अष्टम-द्वादश सिद्धांत इतना क्यों महत्वपूर्ण है?

Ashtam Dwadash Theory इस सिद्धांत को यदि बिना गुणा-गणित के समझा जाए तो लग्न कुंडली के दूसरे घर और सातवें घर का विश्लेषण इस सिद्धांत के अनुसार किया जाता है। अपने विभिन्न ज्योतिष से संबंधित लेखों में इस अष्टम द्वादश सिद्धांत के बारे में बात कर चुका हूँ लेकिन आज पूर्ण रूप से इस सिद्धांत को क्या? क्यों? कैसे? की कसौटी पर कसकर समझने का प्रयास करेंगे। तो चलिए जानकारी को प्राप्त करना प्रारम्भ करें:-

अष्टम द्वादश सिद्धांत

Ashtam Dwadash Theory को आसान प्रकार से समझने के लिए इस सिद्धांत को दो प्रकार से समझना होगा जिसमें एक प्रकार अष्टम से द्वादश का होगा और दूसरा अष्टम से अष्टम से द्वादश का होगा। लेकिन इससे पहले कुंडली के पहले, आठवें और बारहवें घर को समझना होगा। पहला घर जिससे हमारा व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव का पता चलता है इसलिए इसको लग्न कहते हैं जिससे शरीर के बारे में पता चलता है और रोग-प्रतिरोधक क्षमता के बारे में पता चलता है।

इसी प्रकार आठवें घर से आयु का निर्धारण होता है इसलिए आठवें घर को मृत्यु का स्थान कहा जाता है और बारहवाँ घर जो व्यय का स्थान होता है जिससे व्यय के बारे में पता चलता है। पहला घर = शरीर तो आठवां घर = शरीर की आयु और बारहवाँ घर = शरीर की आयु का व्यय। इतना समझ के आगे बढ़ते हैं अब

अष्टम से द्वादश

How to read Kundli in Hindi
Ashtam Dwadash Theory

पहले घर से आठवां 8H है तो 8H से बारहवाँ 7H है। इस प्रकार पहला घर हम और आठवां घर हमारी आयु तथा 7H हमारी आयु का व्यय। अब आयु का व्यय 7H को क्यों माना जबकि इतना महत्वपूर्ण घर है ये फिर भी, क्योंकि विवाह भी 7H से ही देखा जाता है यानी कि पार्टनर या हमारा अर्धांग शरीर के सामने ही तो होगा और जब व्यक्ति का विवाह होता है तो संतानोत्पत्ति के लिए वीर्य का नाश भी होता है। हाँ ये अलग बात है कि वर्तमान में वीर्य को निकालने के लिए विवाह की कोई आवश्यकता नहीं लेकिन इस सिद्धांत के Concept को समझना।

अब आपके मस्तिष्क में एक प्रश्न अवश्य आएगा कि जिन लोगों का विवाह नहीं होता उनके आयु का व्यय होने का कारण ही समाप्त हो जाता है। मैं प्राचीन समय की बात कर रहा हूँ अब; तब अधिक गहराई से जानने के लिए आपको भावत-भावम नियम को भी जानना होगा क्योंकि उस नियम के बिना ये सिद्धांत भी अधूरा ही समझो।

फ़िलहाल ये समझो की वीर्य क्या? शरीर, ऊर्जा, शक्ति पुंज जो कहना चाहो और 8H से उस शरीर, वीर्य, शक्ति पुंज का समय या उसकी आयु का निर्धारण और 7H से शरीर, ऊर्जा, शक्ति पुंज या वीर्य का नाश विवाह के पश्चात्‌। हाँ ये बात अब अलग है कि सम्भोग करने के लिए विवाह की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन सिद्धांत तो हमें यही समझाना चाहता है कि जिस वीर्य से हमारा शरीर बनता है उस वीर्य का नाश जब होगा तो शरीर का नाश तो होगा ही और जब लग्न कुंडली में इन घर के मालिक मारक हो जाएँ तो अधिक क्षति पहुंचने की संभावना रहती है।

लेकिन ग्रह यदि योगकारक हो तो मृत्यु असमय और बीमारी के चलते नहीं होती है लेकिन इसके लिए अन्य ग्रहों की गणना करना भी आवश्यक होता है तथा इसके साथ-साथ जीवनभर के कर्म का संयोग भी होता है जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रत्येक पहलू से आयु पर कोई नुकसान ना हो और पूर्ण आयु हो लेकिन वह व्यक्ति 20 वर्ष की अवस्था से दारू या किसी अन्य गलत पदार्थ के सेवन लगातार करे तो शरीर का नाश शीघ्रता से तो होना ही है और शरीर बीमारी से भी घिरना है, तो इस प्रकार के कर्म भी जीवन पर प्रभाव डालते हैं।

अष्टम से अष्टम से द्वादश

लग्न से अष्टम 8H और 8H से अष्टम 3H और 3H से द्वादश 2H होता है। लग्न शरीर तो अष्टम आयु और आयु का गहन अध्ययन 3H से होता है तथा उसका व्यय 2H से होता है। तो निष्कर्षतः 2H का अध्ययन अष्टम द्वादश सिद्धांत के अनुसार किया जाता है।

निष्कर्ष

Ashtam Dwadash Theory का निष्कर्ष यही निकल कर आया कि लग्न कुंड।ली में 2H और 7H की राशि का मालिक यदि लग्नेश का मित्र तो ग्रह योगकारक की श्रेणी में आता है लेकिन यदि शत्रु तो ग्रह मारक होता है। सिर्फ कन्या और मीन लग्न की कुंडली में 2H और 7H के मालिक लग्नेश के मित्र होते हैं बाकी सभी लग्न में 50-50 का आंकड़ा रहता है लेकिन कभी-कभी किसी जन्म कुंडली में 2H और 7H के मालिक योगकारक हो जाते हैं जैसे यदि तुला लग्न में मंगल स्वराशि या उच्च या निचता की अवस्था में नीच भंग होने पर योगकारक हो जाते हैं।

विनम्र निवेदन

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