Svadhyaya in Hindi मनुष्य महान है और उससे भी महान है उसका बनाने वाला अर्थात् सृजेता। चाहें वह माता-पिता के रूप में हो या ब्रह्म स्वरूप अदृश्य परमात्मा सत्ता के रूप में। पालन और संस्कार जैसे दो महत्वपूर्ण शब्द और जुड़े हैं सृजनहार के साथ। महानता इसी से उद्भूत होती है। अज्ञानता मिटेगी तभी महानता का प्राकट्य होगा। विद्या एवं सेवा का संगम देव संस्कृति का आदर्श है। ऋषि जीवन की गतिविधियों का आधार यही है। इन दोनों में से किसी को किसी से अलग नहीं किया जा सकता। विद्या और सेवा के ये दोनों ही तत्व एक-दूसरे से गुँथे हैं, परस्पर घुले-मिले हैं। स्वार्थपरता और अहंता के विष से छुटकारा और भाव-संवेदना के अमृतपान का विकास ही विद्या है।
शास्त्रकारों ने इसी को विद्ययामृतमश्नुते कहकर परिभाषित किया है। भाव संवेदना के अमरत्व का विकास ही विद्या है। भाव संवेदना के बिना सारी जानकारियां एवं समूची पढ़ाई-लिखाई बेकार है, क्योंकि इससे स्वार्थ व अहम की विषवेल ही उपजेगी और बढ़ेगी। अमरत्व तो विद्या की भाव संवेदना है जो सेवा से बिछुड़कर रह नहीं सकता। संवेदना बढ़ते ही अनायास सेवापरायणता जीवन में आ जाती है। गिरे को उठाने, उठे को चलाने और पीड़ित को अपनाने के लिए अपने आप ही पांव आगे बढ़ने लगते हैं। स्वाध्याय के साथ-साथ स्वस्थ्य रहना अतिआवश्यक है क्योंकि स्वस्थ्य रहना जीवन की पहली आवश्यकता है, उज्जवल भविष्य का आधार है, जीवन का पहला सुख है। अच्छी भूख लगना, गहरी नींद आना आदि।
विषय सूची
स्वाध्याय क्यों?
Svadhyaya in Hindi आज अध्यापक और समाज के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि शिक्षा किसलिए दी जाए? शिक्षा देने का उद्देश्य क्या हो? शिक्षा के उद्देश्य के निर्धारण के पश्चात् ही विद्यार्थियों को पढ़ाए जाने वाले विषयों का निर्धारण सम्भव है। शिक्षा देने का उद्देश्य स्वयं में स्वतंत्र नहीं है अर्थात् किसी एक बिन्दु को लेकर शिक्षा के उद्देश्य का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के जीवन के उद्देश्य से जुड़ा है, यह जीवन का उद्देश्य पुरुषार्थ से संबंधित है इसलिए पुरुषार्थ का निर्धारण होने के बाद ही शिक्षा के उद्देश्य का निर्धारण किया जा सकता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए स्वाध्याय अतिआवश्यक है।
प्राचीनकाल में आश्रमवासी शिष्यों को गुरुजन बोधित करते हुए उपदेश देते हैं सत्यंवद अर्थात् सत्य बोलो। धर्म चर मानवोपयोगी सदाचरण युक्त कर्तव्य कर्म पर ही चलते रहो। तैत्तिरीय उपनिषद के अनुसार स्वाध्यात् मा प्रमदः अर्थात् स्वाध्याय में कभी आलस्य मत करो। इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वाध्याय व्यक्ति के विश्वास का एक अनिवार्य अंग है। स्वाध्याय के द्वारा विविध विषयों का ज्ञानार्जन करके ही विद्यार्थि भावी जीवन के लिए अच्छी तरह तैयार हो पाता है। स्वाध्याय का सुख व्यक्ति को व्यर्थ के विचलन और भटकाव से बचाता है और इससे जीवन की दिशा निर्धारण में उसे मदद मिलती है।
स्वाध्याय कैसे?
स्वाध्याय में अधिक-से-अधिक समय तक पुस्तकें पढ़ते रहना ही काफ़ी नहीं है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुस्तकें विषय के अनुकूल, प्रासंगिक एवं लाभदायक हों। पूरी तत्परता एवं लगन के साथ ही स्वाध्याय किया जाए। स्वाध्याय करते समय कलम तथा नोट बुक भी साथ लेकर बैठना चाहिए। ध्याननीय एवं माननीय बिंदुओं को चिन्ह एवं रेखांकित करके उन्हें नोट कर लिया जाए।
स्वाध्याय के समय समग्र खंड विधि को काम में लाया जाए अर्थात् पूरे प्रकरण को समग्र रूप से पढ़ा जाए उसके बाद उसे खंड या टुकड़ों में पढ़े। इस विधि से जब तक पूरा प्रकरण भलीभाँति याद ना हो जाए या पूरी तरह समझ में ना आ जाए इसी प्रकार अभ्यास करते रहें। यह विधि अधिक प्रभावी एवं कारगर होती है। कुछ बिंदु फिर भी जटिल हैं तो उन्हें पृथक रूप से अंकित करके अपने वरिष्ठ जनों तथा गुरूजनों से पूछ कर स्पस्ट कर लेना चाहिए।
कभी-कभी सरसरी दृष्टि (विहंगम् दृष्टया) से भी स्वाध्याय किया जाता है। आकाश मार्ग से उड़ते हुए जैसे चिड़िया सब जगह सरसरी निगाह दौड़ाती रहती है, कभी-कभी उस तरह भी स्वाध्याय किया जाता है और कभी-कभी जब किसी प्रकरण को अच्छी तरह याद करना होता है तो उसका बार-बार सिंहावलोकन किया जाता है अर्थात् जैसे शेर जंगल में चलते हुए बीच-बीच में पीछे भी देखता हुआ जाता है उसी तरह पाठ को आगे याद करने के साथ-साथ उसको पीछे भी देखते रहना चाहिए।
स्वाध्याय के साथ निरर्थक और अनावश्यक साहित्य के अध्ययन का चस्का कभी ना पालें जैसे कॉमिक्स, व्यर्थ के उपन्यास आदि। अच्छी, उपयोगी, ज्ञानवर्धक पुस्तकों को ही पढ़े। विषय परिवर्तन के लिए अच्छी पत्रिकाएँ तथा नैतिक साहित्य ही पढ़ा जाए। काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् अर्थात् अच्छे सद्गुणी लोगों का समय हमेशा काव्यशास्त्रों के सात्विक विनोद में बीतता है जबकि मुर्ख एवं धूर्त लोग अपने समय को व्यर्थ के विवाद, निद्रा, कलह आदि में बिता देते हैं।
आदर्श विद्यार्थि अपने समय का एक-एक क्षण अच्छे और उपयोगी कार्यों में बिताता है। उसका पूरा समय एक सुंदर समय सारणी के द्वारा बँधा हुआ होता है। समय का सही सदुपयोग ही जीवन की आदर्श कला है। जो समय को नष्ट करता है समय उसको नष्ट कर देता है।
स्वाध्याय की उपयोगिता
अच्छी पुस्तकें एक अच्छी पथ-प्रदर्शक तथा अच्छे मित्र की तरह होती है। अच्छे साहित्य के स्वाध्याय से मन में अच्छी एवं उदार भावनाएं आती हैं। व्यक्ति सत्कर्मों की ओर सहज ही उन्मुख होता है। अच्छे स्वाध्याय से अर्जित सद्ज्ञान के द्वारा मन में सुविचारों का सागर हिलोरे लेने लगता है। कुविचारों के दुष्चक्र से सहज ही मुक्ति मिल जाती है। एक सच्चा स्वाध्यायी व्यक्ति सतत आत्म-निर्माण की दिशा में ही सोचता रहता है। वह अपने प्रतिदिन के कार्य का मूल्यांकन करके यह पता लगाता रहता है कि सुधार की दिशा में मेरे कदम प्रतिदिन कितने आगे बढ़े और अभी आगे कितना और मुझे जाना है।
एक सच्चा स्वाध्यायी हर क्षण जाग्रत रहता है। उसके कानों में उपनिषदों के प्रेरक वचन गूंजते रहते हैं। एक स्वाध्यायी समय का सदा सदुपयोग करके समाज के सम्मान एवं सद्भावना का पात्र बन जाता है। उसमें नित्य खोजी बुद्धि का विकास होता जाता है। इसी कारण वह सही एवं गलत कार्यों के बीच अन्तर समझकर सही निर्णय करने की शक्ति से संपन्न हो जाता है। आत्मविश्वास, वैचारिक दृढ़ता एवं चारित्रिक परिपक्वता के कारण एक सच्चे स्वाध्यायी में कुशल नेतृत्व शक्ति का सहज ही विकास होता जाता है। अभिरुचियों के परिष्कार एवं आदतों के परिमार्जन से वह एक सुयोग्य आदर्श नागरिक के रूप में जाना जाता है।
इस प्रकार स्वाध्याय रूपी कल्प वृक्ष को पाकर एक आदर्श स्वाध्यायी श्रेय, सद्गुण, श्री, कीर्ति, यश, सम्मान सब कुछ सहज ही पा लेता है। जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुंचाने वाला यह पाथेय विद्यार्थि को सारे भौतिक एवं आध्यात्मिक संसाधनों से सुसंपन्न कर देता है। इसीलिए सफल जीवन का बस यही उपाय पढ़े लिखें नित करें स्वाध्याय।
महात्मा गाँधी के पास न सेना थी न शस्त्र थे, केवल एक प्रबल इच्छा शक्ति के आधार पर ही अँग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और जीत हांसिल की। आपके पास तो शस्त्र (subject Matter) है, सेना आपके गुरुजन भी हैं, अब जरूरत है तो केवल प्रबल इच्छाशक्ति की तो अब सोचना क्या है? जोश व होश के साथ पढ़ाई में लगे रहो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मेरे भाई। निश्चित ही जीत आपकी होगी।
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