Bhavat Bhavam अगर आपने भावत भावम सिद्धांत को समझ लिया तो समझ लीजिए आप एक रिसर्चर बन जायेंगे। किसी भी तथ्य का यदि आप गहन अध्ययन करना चाहते हैं तो भावत भावम सिद्धांत आपके अध्ययन में मदद करेगा और भावत भावम सिद्धांत के माध्यम से बहुत से ऐसे रहस्य और घटनाओं के बारे में पता चलेगा जो आपको अचंभित कर देंगे। भावत भावम सिद्धांत के माध्यम से मामा, मासी, माँ, नानी, बहिन-भाई, उनके बच्चे आदि सबके बारे में जाना जा सकता है बस आपको गहन अध्ययन करना आना चाहिए।
ज्योतिष के अंदर Bhavat Bhavam सिद्धांत को अच्छे से समझ लिया तो ज्योतिष में आप मास्टर बन जायेंगे अर्थात् किसी भी तथ्य का सटीकता से विश्लेषण कर पायेंगे। तो चलिए Bhavat Bhavam Theory क्या है इसको अच्छे से समझने का प्रयास करते हैं:-
विषय सूची
भावत भावम सिद्धांत का अध्ययन
Bhavat Bhavam Astrology में बहुत बड़ा विषय है इसको समझने के लिए अगर एक-एक हाउस का अध्ययन किया जाए तो शायद 10-15 लेख भी कम पड़ जायेंगे लेकिन अपने शब्दों को संकुचित करते हुए बेहद ही आसान भाषा में इस सिद्धांत (Bhavat Bhavam Theory in Hindi) को समझाने का प्रयास करूँगा।
Bhavat Bhavam Meaning
लघु रूप में भावत भावम का अर्थ भाव से भाव का संबंध होता है।
भावत भावम सिद्धांत का विश्लेषण
जिस घर को देखना है उससे उतने ही नंबर का घर उसका प्रतिबिंब होता है जैसे पहले से पहला, पहला ही घर होता है लेकिन दूसरे से दूसरा तीसरा घर होता है; ठीक इसी प्रकार तीसरे से तीसरा पांचवां घर, चौथे से चौथा सातवां घर, पांचवें से पांचवां नौवां घर, छठे से छठा ग्यारहवां घर, सातवें से सातवां पहला घर, आठवें से आठवां तीसरा घर, नवें से नवाँ पांचवां घर दसवें से दसवां सातवां घर, ग्यारहवें से ग्यारहवां नौवां घर और अंत मे बारहवें से बारहवाँ ग्यारहवां घर होता है। सभी घर एक-दूसरे से गुँथे हुए हैं; कैसे? ये अंत तक आपको सब समझ आ जाएगा।
तीसरा और ग्यारहवां सम घर क्यों?
कुंडली में छठे घर का अध्ययन करना है तो किसी भी तथ्य पर मोहर लगाने के लिए उसके प्रतिबिंब वाले घर का भी अध्ययन करना जरूरी होता है और छठे का प्रतिबिंब ग्यारहवां भाव होता है क्योंकि छठे से छठा ग्यारहवां भाव ही होता है। इसलिए छठा घर यदि रोग का है तो ग्यारहवां घर छोटी-मोटी बीमारियों का भी है। इसी तरह आठवें से आठवां तीसरा भाव होता है और बारहवें का बारहवाँ ग्यारहवां भाव ही होता है इसलिए लग्न कुंडली में तीसरा और ग्यारहवां भाव सम ग्रह कहलाते हैं। क्योंकि 6H और 12H का प्रतिबिंब 11H है तो वहीं 8H का दर्पण 3H है।
भाव से भाव का संबंध
प्रत्येक भाव किसी-न-किसी अन्य भाव से संबंधित है। जैसे स्वयं को जानना है तो पहला ही देखना है और पहले से पहला 1H ही होता है लेकिन दूसरा घर वाणी का है इसलिए यदि किसी की भाषा शैली के बारे में जानना है तो लग्न कुंडली के दूसरे भाव का अध्ययन करना ही होगा किन्तु और गहराई से जानने के लिए दूसरे से दूसरा यानी तीसरे घर को भी देखना होगा और दूसरे से दूसरे भाव यानी 3H का संबंध भी है क्योंकि 3H से कम्युनिकेशन स्किल्स के बारे में जाना जाता है।
इसलिए यदि किसी कुंडली में ये दोनों भाव मजबूत सकारात्मक स्थिति में हों तो व्यक्ति के बात करने का लहजा बेहद ही लाजवाब होता है और वो अपनी भाषा शैली से किसी को भी अपने पक्ष में करने के काबिल होता है। लेकिन प्रत्येक दृष्टि से ये भाव मजबूत और सकारात्मक होने चाहिए जैसे इन घरों के कारक ग्रह और इन घर के मालिक मित्र के नक्षत्र में होने से आदि ऐसे ही और भी तथ्य होते हैं जो किसी भी ग्रह को अत्यधिक बलशाली बनाते हैं।
इसी तरह तीसरा घर कम्युनिकेशन स्किल का है तो तीसरे से तीसरा अर्थात् पांचवां ज्ञान का है, कौशल का है, शिक्षा का है। व्यक्ति की जैसी शिक्षा होगी; जैसा उसका कौशल होगा उसी के अनुरूप उसकी कम्युनिकेशन स्किल होगी। इसी प्रकार चौथे से चौथा सातवां घर होता है, तो चौथा वाहन और मकान का है तो सातवां रोजमर्रा की आमदनी का है और जब रोजमर्रा की आमदनी व्यक्ति की मजबूत होगी तो गाड़ी-मकान शीघ्रता से मिलने के अवसर प्राप्त हो जाते हैं। जिस प्रकार ये घर अपने से उतने ही भाव से संबंधित है उसी प्रकार सभी भाव अपने प्रतिबिंबित भाव से संबंधित है।
अब भावत भावम सिद्धांत को और ध्यान से समझना देखो अपने लाइफ पार्टनर को हम सातवें भाव से देखते हैं तो संतान को देखने के लिए हम पांचवें भाव का अध्ययन करते हैं और संतान का लाइफ पार्टनर हम एकादश भाव से देखते हैं क्योंकि हमारा लाइफ पार्टनर सातवें भाव से जो पहले से सातवां है तो संतान का लाइफ पार्टनर एकादश भाव से क्योंकि पांचवें से सातवां ग्यारहवां होता है। यदि संतान लड़का है तो बहु को 11H से और यदि लड़की है तो दामाद को 11H से देखते हैं।
इसी तरह अपना बड़ा भाई हम 11H से देखते हैं और छोटा भाई 3H से तो माता का बड़ा भाई चौथे से ग्यारहवां 2H और छोटा भाई 6H से क्योंकि चौथे से तीसरा 6H होता है अर्थात् बड़े मामा 2H से तो वहीं छोटे मामा 6H से देखे जाते हैं। इसी प्रकार अपने से संबंधित किसी भी संबंध के बारे में जाना जा सकता है भावत भावम सिद्धांत को समझकर और इतना ही नहीं भावत भावम सिद्धांत ( Bhavat Bhavam ) को जितना गहराई से समझोगे अंत में निचोड़ जैसे को तैसा ही आएगा।
जैसे को तैसा अर्थात् लग्न कुंडली का पांचवां और नौवां घर एक-दूसरे से संबंधित है और ये यह दर्शाता है कि पिता से आप जैसा व्यवहार करेंगे; आपका यही व्यवहार आपको अपने पुत्र के द्वारा मिलेगा। वर्तमान का कर्म भविष्य का फल लेकर आएगा, हाँ ये अलग बात है कि कर्म मीठा है या कड़वा क्योंकि फल भी वैसा ही मिलेगा। इसलिए बोलते हैं कि माँ-बाप का हमेशा आदर करो क्योंकि सारे स्वर्ग वहीं हैं; सारे दुष्कर्मों का तारण उन्हीं के चरणों में उपस्थित हैं। माँ-बाप कैसे भी क्यों ना हों; कैसे भी अर्थात् कैसे भी लेकिन आदर के पात्र हमेशा होते हैं।
निष्कर्ष
इस सिद्धांत को समझने के लिए गणना कैसे करनी है मुख्य भूमिका इस लेख की यही थी जो संलग्न करके ये लेख भी पूर्ण हुआ, बाकी तो इस सिद्धांत के उपर जितना लिखते जाओ उतना ही कम लगेगा क्योंकि ये सिद्धांत अत्यधिक विस्तृत है। मूलतः समझ में आना चाहिए बाकी गणनाएं तो परिस्थिति के अनुसार चलती रहती हैं। अब यदि आपको ऐसा लगता है कि कोई तथ्य छूट रहा है तो उसका विश्लेषण पहले आप स्वयं करें इस लेख को अच्छी तरह समझकर लेकिन फिर भी कोई जटिल समस्या होती है तो मैं जिंदा हूँ आप कमेंट करें।
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विनम्र निवेदन
दोस्तों भावत भावम सिद्धांत (Bhavat Bhavam Theory in Hindi) से संबंधित प्रश्न को ढूंढते हुए आप आए थे इसका समाधान अगर सच में हुआ हो तो इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक महानुभाव तक पहुंचाने में मदद करिए ताकि वो सभी व्यक्ति जो ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखते हैं, अपने छोटे-मोटे आए प्रश्नों का हल स्वयं निकाल सकें। इसके साथ ही मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप कुंडली कैसे देखें? सीरीज को प्रारम्भ से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आते चलें इसलिए यदि आप नए हो और पहली बार आए हो तो कृपया मेरी विनती को स्वीकार करें।
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