Vipreet Rajyoga लगभग 90% कुंडली में बनता है लेकिन कार्य सिर्फ 10% कुंडलियों में ही करता है। क्या आप जानते हो ऐसा क्यों? लेकिन जिसकी कुंडली में कार्य करता उसके साथ अचानक कुछ भी हो सकता है।
नमस्ते! राम-राम Whatever you feel connected with me. मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आपका Kundali Kaise Dekhe सीरीज के इस अध्याय Vipreet Rajyoga में।
विषय सूची
विपरित राज योग के प्रकार
Vipreet Rajyoga तीन प्रकार के होते हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है:-
- हर्ष विपरित राज योग :- लग्न कुंडली के 6H के राशि स्वामी अगर 6H, 8H या फिर 12H में हो तो इस प्रकार का विपरित राज योग बनता है। इस प्रकार के राजयोग को कठिन विपरित राज योग के नाम से भी जाना जाता है।
- सरल विपरित राज योग :- इस प्रकार के राजयोग का निर्माण लग्न कुंडली में जब होता है जब लग्न कुंडली के 8H की राशि के मालिक 6H, 8H या फिर 12H में विराजित होते हैं।
- विमल विपरित राज योग :- यह विपरित राज योग का अंतिम प्रकार है। लग्न कुंडली के 12H के राशि स्वामी जब 6H, 8H या 12H में चले जाते हैं तब इस तरह के राजयोग का निर्माण होता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह राजयोग लग्न कुंडली के त्रिक भावों से ही बनता है लेकिन जैसा उपर अभी बताया केवल वैसा ही हो जाने से इस राजयोग का निर्माण नहीं हो जाता है। इसके लिए भी कुछ नियम है जिनको अब हम विस्तार से समझेंगे।
विपरित राज योग बनने के नियम
Vipreet Rajyoga के जितने नियम यहाँ बताये गए हैं उनको हम अच्छी तरह एक-एक करके समझेंगे।
- लग्नेश की स्थिति अच्छी हो वह लग्न कुंडली में योगकारक हो साथ-साथ बलशाली भी हो लेकिन लग्न दोष ना हो।
- आपकी लग्न कुंडली में जो भी ग्रह विपरित राजयोग बना रहा है वह ग्रह सूर्य से अस्त ना हो।
- लग्नेश नीच का ना हो अगर नीच का है भी तो उसका नीच भंग अवश्य हो।
- लग्नेश सूर्य से अस्त ना हो इसके साथ वह केंद्र में हो तो और भी उचित है।
- लग्नेश अगर केंद्र में जाता है तो विपरित राजयोग की स्थिति थोड़ी अच्छी हो जाती लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि किसी अन्य भाव में लग्नेश के जाने से यह राजयोग काम नहीं करता।
- लग्नेश का डिग्री बल विपरित राजयोग बनाने बाले ग्रह से अधिक हो ऐसा ना होने पर लग्नेश को बलशाली करना चाहिए।
- लग्नेश अगर सूर्य ग्रह हो तो कुंडली में सूर्य ग्रहण ना हो।
- लग्नेश अगर चंद्र हो तो कुंडली में अमावस्या दोष, केमद्रुम दोष तथा चंद्र ग्रहण ना हो।
- मंगल के लग्नेश होने पर अंगारक दोष का निर्माण ना हो।
- बुध के लग्नेश होने पर लग्न कुंडली में केंद्राधिपति दोष का निर्माण नहीं होना चाहिए।
- अगर बृहस्पति लग्नेश हो तो गुरु चांडाल दोष ना हो।
- इसी प्रकार अंत में अगर लग्न कुण्डली में शनि लग्नेश हो तो फिर कुंडली में विष दोष का निर्माण नहीं होना चाहिए।
बेहतर समझने के लिए विपरित राजयोग का यह विडियो भी देख सकते हैं।
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देखा ना आपने इतना आसान नहीं है विपरित राजयोग का बनना इसीलिए ही लेख के आरम्भ में कहा था कि यह राजयोग बनता तो 90% कुंडलियों में है लेकिन कार्य सिर्फ 10% कुंडली में ही करता है। दरअसल, कार्य इसीलिए करता है 10% कुंडली में क्योंकि वास्तव में बनता ही उन्हीं 10% कुंडलियों में है।
और हम एकदम आसानी से कह देते हैं कि मुबारक हो आपकी कुंडली में विपरित राजयोग का निर्माण हो रहा है और वह इस समय फल देगा। ना जाने कितनी बार समय आया और कितनी बार गया पर विपरित राजयोग का फल ना आया। 😄
कहना पड़ता है क्योंकि हमें विपरित राजयोग के बारे में केवल इतना ही पता है जितना कि इस लेख में उपर विपरित राज योग के प्रकार में बताया। किसी भी कुण्डली को देखा उसमें पाया त्रिक भावों का मालिक त्रिक भाव में ही स्थित है तो यह विपरित राज योग है।
ऋतु आयीं, ऋतु गयीं पर ऋतु फल ना मिला फिर हम youtube पर जाते हैं Google पर आते हैं और विपरित राजयोग के बारे में खोजते हैं। इतनी पढ़ाई तो अपनी पढ़ाई को पढ़ने में ना करी जितनी कि विपरित राजयोग को पढ़ने में करी है। खैर! अब हम कुछ उदाहरण से समझते हैं विपरित राजयोग को उसके बाद इस राजयोग के तहत किस प्रकार का फल मिलता है उस पर चर्चा करेंगे।
विपरित राज योग के उदाहरण
Example-1
यह तुला लग्न की कुंडली है जैसा कि आपको ग्राफ से ही पता चल रहा है। 1H में जो नंबर लिखा होता है उस नंबर की जो राशि होती है उस राशि के जो स्वामी होते हैं वही लग्नेश होते हैं इतना तो आपको पता ही होगा इसमें कोई संदेह नहीं। तो इस लग्न कुंडली में 1H में 7 नंबर लिखा है जोकि तुला राशि होती है और तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं इसी कारण लग्नेश शुक्र हुए।
शुक्र की स्थिति अच्छी है, शुक्र केंद्र में हैं, शुक्र का डिग्री बल अच्छा है। overall लग्नेश के Point of View से शुक्र पास हुए। अब जैसा कि उपर बताया था कि विपरित राज योग के लिए हमें केवल लग्न कुंडली का 6H-8H-12H देखना है तो चलो यहां भी देखते हैं।
यहाँ 6H में 12 नंबर लिखा है अर्थात् मीन राशि और मीन राशि के स्वामी होते हैं बृहस्पति तो बृहस्पति इस लग्न ग्राफ में 6H में नहीं है और ना ही 8H में है लेकिन 12H में विराजित हैं। अब बृहस्पति की स्थिति देखनी है।
बृहस्पति के साथ गुरु-चांडाल दोष का निर्माण नहीं हो रहा है ना ही बृहस्पति नीच के हैं, ना ही बृहस्पति सूर्य से अस्त हैं। बृहस्पति का डिग्री बल लग्नेश से कम भी है क्योंकि शुक्र पूर्ण युवा अवस्था में है और बृहस्पति प्रौढ अवस्था में।
कुलमिलाकर बृहस्पति भी सभी Points से पास हो रहें हैं। तो अब हम कह सकते हैं कि इस जातक की कुंडली में विपरित राज योग पूर्ण रूप से बन रहा है। ये जातक at the end Multi Talented Person बनेगा, लेखन कला में महारत हांसिल करेगा, अपने लेखन कला से अपने ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाएगा तथा अपने ज्ञान से अपार धन संपदा का मालिक भी बनेगा।
Example-2
इस कुंडली में लग्नेश बृहस्पति होते हैं जोकि 12H में चले गए इसलिए अब यहां लग्न दोष का निर्माण हो गया साथ में केंद्राधिपति दोष भी बन गया। अतः अब हमें विपरित राज योग देखने के लिए आगे बढ़ना ही नहीं है क्योंकि यहां लग्नेश ही फेल हो गए।
लेकिन अगर ये व्यक्ति लग्नेश और चंद्र का समय रहते उचित उपाय कर ले तो अवश्य ही एक समय के बाद विपरित राज योग कार्य करने लगेगा क्योंकि यहां चंद्र Vipreet Rajyoga बना सकते हैं। वैसे यहाँ लक्ष्मी-नारायण योग है अगर विपरित राज योग का उपाय ना भी किया जाए तब भी ये जातक अपार धन कमाएगा वो भी कई प्रकार से।
खैर, कुण्डली का विश्लेषण नहीं करना यहाँ; अभी हमें Vipreet Rajyoga को समझना है।
Example-3
इस कुंडली के मालिक सूर्य हैं। यहाँ विपरित राजयोग मकर राशि के स्वामी शनि बना सकते हैं, मीन राशि के स्वामी बृहस्पति बना सकते हैं तथा कर्क राशि के स्वामी चंद्र बना सकते हैं। अभी हम सभी का एक-एक करके विश्लेषण करेंगे और समझने का प्रयास भी करेंगे।
सूर्य डिग्री बल के अनुसार इस कुंडली में बाल्यावस्था के हैं इसलिए इस point of view से थोड़ा सा weak point है। लेकिन सूर्य उच्च अवस्था में है वो भी अपने ही कारक ग्रह 9H में इसलिए यहाँ सूर्य को बल मिल गया लेकिन राहु सूर्य ग्रहण बना रहें हैं जो गलत है किन्तु राहु मृत अवस्था के हैं जो बहुत अच्छा है। सूर्य ग्रहण बनने के बाद भी अपना दुष्परिणाम नहीं दे पाएगा।
अब बात करें शनि की जो विपरित राजयोग का निर्माण कर रहे हैं लेकिन वो भी मृत अवस्था में है। इसलिए इस कुंडली में अगर शनि का उपाय किया जाए तब यह शनि का विपरित राजयोग कार्य करेगा। अभी बना तो है लेकिन फल देने की अवस्था में नहीं है। एक तरह से बिना दांत बाले को बादाम मिल गए।
अब आते हैं बृहस्पति की तरफ, बृहस्पति 8H में स्वराशि होकर विपरित राजयोग का निर्माण कर रहे है लेकिन वह भी मृत अवस्था में है। इसलिए यहां बृहस्पति के द्वारा बना हुआ विपरित राजयोग का फल लेने के लिए बृहस्पति का उपाय किया जाए तो यह राजयोग भी कार्य करेगा।
अब बात करें चंद्र के बारे में जिनकी राशि कर्क 12H में उपस्थित तो है लेकिन चंद्र त्रिक भाव में नहीं है इसलिए विपरित राजयोग में चंद्र का कोई औचित्य नहीं।
अभी हमने उपर्युक्त तीन उदाहरण से विपरित राजयोग को अच्छी तरह समझने का प्रयास किया आशा करता हूँ आपको बेहतर समझ में आया होगा। अब हम विपरित राजयोग के फल के बारे में बात करेंगे।
विपरित राज योग का फल
Vipreet Rajyoga का फल ही तो जानना चाहते हैं हम, मैं जानता हूँ कि आपको यह जानने में अच्छा लगता है कि इससे क्या लाभ होगा, कब पैसा मिलेगा आखिर? इसी तथ्य को खोजते-खोजते मैं स्वयं ज्योतिष सीख गया। 😄
लेकिन मैं आपको सीधा-सीधा बतलाऊ तो विपरित राजयोग तो क्या अन्य किसी भी राजयोग का फल निश्चित नहीं होता है। जैसे मैं आपसे कहूँ कि 6H का विपरित राजयोग जिसको हर्ष विपरित राजयोग कहते हैं, आपको शत्रु पर विजय दिलाएगा, आप शत्रुहंता बनेंगे ऐसा मैं या कोई अन्य कहता है तो वो केवल इसलिए कि 6H शत्रु का भाव भी है। इस प्रकार तो मैं ये भी क्यूँ ना कह दूं कि 8H का विपरित राजयोग आपको मृत्यु पर विजयी दिलाएगा।
भला ऐसा कभी हुआ है कि मृत्यु पर किसी ने विजय पायी हो। प्रकृति का यह नियम तब भी था और आज भी है कि जो जीव जन्मा है उसका नाश भी होगा। अब आप कहेंगे परशुराम, हनुमान जी आदि और भी महापुरूष है वो चिरंजीवी है। हाँ तो, अवश्य है लेकिन कर्मों से चिरंजीवी हैं ना कि अपने शरीर से, ये आपको जब पता चलेगा जब आप शास्त्र पढ़ेंगे, चिंतन-मंथन करेंगे।
ना पढ़ने पर तो जैसा मैंने कहा वो मान लो, किसी अन्य के कुछ भी कहने पर वो भी मान लो। पर जरा सोचो आप जो नियम भगवान अर्थात् Supar Natural Power ने जब बनाए उनको अब क्या वो झुठला देगा। ऐसा करने पर तो वह स्वयं झूठा हो जाएगा और झूठा हो जाए वह इंसान ही हो सकता है भगवान नहीं।
उन्हीं नियमों में एक नियम जन्म-मरण का भी था जो आज भी मौजूद है। अच्छा अब आप कहेंगे कि परिवर्तन संसार का नियम है, समय के साथ सब बदलता है। ठीक मैं मानता हूँ आपकी इस बात को; तो आज के समय भी तो एक से एक बड़ा ज्ञानी पड़ा है, एक से बढ़कर एक धर्मात्मा भी है। शास्त्रों का ज्ञान रखने वाला भी है। कोई भी व्यक्ति अगर अमर होके दिखाए तो मैं ये वचन देता हूँ कि जो आप कहेंगे या वो व्यक्ति कहेगा वो मैं करूंगा।
लेकिन ये भी सम्भव नहीं है क्योंकि उसके लिए मुझे भी अमर होना पड़ेगा 😄। लेकिन आप यहां अपने विवेक का प्रयोग करो और जो मैंने कहा उस पर विचार करो।
निष्कर्ष
Vipreet Rajyoga के इस अध्याय में मैं यही उम्मीद करता हूँ कि आपको सब कुछ अच्छे से समझ में आया हो। तो किसी भी राजयोग का फल निर्धारित नहीं है। इसी तरह इस राजयोग का भी नहीं है। लेकिन फलादेश किया जा सकता है जिस प्रकार उपर्युक्त तीन उदाहरणों में मैंने फलादेश किया।
अब आप कहेंगे कि ये ज्योतिषी पागल हो गया है। कभी कहता है कि फलादेश नहीं किया जा सकता और अभी कह रहा है कि जैसे मैंने किया वैसे किया जा सकता है। 😄
ये बात भी उचित है, तो मैंने उपर्युक्त सम्पूर्ण कुंडली को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया है। इसी प्रकार आपको भी ध्यान रखना है कि जब हम विपरित राजयोग का फलादेश करें तो अन्य ग्रहों को भी ध्यान में रखें।
और ज्योतिष में परिस्थिति नाम का शब्द भी आता है। ये शब्द ज्योतिष के अनुसार अपने आप में विस्तृत है। मान के चलो किसी अमीर व्यक्ति के यहां किसी ने जन्म लिया तो उसका कुंडली का विश्लेषण उसके आधार पर होगा। ये परिस्थिति का सिर्फ एक पहलू है, इसी तरह इस शब्द को और भी फैलाया जा सकता है।
जैसे मेरी कुंडली में विपरित राजयोग बन रहा है लेकिन मैं अभी जन्मा हूँ तो क्या मैं जन्म से पैसे कमाने लगूंगा। अरे अभी तो पलना है फिर पढ़ना है फिर क्या काबिलियत हांसिल की है मैंने उसके आधार पर ही तो धन कमाऊंगा।
तो कहने का मतलब ये कि एक समय पर ही सब होता है जैसा उस समय के अनुसार उचित हो। समय से पहले कुछ नहीं होता; हाँ ये एक अलग बात है कि किसी का समय पहले आ जाता है तो किसी का बाद में पर भगवान व्यक्ति को सबकुछ अपने अनुरूप बदलने का अवसर अवश्य देता है।
अब ये बात भी अलग है कि आप उस समय को पहचान पाते हो अथवा नहीं। लेकिन प्रत्येक के लिए वैसा समय आता है जैसा वो व्यक्ति कुछ करना चाहता है। बस उस समय के लिए व्यक्ति को तैयार होना होता है। अपने मन-पसंदीदा कार्य में लगे रहना और करते रहना होता है।
उलझा दूँगा आपको लेख मैं; पर मेरे विचार समाप्त नहीं होंगे 😄 इसलिए विराम।
और हाँ लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार!
सुनो, जाने की बहुत जल्दी है 👇 इसको भी पढ़ो।
- षोडशोपचार पूजा अर्थात् अपने आराध्य की 16 प्रकारों से पूजा।
जीव हो या जन्तु, सजीव हो या निर्जीव,
बोली हो या मौन, क्रिया हो या प्रतिक्रिया,
एकता हो या अनेकता, समाज हो या आदिवास,
झूठ हो या सच, विश्वास हो या अंधविश्वास,
प्रत्येक चीज़ का एक आधार होता है; निराधार कुछ भी नहीं।
———ललित कुमार ———
विदा! पर आपको नहीं जाना आपको षोडशोपचार पूजा पढ़ना है। जाना मुझे है क्योंकि आना भी तो है अगले विषय को लेकर।
नमस्ते!
Lalit g app ki samjanei ki vidhi bhut good hai so apsey request hai app meri kundli mai battaye Tula lagan ki kiya vimal rajyog kaisey bun raha hai
Apka bhut bhut thanx
Lalit u r very tellented person in astrology