Brihaspativar Vrat Katha in Hindi बृहस्पतिवार को उपवास रखने के दौरान सुनी अथवा पढ़ी जाती है। आप बृहस्पतिवार व्रत कथा को सुन के अपने भाव को विष्णु भगवान के प्रति और भी बढ़ा सकते हैं क्योंकि बृहस्पति देव के आराध्य विष्णु भगवान हैं।
नमस्ते! राम राम Whatever you feel connected with me. आज हम बृहस्पतिवार व्रत कथा को ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे इसलिए बिना समय को गवांय बृहस्पतिवार व्रत कथा को आरम्भ करते हैं।
विषय सूची
बृहस्पतिवार व्रत कथा की रूपरेखा
बृहस्पतिवार व्रत कथा काल्पनिक हो सकती है लेकिन विष्णु भगवान के प्रति भाव को प्रखर करती है तो बहुत समय पहले की बात है; भारत में एक राजा राज्य करता था। वो राजा बड़ा ही प्रतापी और दानवीर था। वह प्रत्येक दिन मंदिर में जाता था तथा ब्राह्मणों और बुजुर्गों की सेवा किया करता था।
उसके दरवाजे से कोई भी खाली हाथ लौट कर नहीं आता था। वह राजा प्रत्येक बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव का व्रत रखा करता था। वह गरीबों की सहायता करता था किन्तु ये सब राजा के कर्म उसकी पत्नी को अच्छे नहीं लगते थे। राजा की पत्नी किसी भी प्रकार का दान भी नहीं देती थी तथा ना ही किसी प्रकार की कोई पूजा किया करती थी और ऐसा करने को अपने पति अर्थात् राजा से भी कहा करती थी।
बृहस्पति देव का आगमन
Brihaspativar Vrat Katha in Hindi में अब बृहस्पति देव का आगमन होगा। एक दिन राजा अकेले ही जंगल गए हुए थे, महल में रानी और दासी ही रह गयीं थी। राजा के जाने पर बृहस्पति देव एक साधु का रूप रख कर राजा के घर भिक्षा मांगने गए। साधु का रूप रखे हुए बृहस्पति देव रानी से बोले भिक्षाम् देही।
रानी साधु महाराज से बोली है महाराज रोज-रोज के इस दान-पुण्य से में परेशान हो गई हूँ। इस कार्य के लिए तो मेरे पति देव ही बहुत हैं। कृपया करके आप हमारा सारा धन नष्ट कर दें ताकि मैं आराम से रह सकूँ। साधु महाराज बोले है देवी! तुम सा विचित्र मैंने आज तक नहीं देखा। देवी संतान में पुत्र और सम्पत्ति में धन तो सभी को प्रिय है; इनसे अलग होकर तो कोई भी प्राणी जीना भी नहीं चाहता। पापी मनुष्यों को भी धन और संतान की चाहत होती है।
- सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का सत्य जानने के लिए वीडियो देखें
बृहस्पति देव का रानी को उपदेश
अतः देवी आप ऐसा क्यों सोचती हो आपके पास धन अधिक है तो खाली पेट व्यक्तियों को भोजन कराओ, जरूरत मंद व्यक्तियों को अन्न का दान दो, प्यासे को प्याऊ लगाकर पानी पिलाओ, ब्राह्मणों का सत्कार करो, मान-पक्षों को मनोनुसार धन दो। गरीब व्यक्तियों की कुंआरी कन्याओं के विवाह के लिए धन दो तथा उनका विवाह कराओ। भ्रमण कर रहे व्यक्तियों के विश्राम के लिए निःशुल्क धर्मशाला बनाओ। मंदिरों का निर्माण कराओ आदि अनेकों ऐसे धर्म के कार्य हैं जिनको आप धन की अधिकता होने पर कर सकते हैं।
इस प्रकार के कर्मों से आपके मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी तथा आपका नाम विश्व विख्यात होगा। इसके साथ-साथ जानें-अनजाने में किए हुए इस जन्म के तथा पुनर्जन्म के सभी पापों का भार समाप्त होगा।
साधु का रूप रखे हुए बृहस्पति देव ने रानी को समझाने के लिए इसी प्रकार के कई धर्मोंपदेश दिए किन्तु रानी के मन की मलिनता ने इन सब बातों को ना स्वीकारा और साधु महाराज से बोली ये धर्म के उपदेश देने के लिए मेरे पति देव ही बहुत हैं। कृपया करके आप धर्म का पाठ ना पढ़ाओ तथा जैसा मैंने कहा है वैसा करो क्योंकि मुझे ऐसे धन की कोई आवश्यकता नहीं जिससे मैं अपने अलावा दूसरों का भी पेट पालूं तथा जिस धन को रखने उठाने में ही मेरा सारा समय समाप्त हो जाए।
रानी की इच्छा पूर्ति
बृहस्पति देव के बार-बार भरसक प्रयास करने पर भी जब रानी के मुख से बार-बार कटु वचन निकलते तो अंत में वृहस्पति देव ने कहा—– “हे देवी! अब तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो ऐसा ही होगा किन्तु जैसा अब मैं कह रहा हूँ वैसा ही करना”।
बृहस्पतिवार को ही घर में पौंछा लगाना, घर की साफ-सफाई बृहस्पतिवार को ही करना, बृहस्पतिवार को ही घर की गंदगी बाहर निकालना। अपने बालों को धोना (स्त्री के लिए), तथा राजा से कहना कि वो बृहस्पतिवार को ही बाल साफ करे अर्थात् दाड़ी बनाए, भोजन में मांस-मदिरा का सेवन करे और अपने कपड़े अन्य से धुलवाना। इस प्रकार केवल सात बृहस्पतिवार करना तो है देवी आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा; ऐसा कहकर वो साधु महाराज चले गए।
रानी ने वैसा ही किया जैसा कि साधु महाराज के रूप में बृहस्पति देव ने कहा था। रानी को ऐसा करते हुए केवल तीन बृहस्पतिवार ही गुजरे थे कि राजा का समस्त धन नष्ट हो गया और राजा का परिवार दोनों समय का भोजन करने के लिए तरसने लगा और संसार के सुखों से वंचित रहने लगा।
तब राजा ने रानी से कहा कि देवी तुम यहीं रहो मैं किसी अन्य जगह जाकर काम करने की तलाश करता हूँ क्योंकि यहाँ मुझे सभी जानते हैं इसलिए यहाँ मैं कोई कार्य भी नहीं कर सकता। राजा ने कहा देवी अपने देश (जहाँ हम रह रहे हैं) में चोरी करना तथा परदेश (अपने गांव से दूसरा गांव या शहर) में भीख मांग कर खाना एक बराबर है, ऐसा कहते हुए राजा परदेश चला गया।
राजा का परदेश गमन
परदेश में जाकर राजा जंगल से लकड़ी लाकर शहर में बेचा करता था। इस तरह राजा अपने जीवन का निर्वहन करने लगा। इधर रानी और दासी दुखी रहने लगे, जिस रोज भोजन मिलता उस दिन भोजन कर लेते अन्य दिन भोजन न मिलने पर भूखे पेट ही सोना पड़ता था। ऐसा करते-करते रानी और दासी अत्यधिक परेशान हो गए एक समय तो ऐसा आया कि लगातार 7 दिन तक भोजन ना मिलने के कारण रानी और दासी को भूखे ही सोना पड़ा तब रानी ने दासी से कहा—- हे दासी! यहां पास के ही नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है।
दासी से आग्रह
दासी तुम वहां जाओ और 25 किलो के आसपास अनाज मांग लाओ जिससे कुछ समय के लिए गुजारा हो जाएगा। दासी ने रानी की बात मानी और वहां चली गयी लेकिन रानी की बहिन उस दिन बृहस्पति देव का पूजन कर रही थी। जब दासी ने रानी की बहिन को देखा तो बोली— रानी मुझे आपकी बहिन ने भेजा है मुझे लगभग 25 किलो अनाज दे दो। इस प्रकार दासी ने रानी से कई बार कहा लेकिन रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि रानी उस समय बृहस्पतिवार व्रत कथा सुन रही थी।
उत्तर ना मिलने पर दासी बहुत दुखी हुई और गुस्सा भी बहुत आया लेकिन बिना कुछ कहे वहां से वापिस आ गई और वापिस आकर रानी से बोली—-रानी आपकी बहिन तो बड़ी ही घमंडी है। उसने मेरी बात का कोई उत्तर ही नहीं दिया। वो छोटे लोगों से बात भी नहीं करती तभी तो उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं इसलिए मैं वहां से वापिस आ गई। रानी बोली—– उसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते है तब कोई सहारा नहीं देता। आपत्ति के समय में ही जो साथ दे वही व्यक्ति अपना है, आपत्ति काल में ही अच्छे-बुरे का पता चलता है।
भाग्य का दोष
खैर! अब जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा। यह सब हमारे भाग्य का दोष है। इधर उस रानी की बहिन ने सोचा कि मेरी बहिन की दासी आई थी किन्तु बृहस्पतिवार व्रत कथा सुनने के कारण मैं उससे कुछ बोल ना पाई। यह सब दासी ने मेरी बहिन को बताया होगा तो मेरी बहिन मेरे बारे में क्या सोच रही होगी वो बहुत दुखी हुई होगी। यह सब सोच-सोचकर रानी की बहिन बहुत दुखी होने लगी और निर्णय लिया कि कल भोर होते ही अर्थात् सवेरे ही अपनी बहिन के पास जाऊँगी।
बहिन का आगमन
जब अगले दिन रानी की बहिन रानी के घर पहुंची तो बहिन से कहा—- “बहिन मुझे माफ करना मैंने तुम्हारी दासी को कोई जवाब नहीं दिया यहां तक कि उसकी तरफ देखा भी नहीं वो इसलिए कि मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी और जिस समय दासी पहुंची उस समय में बृहस्पति देव का पूजन कर रही थी तथा बृहस्पतिवार व्रत कथा को सुन रही थी। बृहस्पतिवार व्रत कथा को सुनते समय ना उठते हैं ना ही किसी से बात करते हैं इसलिए मैं आपकी दासी से कुछ ना बोल पायी”।
कहो दासी क्यों गयी थी। रानी बोली—-बहन! हमारे पास खाने को कुछ नहीं है। मैंने दासी को तुम्हारे पास कुछ अनाज लेने को भेजा था जिससे हमारे कुछ दिन आराम से गुजर सके, अब ऐसी हमारी हालत क्यों है तुम्हें सब पता है क्योंकि तुमसे कोई बात छुपी तो नहीं है हमारी। बहिन बोली रानी बृहस्पति देव सभी की मनोकामना पूरी करते हैं बृहस्पतिवार व्रत कथा को सुनते समय तुम्हारी दासी मेरे घर पहुंची थी। इसलिए तुम्हारी भी मनोकामना पूरी हुई होगी देखो शायद घर में कहीं अनाज रखा हो।
रानी की इच्छा पूर्ण
रानी बहिन के कहने के अनुसार जब घर के अंदर गई तो देखने पर एक घड़े में रानी को अनाज भरा हुआ मिला। यह सब देख कर रानी और दासी बहुत खुश हुए। तब दासी के मन में एक विचार आया जो उसने रानी से कहा, “देखो रानी हमें अनाज नहीं मिलता तो हम वैसे भी व्रत ही रहते हैं, आपको भलीभाँति पता है कि पिछले सात रोज हमने केवल पानी पीकर ही गुजारा किया है”। रानी बोली हाँ दासी कह तो तुम सही रही हो पर मूलतः कहना क्या चाहती हो वो तो बताओ।
बृहस्पतिवार व्रत कथा का पूछना
दासी बोली रानी क्यों ना अपनी बहिन से आप भी बृहस्पतिवार व्रत कथा कैसे सुनते हैं तथा बृहस्पति देव का बृहस्पतिवार को कैसे व्रत रहते हैं का सम्पूर्ण विधान पूछ लो ताकि हम भी बृहस्पति देव का पूजन कर लिया करें क्योंकि व्रत रहना हमारे लिए इस समय कोई बड़ी बात नहीं है। दासी के इस प्रकार अनुग्रह करने पर रानी मान गयी और अपनी बहिन से बोली—- “बहिन हमें भी बृहस्पतिवार व्रत कथा की विधि बतलाओ ताकि हम भी यह व्रत रह लिया करें”।
बहिन ने कहा—- बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल अर्थात् दौल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें, दीपक प्रज्वलित करें, पीला भोजन करें, पीले ही वस्त्र धारण करें तथा बृहस्पतिवार व्रत कथा को ध्यान पूर्वक सुनें। इस प्रकार प्रत्येक बृहस्पतिवार करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अन्न-पुत्र-धन देते हैं।
बृहस्पतिवार व्रत कथा सुनने का निश्चय
रानी और दासी ने निश्चय किया कि अब से प्रत्येक बृहस्पतिवार को हम भी ऐसा ही करेंगे तथा ऐसा ही किया। कुछ ही बृहस्पतिवार बीते थे कि रानी के पास फिर से धन आ गया। रानी फिर से आलस्य करने लगी तब दासी ने कहा रानी आप पहले भी इसी प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, दान-पुण्य का कार्य तुमसे होता नहीं था इसी कारण आपका सभी धन नष्ट हो गया। अब विष्णु भगवान की कृपा से हमें पुनः धन मिला है तो पुनः तुम्हें आलस्य होता है। बड़ी परेशानियों के बाद हमने ये धन पाया है इसलिए अब हमें दान-पुण्य करना चाहिए।
रानी अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़े तथा तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो। तब रानी ने कहा हाँ दासी तुम सत्य कह रही हो। तब रानी ने शुभ कर्म करना प्रारम्भ किए उनका यश फैलने लगा। एक दिन रानी और दासी विचार करने लगे कि ना जाने राजा किस प्रकार होंगे, उनकी क्या दशा होगी कुछ पता नहीं। तब भगवान से रानी और दासी ने प्रार्थना की कि हमारे राजा को किसी भी प्रकार हमारे पास भेज दो।
राजा का विलाप
इधर राजा हर रोज की तरह लकड़ी बिन कर लाता और शहर में जाकर बेच देता जिससे वो एक समय का ही भोजन कर पाता था। आज भी राजा लकड़ी बीनने जंगल गया और बीनते-बीनते अपने पुराने दिनों को याद करने लगा, याद करते-करते अचानक से उसे रोना आ गया और एक जगह पर बैठकर रोने लगा तभी साधु रूप रखकर बृहस्पति देव आए और बोले—-हे लकड़हारे! तुम क्यों रोते हो तुम्हें क्या परेशानी है।
राजा बोला—– हे साधु महाराज! आपसे क्या छुपा है आपको तो सब पता है और राजा ने साधु को अपनी इस तरह दशा होने की सभी बात बता दी। साधु बोले अब परेशान ना हो तुम बृहस्पतिवार का व्रत रहो और बृहस्पतिवार व्रत कथा सुनो तथा केले की जड़ में इस तरह विष्णु भगवान का पूजन करो। तुम्हारा सब-कुछ सही हो जाएगा। जैसे तुम पहले थे वैसे ही पुनः हो जाओगे।
राजा बोला साधु जी मेरे पास इतना भी पैसा नहीं बचता कि मैं एक समय भोजन करने के पश्चात् अगले दिन का भी भोजन कर पाऊँ फिर मैं बृहस्पति देव का पूजन करने के लिए सामान कहाँ से ला पाऊँगा। तब बृहस्पति देव अर्थात् साधु बोले कि तुम बृहस्पतिवार को लकड़ी बेचने शहर जाओ तुम्हें हर रोज से दोगुना धन प्राप्त होगा जिससे तुम भोजन भी कर पाओगे और पूजा करने के लिए सामान भी ला पाओगे।
राजा बोला साधु जी यह सब तो ठीक है लेकिन मुझे बृहस्पति देव की कहानी नहीं पता फिर मैं कैसे इस पूजा को सम्पन्न कर पाऊँगा। साधु बोले ठीक है तो फिर सुनो बृहस्पति देव की कहानी——–“जो अगले अध्याय में मिलेगी आपको”।
1 thought on “Brihaspativar Vrat Katha in Hindi”