अच्छा आपने समय की 3 इकाइयों के बारे में जाना calculation of time में उसी प्रकार, महीनों और साल में दिनों की संख्या की गणना के बारे में जाना Vedic time system में और आज हम 12 months name in hindi अर्थात् ऋग्वेद के समय में 12 महीनों के क्या नाम थे और उनका वैदिक समय तक आते-आते नामकरण किस आधार पर हुआ था, इस पर भी चर्चा करेंगे, साथ-ही-साथ दिनों के नामकरण की विधि को भी समझेंगे तथा प्राचीन महीनों के नामों का विलय समय के साथ कैसे हुआ और आज हम आधुनिक माह के नामों को ही क्यों जानते हैं, इस पर भी चर्चा करेंगे।
यह सम्पूर्ण लेख हमारी अन्य वेबसाइट mysticscience.in पर उपलब्ध है जिसका लिंक ये है 👉 12 महीनों के नामकरण का सफ़र। 👈

नमस्ते! रामराम! Whatever you feel connected with me मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आप सभी का मुझसे जुड़ने के लिए। साथ-ही-साथ मुझे और मेरी लेखन सामग्री को इतना प्यार देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। तो चलिए शुरू करते हैं——
भारतीय ग्रंथों में 12 महीनों का उल्लेख
12 Months Name In Hindi तैत्तिरीय संहिता में ऋतुओं और महीनों के नामों का वर्णन कुछ इस प्रकार दिया हुआ है:——
मधुश्च माधवश्च वासंतिकावृतू शुकश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतू इषश्चोर्जश्च शारदावृतू सहश्च सहस्यश्च हैमंतिकावृतू तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू।।
अर्थ — वसंत ऋतु के दो महीने हैं, मधु और माधव; ग्रीष्म ऋतु के दो महीने हैं, शुक और शुचि; वर्षा के दो महीने हैं, नभ और नभस्य; शरद के दो महीने हैं, सह और सहस्य; शिशिर के दो महीने हैं, तपस और तपस्य।
वाजसनेयी संहिता में उपर्युक्त बारह महीनों के अलावा 13 वें महीने का भी वर्णन है। वाजसनेयी संहिता के अनुसार 13 वां महीना लौंद का महीना होता था, जिसको उस ज़माने के लोग अहंसस्पति के नाम से पुकारते थे।
मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुकाय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय स्वाहेषाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा सहस्याय स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय स्वाहांहसस्पतये स्वाहा।।
अर्थ — मधु के लिए स्वाहा, माधव के लिए स्वाहा, शुक के लिए स्वाहा, शुचि के लिए स्वाहा, नभ के लिए स्वाहा, नभस्य के लिए स्वाहा, इष के लिए स्वाहा, ऊर्ज के लिए स्वाहा, सह के लिए स्वाहा, सहस्य के लिए स्वाहा, तपस के लिए स्वाहा, तपस्य के लिए स्वाहा, अहंसस्पति (पाप के पति या मलमास) के लिए स्वाहा।
उपर्युक्त जो आपने महीनों के नाम देखे वो तैत्तिरीय संहिता और वाजसनेयी संहिता में समान थे अर्थात् एक ही नाम थे। लेकिन तैत्तिरीय ब्राह्मण में महीनों के नाम अलग मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं:—-
अरूणोरूणरजाः पुंडरीको विश्वजिदभिजित्।। आर्द्रः पिन्वमानोन्नवान् रसवानिरावान्।। सवौंषधः संभरों महस्वान्।।
अर्थ— महीनों के 13 नाम ये हैं:— 1) अरुण, 2) अरुणरज, 3) पुंडरीक, 4) विश्वजित्, 5) अभिजीत्, 6) आर्द्रा, 7) पिन्वमान, 8) उन्नवान्, 9) रसवान्, 10) इरावान्, 11) सवौंषध, 12) संभर, 13) महस्वान्।।
उपर्युक्त बताए गए धार्मिक ग्रंथों में महीनों के नामों का उल्लेख होने से यह तो पता चलता है कि प्राचीनतम मनुष्य महीनों का हिसाब समय को आंकने के लिए रखता था। उपर दिए गए प्रमाण के बाद तो तनिक भी संदेह आधुनिक मनुष्य के मस्तिष्क में नहीं रह जाता; अच्छा महीनों के साथ-साथ प्राचीन मनुष्य दिनों का हिसाब भी ठीक-ठीक रखता था। क्योंकि, वर्ष में 360 दिन होने का वर्णन ऐतरेय ब्राह्मण में कुछ इस प्रकार है:—
त्रीणि च वै शतानि षष्टिश्च संवत्सरस्याहानि सप्त च वै शतानि विंशतिश्च संवत्सरस्याहोरात्रयः।।
अर्थ— तीन सौ साठ दिन का वर्ष होता है; वर्ष में सात सौ बीस दिन और रात होते हैं।
ताण्डय ब्राह्मण में भी वर्ष में दिनों की संख्या ठीक रखने के संदर्भ में एक वाक्य दिया है; जो रोचक सा प्रतीत होता है—
यथा वै दृतिराध्मात एवं संवत्सरोनुत्सृष्टः।।
अर्थ—यदि एक दिन न छोड़ दिया जाएगा तो वर्ष वैसे ही फूल जाएगा जैसे चमड़े की मशक।
वर्ष का विभाजन
ज्योतिष में वर्ष को दो बराबर भागों में बांटा जाता है। एक भाग को उत्तरायण और दूसरे भाग को दक्षिणायन कहते हैं। उत्तरायण उसको कहते थे जब सूर्य 6 महीने पृथ्वी के संदर्भ में उत्तर जाता रहता था और दक्षिणायन उसको जिसमें सूर्योदय बिंदु पूर्व बिंदु से दक्षिण हुआ करता था। इस संदर्भ में तैत्तिरीय संहिता में लिखा है——
तस्मादादित्यः षष्मासो दक्षिणेनैति षडुत्तरेण।।
अर्थात् सूर्य 6 महीने दक्षिणायन रहता है और 6 महीने उत्तरायण।
Mai muslim hu lekin aapke lekh padhta hu, kyuki aapke lekh jaankari dene baale hote hai.