रह मित्र की श्रेणी में आएगा अन्यथा शत्रु की श्रेणी में आता है।

यहाँ लग्नेश बुध की मित्रता द्वितीय भाव के स्वामी चंद्र से नहीं है। बुध की केवल दो ग्रहों से ही शत्रुता है एक चंद्र दूसरे मंगल लेकिन अन्य सभी ग्रहों से मित्रता है। अब बात करें मंगल की तो इस लग्न में मंगल को षष्ठम भाव और एकादश भाव का स्वामी बनाया गया है जिसमें अष्टम भाव तो पूर्णतया कुंडली का अच्छा घर नहीं माना जाता है और एकादश भाव भी अधिक अच्छा घर नहीं है।

इसलिए यहाँ मंगल को कुंडली के घर भी अच्छे नहीं मिले और मंगल की लग्नेश बुध से भी मित्रता नहीं है। इस प्रकार अब हम कह सकते हैं कि मिथुन लग्न की कुंडली में चंद्र और मंगल दोनों ही ग्रह मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।

अतः इस मिथुन लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव को छोड़कर अन्य सभी घरों में यदि चंद्र+मंगल की युति होती है तो वह चंद्र मंगल योग का निर्माण नहीं करेगी क्योंकि चंद्र मंगल योग का पहला नियम यही कहता है कि दोनों ग्रह लग्न कुंडली में योगकारक हों लेकिन इस लग्न में द्वितीय भाव को छोड़कर अन्य भाव में चंद्र-मंगल योगकारक नहीं होते हैं। द्वितीय भाव में मंगल कर्क राशि में नीच के होते हैं लेकिन चंद्र के द्वारा उनका नीच भंग होने की वज़ह से सिर्फ इसी घर में दोनों योगकारक होते हैं और यहाँ चंद्र-मंगल की युति ना सिर्फ चंद्र मंगल लक्ष्मी योग का निर्माण करती है बल्कि नीच भंग राजयोग भी बनाती है।

कर्क लग्न की कुंडली

Chandra Mangal Yoga

सबसे पहले ये समझते हैं कि कर्क लग्न की कुंडली में चंद्र-मंगल योगकारक की श्रेणी में आते हैं या मारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं। कर्क लग्न की कुंडली में लग्नेश चंद्र ही हैं और लग्नेश सदा योगकारक ही होता है इसलिए चंद्र तो योगकारक हैं अब चलें मंगल की ओर तो मंगल को इस लग्न में एक तो पंचम भाव और एक दशम भाव का स्वामी बनाया गया है। मंगल लग्नेश चंद्र के मित्र भी हैं और इस लग्न में मंगल को दो बहुत ही अच्छे घर मिले हैं एक केंद्र में और त्रिकोण में इसी कारण मंगल अति योगकारक ग्रह की श्रेणी में आते हैं।

चंद्र मंगल लक्ष्मी योग की बात करें तो कर्क लग्न की कुंडली में त्रिक भावों को छोड़कर अन्य सभी घरों में चंद्र मंगल लक्ष्मी योग बनता है। इस लग्न में जहाँ चंद्र नीच के हो रहें हैं वहाँ मंगल के द्वारा उनका नीच भंग हो रहा है और जहाँ मंगल नीच के हैं वहाँ चंद्र के द्वारा उनका नीच भंग हो रहा है। इसी कारण कर्क लग्न के प्रथम भाव और पंचम भाव में ना सिर्फ चंद्र मंगल लक्ष्मी योग बनता है बल्कि नीच भंग राजयोग का निर्माण भी होता है इसके साथ-साथ मंगल सप्तम भाव में रूचक योग भी बनाते हैं। लेकिन किसी भी लग्न कुंडली के त्रिक भावों में चंद्र मंगल लक्ष्मी योग नहीं बनता है।

अन्य नियम

  1. ग्रहों का अंश बल:- किसी भी लग्न कुंडली में चंद्र-मंगल का अंश बल अच्छा होना चाहिए लेकिन कोई भी ग्रह मृत अवस्था में नहीं होना चाहिए जैसे किसी ग्रह का अंश 0,1,2,3,28 या 29 होना किन्तु अगर ऐसा होता भी है तो चंद्र मंगल योग बनने के पश्चात्‌ भी अपना शुभ प्रभाव नहीं दिखा पाएगा।
  2. अस्त अवस्था:- चंद्र और मंगल सूर्य से अस्त नहीं होने चाहिए अगर सूर्य से कोई ग्रह अस्त हो जाता है तो फिर वह ग्रह निष्क्रिय हो जाता है और किसी भी प्रकार का फल देने के योग्य नहीं रह जाता है।
  3. अंश अन्तर:- दोनों ग्रहों का अन्तर 10° से अधिक का नहीं होना चाहिए जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में मानो कि चंद्र का अंश 8° है और मंगल का अंश 23° है तो दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर हुआ 15° इस प्रकार इन दोनों ग्रहों के बीच का अन्तर 10° से अधिक होने पर चंद्र मंगल योग षडबल के लिहाज से कमजोर हो जाता है क्योंकि दोनों ग्रहों की परस्पर दूरी अधिक हो जाती है।
  4. मित्र-शत्रु राशि:- चंद्र और मंगल मित्र राशि में हैं या शत्रु राशि में ये तथ्य भी षडबल की नजर से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि मित्र की राशि में होने से राजयोग को बल मिलता है और शत्रु की राशि में होने से ऐसा हो नहीं पाता है लेकिन राजयोग फल अवश्य देता है। जैसे उपर्युक्त कर्क लग्न की कुंडली में केंद्र भावों के चतुर्थ भाव में थोड़ा सा या यूँ कहिए कि नाम मात्र के लिए कमजोर होता है। वहीं इसकी दूसरी तरफ दशम भाव में चंद्र मित्र और मंगल स्वराशि होने की वज़ह से थोड़ा सा अधिक प्रभावशाली होता है।
  5. अन्य ग्रह की युति:- चंद्र और मंगल के साथ अन्य कौनसे ग्रह हैं; कहीं वो ग्रह कोई दोष का निर्माण तो नहीं कर रहे जैसे मंगल के साथ राहु होने से अंगारक दोष बनता है। चंद्र के साथ यदि राहु या केतु के होने से चंद्र ग्रहण और चंद्र के साथ सूर्य के होने पर अमावस्या दोष का निर्माण होता है इसी प्रकार चंद्र के साथ जब शनि आते हैं तो विष दोष बनता है। अगर ऐसा होता है तो सम्बन्धित ग्रह की ऊर्जा दोष में ही विलीन हो जाती है जिससे इस राजयोग का फल नहीं मिल पाता है।

चंद्र मंगल योग कब फलित होता है?

चंद्र और मंगल इस राजयोग को बनाते हैं तो चंद्र-मंगल का उदाहरण लेकर ही समझते हैं। सबसे अधिक फलदायी तो ये जब ही होगा जब चंद्र या मंगल में से किसी एक ग्रह की महादशा आ जाए और उस महादशा में बचे हुए ग्रह की अंतर्दशा लेकिन केवल अंतर्दशा में भी यह राजयोग कार्य करता है। जैसे गुरु की महादशा चल रही है और उसमें चंद्र या मंगल की जब अंतर्दशा आएगी तब यह राजयोग एक्टिवेट हो जाएगा। तो कुलमिलाकर सम्बन्धित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आने पर राजयोग अपना शुभ फल देने लगेगा।

चंद्र मंगल योग को बलवान कैसे करें?

जब आपको ये पता चल जाए कि चंद्र-मंगल दोनों ग्रह या फिर कोई एक ग्रह लग्न कुंडली में कमजोर है तो आप उनके बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं या फिर उनका रत्न भी धारण कर सकते हैं। सोमवार का व्रत रह सकते हैं और शिव उपासना भी कर सकते हैं ठीक इसी तरह मंगल का व्रत रह सकते हैं और हनुमान जी की आराधना कर सकते हैं। लेकिन चंद्र और मंगल से संबंधित किसी भी प्रकार की वस्तु का आप दान नहीं कर सकते हैं क्योंकि दान केवल मारक ग्रहों का ही किया जाता है।

  1. मंगल का बीज मंत्र ओउम् अं अंगारकाय नमः
  2. चंद्र का बीज मंत्र ओउम् सोम सोमाय नमः

विनम्र निवेदन

दोस्तों Chandra Mangal Yoga से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।

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अति हर चीज़ की नुकसानदेह होती है उदाहरणार्थ व्यक्ति लगातार सो या जाग नहीं सकता है इसलिए हर चीज़ एक व्यवस्था के दायरे में होती है और कोई भी कार्य व्यवस्था के तहत चलता है तो ही ठीक रहता है अन्यथा उसका तहत-नहस होना निश्चित है।

ललित कुमार

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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