सूर्य ग्रहण दोष कुंडली में कैसे बनता है?

सूर्य ग्रहण दोष क्या होता है?

Surya Grahan Dosh in Kundli किसी भी लग्न कुंडली में सूर्य के साथ राहु या केतु की युति हो तो वैदिक ज्योतिष में इसे सूर्य ग्रहण दोष का नाम दिया गया है लेकिन इस युति को दोष कहने के लिए कुछ कायदे भी होते हैं जैसे दोनों ही ग्रह मारक हों लग्न कुंडली में या फिर दोनों में से कोई एक ग्रह मारक हो। किन्तु यदि दोनों ही ग्रह योगकारक हों तो इस युति को सिर्फ नाम के लिए सूर्य ग्रहण कहा जा सकता है क्योंकि दोनों ग्रह योगकारक होने पर दोनों ग्रहों की युति शुभ फल की प्राप्ति ही करवाती है। तो चलिए निम्नलिखित लग्न कुंडली का उदाहरण लेते हुए सूर्य राहु की युति को समझते हैं:-

मेष लग्न में सूर्य राहु की युति

Surya Grahan Dosh in Kundli

सूर्य ग्रह मेष लग्न की कुंडली में ईष्ट देव होते हैं क्योंकि 5H का मालिक लग्न कुंडली में योगकारक होने के साथ ईष्ट देव भी होते हैं। सूर्य तो योगकारक हैं लेकिन ये भी कहीं-कहीं मारक हो जाते हैं और राहु कहीं योगकारक तो कहीं मारक। तो चलिए सूर्य राहु की युति को प्रत्येक भाव में समझते हैं कि ये ग्रह कहाँ मारक होते हैं और कहाँ योगकारक।

1H-4H-5H-9H

मेष लग्न की कुंडली के इन घरों में सूर्य तो योगकारक होते हैं लेकिन राहु मारक होते हैं क्योंकि राहु इन घरों में शत्रु की राशि में हैं और 9H में तो राहु नीच के भी होते हैं। इसलिए इन घरों में सूर्य राहु की युति में राहु मारक होते हैं और सूर्य ग्रहण दोष राहु की तरफ से घातक होता है।

2H-3H-11H

इन घरों में सूर्य राहु की युति शुभफलदायी होती है क्योंकि दोनों ही ग्रह यहाँ योगकारक होते हैं। द्वितीय और तृतीय घर में राहु उच्च के भी होते हैं तथा ग्यारहवें घर में राहु सदा ही सकारात्मक परिणाम देते हैं फिर चाहें जो स्थिति हो। इसलिए यहाँ सूर्य ग्रहण दोष केवल नाम मात्र के लिए होता है।

6H-8H-12H

इन घरों को त्रिक भाव बोला जाता है जोकि कुंडली के अच्छे घर नहीं होते हैं। इन घरों में सूर्य राहु की युति पूर्ण रूप से सूर्य ग्रहण दोष का निर्माण करेगी और यहाँ सूर्य राहु के द्वारा अत्यंत अशुभ फल मिलेंगे क्योंकि दोनों ही ग्रह यहाँ मारक होते हैं।

7H-10H

राहु इन घरों में मित्र की राशि में हैं इसलिए यदि मित्र इस लग्न कुंडली में योगकारक होंगे तो राहु भी योगकारक होंगे लेकिन यदि मित्र मारक हुए तो फिर राहु भी मारक होंगे। इसी तरह सूर्य 10H में योगकारक होंगे लेकिन 7H में नीच के हो जाते हैं किन्तु यदि सूर्य का नीच भंग हुआ तो सूर्य योगकारक भी हो जाएंगे और नीच भंग राजयोग का निर्माण भी करेंगे और नीच भंग ना होने की स्थिति में मारक रहेंगे।

कुछ नियम

अस्त अवस्था

सूर्य राहु की युति हो या सूर्य केतु की युति लेकिन ये दोनों ही ग्रह सूर्य से अस्त नहीं होते हैं क्योंकि ये दोनों ग्रह छाया ग्रह होते हैं इसलिए ये दोनों ही ग्रह सूर्य पर ग्रहण लगा देते हैं और जब कुंडली में सूर्य भी मारक हों तो ये स्थिति और भी दयनीय हो जाती है।

अंश बल

सूर्य राहु की युति में अंश बल भी मायने रखता है कुंडली में पूर्ण रूप से सूर्य ग्रहण दोष बने और राहु का अंश या सूर्य का अंश या फिर दोनों का ही अंश कम हो तो इस दोष का नकारात्मक प्रभाव जीवन में नहीं मिलता है क्योंकि जब किसी भी ग्रह में दम ही नहीं होगा तो वह अपना शुभ या अशुभ फल कहाँ से देगा।

प्रभाव

सूर्य ग्रहण दोष बनने पर इसका नकारात्मक प्रभाव हर समय नहीं मिलेगा। ये दोष अत्यंत विनाशकारी परिणाम जभी दिखा पाएगा जब दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह की महादशा हो और उसमें बचे हुए ग्रह की अंतर्दशा आ जाए।

उपाय

जिस भी प्रकार का आप उपाय करो जैसे दान विधि को अपनाना तो दान सम्बन्धित ग्रह की महादशा या अंतर्दशा में करने से ही अच्छा फल मिलता है जो अत्यधिक प्रभावकारी भी होता है।

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3 thoughts on “सूर्य ग्रहण दोष कुंडली में कैसे बनता है?”

  1. App bhut hosiyar or kabil astrologer Han Prabhu apni life Mai apsey phali Barr sahi or Galat ka Patta Challa kundli Mai Ni bhut logo ko dikhai Lakin koi Ni batta paya Jo apney battaya vakai app good Hou Prabhu Mai apsey millney Mathura aa raha hun uttrakhnd sei sub perivar sahi bs app kuch time dei dijiye

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