How to do shodashopachara pooja? आपके इसी प्रश्न का जवाब लेकर आज हम उपस्थित हुए हैं कि शिव षोडशोपचार पूजा आदि देवों का पूजन विधि मंत्र सहित कैसे करें?
नमस्ते! राम-राम! Whatever you feel connected with me मैं ललित कुमार स्वागत करता हूँ आपका “shodashopchar pujan” में, तो चलिए शुरू करते हैं—–
विषय सूची
षोडशोपचार का अर्थ
सबसे पहले आपको षोडशोपचार का मतलब क्या है? ये पता होना चाहिए, shodashopchar puja का मतलब है 16 प्रकार की पूजा। shodashopchar pooja विधि में एक माध्यम है जिसमें हम अपने भगवान की सोलह प्रकारों से पूजा कर सकते हैं। इसी सम्पूर्ण विधान को हम षोडशोपचार पूजा (shodashopchar puja vidhi) कहते हैं। इसमें षोडशोपचार पूजा मंत्र संकलित होते हैं जिनको हम अग्रलिखतानुसार समझने का प्रयास करेंगे लेकिन उस से पहले आपको पवित्र होना होता है, गुरु देव पृथ्वी माँ आदि को नमन करना पड़ता है तो पहले हम ये समझेंगे उसके बाद षोडशोपचार पूजा विधान।
चौकी स्थापना
- अमुक देव/देवी की पूजा चौकी स्थापना करते समय ध्यान रखना है कि चौकी का मुँह पूर्व दिशा की और हो या फिर आपका मुँह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
- जो भी सामग्री पूजा से संबंधित हैं वो सभी आपके पास पूजा स्थल में उपस्थित होनी चाहिए।
- एक बार जब आप पूजा स्थल में विराजित होंगे तो पूजा सम्पन्न होने तक पूजा स्थल के आसन पर ही विराजमान रहेंगे।
- बार-बार पूजा स्थल से उठना पूजा में व्यवधान और नकारात्मक ऊर्जा को आवाहन देता है।
- अगर आप विवाहित हैं तो जोड़े के साथ पूजा करना विशेष फलदायी होता है।
- चौकी की पूर्ण सज्जा अपने मनोनुसार और सामर्थानुसार करनी चाहिए।
- जिस भी भगवान की आपको पूजा करनी है उनकी प्रतिमा पत्थर या पीतल की हो तो सर्वोपरि है नहीं तो जो हो आपके पास वही उचित है।
गंगाजल नमन
अगर आपके पास गंगाजल हो तो सबसे अच्छा नहीं तो शुद्ध जल को भाव से गंगाजल का स्वरूप मानकर नीचे दिए गये मंत्र से उनको सम्मान देना है।
ओउम् पंचनद्यः सरस्वतीमपि यान्ति सस्त्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा सो देश ऽ भवत्सरित।। ओउम् गंगायै नमः। गंगामावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
पवित्र मंत्र
अपने पूजा स्थल पर पूजा विधान आरम्भ करने से पहले आपको शुद्ध होना है।
ओउम् अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ ओउम् पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।
अर्थात् आप शुद्ध हो या अशुद्ध चाहें किसी भी प्रकार की स्थिति में क्यों न हो भगवान पुण्डरीकाक्ष को याद करने के पश्चात् भगवान पुण्डरीकाक्ष आपको शुद्ध करेंगे। [ गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु को ही पुण्डरीकाक्ष की संज्ञा दी गई है। ]
आचमन मंत्र
- ओउम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
- ओउम् अमृतापिधानमसि स्वाहा।
- ओउम् सत्यं यशः श्रीर्मयिः श्रीः श्रयतां स्वाहा।।
पहला मंत्र बोलते समय जल से हाथ धोना है, फिर जल को पीना है तथा पुनः हाथ धोना है।
शिखाबन्धनं
अपना सीधा हाथ चोटी पर रखना है अगर चोटी है तो न होने पर चोटी वाली जगह हाथ रखना है और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना है।
ओउम् चिद्रूपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखा मध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।
प्राणायामः
ओउम् आपो ज्योतीरसोऽमृतम् ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।।
उपर्युक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए ऐसा ध्यान करना है कि आपके सातों चक्र मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र जागृत हो चुके हैं।
अंगन्यास
जिस मंत्र के आगे कोष्ठक में जो शरीर का अंग लिखा है वहां अपना सीधा हाथ रख कर यह श्लोक बोलना है।
- ओउम् वाङमेआस्येऽस्तु। (मुख)
- ओउम् नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका)
- ओउम् अक्ष्णोर्मे चक्षरस्तु। (नेत्र)
- ओउम् कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (कान)
- ओउम् बाह्रोर्मे बलमस्तु। (भुजा)
- ओउम् ऊर्वोर्मे ओजोऽस्तु। (जंघा)
- ओउम् अरिष्टानि मेऽगानि तनूस्त न्वा में सह सन्तु। (सम्पूर्ण शरीर)
गुरु को नमन
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम तत पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
अर्थात:- जो कण-कण में व्याप्त है, सकल ब्रह्मांड में समाया है, चर-अचर में उपस्थित है, उस प्रभु के तत्व रूप को, जो मेरे भीतर प्रकट कर, मुझे साक्षात दर्शन करा दे उन गुरु को मेरा शत-शत नमन है। वही पूर्ण गुरु है जो परम सत्ता के बारे में बतलाता है, परम सत्ता जो निर्जीव और सजीवों को विश्व में व्यवस्थित करता है; मैं ऐसे गुरु को प्रणाम करता हूँ।
पृथ्वी नमस्कार मंत्र (prithvi namaskar mantra)
ओउम् महीघौः पृथ्विं च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिप्रतान्नो भरीमभिः।।
अगर आप मंत्र ना बोल पाएं तो आप अपने शब्दों में धरती माता को नमस्ते बोलें।
धरती माँ से क्षमा-याचना
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते। विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥
अर्थात् समुद्र को वस्त्र के स्वरूप में धारण करने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! आप मुझे पैर रखने के लिये क्षमा करें। और जैसे आप अपने शब्दों में बोल पाएं वैसे।
पूर्वजों को नमन
ओउम् पितृरेभ्यो नमः। पितृणामावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
अगर उपर्युक्त मंत्र न बोल पाएं तो कहें कि मैं अपने पूर्वजों को आदर-सद्भाव के साथ सत-सत नमन करता हूँ।
क्षेत्रपाल पूजनं
जहां आप रह रहें हैं उस जगह का उत्तरदायित्व वहां के देव का होता है जिनको हम क्षेत्रपाल कहते हैं, जिनको हम नमस्ते नीचे दिए गये मंत्र से कह रहे हैं और अपनी पूजा में उनका आवाहन भी कर रहें हैं तथा साथ-ही-साथ ये भी प्रार्थना कर रहें हैं कि हमारी पूजा में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन हो और क्षेत्र में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा का विनाश हो।
ओउम् भ्राजच्चन्द्र जटाधरं त्रिनयनं नीलांजनाद्रि प्रभं दोद्र्दण्डात्त कृपाल मरुण स्रग्गन्ध वस्त्रोऽज्वलम्।। घण्टा मेखल घर्घर ध्वनि लसज्झंकार भीमं विभं। वन्दे संहति सर्प कुण्डलधरं श्री क्षेत्रपालं सदा।।
दीप प्रज्वलित मंत्र
उपर्युक्त बताया गया सब-कुछ करने के पश्चात् अब आपको दीपक प्रज्वलित करना है फिर हाथ जोड़ कर नीचे दिया हुआ मंत्र बोलना है; अगर आपको मंत्र याद हो जाए तो दीपक प्रज्वलित करते-करते भी बोल सकते हैं।
ॐ भो दीपदेवरूपस्त्वम् कर्मसाक्षी ह्यं विघ्नकृत। यावत कर्म समाप्तिः स्यात् तावत्त्वम् सुस्थिरो भव।।
संकल्प मंत्र
ओउम् विष्णुः-३ अद्य श्री मद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीय प्रहराद्र्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे सप्तमे वैवश्वत। मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बू द्वीपे भरत खण्डे आर्यावर्ता अन्तर्गत ब्रह्म वर्तक देशे परम पुनीते भारत वर्षे अमुक मण्डले आदिवाराह भूतेश्वर क्षेत्रे अमुक ग्रामे अमुक विक्रम सम्वत्सरे अमुक शकाव्दे अमुक आयने अमुक ऋतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहम् मम कायिक वाचिक मानसिक ज्ञाताज्ञात दोष परिहरणार्थम् श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थम् श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थम् देव पूजनम् अनुष्ठानम् च करिष्ये।।
कलश पूजनं
ओउम् कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठेरूद्र समाश्रितः। मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्रगणा स्मृताः।। स्वस्तिवाचन ओउम् स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु।।
पंचदेव पूजन
पंचदेव पूजन में मुख्यतः गणेश जी, गौरी जी, शंकर जी, विष्णु जी, लक्ष्मी जी तथा कहीं-कहीं दुर्गा जी का भी पूजन होता है; दुर्गा माँ या गौरी माँ में से कोई एक माँ मिलाकर पंच देवों का पूजन होता है जोकि इस प्रकार है:—
गणेश पूजन
ओउम् नमो सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन् महागणधिपतये नमः। ओउम् गणनां त्वा गणपति गुगंवा हवामहे प्रियणां त्वा प्रियपति गुगंवा हवामहे निधीनां त्वा निधिपति गुगंवा हवामहे वशोमम्। आहमजानि गर्भधम त्वमजासि गर्भधम्।। ओउम् गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
गौरी पूजन
ओउम् आयंगौः। पृश्निरक्रमी दसन् मातरं पुर। पितरञ्च प्रयन्त्स्व।। ओउम् गौर्ये नमः गौरीमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
रुद्र पूजन
ओउम् नमस्ते रुद्र मन्यवउतो त इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः।। ओउम् रुद्राय नमः रुद्रामावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
विष्णु पूजन
ओउम् इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्। समूढ़मस्य पा गुगंवा सुरे स्वाहा।। ओउम् विष्णुवे नमः विष्णुमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
लक्ष्मी पूजन
ओउम् श्रीश्चत लक्ष्मीश्च पत्नयावहोरात्रे पाश्र्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम। इष्णन्निषाणामुं मऽइषाण सर्वलोकं मऽइषाण।। ओउम् लक्ष्म्यै नमः लक्ष्मीमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
नवग्रह पूजन
सूर्य
ओउम् आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृत मत्र्यश्च हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।। ओउम् सूर्याय नमः सूर्यमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
चन्द्र
ओउम् इमं देवो असपत्न गुगंवा सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियपय। इमं मनुष्य पुत्रम्मुष्य पुत्रमस्यै विशऽएव वोऽमी राजा सोमोऽस्मकं ब्राह्मणना गुंगवा राज्ञा।। ओउम् चन्द्रमसे नमः। चन्द्रामावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
भौम(मंगल)
ओउम् अग्नि मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्याऽअयं। अपा सिरेता गुंगवा सि जिन्वति।। ओउम् भौमाय नमः। भौममावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
बुध
ओउम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स गुंगवा सृजेथामयं च। अस्मिन्त्स धस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत।।
वृहस्पति
ओउम् वृहस्पतेअति यदर्यो अर्हाद् घुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु। यद्दादयच्छवसऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयाम गृहीतोऽसि वृहस्पतये त्वैष तेथानि बृहस्पतये त्वा।। ओउम् बृहस्पतये नमः। बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
शुक्र
ओउम् अन्नात्परिस्त्रुता रसं बृह्मणा व्यपिवत् छत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान गुंगवा शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृत मधु।। ओउम् शुक्राय नमः। शुक्रमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
शनिश्चर(शनि)
ओउम् शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्त्रवन्तु नः।। ओउम् शनिश्चराय नमः। शनिश्चरामावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
राहु
ओउम् कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठयावृता।। ओउम् राहुवे नमः। राहुमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
केतु
ओउम् केतु कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिर जायथाः।। ओउम् केतुवे नमः। केतुमावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ध्यायामि।।
षोडशोपचार पूजन विधि मंत्र सहित
- आवाहनं:- ओउम् हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो न आवह।।
- आसनं:- ओउम् तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरूषानहम्।।
- पाद्यं:- ओउम् अश्वपूर्वां रथ मध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्रयै श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
- अघ्र्यं:- ओउम् कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्ती तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म वर्णां तामिहोप ह्रये श्रियम्।।
- आचमनं:- ओउम् चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव जुष्णमुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्घेऽअवलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वाम् वृणे।।
- स्नानं:- ओउम् आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ विल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तुया अन्तरा याश्च वाह्याः अलक्ष्मीः।।
- वस्त्रं:- ओउम् उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातुमे।।
- उपवस्त्रं:- ओउम् क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाश्याम्यहम्। अभूतिमसमृध्दि च सर्वां निर्णुद में गृहात्।।
- गन्धं:- गन्धद्वारां दुरा धर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानाम् तामिहीप ह्रये श्रियम्।।
- सौभाग्यद्रव्यं (सिन्दूर):- ओउम् काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि। पशूनाम् रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
- पुष्पं:- ओउम् कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासय में कुले मातरं पद्मालिनीम्।।
- धूपं:- आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले।।
- दीपं:- आद्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
- नैवेद्यं:- आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरष्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
- दक्षिणां:- ओउम् तांम आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनप गामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।
- नमस्कारं:- यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदशर्चं च श्री कामः सततं जयेत्।।
अंत में सिद्ध कुंजिका का पाठ भी कर सकते हैं आप।
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Ye Puja bahut kathin lagti h……… Iske Mantra Sahi tarah se bolna aasan nhi lagta , lekin kosis karenge aur jankari aapne bahut vistaar se di hai