जन्म के पैर का महत्व?

Janam Ka Paya दो प्रकार से देखा जाता है; एक नक्षत्र और दूसरा राशि के आधार पर लेकिन पैर के आधार पर विश्लेषण गलत किया जाता है। जब घर में बालक का जन्म हो तो घर के बुजुर्ग पंडित जी से सबसे पहले यही पूछते हैं कि बच्चे के पैर कौनसे हैं यदि पंडित जी चांदी या तांबे के पैर बता दें तो घर के बुजुर्ग मोहल्ले में हल्ला कर देते हैं कि ललित के लल्ला हुआ तांबे के पैरों का और अधिकतर घर की स्त्रियाँ इस बात को पूरे गाँव में आग की तरह फैला देती हैं। तो क्या पैरों का निर्धारण ही सर्वस्व है जानेंगे इस लेख में कि पैरों के संदर्भ में क्या भ्रांतियां हैं।

पाये के प्रकार

Janam Ka Paya मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं जोकि क्रमशः हैं स्वर्ण, रजत, ताम्र और लौह। इन्हीं को ज्योतिष की भाषा में पैर कहा जाता है जिनका विश्लेषण नक्षत्र और राशि के आधार पर किया जाता हैं।

नक्षत्र के आधार पर बालक के पैर

निम्न नक्षत्रों में किसी बालक का जन्म हो तो उसके ऐसे पैर होते हैं:-

  • लौह:- कृतिका, रोहिणी और मृगशिरा
  • स्वर्ण:- रेवती, अश्वनी और भरणी
  • रजत:- आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा और अनुराधा
  • ताम्र:- ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद

लग्न कुंडली के आधार पर पैर

इसी आधार को राशि पाया भी कहा जाता है और इसी को शनि पाया भी कहते हैं। इसका निर्धारण चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है जैसे चंद्रमा लग्न कुंडली में यदि पहले, छठे या ग्यारहवें घर में हो तो जातक के पैर स्वर्ण के होते हैं। इसी प्रकार लग्न कुंडली के आधार पर पैर निम्न हैं:-

ताम्र3H/7H/10H
रजत2H/5H/9H
स्वर्ण1H/6H/11H
लौह4H/8H/12H
Janam Ka Paya

लग्न कुंडली के आधार पर पैर का चयन ही विशेष महत्व रखता है क्योंकि लग्न कुंडली से ही व्यक्ति विशेष का अध्ययन किया जाता है और लग्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति ही व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है।

पाया विचार

पाया विचार में अधिकतर यही समझा और देखा जाता है कि बालक शुभ है या अशुभ। लेकिन जब पाया ही व्यक्ति के शुभ होने का संकेत देता है तो फिर लग्न कुंडली का विश्लेषण क्यों किया जाता है जैसे यदि किसी बालक का लौह का पाया है तो कहा जाता है व्यक्ति के जीवन में संघर्ष अधिक रहेगा तो फिर लग्न कुंडली के तीसरे घर का अध्ययन आवश्यक क्यों? ये विचारणीय तथ्य है जिसको आपको समझना आवश्यक है।

हाँ मैं भी पाया विचार को महत्व देता हूँ लेकिन बालक का जीवन कैसा रहेगा इस संदर्भ में पाया विचार नहीं करता हूँ। हालाँकि पाया विचार करना भी महत्वपूर्ण है लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज से जैसे बालारिष्ट दोष का अध्ययन करते समय पाया विचार अवश्य करना चाहिए। अगर कोई बालक स्वस्थ नहीं रहता या कोई बालक जल्दी-जल्दी बीमार पड़ता है; बालक की बाल्यावस्था तक किसी-न-किसी प्रकार की दवा चलती ही रहती है तो पाया विचार अवश्य करना चाहिए।

निष्कर्ष

पैर का संबंध सीधे-सीधे इम्यूनिटी सिस्टम से होता है। यदि किसी बालक का पैर लौह हो तो उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता मुकाबले ताम्र पैर के बालक से कम होगी, लेकिन इसके लिए कुंडली में लग्नेश का अध्ययन भी आवश्यक होता है। यदि बालक के लग्नेश भी कमजोर हों या मारक हों और साथ में पैर भी सोने या लोहे के हों तो बालक जल्दी-जल्दी बीमार पड़ता है और इसका प्रभाव सर्वाधिक बालक की 12 वर्ष की अवस्था तक रहता है।

ताम्र > रजत > स्वर्ण > लौह; स्वास्थ्य के लिहाज से सर्वाधिक अच्छा पाया ताम्र होता है फिर यही क्रम होता है। इसलिए पाया विचार करते समय परिवार को ये ध्यान रखना चाहिए कि बालक का लौह पाया होने पर उसके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना है जैसे 6 माह की आयु तक बालक को माँ का दूध ही देना है इसके बाद जैसे-जैसे बालक का समय आगे बढ़े उसको पौष्टिक आहार ही प्रदान करना है।

अब इसका तात्पर्य ये नहीं कि ताम्र के पैर होने पर बालक को कुछ भी अल्ला-मल्ला खिलायेंगे बल्कि ताम्र पाया होने पर उसको और भी पौष्टिक आहार ही देंगे जिससे कि उसके लग्नेश बली हों और इम्यूनिटी पॉवर में बढ़ोत्तरी हो जिसके परिणामस्वरूप छोटी-मोटी बीमारी उसके आसपास भी ना भटके जैसे बालक को 12 वर्ष तक सर्दी-जुकाम-खांसी कुछ इसी प्रकार की समस्या अधिक रहती है तो ताम्र पाया हो तब भी और लौह पाया हो तब तो विशेषतः बालक के स्वास्थ्य संदर्भ में जरा सी चूक बर्दास्त नहीं करनी चाहिए। बाकी बालक के भाग्यशाली या संघर्षयुक्त जीवन का विश्लेषण पाया विचार करके नहीं किया जाता है क्योंकि इस प्रकार की बातें पाया विचार से संबंध नहीं रखती हैं।

विनम्र निवेदन

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