षड़बल क्या होता है?

Shadbala In Astrology षडबल का एक-एक प्रकार अपने आप में इतना बड़ा शीर्षक है कि शायद 10-15 लेख भी इसको समझाने में पर्याप्त नहीं होंगे; इसलिए इस लेख में जन-समुदाय को ध्यान में रखते हुए अपने शब्दों को संकुचित करते हुए इसके गणितीय पहलु को न बताकर सिर्फ फलित पहलु के बारे में ही बताऊँगा। षडबल का विषय जितना पेचीदा है उतना ही आसान प्रकार से समझाने का प्रयास करूँगा। तो चलिए प्रारम्भ करें:-

षडबल क्या है?

Shadbala In Astrology किसी भी ग्रह का बल देखने के लिए षडबल का देखना जरूरी हो जाता है। कोई ग्रह कितनी गति और बल से फल देगा इसका निर्धारण षडबल से ही होता है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है षडबल अर्थात्‌ 6 बल; इस प्रकार कहा जा सकता है कि 6 प्रकार के बल षडबल का शाब्दिक अर्थ है।

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षडबल के प्रकार

अब हम 6 प्रकार के बलों को विस्तारपूर्वक समझने का प्रयास करेंगे लेकिन एक बात ध्यान रखनी है कि षडबल से ग्रह कितना बलशाली है सिर्फ इसका ही पता चलता है लेकिन ग्रह योगकारक है या मारक इसका निर्धारण नहीं होता है। हाँ स्थान बल से कुछ हद तक अवश्य ये जाना जा सकता है कि ग्रह सकारात्मक है या नकारात्मक।

स्थान बल क्या है?

मेरे मतानुसार षडबल के प्रकारों में स्थान बल ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसके तहत किसी भी लग्न कुंडली में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि या मूल-त्रिकोण राशि में हो तो अधिक बलशाली होता है।

Shadbala In Astrology

उपर्युक्त तुला लग्न की कुंडली में शनि का उदाहरण लेते हुए स्थान बल को समझने का प्रयास करते हैं। शनि अपनी उच्च राशि तुला में होंगे तो या शनि स्वराशि मकर और कुंभ में होंगे तो या शनि मित्र की राशि मिथुन, वृषभ और कन्या में होंगे तो बलशाली होंगे।

लेकिन अब ध्यान से समझो कि उपर्युक्त विवेचानुसार शनि वृषभ और कन्या राशि में मित्र की राशि में हैं इसलिए नियमानुसार बलशाली होंगे लेकिन यहाँ इनके बलशाली होने से क्या फायदा क्योंकि इन भावों में शनि मारक होंगे; और जब शनि कुंडली में मारक होकर बलशाली हुए तो और अधिक बल से नकारात्मक फल देंगे। तो स्थान बल से ग्रह के बलशाली होने का तो पता चलेगा लेकिन कुंडली में वो बलशाली ग्रह शुभ फल देगा या अशुभ फल इसका पता नहीं चलेगा।

दिग्बल क्या है?

इस बल को दिशा बल भी कहते हैं। मुख्य चार प्रकार की दिशाएं होती हैं बाकि अन्य इनके ही भाग होते हैं। ये दिशाएँ क्रमशः पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण हैं जो ग्रह और कुण्डली पर भी लागू होती है।

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  • पूर्व दिशा (कुंडली का पहला घर) यहाँ गुरु और बुध हों तो उनको बल मिलता है जिससे वो बलशाली होते हैं।
  • उत्तर दिशा (कुंडली का चौथा घर) यहाँ शुक्र और चंद्र हों तो बलशाली होते हैं।
  • पश्चिम दिशा (कुंडली का सातवां घर) इस दिशा में शनि हों तो बलशाली होते हैं।
  • दक्षिण दिशा (कुंडली का दसवां घर) यहाँ मंगल और सूर्य हों तो बलशाली होते हैं।
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इस धनु लग्न की कुंडली में पूर्व दिशा में ही गुरु और बुध विराजित हैं इसलिए इनको दिशाबल मिला और गुरु के स्वराशि व बुध के मित्र राशि में होने की वज़ह से स्थान बल भी मिला तथा लग्न कुंडली के अनुसार गुरु और बुध योगकारक होते हैं। इसलिए अब ये दोनों ग्रह अत्यधिक बलशाली हो गए और शुभ फल देंगे।

इसी प्रकार शुक्र और चंद्र उत्तर दिशा में हैं और दिशाबल के नियमानुसार बलशाली हुए तथा शुक्र और चंद्र को स्थान बल भी मिला क्योंकि शुक्र उच्च राशि में हैं और चंद्र मित्र राशि में लेकिन यहाँ शुक्र तो योगकारक हुए किन्तु चंद्र मारक क्योंकि धनु लग्न में चंद्र त्रिक भाव के स्वामी हैं। तो इस प्रकार चंद्र मारक हुए लेकिन स्थान बल और दिशाबल मिलने की वज़ह से अत्यधिक बलशाली मारक ग्रह हुए; इसलिए चंद्र अपने समय में अधिक गति व बल से नकारात्मक फल देंगे।

अब शनि मित्र राशि और पश्चिम दिशा में हैं। इसलिए शनि को 7H में स्थान बल और दिशा बल भी मिला लेकिन कोई फायदा नहीं क्योंकि शनि यहाँ मारक हैं। आगे सूर्य-मंगल की बात करें तो सूर्य को स्थान बल व दिशा बल मिला लेकिन मंगल को केवल दिशा बल मिला पर स्थान बल नहीं क्योंकि मंगल 10H में ना मित्र राशि में, ना उच्च राशि में और ना ही स्वराशि है। इसलिए मंगल को केवल दिशा बल मिला लेकिन मंगल योगकारक हैं तो जो मिला उतना ठीक है और सूर्य भी योगकारक हैं इसलिए दोनों ही शुभ फल देंगे।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दिशाबल से भी ग्रह के योगकारक और मारक होने का पता नहीं चलता है केवल उसके बल का आंकलन होता है। दिशा बल को अब गहराई से समझना , गुरु और बुध को पूर्व दिशा में इसलिए रखा गया कि सूर्योदय के साथ गुरु और बुध का आगमन होता है अर्थात्‌ गुरु है ज्ञान और बुध है बुद्धि। इसी प्रकार शनि सूर्यास्त के बाद जागरूक होते हैं। अब मंगल-सूर्य को कर्म स्थान अर्थात्‌ सात्विक, परोपकारी और हितार्थ कर्म सम्पूर्ण ऊर्जा और जोश के साथ किया जाए तभी तो माँ गर्व महसूस करेंगी, माँ को सुख दे पायेंगे, माँ के चहेते होंगे और उचित कर्म करने से ही तो भौतिक सुख का आनंद मिलेगा।

मानव शरीर पर दिशाओं को लागू करें तो मस्तिष्क पूर्व दिशा में है, सीधा हाथ दक्षिण दिशा, उल्टा हाथ उत्तर दिशा और कमर से नीचे का हिस्सा पश्चिम दिशा। जैसा कि दिशाबल के नियम में गुरु-बुध को पूर्व दिशा मिली है और इसके अनुसार मानव शरीर में ज्ञान-बुद्धि का वास कहाँ?—-मस्तिष्क में, बिना रुके-थके कार्य करने की क्षमता अर्थात्‌ मंगल और हाथ का जस यानी कि तेज, सामर्थ कहाँ?—-सीधे हाथ में; इसी प्रकार कमर से नीचे का हिस्सा शनि को मिला है और कुण्डली में पार्टनरशिप शनि के अधीन है और विवाह क्या है? समझौता ही तो है।

एक-दूसरे के इण्टर्नल पार्ट का मिलन सामंजस्य से ही तो सम्भव है। इसी प्रकार माँ का सुख और माँ का सम्मान तथा भौतिक सुख शुक्र-चंद्र के अधिकार क्षेत्र में ही तो आता है। इसलिए कहते हैं ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय से पहले उठो, शौचादि की क्रिया करो, पूजा-पाठ करो, मेडिटेशन करो, मंत्र-जप आदि क्रिया करो; इसी तरह विद्यार्थि को कहा जाता है सुबह-सुबह पाठ याद करो तथा कुछ मत करो बस सुबह उठकर पढ़ो—–क्यों? जिससे की हमारा ज्ञान और बुद्धि सही ढंग से कार्य करे अर्थात्‌ गुरु-बुध कुंडली में चाहें कैसे भी हों लेकिन हमारे जीवन में योगकारक हो जाएं।

हाथ के सच्चे बनो, कोई भी कार्य ईमानदारी से करो, किसी भी कार्य में किसी प्रकार की धोखाधड़ी और चाल-फरेब नहीं होना चाहिए तभी तो भौतिक सुख आनंदमयी होगा और माँ को गर्व महसूस होगा। माँ का हमेशा सम्मान करो ताकि उनका आशीर्वाद जीवनभर बना रहे ताकि जीवन में छोटी-मोटी परेशानियों का निपटारा माँ के आशीर्वाद की शक्ति से ही हो सके।

काल बल

काल बल को समय का बल भी कहते हैं। इसके तहत कुछ ग्रह दिन में बली होते हैं तो कुछ ग्रह रात में बली होते हैं। गुरु, सूर्य और शुक्र दिन में बली होते हैं तथा चंद्र, मंगल और शनि रात में बली एवं बुध दिन और रात दोनों में बली होते हैं। अब इसका मतलब ये है कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म दिन में हो तो गुरु, शुक्र, सूर्य और बुध को काल बल मिलता है ठीक इसी प्रकार रात में जन्में व्यक्ति के चंद्र, मंगल, शनि और बुध को काल बल मिलेगा। लेकिन इस काल बल से भी कुंडली में ग्रह के योगकारक होने का पता नहीं चलता है।

चेष्टा बल

इस बल को गति बल भी कहते हैं। इस बल का निचोड़ बताया जाए तो ग्रह की वक्री अवस्था ही देखी जाती है अर्थात्‌ व्यक्ति के जन्म के समय जो ग्रह वक्री है वो अधिक बलवान होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई ग्रह योगकारक है और वो वक्री है तो और अच्छे फल देगा। ठीक इसी तरह कोई ग्रह मारक है और वो वक्री है तो और गलत परिणाम देगा।

दृष्टि बल

इसको दृग बल भी कहते हैं। लग्न कुंडली में जब कोई ग्रह मित्र ग्रह पर दृष्टि डाले तो वो ग्रह दृष्टि बल के अनुसार बलशाली होता है जैसे सूर्य और बुध का दृष्टि संबंध होना। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि योगकारक ग्रह अगर मित्र ग्रह पर दृष्टि डाले तो उसकी योगकारकता में बढ़ोत्तरी हो जाती है।

ग्रहों का नैसर्गिक बल

ये बल स्थिर (Fix) होता है। इस नियम के अनुसार ग्रहों का बल निर्धारित (Fix) होता है। सूर्य > चंद्र > शुक्र > गुरु > बुध > मंगल > शनि [ सूर्य ग्रह सभी ग्रहों में सबसे अधिक बलवान है क्योंकि सभी ग्रहों को ऊर्जा सूर्य से ही मिलती है और शनि ग्रह सभी ग्रहों में सबसे कम बलवान क्योंकि इसकी दूरी सूर्य से सभी ग्रहों से अधिक है] इसलिए शनि एक राशि में लंबे समय तक रुकते हैं और क्योंकि इनकी चाल धीरी है इसी कारण व्यक्ति के जीवन में इनका प्रभाव धीरे-धीरे होता है लेकिन प्रभावी अवश्य होता है। जिस प्रकार दीमक शनैः-शनैः लकड़ी को खोखला कर देता है और बूँद-बूँद टपकते रहने से नीचे रखा हुआ कोई भी पात्र भरा हुआ नजर आता है।

उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में शनि ग्रह का समय आने पर यदि शनि कुंडली में योगकारक हों तो व्यक्ति रंक से राजा हो जाता है लेकिन यदि मारक हों तो राजा से रंक होने में समय नहीं लगता। ना-जानें कितने ही व्यक्ति कोरोना काल में बर्बाद हो गए और उसी विपत्ति भरे काल में कितने ही व्यक्ति राजा बन गए।

निष्कर्ष

Shadbala In Astrology षडबल के इस अध्याय में आपको उलझाने का उद्देश्य मेरा बिल्कुल भी नहीं था इसलिए इस विषय को जितना सम्भव हुआ उतना लघु स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। नहीं तो स्थान बल अपने आप में एक बहुत बड़ा विषय है; इसी प्रकार काल बल को यहाँ दिन-रात में समेटकर ही समझा दिया गया किन्तु काल बल में क्रमशः नतोन्नत बल, पक्ष, त्रिभाग, वर्ष, मास, वार, होरा, अयन, युद्ध 9 प्रकार के बलों की गणना होती है। इसी प्रकार षडबल का एक-एक प्रकार अपने-आप में कई भागों में विभाजित है। एक तथ्य और ध्यान रखना है वो ये कि ग्रह किसी भी दशा में क्यों ना हो लेकिन यदि सूर्य से अस्त हुआ तो उसका सारा बल समाप्त अर्थात्‌ फिर वह ग्रह किसी भी तरह का फल देने के योग्य नहीं है।

विनम्र निवेदन

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