Brahmacharya जानने से पहले आपको पता होना चाहिए कि ब्रह्मचर्य क्या है ? क्योंकि आपकी नजर में तो वही ब्रह्मचर्य हैं जो वीर्य को निकलने ना दे और जो किसी भी माध्यम से Sex ना करे वो ब्रह्मचारी।
नमस्ते! स्वागत है आपका आज हम Brahmacharya को अच्छी तरह समझेंगे ताकि आज के बाद हमें इस विषय को लेकर कोई दुविधा ना हो।
हम और आप इस बात को अच्छे प्रकार से जानते हैं कि ब्रह्मचर्य का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है लेकिन आज के कलयुगी समाज में जिस प्रकार का वातावरण फैला हुआ है उसमें ब्रह्मचर्य के बारे में लोगों को जानकारी भी नहीं है तथा इस विषय को लेकर लगभग प्रत्येक व्यक्ति चिन्तित भी रहता है।
ऐसी बात नहीं है कि मैं जन्म से clear हूँ इस विषय को लेकर लेकिन समय रहते समझा और जिस प्रकार समझा वही आपको समझाने का प्रयास कर रहा हूँ। अगर आपको ब्रह्मचर्य के बारे में नहीं पता तो ये आपका दोष नहीं है। मेरी नजर में आप उन लोगों से तो कम से कम उपर ही हो जिनके मन-मस्तिष्क में इस विषय को लेकर अभी तक तहलका नहीं मचा।
आप इस विषय को ढूंढते हुए आए हो तो इसका मतलब साफ है कि आप ब्रह्मचर्य के विषय को लेकर चिंतित हैं। आपने खोजना ही जारी किया इतना ही काफी है। आपके अंदर चिंगारी तो लगी अब आग तो यहां से लगेगी। सर्वप्रथम हम ब्रह्मचर्य क्या है ? समझते हैं तत्पश्चात इस विषय के संदर्भ में विस्तार से बात करेंगे।
विषय सूची
ब्रह्मचर्य क्या है?
Brahmacharya दो शब्दों से मिलकर बना है एक ब्रह्म तथा दूसरा चर्य। ब्रह्म का अर्थ है परमात्मा अर्थात् Supar Natural Power तथा चर्य का अर्थ है विचरना। इस प्रकार ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ हुआ परमात्मा में विचरना या फिर Supar Natural Power की खोज करना। ये तो रहा ब्रह्मचर्य का एक अर्थ लेकिन इसका दूसरा अर्थ भी निकलता है जो कुछ इस प्रकार है ब्रह्म अर्थात् आत्मा तथा चर्य मतलब कि शोध इस प्रकार तो इसका मतलब हुआ आत्मा का शोध करना।
दोनों ही अर्थों का अगर निचोड़ निकाला जाए तो हम कह सकते हैं कि असल ब्रह्मचर्य पाने की पहली सीढ़ी शारीरिक ब्रह्मचर्य ही है क्योंकि ब्रह्म की खोज करो या आत्मा का शोधन दोनों ही कार्यों में बुद्धि-विवेक-ज्ञान-अनुभव की आवश्यकता होती है।
अच्छा घर से कोई व्यक्ति खो जाए तो अकेले ढूंढ़ने में आपके बाजे बज जाते हैं और आप चाहते हो कि वीर्य भी निकालते रहें तथा ब्रह्म में विचरण भी करते रहें। ये वही लोग हैं जो वीर्य को निकालते रहते हैं और फिर कहते हैं कि ब्रह्मचर्य का असल मतलब है आत्मा की शोध करना ना कि वीर्य को रोकना। इन्हीं महान आत्माओं ने हम-आप जैसी युवा पीढ़ी को बिगाड़ा है कि हमें यही समझ नहीं आता कि ब्रह्मचर्य आखिर है क्या ब्ला।
अरे जो व्यक्ति देखा था उसके खो जाने पर उसको हम भरसक प्रयास करने के बाद भी शायद ढूंढ ना पाएं और बात करते हैं ब्रह्म को ढूढ़ने की जिसका पता ही नहीं कहाँ है, कहाँ रहता है, कैसा दिखता है, कैसी वेश-भुसा है, आदमी है या आदमी के अंदर ही है। हमारे अंदर है तो शरीर के कौन-से हिस्से में उसका घर है आदि और भी बहुत कुछ।
खैर छोड़ो; तो वही ब्रह्म में विचरण करने के लिए जो पहला पायदान है वो है वीर्य का स्तम्भन अर्थात् सबसे पहले शारीरिक ब्रह्मचर्य। हमारी बुद्धि की क्षमता तथा विवेक का विकास दोनों की प्रखरता के लिए शक्ति-पुंज चाहिए जो हमें हमारे वीर्य से ही मिलता है। जितना वीर्य रक्त में मिलेगा उतना ही बुद्धि का अर्जन तेज होगा, जितना वीर्य नाली में बहेगा उतनी ही बुद्धि भी छिड़ होगी।
ब्रह्मचर्य पर प्रयोग
Brahmacharya की सत्यता का पता लगाने के लिए, मैं ये नहीं कहता कि जो मैंने कहा वही सत्य है आप आँख बंद करके भरोसा करो, ना-भाई-ना आप स्वयं मेरी बात का प्रयोग करो तत्पश्चात अगर आपके अंदर सही-गलत को परिभाषित करने की क्षमता शेष रहे तो स्वयं खोजना कि यह बात जो मैंने कही वो सही है या फिर हवा में Fire मारा है।
योगेश्वर श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन से कहते हैं—-“सखा सामने जो योद्धा हैं वो गंगापुत्र भीष्म हैं अपने श्वेत को रक्त में मिलाओ क्योंकि उस महान आत्मा को हरा पाना तुम्हारे तेज और सामर्थ्य के संयोग से भी कठिन है“।
अगर वीर्य की कोई आवश्यकता नहीं तो क्यों कहा श्री कृष्ण ने अर्जुन से कि वीर्य को संभालो। कुछ लोग ये कहते हैं कि वीर्य बना ही निकलने के लिए है अगर उस पर जबरन अंकुश लगाया गया तो वह किसी-न-किसी माध्यम से बाहर निकल ही जाएगा जैसे स्वपन दोष।
हाँ तो निकालो कौन मना कर रहा है आपसे, मैं तो कहता हूँ कि जब तक निकालो कि जब तक वीर्य स्वयं ये एहसास ना कराए की मेरे बड़े भाई रहम कर अब मुझमें निकलने का भी साहस शेष नहीं है।
अच्छा आप एक वर्ष तक प्रतिदिन वीर्य निकालो और वर्ष के अंत में परिणाम देखो फिर अगले वर्ष वीर्य का संचय करो और अंत में परिणाम देखो और दोनों वर्षों का अन्तर करके देखो तथा पता लगाओ कि कौनसा वर्ष तुम्हारा at the end अच्छा रहा वीर्य रोकने वाला या वीर्य निकालने वाला, जो आपको उत्तम लगे फिर जीवन-भर वही क्रिया करना।
अच्छा अगर वीर्य रोकना आपको अच्छा लगे तो जीवनभर वीर्य को रोकना नहीं है क्योंकि Supar Natural Power के नियमों में एक नियम वंशोत्पत्ति का भी है। शास्त्रों में कहा है कि वीर्य का नाश जब ही होना चाहिए जब किसी जीव को उत्पन्न करना हो।
अरे भईया ये नियम तो बहुत खतरनाक है, अरे हम कलियुग में है। शादी में करने को कुछ खास नहीं रह जाता इसलिए शादी के लिए इच्छा ही नहीं रहती इसलिए शादी से कोई आशा नहीं होती क्योंकि आज का समय Girlfriends-Boyfriends का समय है। ढ़ोसा-वर्गर-चाऊमीन-चिली पटेटो खाते हैं हम, लंगोट-धोती का ज़माना गया Modern जिंस पहनते हैं हम, व्यायाम बिल्कुल भी नहीं जितना आराम कर सकें उतना करने की कोशिश करते हैं और हमारे से महान वो हैं जो काम में भी आराम ढूंढते हैं-काम हो तो आराम वाला। और आप कह रहे हो कि वीर्य का विसर्जन जभी हो जब जीव को उत्पन्न करना हो।
अखंड ब्रह्मचर्य क्या है?
हाँ, इसी बात को समझने के लिए आपको शास्त्रानुगत ज्ञान चाहिए खैर! आगे बढ़ते हैं——–अच्छा जो साधना के क्षेत्र में उतरना चाहते है उनके लिए तो यह बहुत बडा़ सवाल है कि आखिर ब्रह्मचर्य क्या है? और अखंड ब्रह्मचर्य क्या है? दो तरीके के शब्द सुनने में आते हैं। एक तो ब्रह्मचर्य और एक अखंड ब्रह्मचर्य।
अखंड ब्रह्मचर्य जो जीवनभर किसी भी कारणवश वीर्य का नाश ना करे वही अखंड ब्रह्मचारी और उसको हम चिरंजीवी भी कह सकते हैं लेकिन आज के समय के अनुसार अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करना नामुमकिन है। अब हम ब्रह्मचर्य के मूलभूत आधारों को समझने का प्रयास करते हैं। यह विषय पात्रता के लिए तो आवश्यक है ही किन्तु साधना तथा जीवन के क्षेत्र में भी बहुत आवश्यक है। अब हम ब्रह्मचर्य के उपर अच्छे से सारी जानकारी हासिल करेंगे। लेकिन उससे पहले चंद पंक्तियों में साधना को भी समझ लेते हैं।
साधना क्या है?
साधना का सीधा-सीधा मतलब है कि किसी विशेष क्रिया या साधारण क्रिया को मानसिक रूप से साध लेना लेकिन साधना का शाब्दिक अर्थ है—- किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला कार्य। किन्तु मूलतः साधना एक आध्यात्मिक क्रिया है। धार्मिक और आध्यात्मिक अनुशासन जैसे कि पूजा, योग, ध्यान, जप, उपवास और तपस्या के करने को साधना कहते हैं।
पूजा | यह वो क्रिया है जिसके माध्यम से हम परमसत्ता को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं तथा परब्रह्म तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। लेकिन वर्तमान में भगवान के साथ हमारा व्यापार चल रहा है। |
योग | इसके माध्यम से आत्मा को परमात्मा से मिलाने का कार्य किया जाता है। |
ध्यान | ध्यान वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चैतन्य अवस्था तक पहुंचाने का प्रयास करता है। |
जप | किसी मंत्र या वाक्य का बार बार धीरे-धीरे मानसिक अथवा वाचिक पाठ करना ही जप कहलाता है। |
उपवास | अन्न परम जाग्रति के लिए बाधक है। अन्न आलस्य और प्रमाद को जन्म देता है, ध्यान और एकाग्रता को नहीं। अन्न शरीर की माँग है आत्मा की नहीं। शरीर नश्वर है तो आत्मा अमर है। उपवास दो शब्दों से मिलकर बना है— उप+वास। उप का मतलब अपना तथा वास का मतलब पास; इस प्रकार इसका अर्थ हुआ, अपने पास रहना। अपना कौन है? अपनी आत्मा है ना कि शरीर। हम शरीर को जानते हैं और उसी को जानने का प्रयास करते रहते हैं पर आत्मा को नहीं। इसलिए उपवास एक माध्यम है कि Who Am I? अर्थात् अपनी आत्मा तक पहुंचने का और उसके बारे में जानने का। |
तपस्या | नकारात्मक प्रवृतियों को अपने उपर हावी ना होने देना तप कहलाता है और जो उस क्रिया का पालन करे वो तपस्वी कहलाता है लेकिन इस क्रिया को प्रत्येक परिस्थिति में कायम रखना ही तपस्या कहलाती है। |
अनुरुद्ध प्रगति के लिए साधना को प्रतिदिन करना चाहिए। सनातन धर्म, बौद्ध, जैन, सिख आदि धर्मों में लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कई प्रकार की साधनाएँ बतलाई गयीं हैं।ऋषि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में योग-साधना में चौदह प्रकार के विघ्न बताए हैं और साथ ही इनसे छूटने के उपाय भी बतलाये हैं। क्या आप योग-साधना को जानना चाहते हैं।
हाँ तो, जैसा कि हम पहले इतना तो जान ही चुके हैं कि ब्रह्मचर्य कोई चीज़ तो है। अब हम ब्रह्मचर्य के मानसिक, शारीरिक तथा आत्मिक तीनों प्रकारों के बारे में चर्चा करेंगे।
- मानसिक ब्रह्मचर्य – मन में किसी प्रकार का गलत विचार ना आने देना। अपने मन को किसी भी वेग में प्रवाहित होने से बचा लेना ही मानसिक रुप से ब्रह्मचर्य का पालन करना कहलाता है। अब प्रश्न आता है कि ब्रह्मचर्य कितने दिन के बाद बनता है, तब यह कोई निश्चित नहीं है; मानो कि अगर किसी ने एक दिन के लिए यह नियम लागू किया तो उसका एक दिन का ब्रह्मचर्य का पालन हुआ उसी तरह अगर कोई वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करता है तो उसका वर्षों का ब्रह्मचर्य हुआ। लेकिन यहाँ हम साधना के लिए रास्ता बना रहे है जिससे हमारी साधना पूर्णरूप से फलदायी हो। इसके ना होने की वजह से जो नुकसान हमें होता है, इसी से बचने के लिए साधना के क्षेत्र में पड़ने से पहले हमें अपने आप को इस कसौटी पर खरा उतारना पड़ता है। इसलिए किसी भी साधना को शुरू करने से पहले कम से कम छ: महीने का ब्रह्मचर्य का पालन होना अतिआवश्यक है। छ: महीने की समय अवधि का ब्रह्मचारी बनने के बाद हम किसी भी साधना को शुरू कर सकते है। मन की गति जितनी तीव्र गति से विचरण करती है उतनी ही तीव्र गति से वापिस भी आती है। अब यहीं पर विवेक की आवश्यकता होती है कि मन के वेगों के अनुरूप कार्य करना है या फिर उस पर अंकुश लगाकर अपने विवेक के अनुसार कार्य करवाना है। यहीं पर चिंतन और मंथन कि आवश्यकता पड़ती है और यह चिंतन की शक्ति आती है अनुभव से और अनुभव बनता है तप से तथा तप के लिए आवश्यकता होती है वीर्य के स्तम्भित होने कि और जब श्वेत रक्त में प्रवाहित होने लगता है तब शरीर में जो ऊर्जा बनती है उससे मन, विवेक यथा सुदृढ़, सकर और स्थिर हो जाता है।
- शारीरिक ब्रह्मचर्य – शारीरिक रुप से वीर्य को स्तम्भित करना ही शारीरिक ब्रह्मचर्य कहलाता है। लौट फिर कर फिर वही बात, वही विचार, वही धारणाएँ आती है कि श्वेत को रक्त में मिला देना। यहां वीर्य को रोकने की बात नहीं कर रहा हूँ मैं क्योंकि श्वेत (वीर्य) को रोकना प्रकृति के नियम में खिलवाड़ करना है। वीर्य को रक्त में घोलने की कई सारी विधियाँ है जिनमें है आर्युवैदिक औषधियों का प्रयोग, व्यायाम मुख्यतः अष्टांग योग करना, तथा वर्तमान के समय के अनुसार जिम और दौड़ लगाना सबसे बेहतरीन उपाय तथा कुछ वैदिक मुद्राओं का प्रयोग जैसे उड्डयन, उनमुनी और खेचरी मुद्रा। इन सब विधियों को अपनाने पर अपने श्वेत को रक्त में प्रवाहित किया जा सकता है। यह सब अगर आप अपने उपर लागू करते हैं तो मैं वादा करता हूँ कि स्वपन दोष जैसी बीमारी आप में तो क्या आपके बच्चों में भी भूल के भी नहीं आ पाएगी।
- आत्मिक ब्रह्मचर्य – आत्मा को बार-बार शुद्ध करना, नवीन ज्ञान से ओतप्रोत होना, प्राप्त नए ज्ञान का मूल सार आत्मा तक पहुंचाते रहना तथा आत्मा को ब्रह्म बना देना या फिर आत्मा को परमात्मा-परब्रह्म में मिला देना ही आत्मिक ब्रह्मचर्य कहलाता है। ये ब्रह्मचर्य का अंतिम चरण है।
अच्छा प्राचीन समय में ब्रह्मचर्य का विषय इतना प्रचलित नहीं था क्योंकि जब हस्तमैथुन नाम की कोई विचारधारा ही नहीं थी। लेकिन वर्तमान में ये विषय अत्यधिक विस्तृत और पेचीदा हो गया है क्योंकि आज के समय में इन्टरनेट ने जिस कदर युवा पीढ़ी को बिगाड़ने का कार्य किया है शायद ही ऐसा किसी अन्य चीज़ ने किया हो। क्यों मैंने सही कहा ना, आप सहमत हो इससे। उचित है—-
धर्म करना ही कर्म है
कर्म का यथावत रूप से कार्यान्वित होना ही धर्म है।
अब प्रश्न ये बताने का है कि यह कौन बतायेगा
कर्म का यथावत रूप क्या है?
——-ललित कुमार——-
आपको पता है कि आपका कर्म क्या है? क्या उचित है जो आपने करना चाहिए। किसी अन्य को देखकर अपने कर्म का चयन करना शायद आपके लिए उचित ना हो क्योंकि जो उसके साथ हुआ वो उसकी परिस्थिति थी आपकी नहीं; हो सकता है ऐसी परिस्थिति आपके सामने न हो। इसलिए जो भी आपको करना है उसका चयन आपको स्वयं से मिलेगा लेकिन कब? जब आप अपने उपर मंथन करेंगे तब। जब आप स्वयं यह विचार करेंगे कि मेरे अन्दर ऐसा कौनसा गुण है जिसको केवल मैं ही जनता हूँ।
क्योंकि प्रत्येक इंसान में कुछ-न-कुछ खासियत अवश्य होती है बस जरूरत होती है उसको पहचानने कि और उसको केवल आप ही पहचान सकते हो। आप स्वयं सोचो न कि आपके बारे में आपसे बेहतर कौन जान सकता है जो आप किसी अन्य से पूछते हो कि मुझे क्या करना चाहिए। आप अपने आप पर विचार करना तो प्रारम्भ करो आपको स्वतः ही जवाब मिलेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा।
युवा पीढ़ी के सोचने समझने की शक्ति छिड़ हो गयी है वो समझ नहीं पाता कि मैं किसलिए हूँ, मेरा कार्य क्या है, मुझे करना क्या है, मेरा औचित्य क्या है आदि और भी बहुत कुछ। आखिर Who Am I?
आपको पता है क्या सही है? क्या जो आप कर रहें है वो सही है? ये कौन बतायेगा आपको, कोई धर्मगुरु या मैं या फिर कोई अन्य व्यक्ति जिसको आप महान समझते हो। कोई नहीं, Who Am I? ये आपको आपकी अंतरात्मा से पता चलेगा, आपके जीवनभर के अनुभव से पता चलेगा लेकिन कब? जब वीर्य लगातार निकालते रहेंगे तब; ये आप स्वयं सोचो।
दोस्तों Brahmacharya के अध्याय को मैं यहीं पर समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ कि इस विषय के संदर्भ में यह लेख पढ़ के अब आपके मन-मस्तिष्क में आग अवश्य लगी होगी। अब ये आग कब तक बरकरार रहती है इसका पता आपकी आत्मा को बेहतर चलेगा। आप चाहें कुछ भी कहो पर आपकी आत्मा को पता है कि सच्चाई क्या है? तथा ये बात आप भी भलीभाँति जानते हो। आज मैं आपसे comment करने को नहीं कहूँगा आपका दिल करे तो करना।
लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!
नमस्ते!
8 thoughts on “Brahmacharya ॥ ब्रह्मचर्य का विज्ञान वीर्य निकालना परम सुख-कारी ॥”