ज्योतिष में अल्पायु योग: बालारिष्ट दोष।

बालारिष्ट योग क्या होता है?

Balarishta Yoga In Kundli ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति का जन्म पुनर्जन्म में किए गए कर्मों के आधार पर होता है अर्थात्‌ लग्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति उसके ही कर्म का फल होती है। अगर कोई दोष से संपन्न व्यक्ति किसी परिवार में जन्म लेता है तो यह उस परिवार का भी कर्म होता है। लग्न कुंडली में मारक ग्रहों का होना ही अरिष्ट कहलाता है और जब यह अरिष्ट ग्रहों का संयोग बालक की आयु पर घात करें तो इसे ही बाल अरिष्ट योग या बालारिष्ट दोष कहते हैं।

बाल अरिष्ट योग कैसे बनता है?

बाल अरिष्ट योग लग्न कुंडली में चंद्र के मारक, पीड़ित या बलहीन होने पर बनता है कुलमिलाकर चंद्र की स्थिति यदि अच्छी ना हो तो बालारिष्ट दोष बन सकता है और जिन-जिन पहलुओं को हमें ध्यान में रखना होता है उसका विवरण निम्न है:-

  • चंद्र त्रिक भाव 6H-8H-12H में जाने पर
  • चंद्र नीच राशि में होने पर
  • चंद्र सूर्य से अस्त होने पर
  • अमावस्या दोष बनने पर
  • चंद्रमा का अंश 0,1,2,3,28 या 29 होने पर
  • चंद्र पीड़ित हों शनि, राहु या केतु से
  • लग्नेश मारक या कमजोर होने पर
  • शनि कुंडली में मारक होने पर
  • बालक के पैर (तांबा-चांदी-सोना-लोहा) का निर्धारण
  • गंडमूल दोष उपस्थित होने पर

उपर्युक्त तथ्य अगर कुण्डली में उपस्थित हो तो यह संभावना अधिक रहती है कि बालारिष्ट दोष का निर्माण हो जैसे शनि से चंद्र पीड़ित हों तो विष दोष का निर्माण हो सकता है इसी तरह राहु-केतु से पीड़ित होने पर चंद्र ग्रहण दोष का निर्माण होता है। कुलमिलाकर चंद्र की स्थिति लग्न कुंडली में यदि अच्छी ना हो और लग्नेश भी कमजोर या मारक हो जाएँ साथ में मृत्यु के कारक शनि भी शुभ ना हो तो कह सकते हैं कि बालारिष्ट दोष का निर्माण हुआ जिसके चलते बालक की उम्र पर 12 वर्ष तक खतरा हो सकता है लेकिन मुख्य भूमिका चंद्र की ही रहती है इसलिए चंद्र का ही उपाय किया जाए तो उचित रहता है।

चंद्र का महत्व

अचेतन मन का कारक ग्रह चंद्र है। रात में जब हम सोते हैं तब भी अचेतन मन सक्रिय रहता है। जितना अधिक बलशाली अचेतन मन होता है उतना ही व्यक्ति का मन स्थिर और एकाग्र रहता है। इसलिए मेडिटेशन अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है और मेडिटेशन ही क्यों बीज मंत्र का प्रतिदिन उच्चारण, प्रतिदिन की उचित दिनचर्या, कोई विशेष पूजा-विधान आदि ऐसी ही क्रियाएँ अचेतन मन को सक्रीय और उसमें सकारात्मक ऊर्जा या तरंगों का संचार करतीं हैं। जब हमारे मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है तो हम सकारात्मक ही सोच रखते हैं और इसी के अनुरूप सकारात्मक कार्य करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप सकारात्मक ही फल अपने जीवन में प्राप्त करते हैं।

उपर्युक्त विचारधारा तो रही चंद्र का महत्व जीवन में समझने के लिए लेकिन कितना मेडिटेशन को किया है हमने या करते हैं? और कितनी दिनचर्या उचित है हमारी? खाने-पीने-सोने-उठने और आचरणादि का समय कितना उचित है? ये कोई ज्योतिषी नहीं बल्कि आप स्वयं बता सकते हैं और चंद्र का महत्व यदि समझना चाहें तो समझ भी सकते हैं। खैर! अब बात करते हैं ज्योतिष के आधार पर चंद्र का महत्व समझने की; चंद्र सवा दो दिन एक घर में रुकते हैं और लगभग एक महीने में सम्पूर्ण कुंडली अर्थात्‌ बारह घरों या राशियों में भ्रमण कर लेते हैं।

इस प्रकार चंद्रमा सम्पूर्ण कुंडली में ऊर्जा वितरण करने का कार्य करते हैं और जब चंद्र मारक हों तो नकारात्मक ऊर्जा का ही वितरण करेंगे इसी प्रकार चंद्र पीड़ित, अस्त या बलहीन हों तो क्या ही ऊर्जा का वितरण करेंगे। चूँकि चंद्रमा मन और माता के कारक हैं इसलिए तो चंद्र को चंद्रमा भी कहते हैं। यदि माता के महत्व को अपने जीवन में ना समझो तो भी कहीं तक ठीक है {लेकिन माता मेरे लिए भगवान है किसी भी दशा में—-“सारी ख़ुदाई एक तरफ और माता एक तरफ”} लेकिन मन का सही रूप में कार्य करना जीवन में अत्यधिक जरूरी है।

जब लगभग 30 दिन में चंद्र सभी घरों में भ्रमण कर लेते हैं इसका मतलब मन सवा दो दिन शरीर पर लगेगा तो अगले सवा दो दिन धन संचय करने पर फिर कहीं तो फिर कहीं लेकिन मन कहीं भी लगे वो कार्य सकारात्मक रूप से ही करना चाहिए। आपने पढ़ा होगा कि चंद्र-शुक्र को दिशाबल चतुर्थ भाव में मिलता है और चतुर्थ भाव के कारक ग्रह भी चंद्र-शुक्र ही हैं इसलिए ही तो माता और सुख-सुविधा का विश्लेषण कुंडली के चौथे घर से किया जाता है।

चंद्र-शुक्र उत्तर दिशा में बलि होते हैं और चंद्र के आराध्य शिव जी तथा शुक्र की आराध्य लक्ष्मी जी होते हैं। शिव जी का वास पूर्व-उत्तर दिशा के मध्य अर्थात्‌ ईशान कोण में होता है इसलिए कहा जाता है कि घर का ईशान कोण साफ रहना चाहिए। इसी तरह लक्ष्मी जी और कुबेर जी का वास उत्तर दिशा में होता है इसलिए कहा जाता है कि घर की उत्तर दिशा में खराब स्थिति का लोहा-लक्कड और कचड़ा नहीं होना चाहिए।

इसी तरह मरणासन्न व्यक्ति का सर उत्तर दिशा की तरफ किया जाता है क्योंकि विनाश के आधिपत्य शिव जी ईशान कोण में ही वास करते हैं हालाँकि उत्तर दिशा में सर करने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं किन्तु इतना तो समझ आता है कि ज्योतिष का प्रत्येक पहलु अपने-आप में विशेष कारण रखता है लेकिन अब हमारा विषय कहीं और जा रहा है इसलिए वास्तु दोष के बारे में फिर कभी बात करेंगे फ़िलहाल बालारिष्ट दोष के विषय को आगे बढ़ाते हैं।

बालारिष्ट दोष की कुंडली

अब हम एक कुंडली का उदाहरण के रूप में प्रयोग करते हुए बालारिष्ट दोष को समझने का प्रयास करेंगे इसलिए अब तक की बातों पर ध्यान दिया हो या ना लेकिन अब ध्यान से समझना:-

जन्मतिथि14 अक्टूबर, 2018
जन्मसमय11:45 AM
जन्मस्थानसिकंदरा राऊ (उ• प्र•)
Balarishta Yoga In Kundli
बालारिष्ट दोष
Balarishta Yoga In Kundli
  1. पाया = नक्षत्र आधारित = तांबा { राशि आधारित = लोहा }
  2. गंडमूल दोष उपस्थित है। { नक्षत्र-पद = ज्येष्ठा 4 }
योगकारकअंशबलबलअंशमारक
मंगल17100%0%0गुरु
शुक्र15100%50%9शनि
बुध12100%0%29चंद्र
सूर्य2625%50%7राहु
50%7केतु
Balarishta Yoga In Kundli

इस जन्म कुंडली में बाल अरिष्ट योग की बात करें तो नियमानुसार सभी नियम पास हो रहें हैं। चंद्र कुंडली में मारक हैं, बारहवें भाव में उपस्थित हैं और बलहीन हैं। मृत्यु के कारक और आठवें घर के कारक ग्रह शनि भी मारक हैं तथा कुंडली में गंडमूल दोष भी उपस्थित है और पाया भी लोहा है। राहु मारक होकर आठवें घर में हैं और केतु-मंगल की सातवीं दृष्टि 8H पर है जिसमें मंगल तो योगकारक हैं लेकिन केतु मारक हैं। गुरु की नौवीं दृष्टि 8H पर है लेकिन लग्नेश स्वयं मारक हैं और गुरु के स्वभाव के कारण कुछ गुण आते भी लेकिन गुरु का अंश 0 है।

तो कुलमिलाकर सभी तरफ से हमें नकारात्मकता ही प्राप्त हुई लेकिन बच्चे का परिवार और पिता इस कुंडली के अनुसार जोरों-सोरों में नजर आ रहें हैं और जैसा कि मैंने कहा एक सदस्य पर परिवार की ऊर्जा भी कार्य करती है तो ये सम्भव है कि यदि परिवार कोई उचित उपाय करे बालक की 12 वर्ष की अवस्था तक तो गलत समय में अनुचित परिणाम ना मिलें लेकिन बच्चे के खाने-पीने का भी विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि हमें सभी तरफ से इस कुंडली में बालक की इम्यूनटी पॉवर ना के बराबर ही देखने को मिली इसलिए जरा सा भी गलत खान-पान बालक की हेल्थ को बिगाड़ सकता है।

12 वर्ष पश्चात्‌ प्रभाव

बालक की 12 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद भी बालारिष्ट दोष का असर जातक पर जीवनभर रहता है यदि कोई उपाय ना किया जाए तो और वो इसलिए कि मुख्य भूमिका चंद्रमा की रहती है ये दोष को बनाने में और चंद्र मन के कारक हैं तो व्यक्ति का मन कभी जीवन में एक जगह टिकता ही नहीं है। इसी प्रकार बालकों में अधिकतर डिस्लेक्सिया की समस्या पायी जाती है लेकिन पेंटिंग में बालक अत्यधिक आगे रहते हैं। ऐसे बालकों को आगे चलकर BFA, MFA और इसी से सम्बन्धित आगे की पढ़ाई करायी जाए या कंप्युटर में पढ़ाई उसमें भी ग्राफिक्स और 3D प्रिंटिंग में पढ़ाई हो तो व्यक्ति सफल रहते हैं।

बालारिष्ट दोष निवारण

बाल अरिष्ट योग का उपाय बालक की माता करे तो उचित रहता है। अब माँ क्यों करे ये अभी तक आपको समझ आ गया होगा यदि लेख को आपने आरम्भ से पढ़ा होगा तो। माता को चंद्रमा का उपाय करना होता है जो निम्न है:-

  1. माता सोमवार का व्रत रहें बालक की 12 वर्ष की अवस्था तक संकल्प रहकर (संकल्प प्रत्येक सोमवार को लिया जाये तो उचित रहता है)
  2. चंद्र देव के वैदिक बीज मंत्र का जाप सिद्ध होने तक संकल्प लेकर
  3. शनि मारक हों या योगकारक; शनि के वैदिक बीज मंत्र का जाप सिद्ध होने तक
  4. शनि यदि मारक हों तो बालक के उपर से 7 बार उतार कर सरसों का तेल शनि देव पर चढ़ाएं
  5. घर का ईशान कोण हमेशा साफ-सुथरा रखें
  6. बालक को 2 मुखी रुद्राक्ष (छोटा दाना) लाल धागे में पहना दीजिए
  7. संकल्प कैसे लेना है? और बीज मंत्र का जाप कैसे करना है इसकी सम्पूर्ण जानकारी आपको बीज मंत्र वाले लेख में मिलेगी।

निष्कर्ष

बालारिष्ट दोष का उपाय करना अत्यधिक आवश्यक होता है क्योंकि बच्चों का प्राप्त होना भी सौभाग्य ही होता है जो आज के समय में कुछ लोगों को प्राप्त भी नहीं होता है लेकिन इसमें इनका कोई दोष नहीं होता है। किसी को कुछ तो किसी कुछ प्राप्त होना सब कर्म का ही खेल होता है। इस जन्म के कर्म तो आपको ज्ञात होते हैं इसी कारण आप बोलते हो कि मैंने कुछ गलत नहीं किया लेकिन आपके इस जन्म से पहले के कर्म जिससे आप अनभिज्ञ हो उसका हिसाब कब होगा लेकिन फिर भी ईश्वर ने प्रत्येक जन्म में मानव को कर्म करने का अधिकार दे रखा है।

अब ये मानव पर निर्भर की वो उचित कर्म करे या अनुचित। किन्तु बालक क्या ही उपाय करेगा ना उसको समझ और ना ही वो जानना चाहता इसलिए तो वो बालक कहलाता है। इसलिए बालक के लिए परिवार का कोई भी सदस्य उपाय कर सकता है और इसमें भी बालक की माता सिर्फ इसी दोष का उपाय नहीं अन्य किसी भी दोष का या किसी भी बात का समाधान करने के लिए माता के द्वारा किया गया विधान ही सर्वोत्तम होता है जो अत्यधिक शीघ्रता से फलित होता है।

विनम्र निवेदन

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