Angarak Yog किसी भी लग्न कुंडली में मंगल और राहु की युति से बनता है लेकिन इन दोनों ग्रहों की युति कभी-कभी फायदा भी पहुँचाती है और बहुत नुकसान भी करती है। लग्न कुंडली में जब इनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक देखने को मिले तो इसको हम अंगारक दोष कह सकते हैं लेकिन जब इस युति का फल सकारात्मक हो तो इसे हम अंगारक योग कहते हैं। नमस्ते! राम-राम Whatever You Feel Connected With Me. तो चलिए अंगारक योग है या दोष इसको समझने का प्रयास करते हैं:-
विषय सूची
अंगारक योग क्या है?
Angarak Yog मंगल और राहु किसी भी लग्न कुंडली में एकसाथ होने पर अंगारक योग बनता है। अंगारक योग का फल जानने से पहले आपको मंगल और राहु की प्रकृति को समझना होगा। मंगल का स्वभाव गुस्से से परिपूर्ण, अड़ियल पना और आक्रमकता से भरा हुआ होता है वहीं दूसरी तरफ राहु नियंत्रण से बाहर होता है और नियंत्रण में ना आने वाली इसकी शक्ति होती है। मंगल और राहु किसी भी लग्न कुंडली में जब युति बनाते हैं तब गुस्से के साथ जब आउट ऑफ कंट्रोल वाली पॉवर मिल जाती है तो गुस्सा अनलिमीटेड हो जाता है।
अंगारक योग का प्रभाव
ऐसे जातक उग्र स्वभाव वाले और बात-बात पर उखड़ने वाले होते हैं। ऐसे लोगों के सामने अन्य व्यक्ति जाने से भी डरते हैं क्योंकि इनके स्वभाव से वो परिचित होते हैं। अगर ये व्यक्ति की कुंडली में योग के रूप में बने तो अधिकतर व्यक्ति किसी-न-किसी फोर्स में अवश्य होते हैं लेकिन अगर दोष बने तो व्यक्ति में ब्लड प्रेशर की समस्या ज्यादा होती है। किन्तु कुंडली में योग बने या दोष लेकिन व्यक्ति आक्रामक तो होता ही है।
राहु के नियम
- राहु किसी भी लग्न कुंडली के तृतीय भाव(3H) और एकादश भाव(11H) में सदा योगकारक होते हैं भले ही वह नीच के हों या शत्रु राशि में हो।
- राहु वृषभ राशि और मिथुन राशि में उच्च के होते हैं इसलिए किसी भी लग्न कुंडली में उच्च वाले स्थान पर योगकारक होते हैं लेकिन इनका उच्च स्थान त्रिक भाव में नहीं होना चाहिए।
- लग्न कुंडली के त्रिक भावों(6H-8H-12H) में राहु मारक ही रहते हैं फिर चाहें जो परिस्थिति हो।
- किसी भी लग्न कुंडली में राहु नीच राशि में होने पर मारक हो जाते हैं लेकिन 3H और 11H के साथ ये नियम लागू नहीं होता है।
- राहु का नीच भंग नहीं होता है क्योंकि ये छाया ग्रह की श्रेणी में आते हैं।
- लग्न कुंडली के 1H-2H-4H-5H-7H-9H-10H इन घरों में राहु अगर शत्रु की राशि में हुए तो राहु मारक होंगे और अगर मित्र की राशि में हुए तो मित्र उस लग्न कुंडली में योगकारक हुआ तो राहु भी योगकारक होंगे।
मेष लग्न में अंगारक योग
ये मंगल की योगकारक कुंडली है। वैसे तो मंगल लग्नेश ही होते हैं लेकिन अंगारक योग को उदाहरण से समझने के लिए एक मंगल की योगकारक कुंडली लेते हैं और एक वो जिसमें मंगल मारक होते हैं।
प्रथम भाव
मंगल तो लग्नेश हैं ही इसलिए वो तो योगकारक रहेंगे ही सिर्फ त्रिक भावों और नीच स्थान वाले घर को छोड़कर। 1H में मंगल और राहु की युति होने पर मंगल यहाँ स्वराशि होते हैं, योगकारक होते हैं और रूचक योग भी बनाते हैं लेकिन राहु यहाँ मारक होते हैं। इसलिए केवल राहु को शांत करना है।
द्वितीय भाव, तृतीय भाव और एकादश भाव
मंगल और राहु दोनों ही इन भावों में योगकारक होते हैं इसलिए कोई उपाय नहीं करना है। मंगल+राहु की युति सकारात्मक रूप में कार्य करेगी।
चतुर्थ भाव
इस भाव में मंगल नीच के हो जाते हैं इसलिए यदि मंगल का नीच भंग हुआ तो मंगल योगकारक होंगे अन्यथा मारक हो जायेंगे और राहु शत्रु की राशि में इसलिए मारक। तो अगर मंगल का नीच भंग हुआ तब तो केवल राहु को शांत करना है अन्यथा दोनों ग्रह का उपाय करना है।
पंचम भाव और नवम भाव
इन भावों में मंगल तो योगकारक होते हैं लेकिन राहु मारक इसलिए युति होने पर केवल राहु की शांति करनी है।
त्रिक भाव (6H-8H-12H)
यहाँ मंगल और राहु दोनों मारक होते हैं और मंगल के द्वारा लग्न दोष भी बनता है लेकिन चूँकि मंगल लग्नेश भी हैं इसलिए मंगल का इन भावों में होने से दान नहीं करना है केवल बीज मंत्र का जाप करना है क्योंकि लग्नेश का कभी दान नहीं किया जाता है और राहु का तो जो कुछ आप कर पाओ वो कर सकते हो।
सप्तम भाव और दशम भाव
यहाँ मंगल योगकारक होते हैं और दशम भाव में तो मंगल उच्च के होने की वज़ह से रूचक योग भी बनाते हैं। लेकिन राहु यहाँ जभी योगकारक होंगे जब राहु का मित्र इस लग्न कुंडली में योगकारक होगा। जैसे मानो कि शुक्र योगकारक हुए तो राहु भी योगकारक होंगे; ऐसे ही अगर शनि मारक हुए तो राहु भी मारक होंगे। जब ये निर्णय हो जाए कि राहु मारक हैं तो राहु का उपाय करें।
तुला लग्न में अंगारक दोष
तुला लग्न की कुंडली में मंगल मारक होते हैं। इस लग्न में मंगल और राहु की युति को दोष का नाम दे सकते हैं क्योंकि यहाँ कई घरों में दोनों ही ग्रह मारक होते हैं।
1H और 5H
इन घरों में मंगल मारक होते हैं लेकिन राहु मित्र की राशि में हैं इसलिए राहु जभी योगकारक होंगे जब उनके मित्र योगकारक होंगे। अब आप सोच रहें होंगे कि शुक्र तो लग्नेश हैं वो तो योगकारक होंगे ही लेकिन यदि शुक्र त्रिक भाव में चले गए तो फिर राहु भी मारक हो जायेंगे। निष्कर्ष में जो भी ग्रह मारक हो उसका उपाय किया जाय।
2H, 4H और 7H
मंगल इन घरों में योगकारक होते हैं लेकिन राहु 4H को छोड़कर मारक होते हैं। इसलिए द्वितीय भाव और सप्तम भाव में तो राहु का उपाय करना है। लग्न कुंडली में शनि मारक हुए तो राहु भी मारक होंगे और शनि योगकारक हुए तो राहु चतुर्थ भाव में योगकारक होंगे।
6H, 8H और 12H
यहाँ मंगल और राहु की युति अंगारक दोष का ही निर्माण करती है क्योंकि दोनों ही ग्रह यहाँ मारक होते हैं और अत्यंत घातक सिद्ध होते हैं।
3H, 9H और 11H
इन भावों में मंगल मारक होते हैं लेकिन राहु योगकारक होते हैं इसलिए युति होने पर केवल मंगल का उपाय करना चाहिए।
अंगारक दोष या योग का निष्कर्ष
मंगल और राहु ये दो ग्रह ही अंगारक दोष या योग का निर्माण लग्न कुंडली में करते हैं ये तो तय है लेकिन कुछ ज्योतिषी मंगल के साथ केतु के होने से भी इस योग को मानते हैं किन्तु मैं सिर्फ मंगल और राहु की युति को ही ध्यान में रखता हूँ। लेकिन एक बात तय है कि आपकी लग्न कुंडली में ही जब ये दोष बने या फिर योग बने जभी आपके जीवन में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा लेकिन अगर लग्न कुंडली में मंगल और राहु की युति ना हो तो ना दोष बनेगा या योग और ना ही आपके जीवन में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।
अतः जब आप ये देख लो कि लग्न कुंडली में मंगल और राहु की युति है तब फिर आपको देखना है कि मंगल योगकारक है या राहु योगकारक अथवा दोनों मारक। जो ग्रह मारक हो केवल उसी का उपाय करना चाहिए लेकिन यदि दोनों योगकारक हों तो किसी का उपाय नहीं करना चाहिए।
अंगारक योग के उपाय
व्यक्ति को मेडिटेशन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इससे अत्यधिक लाभ होता है। आप मेरे कहने से सिर्फ एक महीना ऐसा कर के देखें विश्वास करिए आपको इतनी शांति मिलेगी कि फिर स्वतः ही आप मेडिटेशन क्रिया को छोड़ना नहीं चाहेंगे। अंगारक योग के उपाय में दूसरा उपाय है चांदी के आभूषणों का अधिक प्रयोग लेडीज तो हमेशा पायल पहने ही रहते हैं लेकिन पुरुष को चांदी का कड़ा तो पहनना ही चाहिए।
लग्न कुंडली में मंगल अगर मारक हो तो मंगल का उपाय करिए और अगर राहु हों तो उनका लेकिन यदि दोनों ही हों तो दोनों का उपाय करना चाहिए। इनके उपाय में इनका बीज मंत्र है एक तो और दूसरा है दान करना। बीज मंत्र का जाप आप फिर भी योगकारक ग्रहों का कर सकते हैं लेकिन दान केवल मारक ग्रहों का ही किया जाता है। इसलिए दान करने से पहले अच्छी तरह पता कर लेना उचित होगा कि मंगल और राहु मारक है अथवा योगकारक।
विनम्र निवेदन
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