Navratri ॥ नवरात्रि पूजा का सम्पूर्ण विधान ॥

Navratri की पूजा करने से पहले कम-से-कम 15 दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। ऐसा करना कोई जरूरी नहीं लेकिन अगर आप करते हैं तो जिस उद्देश्य से आप व्रत या पूजा कर रहें हैं उसके सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

श्री दुर्गा पूजा विशेष रूप से वर्ष में दो बार चैत्र व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होकर नवमी तक होती है। देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होने के कारण नवदुर्गा तथा नौ दिन/तिथियों में पूजा होने से नवरात्रि कहा जाता है। चैत्र मास के नवरात्रि वार्षिक नवरात्रि कहलाते हैं जो अप्रैल में होते हैं तथा आश्विन मास के नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाते हैं जो सितंबर माह के अंत में या फिर अक्टूबर माह के आरंभ में होते हैं।

चैत्र माह अर्थात्‌ अप्रैल से हिन्दू वर्ष का आरम्भ होता है इसलिए चैत्र मास के नवरात्रि को वार्षिक नवरात्रि कहते हैं तथा अश्विन मास के नवरात्रि सितंबर-अक्टूबर में पड़ते हैं जिनको शारदीय नवरात्रि कहते हैं क्योंकि यहाँ से शरद ऋतु का आरम्भ होता है और ये नवरात्रि कनागत के समाप्त होते ही आते हैं।

नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with me. इससे पहले कि मैं नवरात्रि के विषय में कुछ बताना प्रारम्भ करुँ, उससे पहले मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि इस लेख को पढ़ने से पहले षोडशोपचार पूजा और अप्रैल नवरात्रि वाले लेख को आप पढ़े ताकि आपको सभी कुछ अच्छे से समझ आए।

निम्नलिखित बिंदुओं में जो बताया गया है वो सब आपको षोडशोपचार पूजा और अप्रैल नवरात्रि में मिलेगा।

चौकी स्थापना
गंगाजल नमन
पवित्र मंत्र
आचमन मंत्र
शिखाबन्धनं
प्राणायामः
अंगन्यास
गुरु को नमन
पृथ्वी नमस्कार मंत्र
धरती माँ से छमा-याचना
पूर्वजों को नमन
क्षेत्रपाल पूजनं
दीप प्रज्वलित मंत्र
संकल्प मंत्र
कलश पूजनं
पंचदेव पूजन
नवग्रह पूजन
Navratri

दुर्गा स्तुति

Navratri में दुर्गा स्तुति को आप प्रत्येक दिन बोल सकते हैं।

द्वार पै पुकारो मैं अहनद बजाय बाजो,
दर्शन देउ श्रीमात अर्जी एक मेरी है।
भक्तन के तारण को निवास भूमि माँहि कीयो, 
पण्डन दुःख खंडन करो करी नहिं देरी है॥
कहाँ लौं  बखानूँ मात भक्त धाँधू उबार दीने, 
मेरी बेर श्रीमात भई क्यों अबेरी है। 
अमुक(अपना नाम) पै बने नहिं मात सेवा तेरी कोई, 
सेवा बिन तारो श्री दुर्गेमात मेरी है॥

दुर्गा जी के 108 नाम

Navratri में निम्नलिखित दुर्गा जी के 108 नाम का स्मरण एक बार अवश्य करें:-

  1. सती
  2. साध्वी
  3. भवप्रीता
  4. भवानी
  5. भवमोचनी
  6. आर्या
  7. दुर्गा
  8. जया
  9. आद्या
  10. त्रिनेत्रा
  11. शूलधारिणी
  12. चित्रा
  13. चन्द्रघण्टा
  14. पिनाकधारिणी
  15. महातपा
  16. मनः
  17. बुद्धि
  18. अहंकारा
  19. चित्तरूपा
  20. चिता
  21. चिति
  22. सर्वमंत्रमयी
  23. सत्ता
  24. सत्यानंद
  25. अनन्ता
  26. भाविनी
  27. भाव्या
  28. भव्या
  29. अभव्या
  30. सदागति
  31. शाम्भवी
  32. देवमाता
  33. स्वरूपिणी
  34. रत्नप्रिया
  35. सर्वविद्या
  36. दक्षकन्या
  37. दक्षयज्ञ विनाशिनी
  38. अपर्णा
  39. अनेकवर्णा
  40. पाटला
  41. पाटलावती
  42. पट्टाम्बरपरीधाना
  43. कलमंजीररंजिनी
  44. अमेयविक्रमा
  45. क्रूरा
  46. सुन्दरी
  47. सुरसुन्दरी
  48. वनदुर्गा
  49. मातंगी
  50. मतंगमुनिपूजिता
  51. ब्राह्मी
  52. माहेश्वरी
  53. ऐन्द्री
  54. कौमारी
  55. वैष्णवी
  56. चामुण्डा
  57. वाराही
  58. लक्ष्मी
  59. पुरुषाकृति
  60. विमला
  61. उत्कर्षिणी
  62. ज्ञाना
  63. क्रिया
  64. नित्या
  65. बुद्धिदा
  66. बहुला
  67. बहुलप्रेमा
  68. सर्ववाहन-वाहना
  69. निशुंभ-शुंभ हननी
  70. महिषासुर मर्दिनी
  71. मधु-कैटभहन्त्री
  72. चण्ड-मुण्ड विनाशिनी
  73. सर्वासुरविनाशा
  74. सर्वदानवघातिनी
  75. सत्या
  76. सर्वास्त्रधारिणी
  77. अनेक-शस्त्रहस्ता
  78. अनेकास्त्रधारिणी
  79. कुमारी
  80. एक कन्या
  81. कैशोरी
  82. युवती
  83. यति
  84. अप्रौढ़ा
  85. प्रौढ़ा
  86. वृद्धमाता
  87. बलप्रदा
  88. महोदरी
  89. मुक्तकेशी
  90. घोररूपा
  91. महाबली
  92. अग्निज्वाला
  93. रौद्रमुखी
  94. कालरात्रि
  95. तपस्विनी
  96. नारायणी
  97. भद्रकाली
  98. विष्णुमाया
  99. जलोदरी
  100. शिवदूती
  101. कराली
  102. अनन्ता
  103. परमेश्वरी
  104. कात्यायनी
  105. सावित्री
  106. प्रत्यक्षा
  107. ब्रह्मवादिनी
  108. सर्वशास्त्रमयी

नवरात्रि पूजा में सावधानी

Navratri पूजा करते समय शरीर, वस्त्र और आसन शुद्ध होना चाहिए। आसन कुश का हो तो सर्वश्रेष्ठ, ऊन का हो तो श्रेष्ठ नहीं तो साफ लाल कपड़े का उत्तम ही होता है। दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए, किसी भी प्रकार का झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। किसी के प्रति कड़वी वाणी नहीं बोलनी चाहिए इसके साथ हृदय अर्थात्‌ आंतरिक भाव भी शुद्ध होने चाहिए।

मन में किसी के प्रति बुरी भावना नहीं होनी चाहिए। खाने-पीने के नियम का पालन करना चाहिए। शुद्धता और सात्विकता का ध्यान पूर्ण नवरात्रि में रहे क्यों न आप एक नवरात्रि ही व्रत रहें। बासी खाना वेशक व्रत का ही क्यों न हो, भारी खाना, झूठा खाना क्यों न स्वयं ने ही एक बार खाकर रख दिया हो तथा अन्य के घर खाना भले ही व्रत का क्यों न हो नहीं खाना चाहिए।

नवरात्रि की पूजा में ब्रह्मचर्य के व्रत को धारण करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए तथा रात में ज़मीन पर ही सोना चाहिए। नकारात्मक भावना रखने वाले व्यक्ति से संपर्क नवरात्रि में समाप्त कर देना चाहिए।

किसी कामना की पूर्ति के लिए नवरात्रि में विधि का पालन करना ही चाहिए। निष्काम आराधना के लिए विधि-विधान की उतनी आवश्यकता नहीं होती। कुलमिलाकर इतना अवश्य ध्यान रखें कि कुछ भी न करने से कुछ करना सदा ही अच्छा होता है।

देवी की महिमा

ओउम् अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकी स्त्रोत मंत्रस्य नारायण ऋषि, अनुष्टुप् छन्दः श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः। ओउम् ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥1॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जनतोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्रय दुःख भयहारिणी का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचिंता॥२॥

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥३॥

शरणागत दीर्नापरित्राणा परायेण। सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणि नमोऽस्तुते॥४॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्यस्त्राहिनो देवी दुर्गे देवी नमोऽस्तुते॥५॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिताह्याश्रयतां प्रयान्ति॥६॥

सर्ववाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद् वैरी विनाशनम्॥७॥

अर्थ
भगवती बोलीं- मैं रुद्र, वसु, आदित्य और विश्व देव रूप से सर्वत्र विचरती हूँ। मित्र, वरुण, इंद्र, अग्नि और अश्विनी कुमारों को भी मैंने ही धारण कर रखा है॥१॥

सोम, याग, विश्वकर्मा, सूर्य और ईश्वर नाम के देव मैंने ही धारण कर रखें हैं। जो देवताओं के उद्देश्य से प्रचुर हवियुक्त सोमयागादि का अनुष्ठान करते हैं उन यजमानों का फल मुझमें विद्यमान है॥२॥

इस ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री पार्थिव और अपार्थिव देने वाली मैं ही हूँ। ब्रह्म साक्षात् सम्वितज्ञानरूपा मैं हूँ। यह ज्ञान ही सब उपासनाओं का मूल है। मैं ही अन्त्यज जीवों में प्रविष्ट हूँ। देवता इस प्रकार अनेक भावों से मेरी उपासना करते हैं॥३॥

जीव जो अन्नादि खाद्य द्रव्य भक्षण करता है, देखता है व प्राण धारण करता है यह सब क्रियाएँ मेरे द्वारा ही सिद्ध होती हैं। जो मुझको इस दृष्टि से नहीं देख सकते वे नाश को प्राप्त होते हैं। हे सौम्य! तुम से जो तत्व कहे हैं उन्हें श्रद्धापूर्वक सुनो॥४॥ 

मैं यह उपदेश स्वयं दे रही हूँ। देवता और मनुष्यों द्वारा यही सेवित है। मैं जिसे चाहती, उसे उच्च पद प्रदान करती हूँ, ब्रह्म बनाती हूँ तथा ऋषि और सर्वज्ञान सम्पन्न सुमेधा बनाती हूँ॥५॥ 

रुद्र के लिए धनुष खेंचती हूँ। इस प्रकार मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ॥६॥ 

मेरी आत्मा ने जगत्पिता को उत्पन्न किया है। इसके ऊपरी भाग में आनंदमय कोष के अंदर विज्ञानमय कोष में मेरा कारण अवस्थित है। मैं समस्त भुवनों में प्रविष्ट होकर रहती हूँ। स्वर्गलोक में मेरे शरीर से स्पृष्ट हैं, यही तो मेरी महिमा है॥७॥

माँ से प्रार्थना

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

ब्रह्मरूपे सदानन्दे परमानन्द स्वरूपिणी। द्रुत सिद्धिप्रदे देवी, नारायणि नमोऽस्तुते॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायण। सर्वस्यार्त्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तुते॥

करूणामयि, जगज्जननी, आन्नद व स्नेहमयी माँ! आपकी सदा जय हो। हे अम्बे! पंखहीन पक्षी और भूख से पीड़ित बच्चे जिस प्रकार अपनी माँ की राह देखते हैं उसी प्रकार मैं आपकी दया की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। हे अमृतमयी माँ! आप शीघ्र ही आकर मुझे दर्शन दें अथवा सदा ही मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखें। मैं आपका रहस्य जान सकूँ ऐसी बुद्धि मुझे प्रदान करें।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजंतोः। स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि॥

दारिद्रयदुः खभयहारिणी का त्वदन्या। सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्यायत॥

Navratri

अर्थ- हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर संसार के तमाम प्राणियों का भय हर लेती हैं और शांत चित्त से चिन्तन करने पर परम कल्याणकारी बुद्धि प्रदान करती हैं। दरिद्रता, दुःख और भय हरने वाली आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा दया से द्रवीभूत रहता है।

पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवती का ध्यान करते हुए इस मंत्र का अनेक बार पाठ करते हुए सोना चाहिए। सुबह उठते समय भी चिंतन करना चाहिए तथा कुछ समय तक ध्यान में ही बैठे रहना चाहिए। जिस महत्व के द्वारा इस समस्त जीव का नियमन हो रहा है उसे गुप्त मन या सर्वव्यापक मन कहते हैं। इसका संचालन करने वाली शक्ति है। इस शक्ति को श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन उपासना करने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

साकार रूप में दुर्गे माँ ही उस विलक्षण शक्ति का स्वरूप है ऐसा मानना चाहिए और माँ के सामने अपनी मनोकामनाओं को प्रस्तुत कर देना चाहिए। शुद्ध मनोकामना और शुद्ध भाव होने पर उपासना करते रहने से साधक की इच्छापूर्ति जल्द ही हो जाती है। विद्या, धन, बल, ऐश्वर्य ये सभी इस पराशक्ति से उत्पन्न होते हैं। इस महाशक्ति की आराधना से आश्चर्यजनक शक्ति जाग्रत होती है और असाध्य कार्य भी साध्य बन जाते हैं। संसार में जीवित रहने के लिए शक्ति का संचय करो और सदा यही भाव दृढ़ रखो कि आप सदैव महाशक्ति की गोद में हैं और समस्त शक्तियों का भंडार आपके अंदर है।

जप मंत्र

ओउम् क्रीं कालिकायै नमः

क्रीं माता काली का बीजाक्षर है। यदि चित्त एकाग्र करके और पवित्रता के साथ इस मंत्र का 5 लाख बार जाप किया जाए तो आपकी विशेष मनोकामना पूर्ण होती है जैसे पुत्र धन की प्राप्ति होना।

ओउम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चैः

यह माता भगवती देवी का परम प्रसिद्ध मंत्र है। चंडी अथवा दुर्गा सप्तशती में यह मंत्र दिया हुआ है। बंगाल में अधिकतर लोग इस मंत्र का जाप करते हैं और तंत्रोक्त क्रियाएं करते हैं। इस मंत्र का भी पांच लाख जाप पूर्ण करके अनुष्ठान करने पर अर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है।

ओउम् दुं दुर्गायै नमः

‘दु’ अथवा ‘मृदु’ श्री दुर्गा का बीजाक्षर है। इस मंत्र का भी 5 लाख बार जाप करना चाहिए ऐसा करने से माता दुर्गा की विशेष कृपा साधक पर सदा ही बनी रहती है।

माँ से क्षमा-याचना

परमेश्वरी! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्त्रों अपराध होते हैं “यह मेरा दास है” – ऐसा समझकर मेरे उन अपराधों को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो। परमेश्वरी! मैं आवाह्न नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग नहीं जानता। क्षमा करो। देवी! सुरेश्वरी! मैंने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है वह सब आपकी दया का पात्र हूँ। जैसा चाहो करो। देवी! परमेश्वरी! अज्ञान से, भूल से अथवा बुद्धि भ्रांत होने के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ। सच्चिदानंदस्वरूपा परमेश्वरी जगत्माता कामेश्वरी! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझ पर प्रसन्न रहो।

कन्या भोजन

साधक को देवी जी की अतिशय प्रसन्नता के लिए नवरात्रि में अष्टमी अथवा नवमी को कुमारी कन्याओं को अवश्य खिलाना चाहिए। इन कुमारिओं की संख्या 9 हो तो अत्युत्तम, शक्ति न होने पर दो ही सही। किंतु भोजन करने वाली कन्याएँ 2 वर्ष से कम हो तो सर्वोत्तम नहीं तो 10 वर्ष से ऊपर नहीं होनी चाहिए।

भोजन कराने से पहले कन्याओं को आसन देकर उनको तिलक करते हुए नमस्कार करना चाहिए। नमस्कार मंत्र कुछ इस प्रकार हैं:-

  1. कुमार्य्यै नमः
  2. त्रिमूर्त्यै नमः
  3. कल्याण्यै नमः
  4. राहिणौ नमः
  5. कालिकायैं नमः
  6. चण्डिकायै नमः
  7. शाम्भव्यै नमः
  8. दुर्गायै नमः
  9. सुभद्रायै नमः

कन्याओं में हीनांगी, अधिकांगी, कुरूपा नहीं होनी चाहिए। पूजन करने के बाद जब कुमारी भोजन कर लें तो उनसे अपने सिर पर अक्षत(चावल) छुड़वायें और उन्हें दक्षिणा दें। इस तरह करने पर महामाया भगवती अत्यंत प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण कर देती हैं।

नमस्ते! मैं ज्योतिष विज्ञान का एक विद्यार्थि हूँ जो हमेशा रहूँगा। मैं मूलतः ये चाहता हूँ कि जो कठिनाइयों का सामना मुझे करना पड़ा इस महान शास्त्र को सीखने के लिए वो आपको ना करना पड़े; अगर आप मुझसे जुड़ते हैं तो ये मेरा सौभाग्य होगा क्योंकि तभी मेरे विचारों की सार्थकता सिद्ध होगी।

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