कुंडली में अत्यधिक जटिल योग भाग्यवान योग कैसे बनता है?

Bhagyawan Yog किसी भी लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव, पंचम भाव और नवम भाव के राशि के स्वामी जब केंद्र के किसी भी घर में एकसाथ होते हैं तो यह Bhagyawan Yog बनता है, लेकिन कुछ नियम भी होते हैं जो भाग्यवान योग को बनने नहीं देते हैं। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए भाग्यवान योग को सभी बारह लग्न में विस्तार पूर्वक समझते हैं:-

कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog लग्न कुंडली के नवम भाव को भाग्य का भाव कहते हैं। किसी भी लग्न कुंडली में भाग्येश, भाग्य भाव पर दृष्टि और भाग्य भाव का कारक ग्रह; अगर इन सब की स्थिति सभी पहलुओं से अच्छी होती है तो व्यक्ति भाग्य का धनी वैसे ही होता है लेकिन भाग्यवान योग जातक के भाग्य में चार चाँद और लगा देता है जिसके चलते व्यक्ति का जन्म चाहें जैसे परिवार में क्यों ना हुआ हो, व्यक्ति कितने भी बुरे हाल में क्यों ना हो या फिर व्यक्ति के समक्ष गम्भीर दयनीय स्थिति क्यों ना हो किन्तु जब कुंडली में भाग्य योग बनाने वाले ग्रह का समय आता है तब व्यक्ति अपनी इच्छानुसार सबकुछ प्राप्त कर लेता है।

भाग्यवान योग के नियम

भाग्यवान योग लग्न कुंडली के चौथे घर, पांचवें घर और नौवें घर की राशि के मालिक से देखा जाता है। चौथा घर कुंडली में भौतिक सुख-सुविधा का भाव होता है और पांचवां घर शिक्षा या बुद्धि का भाव तथा नवाँ भाव को भाग्य का घर कहते हैं। इन तीनों घर के शीर्षक को एकत्रित करके हम कह सकते हैं कि व्यक्ति सुयोग्य बुद्धि से उचित कर्म कर-कर भाग्य को सुदृढ़ करता है तथा भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त करता है।

4H-5H-9H में जो नंबर लिखा होता है और उस नंबर की जो राशि होती है; उस राशि के जो स्वामी होते हैं। वो सभी स्वामी एकसाथ लग्न कुंडली के केन्द्र भावों में अर्थात्‌ 1H, 4H, 7H और 10H में बैठें हों तो भाग्यवान योग बन सकता है। लेकिन इसके साथ निम्नलिखित नियम भी लागू होने चाहिए; अगर सभी नियम पास हुए तो भाग्यवान योग पूर्णतया कुंडली में बनता है।

  • संबंधित ग्रहों का अंश बल अच्छा हो;
  • सम्बंधित ग्रह सूर्य से अस्त ना हो;
  • नीच अवस्था:- सम्बन्धित ग्रह अगर नीच का हुआ तो उसका नीच भंग अवश्य होना चाहिए लेकिन ऐसा ना होने पर भाग्यवान योग नहीं बनेगा।

मेष लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

उपर्युक्त मेष लग्न की कुंडली में 4H में 4 नंबर लिखा है जो कर्क राशि होती है जिसके स्वामी चंद्र होते हैं, 5H में 5 नंबर लिखा है जो सिंह राशि है जिसके स्वामी सूर्य होते हैं और 9H में 9 नंबर लिखा है जो धनु राशि है जिसके मालिक गुरु होते हैं। इस प्रकार नियम के अनुसार 4H-5H-9H के मालिक हुए चंद्र-सूर्य-गुरु और भाग्यवान योग का पहला नियम कहता है कि किसी भी लग्न कुंडली में 4H-5H-9H में जो राशि हैं उन राशियों के मालिक केंद्र के किसी भी घर में एकसाथ हों तो यह योग बन सकता है। किसी भी लग्न कुंडली में 1H-4H-7H-10H को केंद्र का घर कहा जाता है।

अब हम चंद्र-सूर्य-गुरु को केंद्र में बैठाकर विश्लेषण करेंगे, जैसा कि उपर्युक्त मेष लग्न के चित्र में दिखाया गया है:-

  • प्रथम भाव (1H) मेष लग्न में सूर्य-चंद्र-गुरु तीनों ही ग्रह योगकारक होते हैं इसलिए अगर 1H में तीनों एकसाथ हुए तो सूर्य मेष राशि में उच्च के होते हैं और चंद्र-गुरु तो योगकारक हैं ही इसलिए भाग्यवान योग बनेगा लेकिन इतना अधिक प्रभावशाली नहीं होगा क्योंकि सूर्य+चंद्र की युति से अमावस्या दोष भी बनता है हालाँकि दोनों ग्रह योगकारक हैं इसलिए अमावस्या दोष का असर भी इतना अधिक नहीं होगा लेकिन भाग्यवान योग भी अत्यधिक प्रभावशाली नहीं होगा। लेकिन गुरु+चंद्र की युति से गजकेसरी राजयोग भी बनता है जो पूर्ण रूप से प्रभावशाली होगा।
  • चतुर्थ भाव (4H) इस भाव में चंद्र स्वराशि हो गए, सूर्य योगकारक हैं और गुरु कर्क राशि में उच्च के होते हैं इसलिए यहाँ भाग्यवान योग भी बनेगा, गजकेसरी योग भी बनेगा और पंच महापुरुष योग भी बनेगा लेकिन अमावस्या दोष का असर यहाँ भी रहेगा और भाग्यवान योग उतना अधिक प्रभावशाली नहीं होगा।
  • सप्तम भाव (7H) यहाँ चंद्र-गुरु योगकारक लेकिन सूर्य तुला राशि में नीच के होते हैं। इसलिए सूर्य का अगर नीच भंग हुआ तो भाग्यवान योग बनेगा अन्यथा गजकेसरी योग ही बनेगा और अमावस्या दोष पूर्ण रूप से बनेगा क्योंकि सूर्य का नीच भंग ना होने पर मारक हो गए।
  • दशम भाव (10H) कुंडली के इस घर में सूर्य-चंद्र योगकारक हैं लेकिन गुरु मकर राशि में नीच के होते हैं इसलिए अगर गुरु का नीच भंग हुआ तो गजकेसरी राजयोग + भाग्यवान योग + नीच भंग राजयोग बनेंगे लेकिन नीच भंग ना होने पर कोई भी राजयोग नहीं बनेगा और अमावस्या दोष का असर आंशिक रूप से बना रहेगा।

उपर्युक्त मेष लग्न कुंडली में सूर्य+चंद्र की युति अमावस्या दोष का निर्माण करती है इसलिए अगर दोनों ग्रह कुंडली में योगकारक हुए तो भी अमावस्या दोष का प्रभाव आंशिक रूप से अवश्य रहेगा इसलिए भाग्यवान योग मेष लग्न की कुंडली में अत्यधिक प्रभावशाली नहीं हो सकता है लेकिन गुरु+चंद्र की युति (अगर दोनों ग्रह योगकारक हुए तो) गजकेसरी योग का निर्माण करेगी। सूर्य-गुरू मेष लग्न के केंद्र भाव में नीच के होते हैं इसलिए अगर इन ग्रह का नीच भंग हुआ तो नीच भंग राजयोग भी बनेगा।

वृष लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

यहाँ वृष लग्न में 4H-5H-9H के मालिक सूर्य-बुध-शनि हैं। वृषभ लग्न में सूर्य सम ग्रह होते हैं लेकिन बुध-शनि योगकारक होते हैं।

1Hसूर्य+बुध+शनिबुधादित्य राजयोग (✔️), भाग्यवान योग (✔️)
4Hसूर्य(स्वराशि)+बुध+शनिबुधादित्य राजयोग (✔️), भाग्यवान योग (✔️)
7Hसूर्य+बुध+शनिबुधादित्य राजयोग (✔️), भाग्यवान योग (✔️)
10Hसूर्य+बुध+शनि(स्वराशि)बुधादित्य राजयोग (✔️), भाग्यवान योग (✔️), पंच महापुरुष योग (✔️)
Bhagyawan Yog

वृषभ लग्न के केंद्र भावों में भाग्यवान योग इतना अधिक प्रभावशाली नहीं रहेगा क्योंकि सूर्य+शनि की युति पितृ दोष का निर्माण भी करती है हालाँकि ये दोनों ग्रह वृषभ लग्न के केंद्र भावों में योगकारक होते हैं इसलिए पितृ दोष का प्रभाव भी नाममात्र के लिए ही होगा किन्तु होगा तो सही। सूर्य+बुध की युति बुधादित्य राजयोग का निर्माण भी करेगी तथा शनि 10H में स्वराशि होने की वज़ह से पंच महापुरुष योग में से शश योग का निर्माण भी करेंगे।

मिथुन लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

मिथुन लग्न में 4H-5H-9H की राशि के मालिक बुध-शुक्र-शनि होते हैं और ये तीनों ही ग्रह योगकारक होते हैं।

1Hबुध(स्वराशि)+शुक्र+शनिभाग्यवान योग(✔️), लक्ष्मी नारायण योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
4Hबुध(उच्च)+शुक्र(नीच)+शनिनीच भंग राजयोग(✔️), भाग्यवान योग(✔️), लक्ष्मी नारायण योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
7Hबुध+शुक्र+शनिलक्ष्मीनारायण योग(✔️), भाग्यवान योग(✔️)
10Hबुध(नीच)+शुक्र(उच्च)+शनिनीच भंग राजयोग(✔️), भाग्यवान योग(✔️), लक्ष्मी नारायण योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
Bhagyawan Yog

यहाँ मिथुन लग्न में बुध+शुक्र+शनि की युति केंद्र के किसी भी भाव में भाग्यवान योग का निर्माण तो करेगी ही लेकिन 4H में बुध स्वयं की राशि कन्या में उच्च के होते हैं और शुक्र नीच के इसलिए यहाँ शुक्र का नीच भंग बुध से होगा और नीच भंग राजयोग बनेगा, ठीक इसी तरह 10H में भी नीच भंग राजयोग बनेगा क्योंकि वहाँ बुध का नीच भंग होगा शुक्र से तथा 4H में बुध उच्च के होने की वज़ह से पंच महापुरुष योग में से भद्र योग बनाएंगे और 10H में शुक्र मालव्य योग किन्तु इन सभी योगों के साथ-साथ शुक्र+बुध की युति लक्ष्मी नारायण योग को भी बनायेगी।

कर्क लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

कर्क लग्न में 4H-5H-9H के स्वामी शुक्र-मंगल-गुरु होते हैं। शुक्र कर्क लग्न में सम ग्रह की श्रेणी में आते हैं लेकिन मंगल+गुरु कर्क लग्न में योगकारक होते हैं।

1Hशुक्र+मंगल(नीच)+गुरु(उच्च)नीच भंग राजयोग(✔️), भाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
4Hशुक्र(स्वराशि)+मंगल+गुरुभाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
7Hशुक्र+मंगल(उच्च)+गुरु(नीच)नीच भंग राजयोग(✔️), भाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
10Hशुक्र+मंगल(स्वराशि)+गुरुभाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
Bhagyawan Yog

सिंह लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

सिंह लग्न में 4H-5H-9H के मालिक मंगल-गुरु होते हैं। ये दोनों ही ग्रह सिंह लग्न में योगकारक होते हैं।

1Hमंगल+गुरुभाग्यवान योग(✔️)
4Hमंगल(स्वराशि)+गुरुभाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
7Hमंगल+गुरुभाग्यवान योग(✔️)
10Hमंगल+गुरुभाग्यवान योग(✔️)
Bhagyawan Yog

कन्या लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

कन्या लग्न में 4H-5H-9H के मालिक गुरु-शनि-शुक्र होते हैं। ये तीनों ग्रह कन्या लग्न में योगकारक होते हैं।

1Hगुरु+शनि+शुक्र(नीच)
4Hगुरु(स्वराशि)+शनि+शुक्रभाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
7Hगुरु(स्वराशि)+शनि+शुक्र(उच्च)भाग्यवान योग(✔️), पंच महापुरुष योग(✔️)
10Hगुरु+शनि+शुक्रभाग्यवान योग(✔️)
Bhagyawan Yog

कन्या लग्न में शुक्र कन्या राशि 1H में नीच के होते हैं इसलिए यहाँ भाग्यवान योग नहीं बनेगा लेकिन अगर शुक्र का नीच भंग हुआ तो नीच भंग राजयोग के साथ-साथ भाग्यवान योग भी बनेगा। 4H में गुरु स्वराशि होने की वज़ह से पंच महापुरुष योग में हंस योग बनेगा और इसी तरह शुक्र 7H में मीन राशि में उच्च के होने से पंच महापुरुष योग में से मालव्य योग बनाएंगे।

तुला लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

तुला लग्न में 4H-5H-9H के मालिक शनि-बुध होते हैं और ये दोनों ही ग्रह तुला लग्न में योगकारक होते हैं।

1Hतुला लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में शनि और बुध की युति भाग्यवान योग बनायेगी, चूँकि शनि तुला राशि में उच्च के होते हैं इसलिए इस भाव में शनि के द्वारा पंच महापुरुष योग में से शश योग भी बनेगा।
4Hतुला लग्न की कुंडली के चतुर्थ भाव में शनि+बुध की युति भाग्यवान योग का निर्माण करेगी और शनि इस भाव में स्वराशि होते हैं इसलिए शश योग भी बनेगा।
7Hसप्तम भाव में शनि+बुध की युति भाग्यवान योग को नहीं बनायेगी क्योंकि शनि सप्तम भाव मेष राशि में नीच के होते हैं लेकिन अगर शनि का नीच भंग हुआ तो नीच भंग राजयोग के साथ-साथ भाग्यवान योग भी बनेगा।
10Hदशम भाव में शनि और बुध की युति भाग्यवान योग का निर्माण करेगी।
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वृश्चिक लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

वृश्चिक लग्न की कुंडली में 4H-5H-9H की राशियों के मालिक शनि-गुरु-चंद्र होते हैं। शनि वृश्चिक लग्न की कुंडली में सम ग्रह होते हैं लेकिन गुरु-चंद्र योगकारक होते हैं।

1Hशनि+गुरु+चंद्र की युति इस भाव में भाग्यवान योग को निर्मित नहीं करेगी क्योंकि शनि-गुरु तो योगकारक होते हैं लेकिन चंद्र वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं इसलिए चंद्र का नीच भंग अगर हुआ तो भाग्यवान योग भी बनेगा और नीच भंग राजयोग भी और गजकेसरी योग भी।
4Hशनि-गुरु-चंद्र की युति इस भाव में भाग्यवान योग बनायेगी और यहाँ शनि स्वराशि होते हैं इसलिए यहाँ शश योग भी बनेगा तथा इसके साथ-साथ गुरु और चंद्र की युति गजकेसरी राजयोग भी बनायेगी।
7Hशनि+गुरु+चंद्र(उच्च) {भाग्यवान योग और गजकेसरी राजयोग दोनों ही बनेंगे।
10Hशनि+गुरु+चन्द्र की युति इस भाव में भाग्यवान योग और गजकेसरी योग बनायेंगे।
Bhagyawan Yog

धनु लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

धनु लग्न की कुंडली में 4H-5H-9H की राशि के मालिक गुरु-मंगल-सूर्य होते हैं जो योगकारक भी होते हैं।

1Hगुरु(स्वराशि)+मंगल+सूर्यभाग्यवान योग+हंस योग दोनों बनेंगे
4Hगुरु(स्वराशि)+मंगल+सूर्यभाग्यवान योग+हंस योग दोनों बनेंगे
7Hगुरु+मंगल+सूर्यभाग्यवान योग बनेगा
10Hगुरु+मंगल+सूर्यभाग्यवान योग बनेगा
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मकर लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

मकर लग्न की कुंडली में 4H-5H-9H के मालिक मंगल-शुक्र-बुध होते हैं। इस लग्न में मंगल सम ग्रह होते हैं लेकिन शुक्र-बुध योगकारक होते हैं।

1Hइस भाव में मंगल मकर राशि में उच्च के होते हैं और पंच महापुरुष योग में रूचक योग भी बनाते हैं तथा मंगल+शुक्र+बुध की युति भाग्यवान योग भी बनाती है और इसके साथ-साथ शुक्र+बुध की युति लक्ष्मीनारायण योग भी बनाती है, इसलिए यहाँ तीनों ग्रहों के होने से तीन अलग-अलग प्रकार के राजयोग बनते हैं।
4Hइस घर में मंगल+शुक्र+बुध की युति रूचक+लक्ष्मीनारायण+भाग्यवान तीनों योगों को निर्मित करतीं हैं।
7Hमंगल+शुक्र+बुध की युति इस भाव में भाग्यवान योग को नहीं बनाती है क्योंकि इस भाव में मंगल कर्क राशि में नीच के होते हैं और मांगलिक दोष का निर्माण करते हैं लेकिन शुक्र+बुध के होने से लक्ष्मीनारायण योग बनता है। यदि मंगल का नीच भंग हो जाता है तो भाग्यवान योग बनेगा और साथ में नीच भंग राजयोग भी बनेगा।
10Hमंगल+शुक्र+बुध की युति भाग्यवान+मालव्य+लक्ष्मीनारायण इन तीनों राजयोग को बनाती है।
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कुंभ लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

कुंभ लग्न की कुंडली में 4H-5H-9H के मालिक शुक्र और बुध होते हैं जोकि इस लग्न कुंडली में योगकारक होते हैं।

1Hशुक्र+बुधलक्ष्मीनारायण योग और भाग्यवान योग दोनों बनेंगे।
4Hशुक्र(स्वराशि)+बुधलक्ष्मीनारायण, भाग्यवान और मालव्य योग बनेंगे।
7Hशुक्र+बुधलक्ष्मीनारायण और भाग्यवान योग बनेंगे।
10Hशुक्र+बुधलक्ष्मीनारायण और भाग्यवान योग बनेंगे।
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मीन लग्न की कुंडली में भाग्य योग

Bhagyawan Yog

मीन लग्न की कुंडली में 4H-5H-9H के मालिक बुध-चंद्र-मंगल होते हैं। मीन लग्न में ये तीनों ही ग्रह योगकारक होते हैं।

प्रथम भाव में बुध, चंद्र और मंगल एकसाथ होने से भाग्यवान योग नहीं बनेगा क्योंकि यहाँ बुध मीन राशि में नीच के हो जाते हैं इसलिए यदि बुध का नीच भंग हुआ तो भाग्यवान योग बनेगा और साथ में नीच भंग राजयोग भी बनेगा लेकिन फिलहाल चूँकि चंद्र और मंगल भी हैं इसलिए मीन लग्न के प्रथम भाव में चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग बनेगा।

चतुर्थ भाव में बुध, चंद्र और मंगल का संयोग भाग्यवान योग का निर्माण करेगा, चूँकि चंद्र और मंगल भी हैं इसलिए चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग भी बनेगा तथा इसके साथ बुध इस घर में स्वयं की राशि में हैं इसलिए पंच महापुरुष योग में से बुध के द्वारा भद्र योग का निर्माण भी करेंगे।

सप्तम भाव में बुध स्वयं की राशि कन्या में उच्च के होते हैं इसलिए भद्र योग बनेगा और चंद्र+मंगल के होने से चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग भी बनेगा तथा इसके साथ इन तीनों ग्रहों के साथ होने से भाग्यवान योग भी बनेगा।

दशम भाव में बुध+चंद्र+मंगल की युति शुभ होगी और भाग्यवान योग को फलित करेगी तथा इसके साथ चंद्र-मंगल लक्ष्मी योग भी बनेगा।

निष्कर्ष

आपने यदि आरम्भ से यहाँ तक इस लेख को ध्यान से पढ़ा और समझा होगा तो एक प्रश्न आपके मस्तिष्क में मांगलिक दोष का अवश्य आया होगा। मांगलिक दोष मंगल से देखा जाता है और बारह लग्न में मंगल भाग्यवान योग के अंतर्गत सिर्फ कर्क, सिंह, मकर और मीन लग्न में आते हैं लेकिन मकर लग्न की कुंडली को छोड़कर अन्य तीन लग्न कुंडली में मांगलिक दोष नहीं बनता है। मंगल मकर लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में नीच के होते हैं और यदि मंगल का नीच भंग ना हो तो मांगलिक दोष बनता है। ये मांगलिक दोष की जानकारी केवल भाग्यवान योग के संदर्भ में है वैसे मांगलिक का अपना एक अलग अध्याय है।

भाग्यवान योग बनाने वाले अलग-अलग लग्न में अलग-अलग ग्रह मृत अवस्था में नहीं होने चाहिए बल्कि योग से सम्बन्धित सभी ग्रह अंश बल के लिहाज से मजबूत होने चाहिए और इसके साथ सम्बन्धित ग्रह सूर्य से अस्त नहीं होने चाहिए क्योंकि अगर भाग्यवान योग बनाने वाले ग्रहों में से एक भी ग्रह सूर्य से अस्त हुआ तो यह राजयोग कार्य नहीं करेगा। लेकिन अगर ग्रह सूर्य से अस्त हो और अंश बल से भी अच्छा ना हो तो सम्बन्धित ग्रह का रत्न पहन सकते हैं लेकिन अपनी कुंडली का बारीकता से अध्ययन करके क्योंकि किसी भी रत्न को उसकी अच्छाई से अवगत होकर धारण नहीं किया जाता है।

रत्न धारण करने से पहले हमें ये अच्छी तरह पता होना चाहिए कि हमको ये क्या फायदा करेगा और हमारे लिए ये उचित भी है अथवा नहीं क्योंकि ऐसे ही रत्न पहन लेने से नुकसान भी होता है अगर रत्न हमारे लिए उचित ना हो तो; रत्न यदि ओरिजिनल हो तो प्रभाव अवश्य दिखाता है जिसके प्रभाव को आप जल्दी या कुछ समय बाद अवश्य समझ सकते हैं लेकिन रत्न नकली होने पर फायदा या नुकसान कुछ होगा ही नहीं और आपको भी कुछ पता ही नहीं चलेगा। इसलिए कुंडली का गहन अध्ययन करके ही रत्न को धारण करना चाहिए।

उपर्युक्त सभी लग्न में आपने देखा होगा कि कहीं तीन ग्रह मिलकर ये राजयोग बना रहें हैं और कहीं केवल दो ग्रह किन्तु भाग्यवान योग सम्बन्धित ग्रहों में से किसी भी दो ग्रहों की महादशा में अंतर्दशा आ जाए तो यह योग पूर्ण रूप से कार्य करता है जैसे मिथुन लग्न की कुंडली में बुध-शुक्र-शनि भाग्यवान योग को बनाते हैं और व्यक्ति के जीवन में जब इन ग्रहों में से किसी एक की महादशा आ जाए जैसे मानो कि शुक्र की आ गई और शुक्र की महादशा में जब बुध और शनि की अंतर्दशा आएगी तब यह भाग्यवान योग पूर्ण रूप से कार्य करेगा।

विनम्र निवेदन

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भाग्यवान योग से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

सामने वाला व्यक्ति चाहें कैसा भी क्यों ना हो लेकिन हमारे संबंध प्रत्येक से मधुर और मजबूत होने चाहिए; क्या पता? कब, कौनसा, किस प्रकार जीवन की किस परिस्थिति में काम आ जाए क्योंकि जीवन की विषम परिस्थितियों में जो साथ दे वही व्यक्ति सच्चा चाहने वाला होता है।

ललित कुमार

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