Kundali Kaise Dekhe सीरीज के इस अध्याय में हम “ग्रहों की दशा” क्या होती है? तथा इसके प्रकारों का वर्णन करेंगे इसके साथ-साथ हम यह भी सीखेंगे कि ग्रहों की दृष्टि कैसे देखें?
नमस्ते! राम-राम! Whatever you feel connected with me. Kundali Kaise Dekhe सीरीज में इस अध्याय से पहले हम पार्ट-9 तक बात कर चुके हैं; जिसको आपने भलीभांति समझा भी है। आरम्भ करने से पहले मैं आपसे गुजारिश करना चाहूँगा कि अगर आप Kundali Kaise Dekhe सीरीज का यह अध्याय पहली बार देख रहें हैं तो कृपया पहले पार्ट से देखकर आइए ताकि आपको सभी तथ्य समझ में आए।
Kundali Kaise Dekhe Part-1 |
Kundali Kaise Dekhe Part-2 |
Kundali Kaise Dekhe Part-3 |
Kundali Kaise Dekhe Part-4 |
ग्रहों की दशा
Kundali Kaise Dekhe सीरीज के इस अध्याय में आज का पहला शीर्षक है ग्रहों की दशा जिसको हम अच्छी तरह समझने वाले हैं। ग्रह अर्थात् 9 ग्रह ये तो समझ आता है लेकिन दशा जिसको हम ज्योतिष की भाषा में दशा कहते हैं और समान्य भाषा में समय कह सकते हैं।
अब हम कह सकते हैं कि ग्रहों की दशा अर्थात् ग्रहों का समय। ज्योतिष में ग्रहों का समय या दशा मुख्यतः 5 प्रकार की होती है जिनका विवरण निम्न प्रकार है:-
प्रकार | समयावधि |
महादशा | 6-20 वर्ष |
अंतर्दशा | 1-2 वर्ष |
प्रत्यंतरदशा | 1-2 महीने |
सूक्ष्मदशा | 1-2 सप्ताह |
प्राणदशा | 1-2 दिन |
महादशा- उपर्युक्त सारणी में महादशा का समय 6-20 वर्ष बताया गया है। ज्योतिष में कुल 9 ग्रह होते हैं ये तो सभी को पता है। इन्हीं 9 ग्रहों में से किसी ग्रह का समय 6 वर्ष का होता है तो किसी ग्रह का समय 20 वर्ष का होता है। सम्पूर्ण महादशा का समय कुल 120 वर्ष का होता है जो 9 ग्रहों में अलग-अलग समयावधि का बँटा होता है जिसका विवरण कुछ इस प्रकार है:—
ग्रहों की दशा | समयावधि |
सूर्य महादशा | 6 वर्ष |
मंगल महादशा | 7 वर्ष |
केतु महादशा | 7 वर्ष |
चंद्र महादशा | 10 वर्ष |
गुरु महादशा | 16 वर्ष |
बुध महादशा | 17 वर्ष |
राहु महादशा | 18 वर्ष |
शनि महादशा | 19 वर्ष |
शुक्र महादशा | 20 वर्ष |
कुल योग | 120 वर्ष |
किसी भी ग्रह की महादशा आपको किस प्रकार का फल देगी इसका निर्धारण जन्म कुंडली का विश्लेषण करने के पश्चात् ही बताया जा सकता है। मानो कि आपके जीवन में सूर्य की महादशा चल रही है, अब सूर्य आपकी कुंडली में योगकारक हैं अथवा मारक।
किसी भी ग्रह का आपकी कुंडली में योगकारक होना आपको शुभ ही फल देता है। इसी प्रकार ग्रह का मारक की श्रेणी में आना अशुभ फल देने का संकेत देता है। जिस प्रकार महादशा ग्रहों में विभाजित है उसी प्रकार अन्य दशाएं भी ग्रहों में विभाजित हैं।
महादशा का आगामी विभाजन अंतर्दशा है और अंतर्दशा का आगामी विभाजन प्रत्यंतरदशा; प्रत्यंतरदशा का आगामी विभाजन सूक्ष्मदशा तथा सूक्ष्मदशा का आगामी विभाजन प्राण दशा है।
जिस ग्रह की महादशा चल रही है उसके आगामी विभाजन अर्थात् अंतर्दशा में भी सबसे पहले उसी ग्रह का समय आएगा जिसकी महादशा चल रही है; इसी प्रकार आगे की दशाओं में भी होता है।
दशाओं का महत्व
आपके जीवन में कभी अच्छा हुआ है; आप कहोगे हाँ, लेकिन वो अच्छा क्या अभी तक बरकरार रहा है। इसी तरह बुरा होने का भी नियम है। जिस प्रकार जन्म सुख का अनुभव कराता है उसी प्रकार मृत्यु दुःख का अनुभव कराती है। सुख-दुःख का जीवन में होना संसार का सार्वभौमिक सत्य है।
इसी प्रकार परिवर्तन भी संसार का नियम है। आज दुःख है तो कल सुख भी आएगा।
जीवन में सुख और दुःख का आंकलन ग्रहों की दशाओं से किया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में न तो सभी ग्रह योगकारक होते हैं और ना ही मारक। इन्हीं के आधार पर ज्योतिषी मारक ग्रहों का उपाय बताते हैं, योग बनाते हैं आदि और भी बहुत कुछ।
इससे पहले कि ये विषय धर्मशास्त्र की तरफ जाए उससे पहले हम Kundali Kaise Dekhe सीरीज के इस अध्याय के अगले शीर्षक के बारे में बात करते हैं।
ग्रहों की दृष्टि कैसे देखें ?
सभी ग्रहों की 7 वीं दृष्टि होती है लेकिन कुछ ग्रहों के पास विशेष दृष्टियाँ भी होती हैं जिनका विवरण अग्रानुसार है:—
ग्रह | दृष्टि |
गुरु, राहु, केतु | 5, 7, 9 |
मंगल | 4, 7, 8 |
शनि | 3, 7, 10 |
शुक्र, बुध, चंद्र, सूर्य | 7 |
गुरु, राह, केतु की समान दृष्टियाँ है इसलिए किसी एक ग्रह का उदाहरण देके समझाता हूँ। मानो कि आपकी लग्न कुंडली में गुरु 4H में बैठे हैं तो उनकी दृष्टियाँ जो 5, 7, 9 होती है वो कहाँ पड़ेंगी। तो पहली दृष्टि 4H पर, दूसरी 5H पर, तीसरी 6H पर, चौथी 7H पर और 5 वीं 8H पर, 6 वीं 9H पर, 7 वीं 10H पर, 8 वीं 11H पर तथा 9 वीं 12H पर।
इसी प्रकार आपकी लग्न कुंडली में गुरु, राहु, केतु तथा अन्य सभी ग्रह जिस house में विराजित हो उसके अनुसार देख लेना कि उनकी दृष्टियाँ कुण्डली के किस घर पर पड़ रहीं हैं।
- अब आपको यह समझना होगा कि किसी भी ग्रह की कोई भी दशा आएगी (दशाओं का वर्णन किया जा चुका है) जैसे महादशा, सूक्ष्मदशा इत्यादि तब ग्रह पूर्ण रूप से Active होता है।
- कोई भी ग्रह जब Active होता है तब मुख्यतः कुण्डली में 4 जगह प्रभाव डालता है।
ग्रह प्रभाव | फल |
जहां बैठा हो (लग्न, गोचर, चलित) | 60% |
जहां देख रहा हो अर्थात् दृष्टि | 20% |
ग्रह की जहाँ राशियाँ हो | 10% |
जिस घर का कारक ग्रह हो | 10% |
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ग्रह की दशा/समय आने पर जन्म-कुण्डली में मुख्यतः बैठने वाला घर, देखने वाला घर, राशि वाला घर तथा जिस घर से संबंधित है अर्थात् कारक घर पर प्रभाव डालता है।
- यहां पर आपको एक बात ध्यान रखनी है कि कोई भी ग्रह योगकारकता और मारकता के अनुसार ही परिणाम देता है। अगर आपकी लग्न कुंडली में सूर्य योगकारक तब चाहें जो परिस्थिति हो सूर्य आपको हमेशा सकारात्मक परिणाम ही देंगे।
- अगर आपकी लग्न कुंडली में शनि मारक सिद्ध हुए तो फिर शनि आपको नकारात्मक परिणाम देंगे। जब-जब शनि की किसी भी प्रकार की दशा आपके जीवन में आएगी तो लग्न कुंडली में शनि जहाँ बैठे हैं, जहाँ उनकी दृष्टियाँ पड़ेंगी, जहाँ उनकी राशि हैं तथा जिस घर के वो कारक ग्रह हैं जैसे 8H इन सभी जगह शनि आपको गलत ही परिणाम देंगे।
दोस्तों Kundali Kaise Dekhe सीरीज के इस अध्याय को हम यहीं पर समाप्त करते हैं। अगले अध्याय में हम जानेंगे कि अपनी लग्न कुंडली के अनुसार योगकारक और मारक ग्रह किस प्रकार निकालते हैं।
🙏 आपसे निवेदन है कि Kundali Kaise Dekhe सीरीज आपको पूर्णतया समझ आ रही है तो comment करिए अगर कुछ समस्या आ रही है समझने में तब तो अवश्य ही कमेंट करिए ताकि आपकी समस्या का समाधान जल्द-से-जल्द किया जा सके।
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योगकारक ग्रह बाधक कैसे होता है कृपया यह भी स्पष्ट करें। 🙏🏻
Monica Bose जी जैसे तुला लग्न में शनि अति योगकारक होते हैं लेकिन यदि वो 6H-8H-12H में चले जाएं या 7H में जाने के बाद नीच भंग ना हो उनका तो एक अति योगकारक ग्रह मारक हो जाएगा; इसी तरह योगकारक ग्रह बाधक बन जाता है।