पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी की सम्पूर्ण पूजा विधि व्रत कथा सहित।

Ahoi Ashtami का व्रत संतान की सुरक्षा और पुत्र की प्राप्ति के लिए होता है। राधा-कुंड भी विशेष महत्व रखता है अहोई अष्टमी के उद्देश्य को सफल करने के लिए।

Santan Sukh
@lkastrologer

नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with me. मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आप सभी का और आशा करता हूँ आप सभी मस्त होंगे-स्वस्थ होंगे। इस लेख में हम अहोई अष्टमी के बारे में संपूर्ण जानकारी हांसिल करेंगे।

अहोई अष्टमी 2023 कब है।

Ahoi Ashtami प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है। कार्तिक मास जिसको देहाती भाषा में कातिक भी कहते हैं और यह महीना अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर-नवंबर में होता है। Ahoi Ashtami करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से आठ दिन पहले होती है लेकिन तिथियों के अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखों में दो दिन पड़ने से एक-दो दिन आगे पीछे हो जाता है।

  • अहोई अष्टमी वर्ष 2023 में 05 नवंबर दिन रविवार को है।
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ = 05 नवंबर 2023 को सुबह 12 बजकर 59 मिनट से
  • अष्टमी तिथि समाप्त = 06 नवंबर 2023 को सुबह 03 बजकर 18 मिनट पर
  • अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त = 05 नवंबर 2023 को 05:33PM से 06:52PM तक
  • राधा कुंड स्नान = 05 नवंबर 2023 को
  • तारा दर्शन समय = 05:58PM 05 नवंबर 2023
  • चंद्रोदय समय = 12:02AM 06 नवंबर 2023

अहोई अष्टमी व्रत का उद्देश्य

Ahoi Ashtami का व्रत करवा चौथ के व्रत की भाँति ही कठोर होता है। अहोई माता को देवी पार्वती का स्वरूप माना गया है। अहोई अष्टमी का व्रत भी निर्जला ही रहकर पूर्ण किया जाता है। अलग-अलग स्त्रियों के अलग-अलग उद्देश्य इस व्रत को रहने के हो सकते हैं किन्तु मुख्य रूप से यह व्रत पुत्र-धन प्राप्ति के लिए किया जाता है। व्रत के उद्देश्यों में प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

  1. पुत्र की प्राप्ति के लिए; अगर किसी पर कन्याओं की अधिकता है या एक ही कन्या है तो महिलाएँ इस व्रत को रहतीं हैं ताकि उनको अगली बार पुत्र की प्राप्ति हो।
  2. एक पुत्र या अधिक पुत्र होने पर उनकी माँ संतानों की सुरक्षा, दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को रहतीं हैं ताकि सभी संतानों को उनके रहते किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो।
  3. कोई संतान ना होने की स्थिति में भी महिलाएँ संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी के व्रत को रहा करतीं हैं।

अहोई अष्टमी पूजा विधि

Ahoi Ashtami के व्रत का आरम्भ सूर्योदय से होता है लेकिन सूर्योदय से पहले महिलाएँ रोज़मर्रा की तरह उठकर स्नानादि से संपन्न होकर जिस प्रकार प्रत्येक दिन पूजा करती हैं वैसे ही अष्टमी के दिन भी करती हैं। सुबह पूजा करते समय अहोई अष्टमी के व्रत का संकल्प लिया जाता है और संकल्प में कहा जाता है कि हम इस व्रत को कैसे रहेंगे तथा यह भी बताया जाता है कि इस व्रत को हम किस मंशा से रह रहें हैं।

संकल्प गंगाजल को हाथ में लेकर बोला जाता है और माता गौरी से प्रार्थना की जाती है। अहोई अष्टमी का व्रत चंद्र दर्शन के पश्चात्‌ ही खोला जाता है लेकिन उस दिन चंद्रमा का उदय काफी विलंब से होने कारण स्त्रियाँ आसमान में तारों को देखने के बाद ही इस व्रत को खोल देती हैं। आप व्रत कैसे रहने वालीं है निर्जला या जल पीकर अथवा व्रत को आप कब खोलेंगी तारों के दर्शन के पश्चात्‌ या चंद्र दर्शन के पश्चात्‌ इसका विवरण आपको संकल्प में देना होता है।

संकल्प अर्थात्‌ आपके वचन कि आप क्या करने वालीं हैं और कैसे करने वालीं हैं जिसको आप अपने शब्दों में बोल सकते हैं। बस भाव शुद्ध तो कार्य सिद्ध। आप अहोई अष्टमी पूजा विधि को जिस प्रकार करते आ रहें हैं वैसे ही करें लेकिन अगर आप पहली बार इस व्रत को रहने की सोच रहें हैं तो सर्वप्रथम आप अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार ही पूजा करिए किन्तु यहाँ जो नियम और पूजा बतायी जा रही है वह अहोई अष्टमी की पूजा में शामिल करने के योग्य हैं।

संकल्प लेने के बाद दिन में किसी भी समय अहोई अष्टमी की कथा को पढ़े तथा घर की महिलाएँ या बाहर की कुछ महिलाओं को इकट्ठा करके अहोई अष्टमी की कथा को सुनायें और अहोई अष्टमी के व्रत का महत्व भी उनको समझाएं ताकि वो स्त्रियाँ भी अगली बार से अहोई अष्टमी के व्रत को रह सकें। कथा सुनने वालीं महिलाओं में विशेष रूप से नवविवाहित स्त्रियाँ हों तो सर्वोत्तम होता है।

  1. अहोई अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त जो ऊपर बताया गया है। उस समय में आप अहोई माता की पूजा को करना प्रारम्भ करें।
  2. रसोई घर के दरवाज़े वाली दीवार पर गाय के गोबर या फिर पीली मिट्टी से अहोई माता की आठ कोष्ठकों वाली प्रतिमा बनायें जिसमें अहोई माता के सात पुत्र और उनकी बहुओं को भी दर्शायें।
  3. प्रतिमा आप पूर्व दिशा की तरफ दीवार पर भी बना सकते हैं। अगर आपके लिए प्रतिमा बनाना सम्भव ना हो तो आप बाजार से अहोई माता का पोस्टर भी ला सकते हैं।
  4. जहाँ पर आप अहोई अष्टमी की पूजा करने वाले हैं उस स्थल पर गंगाजल का छिड़काव कर दें।
  5. अब चौकी स्थापित करें और चौकी पर साफ़ लाल कपड़ा भी बिछा दें।
  6. चौकी पर जौ, चावल या गेंहूँ को गोले की आकृति में बिछा दें फिर उसके ऊपर सिंदूर या कुमकुम से स्वास्तिक(सांतियां) बना दें।
  7. स्वास्तिक(卐) बनाने के बाद साफ पानी से भरा हुआ एक कलश रखें और उसमें थोड़ा सा गंगाजल डाल दें तथा कलश पर भी स्वास्तिक बनाएँ और बंद कर दें ॥卐॥ तथा स्वास्तिक के चारों खानों में रोली से बिंदु लगा दें।
  8. कलश के गले में कलावा बाँध दें और कलश में फूल, सुपारी, इलायची, लौंग के दो जोड़े व एक रुपया डाल दें।
  9. कलश मिट्टी का हो तो बेहतर अन्यथा तांबे या चांदी की धातु का कलश भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन कलश को ढका मिट्टी की प्लेट से ही जाएगा।
  10. कलश के उपर एक करवा रख दें जो करवा चौथ के समय प्रयोग किया था। करवा को मिट्टी के ढक्कन से ढक दें तथा करवा की नलकी में सरई सींक डाल के बंद कर दें।
  11. सरई सींक जो गोवर्धन पर लगायी जाती हैं तथा होली के समय स्याहु पर लगायी जाती हैं। सरई सींक का प्रयोग अन्य कई धार्मिक व शुभ कार्यों हेतु किया जाता है।
  12. पूजा करने के लिए आठ पूरी, आठ पुआ जो मीठे हों और हलवा का प्रयोग किया जाता है कुछ स्त्रियाँ खीर का भी प्रयोग करतीं हैं। यही खाने का सामान घर की बुजुर्ग महिला को कुछ रुपये के साथ दिया जाता है ऐसा ना होने पर किसी पंडित को भी आप दे सकते हैं।
  13. उपर्युक्त सारी क्रिया करने के बाद अहोई माता की आरती की जाती है फिर अपनी संतानों को बैठाकर उनको तिलक किया जाता है तथा अहोई माता से आशीर्वाद देने के लिए प्रार्थना की जाती है।
  14. कुछ महिलाएँ अपनी संतानों को नए वस्त्र पहनाती हैं और स्वयं भी सोलह श्रंगार करके नए वस्त्रों से सुसज्जित होती हैं।

अहोई माता की आरती

ओउम् जय अहोई माता, जय अहोई माता।

तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता॥ ओउम्,,,,,

ब्रह्माणी, रूद्राणी, कमला मैया तुम ही हो जगमाता।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥ ओउम्,,,,,

माता रूप निरंजन सुख-समृद्धि की दात्री।

जो भी तुमको ध्याता नित मंगल पाता॥ ओउम्,,,,,

मैया तुम ही पाताल निवासिनी, तुम ही हो शुभदात्री।

कर्म-प्रभाव प्रकाशिनी, जगनिधि से त्राती॥ ओउम्,,,,,

जिस घर आप हैं जाती, दुःख हर लेतीं।

मंशा पूर्ण होती, इच्छा ना कोई रहती॥ ओउम्,,,,,

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।

रत्न-चतुर्दश तुमको कोई नहीं पाता॥ ओउम्,,,,,

श्री अहोई माता जी की आरती जो भी है गाता।

उर-उमंग अति उपजे, संतान-धन प्राप्त हो जाता॥ ओउम्,,,,,

चंद्र दर्शन

उपर्युक्त अहोई अष्टमी की पूजा संपन्न करने के पश्चात्‌ चंद्र दर्शन या तारों को देखा जाता है। वैसे तो चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अहोई अष्टमी का व्रत खोलना चाहिए किन्तु अगर आप तारों को देखकर व्रत को खोलते आ रहें हैं तो आप ऐसा ही करें और संकल्प में भी बोला जाता है कि आप व्रत को कब खोलेंगे।

करवा के जल को जो कलश के उपर चौकी पर रखा था। उस जल का प्रयोग चंद्र दर्शन या तारा दर्शन करते समय उनको अर्घ्य देते हुए प्रयोग किया जाता है। यदि आप चंद्रमा को अर्घ्य देकर अहोई अष्टमी का व्रत खोलते हैं तो अर्घ्य देते समय चंद्रमा को तीन बार नमस्कार किया जाता है।

  • चंद्र नमस्कार मंत्र “ओउम् सोम सोमाय नमः”।

बड़े कलश के जल का प्रयोग नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान करने से नरक में जाने से बच जाते हैं। अगर आप कलश के जल का प्रयोग नरक चतुर्दशी में स्नान के लिए ना करना चाहें तो आप उस जल को अपने क्षेत्र की पथवारी माता पर भी चढ़ा सकते हैं।

कोई व्यवस्था न होने पर कलश को जल सहित बहते हुए जल में प्रवाहित कर सकते हैं अन्यथा तुलसी या अन्य पेड़ों में भी उस जल को दे सकते हैं। अभ्यंग स्नान करने पर ही जल को नरक चतुर्दशी तक रखा जाएगा अन्यथा की स्थिति में जल का विसर्जन 24 घंटे के भीतर ही कर दिया जाएगा।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है; एक गांव था जो चारों तरफ से जंगल से घिरा हुआ था। उस गांव में एक बड़ी ही दयावान महिला रहती थी जो प्रत्येक इंसान की सहायता करने को तत्पर रहती थी। उस महिला के सात पुत्र थे। दीपावली का त्योहार नजदीक आने पर महिला ने कार्तिक महीने के किसी रोज़ अपने टूटे-फूटे घर को सुधारने के बारे में सोचा और घर की मरम्मत के लिए जंगल से मिट्टी लेने चली गई जिससे कि घर को पुनः अच्छी तरह लीपा जा सके।

जंगल में मिट्टी खोदते समय उस महिला से भूलवश एक शेरनी का बच्चा मिट्टी खोदने वाले औज़ार से ही मर गया था। उस बेजुबान बच्चे की हत्या से वह महिला बहुत दुःखी व अपने-आप को जिम्मेदार मानकर बहुत ग्लानि महसूस कर रही थी। इस घटना को हुए एक वर्ष भी नहीं बिता था कि महिला के सातों बेटे अचानक कहीं गायब हो गए। गायब होने पर जब पूरे गांव को इस बात की जानकारी हुई तो पूरे गांव ने महिला के बेटों को ढूढ़ने का अथक प्रयास किया किन्तु न मिलने पर गांव वालों ने उनको मरा हुआ समझ लिया और सोचने लगे कि शायद जंगली-जानवरों ने उनको खा लिया होगा।

महिला यह सुनकर बहुत उदास हो गयी और अपने द्वारा हुए उस कृत्य को याद करने लगी जब उसके हाथों भूलवश शेरनी का एक बच्चा मरा था। महिला अपने बेटों के गायब होने का कारण वही मानने लगी जो उसके हाथों से भूलवश हुआ था। महिला ने एक दिन यह सारा कृत्य गांव की सबसे बुजुर्ग स्त्री को बताया तो उस बुजुर्ग स्त्री ने महिला को देवी पार्वती जी का अवतार देवी अहोई माता की पूजा व व्रत करने का सुझाव दिया। देवी अहोई सभी जीवित प्राणियों की रक्षक मानी जाती हैं।

महिला ने बुजुर्ग स्त्री के बताये अनुसार ठीक वैसा ही कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया। महिला ने शेरनी के बच्चे का चित्र दीवार पर बनाया और अहोई माता की आकृति को बनाकर विधि-विधान से पूजा संपन्न की; देवी अहोई महिला के इस निःस्वार्थ व्यवहार व पूजा से प्रसन्न हुई तथा महिला के सातों बेटों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया। कुछ समय बाद महिला के सभी बेटे घर वापिस आ गए। तभी से माताएँ अपने संतानों की खुशहाली के लिए अहोई माता की पूजा करने लगीं। इसी कारण अहोई अष्टमी का व्रत तब से प्रसिद्ध हुआ।

राधा कुंड स्नान

  • राधा कुंड स्नान का समय = 11:37PM (05 नवंबर 2023) से 12:29AM (06 नवंबर 2023)

जिन स्त्रियों को गर्भ धारण नहीं हो रहा या जिनको किसी भी कारणवश लम्बे समय से एक भी संतान उत्पन्न नहीं हो रही वो स्त्रियाँ राधा कुंड स्नान करती हैं तथा अहोई अष्टमी का व्रत विधि पूर्वक संपन्न करतीं हैं। राधा कुंड में जाकर जोड़े के साथ स्नान किया जाता है व देवी राधा से संतति होने का आशीर्वाद मांगा जाता है।

विवाहित जोड़ा स्नान करने के पश्चात्‌ पेठे वाला कच्चा कद्दू लाल कपड़े में लपेट कर कुष्मांडा माता को अर्पित किया जाता है। जिन जोड़ों की मंशा पूर्ण हो जाती है वो पुनः आभार प्रकट करने राधा कुंड स्नान के लिए जाते हैं व अपनी इच्छानुसार कन्याओं को भोजन और मंदिर के पुजारी को नए वस्त्रों से सुसज्जित करते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत के नियम

  1. करवा चौथ व्रत के भाँति ही यह व्रत भी कभी छोड़ा नहीं जाता है।
  2. प्रसव के दौरान या किसी अन्य परिस्थिति में अस्पताल में भर्ती होने पर पुरुष इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं। पुनः ठीक होने पर महिला रह सकती है।
  3. बीमारी के चलते भी इस व्रत को किया जा सकता है लेकिन फिर संकल्प में कहना पड़ता है कि हम निर्जला नहीं रह रहें हैं।
  4. जब व्रत शुरू किया था तब एकदम स्वस्थ थे लेकिन समय के साथ गंभीर बीमारी ने शरीर में वास कर लिया हो तब भी अहोई अष्टमी की पूजा को किया जाता है बस फिर व्रत नहीं रहा जाता है।
  5. संतानों के बड़े होने पर कामकाज के चलते किसी स्थिति में फंसकर अगर बच्चे ना आ पाएं तब भी Ahoi Ashtami का व्रत पूर्ण किया जाता है। बस फिर भाव से संतानों को याद किया जाता है।

कुलमिलाकर अगर आपने व्रत उठा लिया तो किसी भी परिस्थिति में बीच में छोड़ा नहीं जाता है। चाहें आपको अपनी संतानों से कुछ लाभ हो अथवा नहीं; स्त्री अगर किसी वर्ष नहीं रह पाती है तो पुरुष को यह व्रत रहना चाहिए। पति-पत्नी को एक-दूसरे का अर्धांग इसलिए ही कहा जाता है क्योंकि जीवन का निर्वहन करने में दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

नमस्ते!

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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