घबराहट का कारण: अमावस्या दोष।

अमावस्या दोष क्या है?

Amavasya Dosh अमावस्या जब होती है तो चंद्रमा दिखाई ही नहीं देता और जिन लोगों का जन्म अमावस्या को होता है उन लोगों की कुंडली में अमावस्या दोष बनता है। चंद्रमा सूर्य से रोशनी लेता है लेकिन जब चंद्र सूर्य के अधिक नजदीक आ जाए तो उनकी ऊर्जा सूर्य से समाप्त हो जाती है इसी कारण चंद्र कुंडली में कमजोर हो जाते हैं। जिस प्रकार केमद्रुम दोष में होता है व्यक्ति के साथ ठीक उसी प्रकार अमावस्या दोष में भी होता है व्यक्ति का मन एक जगह टिकता ही नहीं है।

अमावस्या दोष कैसे बनता है?

सूर्य चंद्र की युति से अमावस्या दोष बनता है। किसी भी लग्न कुंडली में सूर्य चंद्र की युति हो अर्थात्‌ ये दोनों ग्रह कुंडली के किसी भी घर में एकसाथ हों तो अमावस्या दोष बनता है। अमावस्या दोष किसी भी कुंडली में जभी बनता है जब व्यक्ति का जन्म अमावस्या में हुआ हो।

अमावस्या दोष के लक्षण

  1. व्यक्ति किसी भी कार्य में एकाग्र नहीं हो पाता;
  2. व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है;
  3. ऐसे व्यक्ति का मन स्ट्रांग नहीं होता है;
  4. घबराहट लगी रहती है;
  5. अजीब सा डर लगा रहता है।

कर्क लग्न में अमावस्या दोष

Amavasya Dosh

कर्क लग्न में सूर्य चंद्र की युति के फल को समझने से पहले आपको ये समझना होगा सूर्य और चंद्र योगकारक होते हैं या मारक। चूँकि चंद्र लग्नेश हैं इसलिए वो सदा ही योगकारक रहेंगे और सूर्य के बारे में बात करें तो सूर्य को इस लग्न में 2H का मालिक बनाया गया है और 2H का विश्लेषण अष्टम-द्वादश सिद्धांत के अनुसार किया जाता है, अगर द्वितीय भाव का स्वामी लग्नेश का मित्र हो तो वो योगकारक होता है लेकिन शत्रु होने पर मारक हो जाता है। सूर्य और चंद्र की आपस में मित्रता है इसी कारण सूर्य भी योगकारक हुए। अब सूर्य चंद्र की युति को प्रत्येक भाव में स्थापित करते हुए विश्लेषण करते हैं।

1H-2H-3H-7H-9H-10H-11H

कर्क लग्न की कुंडली के इन घरों में सूर्य चंद्र की युति योगकारक होती है और यहाँ कोई भी ग्रह मारक नहीं होता है। इन घरों में अमावस्या दोष का निर्माण सिर्फ नाम मात्र के लिए होता है। यहाँ अमावस्या दोष का असर सिर्फ इतना होता है कि व्यक्ति किसी कार्य का परिणाम सोचकर और किसी नए कार्य को आरम्भ करने से पहले थोड़ा सा घबराता है लेकिन थोड़ी देर के लिए लेकिन कुछ समय बाद सही हो जाता है किन्तु कुंडली में मंगल का अंश बल खराब हो तो व्यक्ति जीवन में डरता भी है; इन तथ्यों के अलावा अमावस्या दोष का प्रभाव अधिक नहीं होता है।

6H-8H-12H

ये घर कुंडली के अच्छे घर नहीं होते हैं इसलिए सूर्य चंद्र की युति यहाँ मारक हो जाती है और अमावस्या दोष का निर्माण पूर्णरूप से करती है। इन घरों में अमावस्या दोष अत्यधिक घातक सिद्ध होता है। चूँकि चंद्र लग्नेश हैं इसलिए त्रिक भावों में चंद्र के जाने से लग्न दोष भी बनता है।

चौथा घर (4H)

इस घर में सूर्य चंद्र की युति में चंद्र तो योगकारक होते हैं लेकिन सूर्य नीच के हो जाते हैं लेकिन यदि इनका नीच भंग हो जाए तो योगकारक हो जायेंगे और नीच भंग राजयोग का निर्माण भी करेंगे किन्तु ऐसा ना होने पर सूर्य मारक ही रहेंगे।

पांचवां घर (5H)

इस घर में सूर्य चंद्र की युति में सूर्य तो योगकारक होते हैं लेकिन चंद्र नीच के हो जाते हैं लेकिन यदि इनका नीच भंग हो जाए तो योगकारक हो जायेंगे और नीच भंग राजयोग का निर्माण भी करेंगे किन्तु ऐसा ना होने पर चंद्र मारक ही रहेंगे।

उपाय किसका करें?

कुंडली का विश्लेषण करते हुए सबसे पहले ये देखना है कि सूर्य और चंद्र कुंडली में योगकारक हैं अथवा मारक। मारक ग्रह का ही उपाय किया जाता है, अगर आप योगकारक ग्रह को शांत कर देंगे तो उनकी शक्ति छिड़ हो जाएगी जिससे वो जीवन में अपनी योगकारकता नहीं दिखा पाएगा इसलिए कोई भी क्रिया करने से पहले आपको ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि अन्य पर विश्वास रखने का ज़माना गया।

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रत्न किसका पहनें?

Amavasya Dosh से उभरने के लिए रत्न एक बेहतर उपाय हो सकता है लेकिन हम यहाँ रत्न के विषय में नहीं बल्कि सूर्य चंद्र की युति में किसका रत्न पहनें इस पर चर्चा कर रहें हैं। सूर्य चंद्र की युति में जो ग्रह योगकारक हो उसी का रत्न धारण करें लेकिन यदि दोनों ग्रह योगकारक हों तो फिर ग्रहों का अंश बल देखें जिस ग्रह का अंश कम हो उसी ग्रह का रत्न पहनें लेकिन यदि दोनों ग्रह का अंश कम हो तो अस्त अवस्था देखें यदि चंद्र सूर्य से अस्त हों तो चंद्र का रत्न पहनें। ये सब देखने के बाद आपको पता चल जाएगा कि रत्न किसका पहनना है और किसका नहीं।

अमावस्या दोष के उपाय

उपाय में आप सर्वप्रथम सूर्य चंद्र के बीज मंत्र का जाप करें, भले ही दोनों ग्रह योगकारक हो या मारक लेकिन युति होने पर बीज मंत्र का जप अवश्य करें। अगर सूर्य मारक हों तो प्रातः प्रतिदिन अर्घ्य अवश्य दें और विष्णु की आराधना करें लेकिन यदि चंद्र मारक हों तो शिव उपासना और मेडिटेशन करें किन्तु दोनों के मारक होने पर सबकुछ करें।

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